दिल्ली हुआ लाहौर: टमाटर 140 रुपये किलो, अदरक और मिर्च के दाम भी आसमान पर

पिछले साल पाकिस्तान भारी बाढ़ और बढ़ते विदेशी व्यापार घाटे की दुहरी मार से बेहाल था। खाद्य वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे। देश का एक तिहाई हिस्सा पूरी तरह से जलमग्न था। भारतीय मीडिया चहक-चहक कर पाकिस्तान की इस दुर्दशा को बयां कर रहा था। दिल्ली-एनसीआर की सोसाइटी में रहने वाले भारतीय मध्यवर्ग को ही नहीं बल्कि देशभर में हाई-राइज बिल्डिंग्स के वैधानिक नागरिक सुबह-शाम की सैर में पाकिस्तान के बिगड़ते हालात पर गर्मा-गर्म चर्चा कर लिया करते थे। वे कह उठते थे कि पाकिस्तान की नियति तो यही होनी थी, लेकिन उनके हिसाब से भारत में तो विजनरी नेता के रहते ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 

एक साल भी नहीं बीता है, एकदम पाकिस्तान वाली फीलिंग आने लगी है। लोग-बाग टमाटर खरीद नहीं रहे, सिर्फ भाव पूछते हैं। एक मिनट का भी समय गंवाए बिना आगे बढ़ जाते हैं। दिल्ली की सब्जी मंडियों में भाव 100 रुपये से 140 रुपये प्रति किलो चल रहा है। आज से 4 दिन पहले भाव 70-120 रुपये प्रति किलो था। 100 रुपये में आपको दोयम दर्जे का पिचका हुआ टमाटर चुनना होगा।

कल शाम की ही बात है। शहर में एक सब्जी मंडी में एक दुकान पर अच्छी खासी भीड़ लगी हुई थी। टमाटर साइज में काफी छोटे थे। लोग आशा कर रहे थे कि 60-70 रुपये किलो बिक रहे होंगे। लेकिन दाम पूछने पर जब 120 रुपये किलो का जवाब आया तो लोग मन मसोस कर आगे बढ़ जा रहे थे।

80 फीसदी गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग ने पिछले एक सप्ताह से टमाटर खाना छोड़ दिया है। घरों में उसी सब्जी को याद कर लाया जा रहा है, जिसमें टमाटर की जरूरत न्यूनतम हो या न हो। ओटीपाई में एक पाव टमाटर 36 रुपये के भाव से बिक रहा है, अर्थात 144 रुपये किलो। घरों में टमाटर से प्यूरी बनाने की तकनीक के बजाए नए-नए आविष्कार का ईजाद किया जा रहा है। कुछ सयाने लोग भी हैं जो इस टमाटर संकट में कश्मीर में खान-पान की पद्धति को याद कर रहे हैं।

कश्मीर में साल में आधा समय बर्फ रहने की स्थिति में ताजे फल और साग-सब्जियों का अभाव बना रहता है। वहां गर्मियों में उगाए जाने वाले टमाटर, गोभी, कद्दू, मटर सहित लगभग सभी सब्जियों को सुखाने और बर्फबारी के मौसम में उपयोग करने की पुरानी परंपरा रही है। लगभग सभी हिमालयी क्षेत्रों में इसे कमोबेश अपनाया जाता रहा है। लोग पछता रहे हैं कि यही काम यदि 20-30 रुपये किलो टमाटर के साथ किया होता, तो कितना अच्छा होता।

घरों में अचानक से इमली और चाट मसाले की खोज होने लगी है। भले ही भोजन का संबंध हमारे स्वास्थ्य और संतुलित आहार से क्यों न हो, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में जन्मा हर शख्स वो चाहे किसी भी धर्म का हो, की जिह्वा मसालों और तेल से भरपूर व्यंजनों से ही तृप्त होती है। टमाटर के आसमानी तेवर के कारण चाट मसाले और इमली की कद्र आज भारत में फिर से बढ़ गई है।

सोमवार को दिल्ली की ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मंडी आजादपुर में टमाटर 60-120 रुपये किलो के बीच में बिकने की खबर है। कीमतों में 100 प्रतिशत की ऊंच-नीच से चौंकिए नहीं, क्योंकि आजकल आधा सड़ा टमाटर भी खरीदने में संकोच नहीं है। आज से सावन का महीना शुरू हो गया है, यह भी टमाटर की मांग में कमी के लिए एक शुभ संकेत है। सावन लगते ही बड़ी संख्या में हिंदू मतावलंबी अंडा, मीट, मछली से दूरी बना लेते हैं।

पिछले सप्ताह जब टमाटर ने 100 रुपये प्रति किलो की छलांग लगाई थी, और देश भर के अखबारों और मीडिया ने इसका संज्ञान लिया था तब उपभोक्ता मामलों के विभाग ने सामने आकर वक्तव्य दिया था कि देश में सूखे और बाढ़ के कारण सप्लाई चेन बाधित हो चुकी है, जिसे अगले 5-6 दिनों में दुरुस्त कर लिया जायेगा। किसी केंद्रीय मंत्री ने जहमत नहीं उठाई कि सरकार क्या करने जा रही है। लेकिन अब तो भाव कम होने के बजाय 140 रुपये किलो हो चुके हैं।

यहां तक कि मदर डेयरी के सफल में टमाटर रविवार को 99 रुपये किलो में बिक रहा था। लेकिन सभी जानते हैं कि यहां पर जो माल होगा वही बिकेगा। गुणवत्ता की गारंटी के लिए आपको बाजार का ही आसरा है। पीटीआई के हवाले से आजादपुर टोमेटो संघ के अध्यक्ष अशोक कौशिक ने बताया है कि टमाटर का मुख्य रूप से उत्पादन करने वाले केन्द्रों से आपूर्ति में भारी कमी से दाम लगातार बढ़ रहे हैं। पड़ोसी राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बारिश के कारण फसल प्रभावित हुई है, और अब वहां से सप्लाई की सूरत नहीं बन रही है।

जानकारों का कहना है कि मई माह तक टमाटर की खेती करने वाले किसानों को 2-3 रुपये किलो के भाव पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा था।

बरसात के सीजन में माल महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक से आता था, लेकिन बारिश के कारण चूंकि वहां भी दाम 100 रुपये किलो से नीचे नहीं है, इसलिए उत्तरी भारत के लिए आपूर्ति का सवाल ही नहीं उठता है।

एकमात्र हिमाचल प्रदेश से अभी भी टमाटर की आपूर्ति हो रही है, लेकिन वहां भी भारी बारिश और भू-स्खलन से आपूर्ति में बाधा आ रही है। हिमाचल के किसान इस सीजन में टमाटर के अच्छे दाम पाने से खुश हैं। आमतौर पर 15-20 रुपये में बिकने वाला टमाटर 50-60 रुपये किलो की दर पर व्यापारी उठा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि 10 रुपये किलो की खरीद पर जब टमाटर 20-25 रुपये में आसानी से उपलब्ध हो जाता है तो 50-60 रुपये किलो की खरीद को 120-140 रुपये किलो में आखिर क्यों बेचा जा रहा है?

यह सवाल आम लोगों को सता रहा है, लेकिन चूंकि कथित राष्ट्रीय मीडिया पिछले 9 वर्षों से मध्य-वर्गीय महिलाओं के किचन में घुसना बंद कर चुका है, इसलिए ये सवाल बहस का विषय नहीं बने हुए हैं।

भारतीय गोदी मीडिया के लिए पाकिस्तान की अभूतपूर्व महंगाई राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन जाती है, लेकिन जब अपने देश में 135 करोड़ लोग उसी समस्या से एक साल बाद जूझ रहे होते हैं तो उसका विषय बदल जाता है। यहां तक कि एक चैनल ने तो यहां तक बता डाला कि टमाटर खाने के क्या नुकसान हैं?

28 जून की अपनी खबर में इंडिया टुडे के मीडिया चैनल ने टमाटर के विषैले स्वरूप का जिक्र करते हुए अपने पाठकों को जानकारी दी है कि 17वीं शताब्दी में किस प्रकार यूरोप में अमीर टमाटर से दूर भागते थे, और यह गरीबों के भोजन का हिस्सा था। अमीर जस्ते के बर्तन में खाना खाते थे, और टमाटर के एसिडिक स्वरूप के कारण लोगों की मौत हो जाती थी। लेकिन गरीब यूरोपीय चूंकि लकड़ी के बर्तन में खाना खाते थे, इसलिए वे इसके दुष्प्रभाव से बचे रहते थे।

लेकिन टमाटर ही नहीं अब मिर्च और अदरक खाना भी रईसी का सूचक बनता जा रहा है। बता दें कि अदरक और मिर्च की खेप आपके दिल की धड़कन बढ़ा सकती है। देश के कुछ हिस्सों में मिर्च और अदरक के भाव करीब 400 रुपये किलो तक पहुंच गये हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के मुताबिक कोलकता में हरी मिर्च 350 रुपये किलो तक पहुंच गई है, अर्थात 35 रुपये में 100 ग्राम। जबकि आम दिनों में 150-200 रुपये की सब्जी खरीदने पर सब्जी विक्रेता मिर्च और धनिया मुफ्त में ही अपने मूल्यवान ग्राहकों को दे दिया करते थे।

केंद्र सरकार का समूचा ध्यान इस समय महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार पर लगा हुआ है। विपक्ष आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मजबूत विकल्प की दिशा में बढ़ रहा है। विपक्षी एकता पर पलीता लगाये बिना 2024 की वैतरणी को पार करना एक दुःस्वप्न साबित हो सकता है। इसलिए फिलहाल टमाटर, मिर्च और अदरक को खाना छोड़ देश को इस बात पर गौर करना चाहिए कि कांवड़ यात्रा के लिए विभिन्न राज्यों की सरकारें कितने कृत-संकल्प भाव से तैयारियों में जुटी हुई हैं। इसे आप कथित राष्ट्रीय टेलीविजन मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ में देख सकते हैं।  

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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