पर्यावरण प्रदूषण और तापमान वृद्धि पर सिर्फ चिंताएं, समाधान पर नहीं हो रहा काम

नई दिल्ली। इस बार दिल्ली में नवम्बर महीने का प्रदूषण सारे हो हल्ला और मी लार्ड की सक्रियता और हरित प्राधिकरण के दिशा निर्देशों के बावजूद दिपावली के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। अब भी, बहुत सारे इलाकों में हवा में जहर खतरनाक तरीके से घुला हुआ है। जहां राहत घोषित किया गया है, वे भी सांस लेने के उपयुक्त नहीं हैं। जाड़ा का इंतजार करते-करते अब दिसम्बर की दहलीज आ चुकी है। हां, इतना जरूर हुआ है कि यहां दिन और रात के तापमान में लगभग ढाई गुना से तीन गुना का फर्क पड़ जाने से दोपहर के बाद की हवा पर थोड़ा फर्क जरूर पड़ने लगा था।

आने वाले समय में, यह फर्क जितना कम होगा, हवा का ठहराव बढ़ने से स्मोग लोगों के फेफड़ों पर खतरनाक असर डालने की स्थिति में आ जाएगा। उम्मीद करिए दिसम्बर में थोड़ी बारिश हो जाए, जिससे सांस लेने का अहसास बना रहे। इस बीच पर्यावरण की जो सबसे चिंताजनक खबर आई, वह विश्व तापमान में सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि साल के ज्यादातर समय में बना रहना था। दूसरी, खबर भी साथ-साथ ही आई कि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए जो दावे किये जा रहे हैं, उसके कम होने की गुंजाइश फिलहाल 14 प्रतिशत तक ही पहुंची है।

यहां जो पहली खबर है, उसके बारे में यह कहा जा रहा है कि पूंजीवादी औद्योगीकरण के पहले दौर में, 19वीं सदी के अंत तक जो तापमान था, उसमें 1.5 डिग्री सेल्सियस आने वाली सदी में जुड़ गया है। यह बढ़ता हुआ तापमान 21वीं सदी में साफ दिखने लगा और कई सारे बर्फीले स्थल पिघलने लगे, समुद्र तल में उठान आया और समुद्र की सतह का तापमान भी बढ़ने लगा है। इससे कई सारे मौसमी असर देखने को मिल रहे हैं।

इस बार यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकॉस्ट्स ने अपने विश्लेषण में बताया कि 17 नवम्बर, 2023 को वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया। यह 2.6 डिग्री सेल्सियस था। 1991-2020 के औसत तापमान की तुलना में यह 1.17 डिग्री ज्यादा था। 2023 में गर्म दिवसों की संख्या में ही वृद्धि नहीं हुई है, इस बार का अक्टूबर और नवम्बर औसत से अधिक गर्म रहा है। वैसे भी 1,2 और 3 अक्टूबर में 47 सामान्य से अधिक गर्म रहे हैं। इस तरह यह वर्ष जलवायु इतिहास में सबसे गर्म वर्ष की तरह भी याद रखा जाएगा।

इस बढ़ते तापमान का असर दुनिया के स्तर पर जंगलों में आग लगने की संख्या की वृद्धि के तौर पर दर्ज की गई, वहीं अमेजन जैसी नदियां सूखने लगीं। अमेजन के सूखने और उसकी तलहटी में छिपे कई सारे पुरातात्विक साक्ष्यों का दिखने लगने की कहानियां लगातार इस बीच पत्रिकाओं और अखबारों में छपती रही हैं। इसकी सहायक नदी नीग्रो सिर्फ अपने तलहटी में बचे पानी के साथ नदी के रूप में बनी रही।

भारत में इसका सबसे अधिक असर हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से सैकड़ों झीलों के बनने और बारिश से अचानक बहाव में वृद्धि से बाढ़ की विभिषिका तेजी से बढ़ी हुई दिखती है। इसके साथ, पूरे भारत में बारिश की असामान्य उपस्थिति ने फसल के उत्पादन पैटर्न पर असर डाला है। इसी तरह चक्रवातों का असामान्य प्रकोप भी भारत की तरफ लगतार बढ़ रहे हैं। अल नीनो का असर हम अब सीधा देख सकते हैं।

यदि हम वर्तमान में दुनिया के तापमान को औद्योगिक काल से पूर्व के समय से नापें, तब यह 2.5 से 2.9 डिग्री सेल्सियस अधिक होने की ओर बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने 2015 के पेरिस सम्मेलन के दौरान आग्रह किया था कि हरेक देश अपने कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी लाये। लेकिन, इस बीच कोयला, तेल और गैस की वजह से पहले से बने वाल्यूम में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि ही हुई है। कार्बन उत्सर्जन के मसले पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किये रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान 1.5 डिग्री जो बढ़ा है, वह वहीं तक सीमित रह जाये, इसकी उम्मीद बस 14 प्रतिशत ही है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के फ्रेमवर्क में पर्यावरण बदलाव को लेकर संयुक्त अरब अमीरात में इस साल के अंत में मीटिंग होना तय है। लेकिन कार्बन उत्सर्जन को लेकर तैयारियां और उसके लिए होने वाले खर्च और पुरानी देनदारियों को लेकर लगातार मसला हल होने की बजाय उलझाव में जाता हुआ दिख रहा है। कार्बन उत्सर्जन के मसले पर भारत ने कई सारे दावे पहले भी किये हैं।

भारत के ऑटोमोबाईल क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों ने भी इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर किया है। भारत की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि हम जी-20 में पारित प्रस्तावों पर काम करने के लिए तैयार हैं। कार्बन उत्सर्जन में एक बड़ा स्रोत औद्योगिक उत्पादन से जुड़ी गतिविधियां हैं, जिसमें बिजली उत्पादन से लेकर ऑटोमोबाईल का क्षेत्र है। इसे कोयला, तेल जैसे संसाधनों की जगह अन्य गैर कार्बनिक स्रोतों की ओर ले जाने का अर्थ एक बड़े निवेश की मांग करेगा और यह पूंजी के पुनर्व्यवस्था की भी मांग करेगा। इसकी तैयारियां और लागू करने की संरचना हम आने वाली मीटिंगों में देख सकेंगे।

फिलहाल, इस बार जिस जगह मीटिंग हो रही है, वहां पर जन और जनसंगठनों की ओर प्रदर्शन कर एक वैकल्पिक मांग रखने का कोई अवसर मिलता हुआ नहीं दिख रहा है। एक बेहद सुरक्षित जगह पर पर्यावरण पर पूंजीपतियों और सरकार के नुमाइंदों के बीच संपन्न होने वाली आगामी मीटिंग, कहीं सिर्फ एक औपचारिकता ही न रह जाये।

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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