सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद (सांसद) राहुल गांधी द्वारा आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा को निलंबित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। राहुल गांधी को सजा के परिणामस्वरूप सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया था। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 4 अगस्त को तय की है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ‘मोदी चोर’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से गुजरात हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस गवई ने मामला शुरू होते ही कहा कि उनके पिता कांग्रेस से जुड़े थे और उनके भाई अभी भी पार्टी से जुड़े हुए हैं इसलिए क्या किसी को इस मामले की सुनवाई पर कोई आपत्ति है। गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने सर्वसम्मति से अपनी अनापत्ति व्यक्त की।
सिंघवी ने इस तथ्य पर विचार करते हुए सुनवाई की पहले की तारीख का अनुरोध किया कि गांधी ने सांसद के रूप में सौ दिन खो दिए हैं और वायनाड निर्वाचन क्षेत्र के लिए उपचुनाव जल्द ही अधिसूचित किए जा सकते हैं।
महेश जेठमलानी ने जवाब दाखिल करने के लिए दस दिन का समय मांगा। जस्टिस गवई ने कहा कि ऐसे मामले में जवाब की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने 100 पन्नों से अधिक का आदेश पारित किया है। जेठमलानी ने कहा कि वह कानून के कुछ प्रस्ताव रिकॉर्ड पर रखना चाहते हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मानहानि के मामले में सूरत की अदालत से मिली दो साल की सजा के खिलाफ शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके पहले इस सजा के खिलाफ दायर याचिका को गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। दो साल की सजा मिलने के बाद ही राहुल की संसद सदस्यता चली गई थी।
दरअसल, 2019 में मोदी उपनाम को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में 23 मार्च को सूरत की सीजेएम कोर्ट ने राहुल को दो साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, कोर्ट ने फैसले पर अमल के लिए 30 दिन की मोहलत भी दी थी। 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, ‘कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?’ इसी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
23 मार्च को निचली अदालत ने राहुल को दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके अगले ही दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई थी। राहुल को अपना सरकारी घर भी खाली करना पड़ा था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को राहुल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस प्रच्छक ने मई में राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। पिछले दिनों हाईकोर्ट ने भी इस मामले में फैसला सुनाया और राहुल की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने राहुल की निंदा भी की थी।
न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने कहा कि राहुल के खिलाफ कम से कम 10 आपराधिक मामले लंबित हैं। मौजूदा केस के बाद भी उनके खिलाफ कुछ और केस भी दर्ज हुए। ऐसा ही एक मामला वीर सावरकर के पोते ने दायर किया है। न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि दोषसिद्धि से कोई अन्याय नहीं होगा। दोषसिद्धि न्यायसंगत एवं उचित है। पहले दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए आवेदन खारिज किया जाता है।
राहुल ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी में कहा है कि ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह है जबकि आईपीसी की धारा 499/500 के तहत मानहानि का अपराध केवल एक परिभाषित समूह के मामले में लगता है। ‘मोदी’ एक अपरिभाषित अनाकार समूह है जिसमें लगभग 13 करोड़ लोग देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और विभिन्न समुदायों से संबंधित हैं। ऐसे में आईपीसी की धारा 499 के तहत ‘मोदी’ शब्द व्यक्तियों के संघ या संग्रह की किसी भी श्रेणी में नहीं आता है।
याचिका में कहा गया है कि टिप्पणी शिकायतकर्ता के खिलाफ नहीं थी। रैली में ललित मोदी और नीरव मोदी का जिक्र करने के बाद ‘सभी चोरों का उपनाम एक जैसा क्यों होता है?’ कहा गया था। ये टिप्पणी विशेष रूप से कुछ निर्दिष्ट व्यक्तियों को संदर्भित कर रही थी और शिकायतकर्ता, पूर्णेश ईश्वरभाई मोदी को उक्त टिप्पणी से बदनाम नहीं किया जा सकता है। मतलब ये टिप्पणी पूर्णेश मोदी को लेकर नहीं की गई थी। इसलिए उनके आरोप गलत हैं।
शिकायतकर्ता ने यह नहीं बताया कि वह इस बयान से कैसे प्रभावित हुए: शिकायतकर्ता के पास केवल गुजरात का ‘मोदी’ उपनाम है, जिसने न तो दिखाया है और न ही किसी विशिष्ट या व्यक्तिगत अर्थ में पूर्वाग्रहग्रस्त या क्षतिग्रस्त होने का आरोप लगाया है। तीसरा, शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह मोढ़ वणिका समाज से आता है। यह शब्द मोदी के साथ विनिमेय नहीं है और मोदी उपनाम विभिन्न जातियों में मौजूद है।
बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। टिप्पणी 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान दिए गए एक राजनीतिक भाषण का हिस्सा थी। इसके जरिए शिकायतकर्ता को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। इसलिए अपराध के लिए मानवीय कारण का अभाव है।
उच्च न्यायालय ने यह मानने में गलती की कि अपराध के लिए कठोरतम सजा की आवश्यकता है। लोकतांत्रिक राजनीतिक गतिविधि के दौरान आर्थिक अपराधियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले एक राजनीतिक भाषण को नैतिक अधमता का कार्य माना गया है। इसमें कठोर सजा मिलना गलत है। राजनीतिक अभियान के बीच में खुलकर बोलने की आजादी होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो लोकतंत्र के लिए यह खतरा होगा।
अपराध में कोई नैतिक अधमता शामिल नहीं है। शब्द “नैतिक अधमता” प्रथम दृष्टया ऐसे अपराध पर लागू नहीं हो सकता जहां विधायिका ने केवल दो साल की अधिकतम सजा का प्रावधान करना उचित समझा। यह अपराध जमानती और गैर-संज्ञेय भी है और इसलिए इसे “जघन्य” नहीं माना जा सकता।
अधिकतम दो साल की सजा मिलने के चलते याचिकाकर्ता को संसद से अयोग्य ठहरा दिया गया है। वायनाड लोकसभा क्षेत्र में 4.3 लाख से अधिक वोटों से याचिकाकर्ता ने जीत हासिल की है। ऐसे में इस फैसले से जनता को भी नुकसान हुआ है। दो साल की सजा मिलने से अगले आठ सालों तक याचिकाकर्ता चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। इससे प्रमुख विपक्षी आावाज को रोका जाएगा।
उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए बुनियादी मानदंडों की अनदेखी की। सजा के निलंबन के दो मजबूत आधार बन सकते हैं। (1) इसमें कोई गंभीर अपराध शामिल नहीं है जो मौत, आजीवन कारावास या एक अवधि के कारावास दस साल से कम दंडनीय है। (2) शामिल अपराध में नैतिक अधमता शामिल नहीं होनी चाहिए। याचिकाकर्ता के मामले में ये दोनों शर्तें पूरी होती हैं। फिर भी उच्च न्यायालय ने अपराध को नैतिक अधमता से जुड़ा हुआ मानकर दोषसिद्धि को निलंबित नहीं करने का निर्णय लिया।
उच्च न्यायालय का आदेश स्वतंत्र भाषण, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है: यदि लागू फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह “स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का गला घोंट देगा”। यह “लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने में योगदान देगा जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा”। यदि राजनीतिक व्यंग्य को आधार उद्देश्य माना जाए, तो कोई भी राजनीतिक भाषण जो सरकार की आलोचनात्मक हो, नैतिक अधमता का कार्य बन जाएगा। यह लोकतंत्र की नींव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।
(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)