किसानों की हिमायत में दुनिया भर में प्रदर्शन, पंजाबी बुद्धिजीवियों ने लौटाए साहित्य अकादमी अवार्ड

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पंजाबी के सिरमौर शायर डॉ. मोहनजीत, प्रसिद्ध चिंतक डॉ. जसविंदर सिंह और पंजाबी के मशहूर नाटककार और ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ के संपादक डॉ. स्वराजबीर ने किसान आंदोलन की हिमायत और मोदी सरकार के असंवैधानिक क़ानूनों के विरोध में भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए हैं। केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा के अध्यक्ष दर्शन बुट्टर, सीनियर उपाध्यक्ष जोगा सिंह और महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने बयान जारी करते हुए कहा है कि पंजाब के किसानों की ओर से कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू किया गया यह एक ऐतिहासिक संघर्ष है और तमाम जनवादी संगठन, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार और पत्रकार इस संघर्ष में किसानों के साथ हैं।

भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार के विजेताओं के अवार्ड वापसी के फैसले का स्वागत करते हुए केंद्रीय पंजाबी लेखक सभा, प्रगतिशील लेखक संघ पंजाब, प्रगतिशील लेखक संघ चंडीगढ़, पंजाब पलस मंच, गुरबक्श सिंह ‘प्रीतलाड़ी’ और नानक सिंह फाउंडेशन, पंजाबी भाषा प्रसार केंद्र, जम्हूरी अधिकार सभा पंजाब, सलाम काफिला, जागता पंजाब, फोकल और रिसर्च अकादमी अमृतसर, जागृति मंच पंजाब, केंद्रीय पंजाबी रंगमंच सभा, अंतर्राष्ट्रीय लेखक मंच, आधार मंच, मोहाली लोक कला मंच, मानसा सचेतक रंगमंच, मोहाली सरगी कला केंद्र, जनवादी लेखक संघ, भाषा अकादमी जालंधर, मंच रंगमंच अमृतसर, भाई कान सिंह रचना विचार मंच, अदारा ‘हुण’ आदि संस्थाओं ने अपील की है कि किसानों के इस ऐतिहासिक संघर्ष में लेखक हर तरह का समर्थन और सहयोग देते हुए केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि सरकार बिना शर्त किसानों की मांगों को तुरंत मान ले।

अवार्ड वापसी का स्वागत करने वालों में वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री सुरजीत पातर, आत्मजीत सिंह, केवल धालीवाल, हरभजन सिंह हुंदल, डॉक्टर हरीश पुरी, डॉक्टर राजेंद्र, मोहन भंडारी, राजेंद्र सिंह, सीमा गुर्जर संधू, डॉक्टर परमिंदर सिंह, हरभजन सिंह बाजवा, डॉ. सुजीत सिंह रतन, नाहर सिंह, देवेंद्र दमन, सी मारकंडा सुलखन सरहदी के एल गर्ग, मनजीत कौर, जसबीर केसर, तारण गुजराल, कान्हा सिंह, सुरजीत कौर, मनजीत इंदिरा आदि लेखक और कलाकारों सहित तकरीबन 500 बुद्धिजीवियों ने बयान जारी करते हुए अवार्ड वापसी के इस फैसले का समर्थन किया है।

उधर, विश्व भर में तमाम बुद्धिजीवी किसान आंदोलन के समर्थन में उठ खड़े हुए हैं। दुनिया भर में बसते पंजाबियों ने अपने-अपने देशों में किसान आंदोलन के समर्थन में एकजुट होकर प्रदर्शन करने शुरू कर दिए हैं। फ्रांस, इटली, इंग्लैंड, जर्मनी, कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित अन्य कई मुल्कों में लगातार किसानों के समर्थन में और कृषि क़ानूनों के खिलाफ़ प्रदर्शन किए जा रहे हैं।

अमेरिका में तीन बड़ी सिक्ख जत्थेबंदियों ने अमेरिकन गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, सिख कोऑर्डिनेशन कमिटी ईस्ट कोस्ट और वर्ल्ड सिख पार्लियामेंट के सदस्य किसानों की हिमायत कर रहे हैं। इन संगठनों के नेता हिम्मत सिंह, डॉ. प्रितपाल सिंह और हरजिंदर सिंह ने बताया कि 5 दिसंबर को अमेरिका और यूरोप के कई देशों में भारतीय दूतावासों के सामने रोष प्रदर्शन किए जा रहे हैं।

डॉ. प्रितपाल सिंह ने कहा कि संघर्ष कर रही किसान जत्थेबंदियों के साथ उनका संपर्क बना हुआ है और जल्द ही संघर्ष स्थल पर मोबाइल डिस्पेंसरी का प्रबंध किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि किसान संघर्ष संबंधी दुनिया भर के सिख गुरुद्वारों में प्रबंधक कमेटियों के नेताओं की ओर से ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस की जाएगी।

फ्रांस की राजधानी पेरिस में किए गए प्रदर्शन में शामिल मनजीत सिंह गौरसिया ने बताया कि बड़ी तादाद में पंजाबियों ने रोष मार्च में हिस्सा लिया। इटली के शहर मिलान में भी एकजुट होकर वहां के निवासियों ने किसान संघर्ष को समर्थन दिया। इटली के नौजवानों ने कहा कि संघर्ष के दौरान जिन किसानों की मौत हो गई है, उनके परिवारों की आर्थिक मदद की जाएगी।

कनाडा के कुलतारण सिंह ने बताया कि बीते रविवार विंडसर ओंटारियो कनाडा-अमेरिका सरहद के नौजवानों की ओर से किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। इस दौरान सरहद पार कर रहे ट्रक ड्राइवरों ने भी इसमें शामिल होकर इसकी हिमायत की। फ्रांस के कई संगठन किसानों के समर्थन में उतर आए हैं और भाजपा की केंद्र सरकार की ओर से लागू किए गए किसान विरोधी कानूनों की गूंज पूरे विश्व में फैलने लगी है।

फ्रांस में बसे पंजाबी भाईचारे और सिख संगठनों ने आज किसानों के हक में नारे लगाए और केंद्र सरकार को यह किसान विरोधी कानून रद्द करने की मांग की है। इस मौके पर फेडरेशन फ्रांस इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशंस की ओर से भाई कश्मीर सिंह, रघबीर सिंह बराड़ और देवेंद्र सिंह घुमान ने कहा कि पंजाब का अस्तित्व किसानों पर टिका हुआ है। किसान खत्म हो गए तो पंजाब खत्म हो जाएगा। उधर पंजाब के गावों से वहां के श्रवण पुत्रों ने अपने बुज़ुर्गों को संदेश भेजा है कि आप दिल्ली संभालो, हम गांव संभाल लेंगे।

देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ, प्रसिद्ध पत्रकार और चिंतक पी. साईनाथ ने कहा है कि आंदोलन केवल नेताओं का नहीं समूचे किसानों का बन चुका है। असंवैधानिक कृषि क़ानूनों में संशोधन से काम नहीं चलेगा। अब कृषि और इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों के मुद्दों पर गंभीर विचार चर्चा और हल तलाशने के लिए संसद का मुकम्मल सत्र बुलाना चाहिए। इसमें किसानों की आमदनी, खेती के वैकल्पिक ढंग-तरीके, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, पानी की कमी और गुणवत्ता, खेती बीज, खादों, मजदूरों की दिहाड़ी, ग्रामीण शिक्षा, सेहत, रोजगार समेत सभी मुद्दों पर विचार किया जाना चाहिए। सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 50 प्रतिशत रोजगार देने वाले क्षेत्र के लिए हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों के पास समय नहीं है। 

(देवेंद्र पाल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)

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