कर्नाटक की मुफ्त बस यात्रा महिलाओं के लिए बड़ा कदम साबित हो रही है

अगर आप एक महिला हैं और आपने दिल्ली मेट्रो की महिला कोच में सफर किया हो तो आप बता सकती हैं कि कैसा महसूस होता है? बेहद सुविधाजनक, आरामदायक महसूस होता है। वैसी जगह पर जहां कोई अनचाही नजरें आपको घूर ना रही हों, जहां आप जैसे चाहें वैसे खड़ी हो सकती हैं, बैठ सकती हैं और आपस में बात कर सकती हैं, हंस सकती हैं।

ज्यादातर कामकाजी महिलाएं ही इस आजादी को महसूस कर सकती हैं। क्योंकि हमारे देश में घरेलू महिलाओं का अकेले घर से बाहर निकलना और सफर करना अभी भी कम मुमकिन है। लेकिन समाज में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा हो, वो मुखर हो सकें इसलिए इस तरह की सेवाओं को प्राथमिकता दी जाती है। दिल्ली मेट्रो जैसी सुविधा आपको बसों में मिलने लगे तो कैसा रहेगा। हम बात दिल्ली की नहीं कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा 2020 से ही दी जा रही है।

आज हम बात कर रहे हैं कर्नाटक की। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा सेवा शुरु कर दिया है। ये सेवा 1 जून से शुरु हो चुकी है। राज्य में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा सेवा कांग्रेस की ओर से किए गए पांच चुनावी वादों में से एक था। इसे ‘शक्ति’ योजना का नाम दिया गया था। इस योजना के तहत जहां महिलाएं राज्य की बसों में मुफ्त यात्रा कर सकती हैं। इसका उद्देश्य महिलाओं के लिए परिवहन को अधिक आसान और सुरक्षित बनाना है।

जिससे महिलाएं आसानी से सफर कर सकें और कहीं भी आने-जाने के लिए उन्हें किसी का सहारा ना लेना पड़े। कहीं भी पहुंचने कि लिए उन्हें या तो अपने पति, पिता या भाई का सहारा लेना पड़ता था या किराया चुकाने जैसी समस्या से जूझना पड़ता था। लेकिन अब ये समस्या नहीं रहेगी। चाहे नौकरीपेशा महिला हो या वो महिलाएं जो नौकरीपेशा नहीं हैं। वो कहीं भी आ-जा सकती हैं। इससे समाज में उनकी हिस्सेदारी बढ़ेगी और बढ़ रही है।

समाज को उन्नत और विकसित बनाने के लिए महिलाओं का सहयोग और योगदान बेहद जरुरी है। इस बात को कर्नाटक की राज्य सरकार भी मानती है। इसलिए उन्होंने महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की शुरुआत की है। ये योजना उन कामकाजी महिलाओं के लिए भी बेहद फायदेमंद है जो न्यूनतम सैलरी पर काम करती हैं। यहां तक की बस का किराया निकालना भी उनके लिए मुश्किल हो जाता है। मुफ्त बस यात्रा सेवा से उन्हें इस मुसीबत से भी निजात दिला दी।

उन महिलाओं को भी काफी सहायता और सुविधा मिल रही है, जिन्हें नौकरी की तलाश में यहां-वहां भटकना पड़ता है। कर्नाटक में यह सुविधा के मिलने के बाद से ज्यादातर महिलाएं बसों से यात्रा करने लगी हैं जिससे बसों में यात्रा करना महिलाओं के लिए अनुकूल हो गया है। बसों में पुरुषों के बराबर महिलाओं की संख्या होने से महिलाओं के अंदर एक मनोबल का विकास होगा और उनके अंदर जो असुरक्षा की भावना होती है वो नहीं रहेगी।

‘शक्ति योजना’, जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर दावेदारी मुकम्मल करने और नए सिरे उसे पर अधिकार जताने का अवसर देता है। वे महिलाएं जो दिहाड़ी मजदूर हैं, सफाई कर्मचारी और घरेलू नौकरानियां हैं वे भी इस योजना का लाभ उठाते हुए देखी जा रही हैं। जिससे यह प्रदर्शित होता है कि कैसे एक सुविचारित नीति वास्तव में महिलाओं को सशक्त बना सकती है। महिलाओं के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की तरह, इस नीति में भी नारीवादी राजनीति है।

लेकिन पितृसत्तात्मक सोच के कई लोग इस पर सवाल उठाते रहे हैं कि बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा आखिर क्यों दी ही क्यों जाए। यह बात दिल्ली हो या कर्नाटक दोनों जगह पूछे गए। इसका जवाब ये है कि क्या सरकरी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त शिक्षा नहीं दी जा रही है, क्या सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा नहीं दी जाती है, सार्वजनिक पार्क नि:शुल्क क्यों हैं जहां आप अपने परिवार और बच्चों के साथ मूड फ्रेश करने जाते हैं। अधिकांश सड़कें जिन पर निजी वाहन चलते हैं, वे निःशुल्क हैं।

बेशक, इनमें से कोई भी चीज़ वस्तुतः मुफ़्त नहीं है। उन्हें करदाताओं के पैसे से भुगतान किया जाता है। लेकिन अगर करदाता स्कूलों, अस्पतालों, पार्कों और सड़कों के लिए भुगतान कर रहे हैं, तो महिला की बस यात्रा के लिए भी भुगतान क्यों नहीं कर सकते? शक्ति योजना का लक्ष्य अधिक लैंगिक समानता वाले सार्वजनिक स्थानों पर सबके लिए समान अवसर उपलब्ध करना है। निःशुल्क बस यात्रा भी महिलाओं के लिए यह अवसर मुहैया कराता है।

इस योजना में वे महिलाएं भी शामिल हैं जो यात्रा का खर्च उठा सकती हैं। वे क्यों यह सवाल अप्रासंगिक है। कुछ आलोचकों ने इस विचार पर ध्यान केंद्रित किया है कि महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा और पुरुषों के लिए टिकट रखना भेदभावपूर्ण है। संविधान का अनुच्छेद 15 लिंग और अन्य आधारों पर भेदभाव को अनुचित ठहराता है। लेकिन दूसरी तरफ संविधान ऐतिहासिक तौर पर भेदभाव के शिकार लोगों को विशेष अवसर या सकारात्मक भेदभाव की इजाजत देता है। आरक्षण की व्यवस्था इसका एक बड़ा उदाहरण है।

शिक्षा चाहने वाली महिलाओं को प्रोत्साहित करने और उनका समर्थन करने के लिए महिला छात्रों के लिए विशेष छात्र वृत्तियां दी जा रही हैं। राज्य की ओर से महिलाओं के लिए विशेष रोजगार और आजीविका कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न साधनों में महिलाओं के लिए सीटें पहले से ही आरक्षित हैं। ये सब इसलिए किया गया है ताकि समाज के विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो। क्योंकि समाज सिर्फ पुरुषों की भागीदारी से निर्मित नहीं हो सकता। एक उन्नत समाज का विकास तभी हो सकता है जिसमें महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो।

अक्सर, महिलाओं को गहरे पितृ सत्तात्मक समाज की वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है। शक्ति योजना इसी का सीधा जवाब है। यह सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के प्रति हिकारत के भाव को चुनौती देता है। भारत के संविधान निर्माता इन जरूरतों को जानते थे। यही कारण है कि उन्होंने अनुच्छेद 15(3) को शामिल किया जो राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देता है।

‘विशेष प्रावधान’ की व्यापक प्रकृति राज्य को मुफ्त बस यात्रा से लेकर रोजगार, शिक्षा या राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण तक के उपायों को शामिल करने की अनुमति देती है। शक्ति योजना निश्चित रूप से इसी श्रेणी में आती है। लेकिन विकसित समाज के निर्माण के लिए महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा ही पर्याप्त नहीं है। महिलाओं के यौन उत्पीड़न, महिला-अनुकूल बुनियादी ढांचे आदि के बारे में अभी चिंताएं बनी हुई हैं।

लेकिन यह योजना महिलाओं को समान नागरिकता की गारंटी देने की दिशा में एक सही कदम ज़रूर है। उम्मीद है, एक दिन, यह योजना आवश्यक नहीं रह जाएगी क्योंकि महिलाएं, पुरुषों की तरह, सड़कों पर घूम सकेंगी और समान रूप से हमारे सार्वजनिक स्थानों को साझा कर सकेंगीं। कर्नाटक में शुरुआती तीन दिनों में करीब 98,58,518 महिलाओं ने इस योजना का लाभ उठाया।

(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)

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