जनकल्याणकारी योजनाओं का मॉडल प्रदेश बनता राजस्थान

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पिछले कुछ समय से लगातार कमजोर वर्गों के लिए बनाई गई योजनाओं और क़ानूनों के कारण प्रदेश के लोगों के साथ ही देश भर में भी लोकप्रियता हासिल कर रही है। वहीं दूसरी ओर ना केवल विपक्षी आईटी सेल बल्कि दिल्ली के अभिजात्य मीडिया हाउस भी इन क़ानूनों और योजनाओं को ‘रेवड़ी’ और ‘फ्रीबाई’ कहकर आलोचना करने में लगे हैं। ग़ौरतलब है कि राजस्थान सरकार ‘राइट टू हेल्थ कानून’, ‘न्यूनतम आय गारंटी अधिनियम’, युवाओं के लिए बेरोज़गारी भत्ता, ‘मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना’, ‘मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना’, ‘मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना’, ‘मुख्यमंत्री निशुल्क कृषि बिजली योजना’, ‘अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना’, ‘मुख्यमंत्री कामधेनु बीमा योजना’, ‘लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना’ जैसे हस्तक्षेप से ना केवल कमजोर आर्थिक वर्ग बल्कि राज्य के सामान्य नागरिकों के लिए एक सेफ़्टी नेट बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन कई लोग इन कदमों को राज्य और करदाताओं पर वित्तीय भार बढ़ाने वाली, ‘राजनैतिक रेवड़ी’ और ‘फ्रीबाइज’ के रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं। 

सेफ्टी नेट बनाम राजनैतिक रेवड़ी 

सेफ्टी नेट की अवधारणा लोक कल्याणकारी राज्य की कल्पना के साथ ही जन्म लेती है, जिसके अनुसार राज्य का मूल दायित्व संसाधनों का पुनः वितरण करना है। सेफ़्टी नेट के अन्तर्गत राज्य ऐसी कई योजनाओं का समायोजन करता है, जिससे सबसे कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों को जीवन जीने और अपना अस्तित्व बरकरार रखने में मदद मिले, इसमें सरकार मनुष्य की सबसे ज़रूरी आवश्यकता को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होती है। इस प्रकार के प्रोग्राम्स जहां एक ओर लोगों के जीवन को सुगम बनाते हैं वहीं दूसरी तरफ़ बहुस्तरीय ग़रीबी से भी लोगों को उभारने में मदद पहुंचाते हैं। ना केवल भारत बल्कि दुनिया भर में सेफ्टी नेट प्रोग्राम्स को उच्च वर्ग व उच्च मध्यम वर्ग के लोग ‘रेवड़ी’ जैसी शब्दावली के साथ ही आलोचना करते रहे हैं, उच्च वर्ग के लोगों को ऐसे आर्थिक हस्तक्षेप अपने अधिकारों पर हमले की तरह लगते हैं। वर्तमान में राजस्थान सरकार भी ऐसी आलोचनाओं का सामना कर रही है। 

स्वास्थ्य के मोर्चे पर 

राइट टू हेल्थ क़ानून के तहत राजस्थान का प्रत्येक नागरिक आपातकाल में राजस्थान के किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल में इलाज करवाने का अधिकारी होगा, कोई भी अस्पताल रूपयों की कमी के चलते किसी भी नागरिक को इलाज देने के अधिकार से इनकार नहीं कर सकती। अगर कोई नागरिक इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकता है तो इसका पुनर्भरण राज्य सरकार करेगी। वहीं मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत चयनित परिवार 25 लाख रूपये तक की राशि का सार्वजनिक बीमा दिया जाएगा, और मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना के तहत एक परिवार को दुर्घटना होने पर 10 लाख रूपये का बीमा देय होगा। इस क़ानून और बीमा योजनाओं के बाद बड़ी आबादी की स्वास्थ्य संबंधित चिंताएं कम हो जाएंगी। 

न्यूनतम आय गारंटी क़ानून

राजस्थान केबिनेट द्वारा पारित और विधानसभा में प्रस्तुत न्यूनतम आय गारंटी क़ानून भी अगले सत्र में विधानसभा में पारित होने के बाद देश में अपने तरीक़े का पहला क़ानून होगा, इसके अन्तर्गत सामाजिक सुरक्षा पेंशन (वृद्धावस्था, एकल नारी और दिव्यांगजन) को प्रतिवर्ष 15% बढ़ाने की गारंटी होगी। साथ ही इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार योजना के अंतर्गत शहरी परिवारों को दिए जा रहे 125 दिनों के रोज़गार को भी क़ानूनी गारंटी के अन्तर्गत लाया जाएगा। वहीं केन्द्र सरकार द्वारा जारी मनरेगा के 100 दिनों के रोज़गार गारंटी को राजस्थान में बढ़ाकर 125 दिन का कर दिया है, जिसमें सौ दिन के रोज़गार के बाद भी अगर कोई परिवार रोज़गार की मांग करता है तो राज्य सरकार 25 दिनों के रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए बाध्य होगी। देश के किसी भी राज्य में अब तक ऐसा क़ानून नहीं है, न्यूनतम आय गारंटी क़ानून जहां एक ओर लोगों को सीधा रोज़गार उपलब्ध करवाने का काम करेगा वहीं दूसरी ओर इसके प्रभाव से श्रम-बाज़ार में मज़दूरों की उपलब्धता में कमी आएगी जिससे मज़दूरी (श्रम मूल्य) में बढ़ोतरी की अपेक्षा की जा रही है। 

लोक-कलाकार प्रोत्साहन योजना

राजस्थान की लोक-कलाएं अपने में विलक्षण रंगो से भरी है, वहीं लोक-कलाकारों को रोज़मर्रा में कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, समय पर रोज़गार ना मिल पाना उनमें सबसे प्रमुख है। इसको ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना को लागू करने जा रही है जिसके तहत लोक कलाकारों को रजिस्ट्रेशन के बाद कलाकार कार्ड दिया जाएगा, कलाकार कार्ड धारक व्यक्ति जो आयकर दाता नहीं है; वह इस योजना के तहत सौ दिन का रोज़गार के लिए आवेदन कर सकेगा। उन्हें पंचायत-चौपालों, विद्यालयों में प्रदर्शन करने और प्रशिक्षण देने का काम सौंपा जाएगा, जिसके तहत उन्हें प्रतिदिन के 500₹ देय होंगे। साथ ही वाद्य यंत्र की ख़रीदी के लिए 5000₹ भी दिए जाएंगे, इसके तहत इस वित्तीय वर्ष में 100 करोड़ ₹ स्वीकृत हुए जिससे 2 लाख लोक-कलाकारों तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

ऐसी योजना भी देश में पहली बार बनाई जा रही है, कलाओं को हमेशा से अमीर वर्ग के रसंरजन की वस्तु माना गया है, सरकारें राज्यों की राजधानियों में कलाकारों के लिए थिएटर, गैलरी प्रदर्शन स्थल, अकादमियां तो चलाती आयी हैं लेकिन उससे बढ़कर बड़ी तादाद में लोक-कलाकारों को उनके कला के काम के ज़रिए रोज़गार देने का काम कभी नहीं किया गया है, ऐसे में इस योजना के क्रियान्वयन के बाद नतीजों को देखना दिलचस्प होगा। 

प्रत्यक्ष लाभ वाली योजनाओं से राहत

इन बड़े कदमों के साथ ही राज्य सरकार ने कई फ्लैगशिप योजनाएं चलाकर लोगों को प्रत्यक्ष लाभ से राहत पहुंचाने की कोशिश की है, इसमें मुख्यमंत्री सम्बल योजना शामिल है, जिसके तहत बेरोज़गार युवाओं को (4000₹ पुरूषों को और 4500₹ महिलाओं को) सरकारी कार्यालयों में चार घंटे की इन्टर्नशिप करनी होगी, इसमें तक़रीबन 1.90 लाख लोग वर्तमान में लाभान्वित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना और मुख्यमंत्री निशुल्क कृषि बिजली योजना के तहत घरेलू परिवारों को प्रति परिवार 100 यूनिट और कृषि कार्यों के लिए 2000 यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है। इसके साथ ही पशुपालकों को दुधारू पशु के स्वास्थ्य के लिए 40000₹ प्रति पशु तक का बीमा भी दिया जा रहा है। साथ ही लम्पी रोग से प्रभावित पशुपालकों को भी 40000₹ प्रति पशु मुआवज़ा सरकार की तरफ़ से दिया जा रहा है। ये योजनाएं राज्य के नागरिकों को प्रत्यक्ष लाभ के ज़रिए एक राहत देने की कोशिश कर रही है। 

पब्लिक पर्सेप्सन का सवाल

प्रायः इस प्रकार की योजनाओं और क़ानूनों को लेकर पब्लिक पर्सेप्सन खिलाफ रहता है, इस मानसिकता के लोगों ने पहले भी मिड-डे मील, मनरेगा, PDS जैसी जनमुखी योजनाओं की अतार्किक आलोचना की है, अमेरिका में भी एक धड़ा ओबामा केयर जैसी योजना का विरोध दर्ज कराता रहा है, वहीं पश्चिम यूरोप के एक धड़े में बेरोज़गारी भत्ते और पेंशन के लिए भी दुराग्रह देखा जा सकता है। भारत में ऐसी बड़ी योजनाओं का सहारा पाने वालों की बड़ी तादाद है लेकिन उन लोगों का वर्चस्व ना पारम्परिक मीडिया पर है और ना ही लोकतांत्रिक कहे जाने वाले सोशल मीडिया पर। इस प्रकार के दुराग्रहों को आकार देने में भारतीय मीडिया का बड़ा योगदान है जो प्रायः उच्च मध्यमवर्गीय मानसिकता से ग्रस्त है। इन हस्तक्षेपों के खिलाफ वृहद् स्तर की अतार्किक आलोचना हमारे मीडिया और जनमत बनाने वाले सब केन्द्रों का चरित्र भी उजागर करता है।

(विभांशु कल्ला ने मॉस्को के हायर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डेवलपमेंट स्टडीज़ में मास्टर्स किया है, और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर लिखते रहे हैं।)

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