17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होने जा रही विपक्षी दलों की प्रस्तावित बैठक में शर्मिला रेड्डी की वाईएसआरटीपी पार्टी के कांग्रेस में विलय के ऐलान की खबर चर्चा में है। ऐसा माना जा रहा है कि शर्मिला रेड्डी इस बैठक में यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगी। पिछले काफी समय से इस बारे में सियासी गलियारों में चर्चा चल रही थी, ऐसा माना जा रहा है कि सोनिया गांधी के साथ बातचीत के बाद ही शर्मिला अपनी पार्टी वाईएसआरटीपी का कांग्रेस में विलय कर सकती हैं।
तेलंगाना राज्य में राहुल गांधी की रैली में लाखों की भीड़ ने कांग्रेस के लिए फिर से एक उम्मीद जगा दी। कर्नाटक में भारी जीत के बाद ही तेलंगाना में उथलपुथल शुरू हो गई थी। राहुल गांधी की इस रैली में जिस प्रकार की भारी भीड़ उमड़ी थी, उसके बाद से राज्य में कई पुराने नेता फिर से कांग्रेस में वापसी करने लगे हैं। लेकिन वाई. एस. शर्मिला रेड्डी इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शर्मिला अविभाजित आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वाई. एस. राजशेखर रेड्डी की बेटी हैं, और वर्तमान में आंध्र के मुख्यमंत्री वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी बड़े भाई हैं। शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने के बारे में कयास हाल में तेज हो गये हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने से पार्टी की संभावनाओं को बड़ा उछाल मिल सकता है। लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो इसे दुधारी तलवार पर चलने जैसा बता रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 8 जुलाई को वाई.एस. राजशेखर रेड्डी के जन्मदिन पर बधाई संदेश ट्वीट किया गया था, जिसपर शर्मिला की ओर से धन्यवाद के तौर पर जवाबी ट्वीट आजकल सियासी हल्के में चर्चा का विषय बना हुआ है।
शर्मिला रेड्डी का राजनीतिक सफर
आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी से एक वर्ष छोटी शर्मिला रेड्डी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की संस्थापक हैं। अपने राजनैतिक सफर में उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस के संयोजक का पदभार भी संभाला था। पिता वाई.एस. राजशेखर रेड्डी, आंध्र प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे, लेकिन सितंबर 2009 में हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत से पूर्व भाई जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस के टिकट पर कडप्पा लोकसभा की सीट से चुनाव जीत चुके थे। लेकिन पिता की असमय मौत के बाद आंध्रप्रदेश की सियासत पर रेड्डी परिवार की दावेदारी को जब कांग्रेस आलाकमान ने दरकिनार कर के. रोसाई को मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया और उसके बाद किरन कुमार रेड्डी ने अंतिम कांग्रेसी मुख्यमंत्री के तौर पर 2014 तक इस कार्यभार को संभाला।
लेकिन पिता की मृत्यु के 6 महीने के भीतर ही जगन ने प्रदेश का दौरा करने का फैसला लिया था और उन्होंने पिता के शोक में आत्महत्या कर चुके और शोकाकुल समर्थकों के साथ मुलाक़ात करने के लिए समूचे आंध्रप्रदेश में ओडार्पू यात्रा (शोक यात्रा) पर निकलने की योजना बनाई, जिस पर कांग्रेस पार्टी ने आपत्ति जताई। नवंबर 2010 में जगन और उनकी मां दोनों ने सांसद सदस्य और विधायिका से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस से अलग होकर मार्च 2011 में वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया। कडप्पा में हुए उपचुनाव में दोनों सीटों पर भारी अंतर से जीत हासिल कर जगन ने कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा संकट खड़ा कर दिया था।
लेकिन मई 2012 में सीबीआई ने जगन मोहन रेड्डी पर गबन का आरोप लगाकर हिरासत में ले लिया। बाद में अदालत से भी राहत न मिलने पर सजा की अवधि बढ़ गई। लेकिन यह शर्मिला ही थी, जिसने जून 2012 से आंध्र प्रदेश में अपने बड़े भाई वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी की अनुपस्थिति में अपनी मां के साथ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने की जिम्मेदारी ली। इसी का नतीजा था कि वाईएसआरसीपी को उपचुनावों में 18 विधानसभा सीटों में से 15 और 1 लोकसभा की सीट पर जीत हासिल हुई। इसी के साथ शर्मिला ने 18 अक्टूबर 2012 से कडप्पा जिले से 3,000 किमी की पैदल यात्रा की शुरुआत की थी, जिसका समापन 4 अगस्त 2013 को जाकर संपन्न हुआ।
कांग्रेस पार्टी द्वारा तेलंगाना राज्य के फैसले के विरोध में जगन मोहन रेड्डी के जेल के भीतर भूख हड़ताल और तबियत खराब हो जाने की वजह से रेड्डी परिवार के प्रति आंध्रप्रदेश के आम लोगों का समर्थन में काफी इजाफा हो चुका था। चुनावी विश्लेषण वाईएसआर कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे, लेकिन 2% के अंतर से 2014 में टीडीपी आंध्र प्रदेश की सत्ता में आ गई। 2019 के आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले भी शर्मिला ने पूर्व सीएम चंद्र बाबू नायडू के खिलाफ “बाय बाय बाबू” नाम से ब्रांडेड बसों में पूरे आंध्र प्रदेश में 11 दिनों की बस यात्रा निकाली। लेकिन मई 2019 में हुए राष्ट्रीय और राज्य विधानसभा चुनाव में, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने भारी जीत हासिल की और आंध्र प्रदेश की कुल 175 विधानसभा सीटों में से 151 और 25 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें जीतकर एकछत्र राज्य कायम कर लिया था।
लेकिन इसके साथ ही जगन मोहन रेड्डी ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को सत्ता से दूर कर दिया, जो राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी बहन को पसंद नहीं आया, जिसने जगन के जेल यात्रा के दौरान 14 जिलों में 3000 किमी की यात्रा कर जगन के लिए आधार तैयार किया था। अंततः फरवरी 2021 में शर्मिला ने सार्वजनिक तौर पर घोषित किया कि जगन मोहन रेड्डी से उनके राजनीतिक मतभेद हैं, लेकिन प्रयोग स्थली के तौर पर उन्होंने अपने लिए तेलंगाना राज्य को चुना। इस प्रकार 8 जुलाई 2021 को उन्होंने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के गठन की घोषणा की।
शर्मिला का जन्म हैदराबाद में एक क्रिश्चियन रेड्डी राजनीतिक-व्यावसायिक परिवार में हुआ था। उनके दो बच्चे एक बेटी और एक बेटा हैं, और पति अनिल कुमार जो ब्राह्मण परिवार से आते हैं, ने ईसाई धर्म अपना लिया है। 9 जुलाई को तेलंगाना के खम्मम जिले के पलेर विधानसभा क्षेत्र में अपने पिता के जन्मदिन के अवसर पर शर्मिला ने वाईएसआर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। ऐसी चर्चा है कि शर्मिला ने पलेर से पहली बार अपने चुनावी सफर का इरादा पक्का किया हुआ है।
लेकिन कांग्रेस में पार्टी के विलय की खबर ने तेलंगाना के कांग्रेस नेतृत्व को भारी दुविधा में डाल दिया है। राज्य का नेतृत्व शर्मिला के पार्टी में शामिल होने के खिलाफ है। लेकिन शर्मिला पिछले कुछ महीनों से एआईसीसी के बड़े नेताओं के संपर्क में बनी हुई हैं, और कर्नाटक राज्य अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार उन्हें लंबे समय से पार्टी में लाने के काम में लगे हुए हैं। वहीं तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने पार्टी से अनुरोध किया है कि तेलंगाना में शर्मिला को पार्टी में शामिल करने पर पुनर्विचार किया जाये। उनके अनुसार जगन रेड्डी के परिवार से जुड़े होने के कारण उनपर आंध्रप्रदेश का टैग, पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
पार्टी में शर्मिला के विरोध की एक प्रमुख वजह यह भी मानी जा रही है कि उनके प्रवेश से पार्टी में दो केंद्र हो सकते हैं। रेवंत रेड्डी का विरोधी खेमा जहां शर्मिला की एंट्री का स्वागत कर रहा है, वहीं एक बड़ा गुट उन्हें आंध्रप्रदेश कांग्रेस में शामिल करने की मांग कर रहा है। शर्मिला आंध्र प्रदेश में अपने राजनैतिक कैरियर को बढ़ाने की इच्छुक नहीं लगतीं। सबसे बड़ी बात, आंध्र में उन्हें अपने ही भाई और वाईएसआर कांग्रेस के खिलाफ मैदान में उतरना होगा। वैसे भी पिछले 2 वर्षों से उन्होंने लगातार तेलंगाना राज्य में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उनकी इमेज एक दमदार जुझारू नेता की रही है, और कांग्रेस में शामिल होने से शर्मिला और कांग्रेस दोनों का लाभ है।
पिछले वर्ष तेलंगाना में शर्मिला और वाईएसआरटीआर ने 223 दिन की ‘प्रजा प्रस्थानम’ पदयात्रा की थी, जिसपर 28 नवंबर 2022 को वारंगल जिले में तेलंगाना राष्ट्र समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा हमला किया गया था। शर्मिला का आरोप था कि उनकी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर सीएम केसीआर और उनके गुंडों ने किसी भी कीमत पर उनकी यात्रा को रोकने के लिए यह कदम उठाया था। इस हमले के खिलाफ शर्मिला ने अगले दिन तेलंगाना सीएम के चन्द्रशेखर राव के निवास पर अपने कार्यकार्ताओं के साथ धावा बोल दिया था। तेलंगाना राज्य पुलिस द्वारा रोके जाने पर उन्होंने कार अंदर से बंद कर बाहर निकलने से साफ़ इंकार कर दिया था। अंततः पुलिस को क्रेन मंगाकर कार सहित शर्मिला को खींचकर पुलिस थाने ले जाना पड़ा था। शर्मिला और 6 कार्यकार्ताओं पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया, हालांकि कुछ घंटे बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया।
शर्मिला के लड़ाकू तेवर उन्हें ममता बनर्जी की तरह बेहद कम समय में राजनीतिक सुर्ख़ियों में लाने में सक्षम है। अगर वे अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय करती हैं, जो कांग्रेस तेलंगाना में मजबूत होने के साथ आंध्र प्रदेश में खोई जमीन को वापस पाने की ओर से तेजी से बढ़ सकती है।
शर्मिला का कांग्रेस में शामिल होना और उनकी पार्टी का विलय तेलंगाना में कांग्रेस की जीत की मुहिम को राजनैतिक के साथ एक बड़ी नैतिक ताकत देगा। इससे कांग्रेस राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता और मजबूती बढ़ेगी।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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