वेदांता इलेक्ट्रो स्टील को वन भूमि देने का आदेश रद्द, कंपनी ने सैकड़ों एकड़ में कर रखा है कंस्ट्रक्शन

झारखंड। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार ने बोकारो के वेदांता इलेक्ट्रो स्टील प्लांट को पूर्व में दिए गए वन भूमि के उपयोग के आदेश (स्टेज-1) को रद्द कर दिया है। इस बावत केंद्र सरकार ने झारखंड के वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव को पत्र लिख कर इसकी जानकारी दी है।

बता दें कि झारखंड सरकार ने वर्ष 2019 में वेदांता इलेक्ट्रो स्टील प्लांट को वन भूमि के उपयोग की अनुमति दी थी। वहीं वन विभाग की बिना अंतिम सहमति के वेदांता इलेक्ट्रो स्टील प्लांट इस वन भूमि का उपयोग कर रहा है। कंपनी को जिन शर्तों पर स्टेज-1 मिला था, उसे तीन साल में राज्य सरकार या कंपनी ने पूरा नहीं किया। इस मामले में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 17 दिसंबर 2019 को कुछ शर्तों के आधार पर 184.23 हेक्टेयर वन स्टेज-1 क्लीयरेंस दिया था। वैसे इस जमीन का उपयोग वेदांता इलेक्ट्रो स्टील पहले से कर रहा था। दो साल तक भारत सरकार ने पूर्व में तय शर्तों का पालन करने के लिए कई बार आग्रह किया। लेकिन एक फरवरी 2022 तक कंपनी ने शर्तों का अनुपालन नहीं किया। इसके बाद 17 फरवरी को केंद्र ने जारी स्टेज-1 की अनुमति को रद्द करने की चेतावनी दी। जवाब में 9 सितंबर 2022 को कंपनी ने लिखा कि निर्धारित शर्तों को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ परिस्थितियों के कारण यह पूरा नहीं हो पा रहा है।

उच्च स्तरीय बैठक में भी उठा मामला

इसी मुद्दे पर 20 अक्तूबर 2022 को महानिदेशक वन विभाग की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी। इसमें इस मामले पर चर्चा की गयी। इसमें झारखंड सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल थे। इसमें बताया गया कि बार-बार कहने के बावजूद कंपनी शर्तों को पूरा नहीं कर पा रही है। अतः कंपनी को वन भूमि उपयोग के लिए फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट के तहत जो भी शर्त पूरी करनी है, वह मार्च 2023 तक पूरा कर दे।

इसके आलोक में कंपनी ने 28 अक्तूबर 2022 को अंतरिम एक्शन प्लान तैयार किया और मार्च 2023 तक स्टेज-1 की शर्तों को पूरा करने का आश्वासन दिया। साथ ही यह भी कहा कि नवंबर 2022 तक वन भूमि और प्लांट की जमीन को चिंहित करने का काम भी पूरा कर लिया जायेगा।

कंपनी द्वारा बताया गया कि 79.78 हेक्टेयर के लिए फॉरेस्ट राइट एक्ट सर्टिफिकेट (एफआरए) जारी कर दिया गया है। शेष भूमि के लिए नवंबर 2022 तक प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी। यह भी बताया गया कि कंपनी इस मामले में प्रगति रिपोर्ट हर तीन माह में देगी। लेकिन कंपनी निर्धारित समय सीमा में इन शर्तों को पूरा नहीं कर पायी। 2 दिसंबर 2022 को कंपनी ने अधूरी रिपोर्ट दी।

भारत सरकार ने रिपोर्ट को असंतोषप्रद करार दिया और साथ ही यह टिप्पणी भी की कि इस मामले में कंपनी गंभीर नहीं है। 7 मार्च 2023 को मंत्रालय ने राज्य सरकार को रिमाइंडर भेज कर तय शर्तों को पूरा करवाने का निर्देश दिया। इसकी कॉपी संबंधित कंपनी को भी दी गयी। हालांकि राज्य सरकार और कंपनी ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।

भारत सरकार ने पूरे मामले की समीक्षा करने के लिए 25 मई 2023 को बैठक की। इसमें भारत सरकार के महानिदेशक वन, राज्य के पीसीसीएफ (हॉफ) और कंपनी के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इसमें पूरी प्रक्रिया और प्रगति की समीक्षा की गयी। तय किया गया कि कंपनी ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 का पालन नहीं किया है। कंपनी को तीन साल का समय दिया गया। इस कारण स्टेज-1 अनुमति भारत सरकार वापस लेती है।

2005-2006 में रखी गई इलेक्ट्रो स्टील कंपनी नींव

कंपनी ने सैकड़ों की संख्या में चीनी नागरिकता वाले कारीगरों, इंजीनियरों व तकनीशियनों की मदद से और भारी-भारी मशीनों का उपयोग कर महज कुछ ही घंटों में वन भूमि की प्रकृति ही बदल दी। यह काम 2008-09 में हुआ, जब इलेक्ट्रो स्टील कंपनी के पास इस कारखाने का सम्पू्र्ण स्वामित्व था। परन्तु बाद के दिनों में परिस्थितिवश इलेक्ट्रो स्टील ने वेदांता ग्रुप के हाथों इसे बेच दिया और आनन-फानन में वेदांता ग्रुप ने इसे खरीदकर इसका नाम वेदांता इलेक्ट्रो स्टील कर दिया।

जानकार बताते हैं कि वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन विभाग द्वारा चिन्हित एवं अधिसूचित भूमि पर किसी तरह का निर्माण आदि नहीं किया जा सकता है। यदि राज्य सरकार को भी किसी विशिष्ट परियोजना के लिए ऐसी जमीन की जरूरत होगी तो उसे वन भूमि के अपयोजन की अनुमति भारत सरकार से लेनी होगी। लेकिन, इस कंपनी ने भारत सरकार के वन संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन किया।

हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा था जवाब

झारखंड में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से वन भूमि की हो रही खुली लूट के एक मामले में सुनवाई करते हुए लगभग तीन माह पूर्व झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सरकार की बखिया उधेड़ दी थी।

नवम्बर 2022 के प्रथम सप्ताह में झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस एस एन प्रसाद की खंडपीठ में राज्य में वन भूमि पर अतिक्रमण करने को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि- ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों ने मिलीभगत कर वन भूमि को बेच दी है। इसलिए मामले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी।

सरकार ने जवाब देने का कार्ट से समय मांगा। झारखंड सरकार की ओर से तीन सप्ताह का समय दिए जाने की मांग की जा रही थी, लेकिन अदालत ने कहा कि कोर्ट इतना समय नहीं दे सकती। सरकार के बार-बार आग्रह करने के बाद अदालत ने दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। हालांकि, सरकार ने हाईकोर्ट में क्या जवाब दिया, इस बारे में आज तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है।

मालूम को कि इस संबंध में आनंद कुमार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य के विभिन्न वन प्रमंडलों की पचास हजार हेक्टेयर वन भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। कुछ जगहों पर अधिकारियों की मिलीभगत से वन भूमि बेच दी गई है।

कंपनी की सरकारी अधिकारियों से सांठगांठ

वेदांता इलेक्ट्रो स्टील कारखाने के वनभूमि पर अवैध कंस्ट्रक्शन को लेकर कई तरह की चर्चाएं होती रही हैं, लेकिन इस पर कोई लिखित शिकायत कहीं उपलब्ध नहीं है। इस बावत तत्कालीन जेवीएम के नेता व समाज सेवी कुमार राजेश बताते हैं कि वेदान्ता इलेक्ट्रो स्टील ने सरकारी सांठगांठ करके अपनी हेकड़ी इस तरह से जमा ली है कि कोई भी कानून या सरकारी संस्था उसके लिए मायने नहीं रखती है।

उन्होंने कहा कि वन और श्रम विभाग के साथ प्रदूषण नियमों को हमेशा ठेंगा दिखाना इसकी परिपाटी है। लगातार सुरक्षा मानकों की अवहेलना के कारण आए दिन दुर्घटना होना आम बात है। सुरक्षा कर्मी लोकल गुंडे का किरदार निभाने के लिए रखे गये हैं, जिनका काम स्थानीय लोगों को आतंकित करना रह गया है। बेतरतीब ढंग से ट्रैफिक संचालन और माल ढुलाई के कारण सड़क दुर्घटना का होना आम है। कारखाने में सेफ्टी का कोई इन्तजाम नहीं है।  

वन-भूमि अतिक्रमण पर वे बताते हैं कि सन 2011-12 के आसपास वेदान्ता इलेक्ट्रो स्टील को वन भूमि कब्जे के मामले में वन विभाग एवं प्रशासन के द्वारा क्लीन चिट दे दी गई थी। गौरतलब बात यह है कि उस समय वन निगम के उपाध्यक्ष के पद पर स्थानीय विधायक उमाकांत रजक काबिज़ थे। यह जांच वन विभाग द्वारा स्वतः ही की गई थी। हालांकि आफ द रिकार्ड स्थानीय लोगों के द्वारा जमीन कब्जाने के आरोपों से वो सहमति व्यक्त करते हैं।

अगर इस पूरे मामले की सीबीआई जांच करायी जाए तो बड़े घोटाले का न सिर्फ पर्दाफाश होगा, बल्कि अरबों रुपये मूल्य की सरकारी सम्पत्ति को लूटने व लुटवाने वाले लोग बेनकाब होकर कानून के शिकंजे में होंगे।

कंपनी के प्रदूषण से लोग परेशान

बोकारो जिले के चास मुफस्सिल थाना अंतर्गत अलकुसा गांव के निवासी व सामाजिक कार्यकर्ता सनाउल अंसारी बताते हैं कि मेरे ही सामने वन विभाग के लोगों पर कंपनी ने हमला करते हुए जमीन पर कब्जा किया था, परंतु अभी तक कंपनी पर किसी भी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई है, इसकी जांच होनी चाहिए।

वे आगे बताते हैं कि बांधडीह रेलवे साइडिंग- जिसमें राॅ-मेटेरियल की ढुलाई- ईएसएल वेदांता के द्वारा बाई रोड हाईवा वाहन से की जाती है, उसमें ओवरलोड की शिकायत उपायुक्त एवं आरटीओ से कई बार की गई है। फिर भी ओवरलोड कम नहीं हुआ है। जिसके कारण प्रदूषण भी बहुत फैलता है, पेड़ पौधे पूरी तरह काली गंदगी से भरे हुए हैं। रोड के किनारे जो भी मकान वगैरह हैं, उनके भी रंग काले हो गए हैं। जिस कारण यहां वास करने वाले लोग टीबी, दमा सहित कई सांस की बीमारियों को झेलने को मजबूर हैं। इन बीमारियों के कारण बांधडीह गांव के दो से तीन लोगों की मौत हो भी हो चुकी है।

मजदूरों को नहीं मिलता पीएफ-ईएसआई का लाभ

रेलवे साइडिंग में लगभग 600 से 800 के बीच मजदूर कार्य करते हैं, परंतु इन मजदूरों को ना ही पीएफ और ना ही ईएसआई का कोई लाभ मिल पाता है। इस विषय पर लगभग सात आठ बार आंदोलन भी किया गया। परंतु अभी तक मजदूरों के पीएफ एवं ईएसआई की व्यवस्था नहीं की गई है। जिस वजह से यहां के मजदूरों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं रेलवे साइडिंग में सेफ्टी की भी सुविधा नहीं रखी जाती है, जिसके कारण कई बार दुर्घटना हो चुकी हैं।

जमीन देने वाले किसानों को नहीं मिला रोजगार

जिस वक्त इस जमीन को लिया जा रहा था, उस वक्त यहां के लोगों को 350 से 850 रुपये के बीच प्रति डिसमिल की कीमत पर भुगतान किया गया है। इस प्लांट को स्थापित करने के लिए जिन गांव के लोगों ने जमीन दी हुई है उनमें भागाबांध, मोदीडीह, चंदाहा, कुमारटाड़, सियालजोरी, अलकुसा, गिद्ध टाड़, भंडारीबांध, मोहाल, तेतुलिया शामिल हैं।

इन गांव के लोगों ने इस आशा एवं विश्वास के साथ जमीन दी थी कि यहां के लोगों को नौकरी एवं आसपास के लोगों को रोजगार दिया जाएगा। परंतु 20% जमीन दाताओं को ही रोजगार दिया गया है, बाकी 80 फ़ीसदी रैयतों को अभी तक रोजगार नहीं दिया गया है और आज स्थिति यह है कि प्रभावित गांव के लोगों को आधार कार्ड देखते ही उनके पेपर को डस्टबिन में फेंक दिया जाता है।

नहीं मिला पूरा भुगतान

350 से 850 रुपये प्रति डिसमिल की दर से रैयतों की जमीन की जो राशि बनती थी, उसका भी पूरी तरह से भुगतान नहीं किया गया, रैयत आज भी प्लांट का चक्कर लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कंपनी ने वन विभाग की सैकड़ों एकड़ जमीन पर अपने प्लांट को स्थापित कर लिया है और कुछ एकड़ कब्जा करके रखा हुआ है।

प्लांट के अंदर सेफ्टी का कोई भी कोई इन्तजाम नहीं रखा गया है, जिस कारण ऑक्सीजन प्लांट में वर्ष 2017-18 के बीच एक विस्फोट हुआ था जिसमें कई मजदूर घायल हुए थे और इस विस्फोट का नतीजा यह रहा कि विस्फोट का जो मलबा निकला वह मलबा भागाबांध गांव के घरों में पूरी तरह से घुस गया था, जिस कारण ग्रामीण भी बहुत परेशानियां का सामना करना पड़ा था।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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