सुप्रीम कोर्ट से सुर्खियां: हिट एंड रन पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने का SC ने केंद्र को दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह हिट एंड रन मामलों में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को और गंभीर रूप से घायलों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि को बढ़ाने पर विचार करे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस फैसले पर विचार के लिए आठ हफ्ते का समय दिया है और 22 अप्रैल को अगली सुनवाई पर जानकारी देने का निर्देश दिया है।

मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को कोई वाहन टक्कर मारकर फरार हो जाता है और इस हादसे में पीड़ित की मौत हो जाती है तो उसे अधिकतम दो लाख रुपये का मुआवजा मिलता है। वहीं गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को 50 हजार रुपये की आर्थिक मदद मिलती है।

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को भी हिट एंड रन के पीड़ितों के परिजनों को कानून के तहत मुआवजा योजना की जानकारी देने को भी कहा है। जस्टिए एएस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा हर साल हिट एंड रन के मामलों के आंकड़ों की जानकारी दी जाती है। इनसे पता चलता है कि साल दर साल हिट एंड रन के मामलों में तेजी आ रही है। बीते साल सड़क परिवहन मंत्री ने लोकसभा में भी इसकी जानकारी दी थी।

चित्तौड़गढ़ किले की सुरक्षा के निर्देश, 5 किलोमीटर के दायरे में विस्फोट गतिविधियों पर रोक

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले के इतिहास और विरासत को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चूना पत्थर (या अन्य खनिजों) के खनन के लिए 5 किलोमीटर के दायरे में होने वाली विस्फोट गतिविधियों के खिलाफ सुरक्षा के निर्देश जारी किए।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने आदेश दिया, “विस्फोट से उत्पन्न होने वाले चरम कण वेग (पीपीवी) के लिए प्राचीन स्मारकों के निरंतर संपर्क को ध्यान में रखते हुए किले की परिसर की दीवार से पांच किलोमीटर के दायरे में विस्फोट करके खनन नहीं किया जाएगा, या किसी भी खनिज विस्फोट के लिए विस्फोटकों का उपयोग नहीं किया जाएगा।”

आदेश के अनुसार, 5 किलोमीटर के दायरे में मैनुअल/मैकेनिकल खनन संचालन अभी भी अनुमति है, बशर्ते कि पट्टेदार के पास कानून के तहत वैध पट्टा हो। पीठ ने 2 सप्ताह के भीतर विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया, जो पर्यावरण प्रदूषण और 5 किलोमीटर के दायरे से परे विस्फोट संचालन के किले पर प्रभाव का अध्ययन करेगी। चेयरमैन, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स), धनबाद, झारखंड द्वारा गठित की जाने वाली यह समिति बहु-विषयक विशेषज्ञों की टीम का गठन करेगी।

मुजफ्फरनगर थप्पड़ कांड में यूपी सरकार ने वह नहीं किया जो उससे अपेक्षित था

सुप्रीम कोर्ट ने तुषार गांधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य मामले में कहा है कि मुजफ्फरनगर में एक मुस्लिम बच्चे को कथित तौर पर उसके कक्षा शिक्षक के आदेश पर उसके सहपाठियों द्वारा थप्पड़ मारे जाने के बाद उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस  उज्जल भुइयां की पीठ को राज्य सरकार के वकील ने बताया कि बच्चे को अब उसके माता-पिता ने एक नए स्कूल में दाखिला दिलाया है जो बहुत दूर है, जो शिक्षा का अधिकार अधिनियम के मानदंडों के खिलाफ है।परिवार के वकील ने जवाब दिया कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था क्योंकि उनके घर के पास कोई अच्छा स्कूल नहीं था।

जस्टिस ओका ने अवलोकन किया कि यह सब इसलिए होता है क्योंकि राज्य वह नहीं करता है जो इस अपराध के बाद उससे करने की अपेक्षा की जाती है। जिस तरह से यह घटना हुई है उसके बारे में राज्य को बहुत चिंतित होना चाहिए। इसलिए, हमने अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में अन्य मुद्दे भी उठाए हैं।

कोर्ट ने शुक्रवार को पक्षों से घटना के मद्देनजर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा तैयार की गई काउंसलिंग रिपोर्ट और सिफारिशों को देखने और उनमें बदलाव का सुझाव देने को भी कहा।

तुषार गांधी की याचिका में मामले की समयबद्ध और स्वतंत्र जांच के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित स्कूली बच्चों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए उपचारात्मक कार्रवाई की मांग की गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि स्कूल शिक्षक को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295ए के तहत आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।

आईपीसी की धारा 295ए में कहा गया है कि किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से किया गया कोई भी जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य दंडनीय अपराध है।

अदालत ने छात्र और उसके सहपाठियों की पेशेवर काउंसलिंग के साथ-साथ नए स्कूल में प्रवेश का भी निर्देश दिया था।पिछली सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार द्वारा मामले की जांच को संभालने के तरीके पर भी आपत्ति जताई थी।

न्यायालय ने पाया था कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) में प्रमुख आरोप हटा दिए गए थे और इसलिए, निर्देश दिया था कि जांच का नेतृत्व राज्य सरकार द्वारा नामित एक वरिष्ठ भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए।

राजनीति से प्रेरित मुकदमेबाजी के लिए पंजाब सरकार की आलोचना

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व डिप्टी सीएम और शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ अमृतसर में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और राजनीति से प्रेरित मुकदमेबाजी में शामिल होने के लिए भगवंत सिंह मान के नेतृत्व वाली आप सरकार को फटकार लगाई।

जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने पंजाब की वकील रूह हिना दुआ से पूछा कि पंजाब सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील क्यों की है, जबकि उसे शिकायतकर्ता होना चाहिए था, जिसके आदेश पर एफआईआर दर्ज की गई थी? पीठ ने अपील खारिज करने से पहले कहा, यह और कुछ नहीं बल्कि राजनीति से प्रेरित मुकदमेबाजी में शामिल होना है।

पीठ ने कहा, “शिकायतकर्ता हाईकोर्ट के आदेश से व्यथित नहीं है। राज्य ने अपील क्यों दायर की है? एफआईआर में कथित अपराधों की सामग्री कहां है? यह राजनीति से प्रेरित मुकदमा है।”

उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में बादल के खिलाफ एक प्राथमिकी यह कहते हुए रद्द कर दी थी कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

अमृतसर जिले में एक कंपनी के खनन कार्यों में बाधा डालने के लिए बादल के खिलाफ 1 जुलाई, 2021 को आईपीसी की धारा 269, 270, 188, 341, 506 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 की धारा 3 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। बादल ने आरोप लगाया था कि कंपनी ब्यास नदी के किनारे अवैध खनन कर रही है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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