मनोरंजन की दुनिया का नया बादशाह है ओटीटी

सरदार उधम और जय भीम जैसी फिल्मों में ओटीटी पर रिलीज़ होने के बाद भी जिस तरह से सफलता पाई है, उसे देख अब फिल्मकारों का विश्वास ओटीटी पर ही बन गया है।          

कोरोना की वज़ह से बड़े पर्दे की जगह ओटीटी ने ले ली थी और अब दर्शकों को वापस बड़े पर्दे की तरफ़ खींचना फ़िल्म बनाने वालों के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है। भला कोई बिस्तर में लेटे-लेटे फ़िल्म देखने का मज़ा छोड़ धूल-धूप खाते बड़े पर्दे तक पहुंचने का कष्ट क्यों करे।

अब तक सुपरहिट ओटीटी

पिछले साल दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की अंतिम फ़िल्म ‘दिल बेचारा’ ने ओटीटी पर रिलीज होते ही धमाल मचा दिया था और आईएमडीबी दस में दस स्टार प्राप्त किए थे।

2019 क्रिकेट विश्व कप में भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच खेले गए सेमीफाइनल मैच को 25.3 मिलियन लोगों ने हॉटस्टार पर देखा था।

स्पेनिश फुटबॉल लीग ‘ला लीगा’ का भारत में प्रसारण सिर्फ ओटीटी पर किया जा रहा है। 

पिछले साल फिल्मफेयर की ओर से पहली बार ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जारी वेबसीरीज के लिए अवार्ड्स का ऐलान किया था, जिसमें ‘पाताल लोक’ और ‘द फैमिली मैन’ का दबदबा रहा, जिन्होंने पांच-पांच पुरस्कार जीते।

अब तक भारत में ओटीटी की कहानी कुछ इस तरह से रही है, मतलब अब तक ओटीटी प्लेटफॉर्म सुपरहिट ही रही है।

कहां से आया और क्या है ये ओटीटी

1930-40 के दशक के दौरान सिनेमा का स्वर्ण युग था। इसके बाद टेलीविजन युग शुरू हुआ और सिनेमा को टेलीविजन पर देखा जाने लगा। साल 1990 के बाद इंटरनेट आम जन के बीच लोकप्रिय होने लगा।

पहले आवश्यक कार्यों हेतु भेजे जाने वाले ईमेल के लिए ही इंटरनेट का प्रयोग किया जाता था।उसके बाद फिल्मी गानों, ज्ञानवर्द्धक वेबसाइटों और सोशल मीडिया के प्रयोग के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया जाने लगा।

सस्ते डाटा, सुलभ हैंडसेट, ज्यादा सामग्री, रचनाकारों के लिए बड़ा बाज़ार , थिएटरों के महंगे टिकट और टीवी पर एक जैसे सास-बहू के कार्यक्रमों ने टीवी और सिनेमा के दर्शकों का रुख ओटीटी की ओर किया।

‘ओटीटी’ शब्द पारम्परिक केबल या सेटेलाइट टीवी सेवाओं के उपयोग के बिना इंटरनेट के माध्यम से फिल्मों, वेब श्रृंखला या किसी अन्य वीडियो सामग्री के वितरण को संदर्भित करता है।

शुरुआत में यूट्यूब इंटरनेट पर वीडियो सामग्री का अग्रणी प्रदाता था।

विकिपीडिया के अनुसार भारत में 40 से ज्यादा ओटीटी प्रदाता अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिन्हें आप स्मार्ट टीवी, लैपटॉप, टेबलेट व अपने मोबाइल पर देख सकते हैं।

स्टेटितस्ता के अनुसार मार्च 2018 तक हॉटस्टार का भारत के स्ट्रीमिंग बाज़ार में 69.4 प्रतिशत कब्ज़ा था।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट ‘डिजिटल इंडिया’ के अनुसार भारत में नवंबर 2019 के अंत तक 504 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता थे और ‘स्टेटितस्ता’ के अनुसार वर्ष 2015-19 तक भारत में प्रति माह प्रति उपयोगकर्ता औसत डाटा की खपत 11,183 मेगाबाइट थी जो कोरोना काल में अवश्य ही दोगुनी हुई होगी।

सफर करने के दौरान हो या काम के बीच में आप कहीं भी ओटीटी की मदद से अपनी पसंदीदा फ़िल्म, कार्यक्रम या खेल देख सकते हैं।

ओटीटी में दर्शकों को टेलीविजन के कार्यक्रमों की अपेक्षा कम विज्ञापन मिलते हैं। कॉर्डकटिंग डॉट कॉम का कहना है कि नेटफ्लिक्स ने 2017 में औसतन अपने प्रत्येक ग्राहक को 160 घण्टे विज्ञापनों से बचाया।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब के ओटीटी पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार 63 प्रतिशत दर्शक इसको मुफ़्त में ही इस्तेमाल करना चाहते हैं।

इंटरनेट की गति और महंगे होते डाटा पैक ओटीटी की सफलता के सामने बड़ी चुनौती हैं, सिनेमा की पायरेसी की तरह ही वेब श्रृंखलाओं के सामने भी पायरेसी एक समस्या है।

मोबाइल ही ओटीटी देखने के सबसे सुगम्य साधन हैं पर मोबाइल जगत में सिर्फ एंड्रॉइड और एप्पल प्लेटफॉर्म का ही दबदबा है , अन्य प्लेटफॉर्म पर लोकप्रियता हासिल कर अपना विस्तार करना भी इन ओटीटी सेवा प्रदाताओं के सामने एक मुश्किल कार्य है।

अभी तो ये नया ही है

 ओटीटी कार्यक्रमों के सामने अभी बहुत सी कानूनी समस्याएं भी हैं क्योंकि शैशवावस्था में होने के कारण इन को लेकर कानून अभी स्पष्ट नही हैं।

ओटीटी की बढ़ती हुई संख्या के बीच खुद को लोकप्रिय बनाए रखने के लिए इसके कंटेंट में अश्लीलता, हिंसा और अपशब्दों का जमकर प्रयोग किया जा रहा है। अश्लीलता और हिंसा को ओटीटी पर क्रांतिकारी बदलाव समझने की भूल की जा रही है जबकि यह भूल टेलीविजन द्वारा वर्षों पहले की जा चुकी है।

पाताल लोक, लस्ट स्टोरीज़ जैसी वेब श्रृंखलाओं पर जमकर विवाद भी हुआ। कुछ लोग रचनात्मक स्वतंत्रता से छेड़छाड़ के पक्ष में नही हैं क्योंकि यही मुख्य वजह है कि इस प्लेटफॉर्म को ज्यादा पसंद किया जा रहा है। दर्शक इसकी सामग्री को खुद से जुड़ा हुआ पाते हैं।

 मनोरंजन जगत में नया खिलाड़ी होने के कारण अभी ओटीटी को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं बने हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर ओटीटी सेवाओं पर सेंसर लगाने की मांग की है। यह एक प्रश्न है कि निजी तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म भी सार्वजनिक प्रदर्शनी के दायरे में आ सकते हैं या नहीं।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर क्या दिखाया जा रहा है इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार को ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए सामग्री नियामक ढांचा तैयार करने के प्रयास करने चाहिए।

एक मीडिया हाउस से ओटीटी बनाम बड़े पर्दे पर बात करते हुए जैकी श्रॉफ ने बोला था बेशक, हम कहते हैं कि माध्यम कोई मायने नहीं रखता। लेकिन फिर कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें सिनेमाघरों में देखना पड़ता है और यह ऐसी चीज है जिससे हम समझौता नहीं कर सकते।बड़े परदे की बात ही कुछ और है, इसका अपना आकर्षण है।

हॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक स्टीवन स्पिलबर्ग नेटफ्लिक्स सहित अन्य ओटीटी प्लेटफॉर्म को ऑस्कर में आने से रोकने के लिए ऑस्कर के नियमों में बदलाव की पैरवी करते आए हैं। उनके अनुसार सिनेमाघरों में फिल्मों को रिलीज़ होना ही फिल्मों का वास्तविक अनुभव है।

नेटफ्लिक्स ने इसके जवाब में कहा था कि वह सिनेमा से प्यार करता है। यह कला साझा करने के लिए अधिक अवसर प्रदान करता है। यह ऐसे लोगों के लिए है जो उन कस्बों में रहते हैं जहाँ थिएटर नहीं हैं। इनकी वजह से हर किसी को हर जगह एक साथ फ़िल्म रिलीज़ का आनंद मिलता है।

नेटफ्लिक्स और कान्स फ़िल्म महोत्सव के मध्य का विवाद भी फ़िल्म उद्योग के भविष्य के लिए निर्णायक था।

नेटफ्लिक्स ने दो ऑस्कर अवॉर्ड जीत कर इन सब विवादों को दरकिनार भी किया।

द इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल गोवा में 20 से 28 नवंबर को होगा। अब भारत सरकार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर घोषणा की है कि वह इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में भाग लेंगे।यह पहली बार होगा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा होंगे। इनमें जी5, नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म शामिल है। 

बॉलीवुड हंगामा की रिपोर्ट के मुताबिक, आदित्य अपने OTT प्लेटफॉर्म के लिए 500 करोड़ रुपये का निवेश करेंगे। सूत्र ने कहा, “आदित्य भारत में डिजिटल कंटेंट के उत्पादन के स्तर को बढ़ाने में योगदान देना चाहते हैं, वह भारत में रची-बसी कहानियों को एक वैश्विक स्तर प्रदान करना चाहते हैं। 

सब चल रहे हैं ओटीटी वाले रास्ते

एक्सेंचर के अनुसार पूरे विश्व भर में टीवी दर्शकों की कमी हो रही है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 200 से अधिक ओटीटी सेवाएं हैं, आंकड़ों के अनुसार  4.1 प्रतिशत टीवी दर्शक कम हुए हैं।  

लॉकडाउन की वजह से टेलीविजन में पुराने कार्यक्रम ही चल रहे हैं और बिना दर्शकों के लाइव खेल अभी शुरू ही हुए हैं। नए की तलाश में लोग टीवी से विमुख हो ओटीटी की तरफ रुख कर रहे हैं।

थिएटर के टिकटों के बढ़ते दामों को देखकर लोग ओटीटी पर ही फिल्में देखना बेहतर समझते हैं और अगर कोई उन थिएटर में चले भी जाए तो वहाँ के स्नैक्स का दाम थिएटर के टिकट से ज्यादा होता है।

कोरोना काल में शिक्षा ऑनलाइन हो गई तो ओटीटी के पुराने खिलाड़ी यूट्यूब में तो शिक्षण सामग्री की भरमार है ही तो वहीं ‘वूट किड्स’ जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में उतरे हैं।

इस जंग के बाद राजा तो दर्शक ही बनेंगे

बड़े पर्दे और ओटीटी के बीच चल रही इस जंग का अंजाम जो भी है मनोरंजन, शिक्षण और जागरूकता के क्षेत्र की इस नई जंग का फ़ायदा दर्शकों को मिल रहा है जिनके पास अब पहले से अधिक गुड़वत्ता वाले और सस्ते विकल्प उपलब्ध हैं। 

कलात्मक लोगों के पास अपनी योग्यता दिखाने का अवसर है और उनके लिए मंच भी तैयार है, तो लाइट्स, कैमरा, एक्शन….’कट’

(हिमांशु जोशी लेखक और समीक्षक हैं और आजकल उत्तराखंड में रहते हैं।)

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