कोरोना दीवाली मनाते लोग।

वैश्विक महामारी, मानवीय त्रासदी और मौत का जश्न

ऐसे समय में जब विश्व समुदाय कोरोना वायरस ( कोविड-19) की महामारी का तेजी से शिकार बन रहा है, 6 अप्रैल (आज तक) तक 69 हजार 456 मौतों की पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन कर चुका है। 45,592 लोग गंभीर हालात में अस्पतालों में भर्ती हैं। 12 लाख 73 हजार 709 लोगों के कोविड-19 का शिकार होने की पुष्टि हो चुकी है। दुनिया की एक बड़ी आबादी के इसका शिकार होने की संभावना है, क्योंकि बहुलांश आबादी का टेस्ट नहीं हो पाया है, क्योंकि टेस्ट कर पाने की स्थिति में विश्व समुदाय और बहुत सारे देश नहीं है। भारत में करीब अभी तक 50 हजार टेस्ट हुए हैं, जिसमें 4 हजार 288 लोगों के कोरोना का शिकार होने की पुष्टि हुई है यानि जितने लोगों का टेस्ट हुआ है, उसमें करीब 10 प्रतिशत लोग इसके शिकार पाए गए हैं।

भारत में 117 लोगों की कोरोना से मौत की पुष्टि स्वास्थ्य मंत्रालय कर चुका है। भारत की 1 अरब 30 करोड़ की आबादी में अब तक हुए करीब 50 हजार टेस्टों के आधार पर यह कहना मुश्किल है कि वास्तव कितने लोग इसके शिकार हैं। वैश्विक संस्थाओं और चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में करोड़ों लोगों के इसका शिकार होने की आशंका है। इटली, स्पेन, अमेरिका और ईरान जैसे देशों में कोरोना के शिकार लोगों की लाशों के अंबार लगते दिख रहे हैं। दुनिया भर से इस महामारी की भयावह तस्वीरें सामने आ रही हैं। 

इस महामारी ने लाखों लोगों को अपना शिकार बनाने के साथ ही करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी भी उनसे छीन ली है। बेरोजगारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। विश्व की आर्थिक विकास दर 2.3 प्रतिशत से गिर कर -2.2 ( ऋणात्मक ) हो गई है। करीब 4.5 प्रतिशत की वैश्विक गिरावट आई है। यूरोप-अमेरिका के विकास दर में 5 से 6 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है। चीन की विकास दर 1 प्रतिशत रहने की संभावना व्यक्त की गई है। पहले से खस्ता हाल भारत की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर गिरावट की आशंका है। विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि भारत की विकास दर 2.1 प्रतिशत से कम रही है। 

कोरोना संक्रमण के साथ इस तेजी से बदहाल होती अर्थव्यवस्था ने दुनिया को महामारी के साथ विश्वव्यापी मानवीय त्रासदी की कगार पर खड़ा कर दिया है। बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियों के ठप्प पड़ने और बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि के चलते अकाल और भुखमरी की आशंकाए मुंह बाए खड़ी हैं।

आवश्यक सुरक्षा उपकरणों की कमी के चलते कोरोना से अगली पंक्ति में लड़ने वाले चिकित्साकर्मी भी इस महामारी के तेजी से शिकार हो रहे हैं, भारत में भी रोज-ब रोज ऐसी सूचनाएं आर रही हैं। दुनिया भर की चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है। कई सारे देशों में वेंटिलेटर के अभाव में लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।

भारत इस महामारी का जितना शिकार फिलहाल दिख रहा है, उससे अधिक लॉक डाउन और आर्थिक गतिविधियों के ठप्प होने के चलते लोग मानवीय त्रासदी के शिकार हुए हैं। असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूर और प्रवासी मजदूरों की बदहाल हालात की तस्वीरें कंपा देने वाली हैं। करीब 30 की मौत भी हो चुकी है। किसी तरह लोग दो जून की रोटी जुटा रहे हैं, बच्चों की भूख बिलबिलाती तस्वीरें सामने आ रही हैं। गांव के गांव जीवन-जीने के न्यूनतम संसाधनों से वंचित हैं।

चिकित्सा कर्मियों को आवश्यक सुरक्षा उपकरण (पीपीई) उपलब्ध कराने की बात तो दूर है, मास्क, ग्लब्स और सैनेटाइजर जैसी न्यूनतम बुनियादी चीजें भी उपलब्ध नहीं हैं। जॉन-जोखिम में डालकर चिकित्साकर्मी कार्य कर रहे हैं।

जब पूरी विश्व मानवता महामारी, मानवीय त्रासदी और मौतों के सिलसिले से जूझ रही है। ऐसे समय में हमारे देश ने कल (5 अप्रैल) कौन सी विजय या खुशी का जश्न मनाया? दीपकों, मोमबत्तियों, टार्च और मोबाइल की रोशनी के साथ मशाल जुलूस भी निकाले गए। कुछ लोग आग के गोलों के साथ करामात करते भी दिखाई दिए। इतना ही नहीं बड़े पैमाने पर पटाखे भी फोड़े गए। आकाश में पटाखों एवं फुलझड़ियों से तरह-तरह की रोशनी की गई। पूरा माहौल उन्माद पूर्ण जश्न से भरा हुआ था।

कुछ वैसा ही माहौल था, जैसा भारत के क्रिकेट  विश्व कप जीतने या क्रिकेट में पाकिस्तान को हराने पर होता है। जय श्रीराम और भारत माता की जय जैसे नारे भी लगाए जा रहे थे। सब कुछ ऐसा लग रहा था, जैसे भारत ने इतिहास की कोई महान उपलब्धि हासिल कर ली हो। जैसे हमने देश से भूख, गरीबी, बेरोजगारी, अभाव और बीमारियों का नामो-निशान मिटा दिया हो और उसका जश्न मना रहे हों। सबको शिक्षित कर दिया हो और सबके स्वास्थ्य की व्यवस्था करने में सफलता प्राप्त कर ली हो या हमने जाति और पितृ सत्ता जैसे कोढ़ को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दिया हो और उसकी खुशी मना रहे हों।

मनुष्य जाति से सरोकार रखने वाले किसी भी संवेदनशील, विवेकशील, तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न व्यक्ति के लिए उन्माद भरा यह अश्लील जश्न शर्मनाक होने के साथ भयावह था। 

शर्मनाक इसलिए यह जश्न मानने वाले किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी नहीं, थे ये हमारे ही देश के लोग और हमारे ही पड़ोसी थे और इसके साथ ही असंवेदनशीलता एवं अतार्किकता यानि क्रूरता एवं मूर्खता के इस जश्न में करोड़ों लोग शामिल थे। जिसमें अच्छी खासी संख्या में तथाकथित पढ़े-लिखे लोग भी शामिल थे। मुख्यत: उच्च जातियों से बना भारत का भाग्य विधाता उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग इस अश्लील जश्न की अगुवाई कर रहा था। जिसके पीछे भेड़ों की झुंड की तरह निम्न मध्यवर्ग का भी बड़ा हिस्सा खड़ा था।

भयावह इसलिए जब लोगों को महामारी, मानवीय त्रासदी और मौतों का जश्न मनाने के लिए उकसाया जा सकता है, प्रेरित किया जा सकता है, तो इस असंवेदनशील और विवेकहीन भीड़ से कुछ भी करवाया जा सकता है। जिसका सबसे हालिया उदाहरण हमने दिल्ली दंगों में देखा। जश्न में शामिल लोगों की भीड़ का मनोविज्ञान देख कर ऐसा लग रहा था कि इन लोगों को थोड़ा सा उकसाकर, उन लोगों की लिंचिंग भी कराई जा सकती है, जो इस उन्मादी भीड़ का हिस्सा बनने से इंकार कर दे।

कोई कह सकता है कि प्रधानमंत्री जी ने तो यह सब करने को नहीं कहा था, उन्होंने तो सिर्फ 9 मिनट लाइट बुझाने बालकनी में या दरवाजे से बाहर 9 मिनट सिर्फ रोशनी करने को कहा था।

यह कहना उसी तरह की बात होगी, जैसे यह कहना कि लालकृष्ण आडवाणी ने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए नहीं कहा था, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने 2002 में अपने समर्थकों को 2 हजार से अधिक मुसलमानों का कत्लेआम करने और मुस्लिम महिलाओं का सामूहिक बलात्कार करने  के लिए नहीं कहा था, संघ-भाजपा या मोदी-योगी ने मुसलमानों की मॉब लिंचिंग करने के लिए नहीं उकसाया था और यह भी कि दिल्ली में अमित शाह, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा ने गोली मारो सालों को या शाहीन बाग में करेंट लगे कहकर अपने समर्थकों को मुसलमानों पर हमला करने के लिए ललकारा नहीं था।

प्रधानमंत्री जी अच्छी तरह जानते हैं कि उनके चाहने वाले उनकी हर भाषा का असली अर्थ जानते एवं समझते हैं और उसे व्यवहार में उतार देते हैं, प्रधानमंत्री जी का सिर्फ इशारा करना ही पर्याप्त होता। उनके इशारे को प्रचारित- विस्तारित एवं व्यवहार में उतरवाने की जिम्मेदारी मीडिया और संघ-भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ता बखूबी निभाते हैं।

असल में कल 5 अप्रैल के 9 बजे रात के अश्लील जश्न से कई निशाने प्रधानमंत्री जी ने एक साथ साधे। उन्होंने कोरोना से संघर्ष में अपनी तात्कालिक असफलता को तो ढक ही लिया, इसके साथ ही भविष्य की असफलता को ढकने लिए पहले ताली-थाली और अब दिवाली के माध्यम से आधार तैयार कर लिया। हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री हर अवसर का इस्तेमाल अपने वोटरों-समर्थकों की संख्या बढ़ाने और उन्हें और पक्का समर्थक बनाने के लिए करते हैं, कोरोना जैसी महामारी एवं मानवीय त्रासदी का इस्तेमाल भी वह बखूबी अपने इस एजेंडे के लिए कर रहे हैं।

इतना नहीं प्रधानमंत्री ने अपने विरोधियों एवं आलोचकों को यह संदेश भी दे दिया कि यदि आप हमारी नाकामियों को उजागर करते हैं, हमारी आलोचना करते हैं, सच्चाई को बताने वाले तथ्यों को सामने लाता है- प्रधानमंत्री जी के अनुसार देश को बदनाम करते हैं- तो सरकारी तंत्र तो आपसे निपटने के लिए तैयार ही है, मैंने अपने समर्थकों की ऐसी उन्मादी भीड़ तैयार कर दी है, जो आपको चुप कराने और जरूरत पड़ने पर आपका सफाया करने के लिए भी तैयार है। 

सच यह है कि पूरा जश्न हिंदू राष्ट्र ( द्विज राष्ट्र) की विजय का जश्न था, जिसकी अगुवाई संघ-भाजपा और संघ के स्वयं सेवक हमारे प्रधानमंत्री जी कर रहे थे।  

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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