नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की एक टीम ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मैतेई-कुकी के बीच चल रही हिंसा के दौरान सरकार की अपर्याप्त प्रतिक्रिया रही। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की भारी किरकिरी हुई है। भारत सरकार ने मणिपुर को लेकर जारी किए गए रिपोर्ट को बेतुका बताते हुए इसे गलत रिपोर्ट कहा है।
मंगलवार को भारत ने मणिपुर की मौजूदा स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की एक टीम की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि रिपोर्ट “अनुचित, अनुमानिक और भ्रामक” है। भारत की यह प्रतिक्रिया उस वक्त आयी जब संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में विशेषज्ञों की एक टीम ने मणिपुर में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्टों के बारे में ‘चेतावनी’ व्यक्त किया।
विशेषज्ञों ने मणिपुर में मैतेई और कुकियों के बीच चल रही हिंसा के दौरान “सरकार के द्वारा अपर्याप्त मानवीय प्रतिक्रिया” की ओर इशारा किया, जो 3 मई को शुरु हुई थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद, जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में भारतीय स्थायी मिशन के द्वारा बयान जारी किया। जिसमें कहा गया कि भारत का स्थायी मिशन इस समाचार विज्ञप्ति को पूरी तरह से नकारता है क्योंकि यह न केवल अनुचित, अनुमानपूर्ण और भ्रामक है। बल्कि मणिपुर की स्थिति को लेकर भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम की समझ की पूरी कमी को भी दर्शाता है।
भारतीय स्थायी मिशन अपनी बात दोहराते हुए कहा कि भारत मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए मणिपुर कि स्थिति को सामान्य करने के लिए लोकतांत्रिक मानदंडों के अनुसार स्थिति से निपट रहा है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मणिपुर में स्थिति शांतिपूर्ण और स्थिर है और भारत सरकार शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए अपेक्षित कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।
राज्य में हिंसा के दौरान महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अभद्र व्यवहार पर विशेष प्रतिवेदक रीम अलसलेम के नेतृत्व में उन्नीस विशेषज्ञों ने मणिपुर में उभरती स्थिति के बारे में चिंता व्यक्त की और भारत सरकार से जातीय-सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए शीघ्र न्याय सुनिश्चित करने का आह्वान किया। विशेषज्ञों ने बयान जारी कर कहा कि मणिपुर में भड़की हिंसा विशेष रुप से चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि पहले के घृणित और भड़काऊ भाषण के ऑनलाइन और ऑफलाइन फैलने से भड़की ये हिंसा महिलाओं और लड़कियों के सम्मान के हनन के रुप में सामने आया है। खासकर अल्पसंख्यक कुकी समुदाय और कुकी महिलाओं के खिलाफ उनकी जातीयता और धार्मिक विश्वास के आधार पर उन पर अत्याचार किया गया।
विशेषज्ञों के टीम ने भारतीय अधिकारियों से राहत प्रयासों को सुनिश्चित करने का आग्रह किया। ताकि हिंसा के आरोपियों की जांच करने के लिए समय पर ठोस कार्रवाई की जा सके और अपराधियों को जिम्मेदार ठहराया जा सके। जिनमें सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं जिन्होंने नस्लीय और धार्मिक घृणा और हिंसा को भड़काने में सहायता और बढ़ावा दिया है।
भारत सरकार ने मानवाधिकार की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के डोमेन पर सवाल उठाया है। और कहा है कि उन्हें मीडिया में बयान जारी करने से पहले राज्य की स्थिति को लेकर “भारत सरकार के इनपुट” का इंतजार करना चाहिए था। भारत के स्थायी मिशन को उम्मीद है कि भविष्य में संयुक्त राष्ट्र की विशेषज्ञ समिति से तथ्यों के आधार पर अपने मूल्यांकन में अधिक वस्तुनिष्ठ होने की अपेक्षा है।
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