भीमा कोरेगांव: डीयू प्रोफेसर की जमानत याचिका पर NIA और महाराष्ट्र सरकार को SC का नोटिस

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में प्रोफेसर हनी बाबू द्वारा दायर जमानत याचिका पर बुधवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा है। जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने केंद्रीय एजेंसी को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब देने को कहा है। पीठ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

हनी बाबू को जुलाई 2020 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य होने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले की साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

सितंबर 2022 में, बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस नितिन जामदार और एनआर बोरकर की पीठ ने ग्रेटर मुंबई की विशेष अदालत के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर के निवासी बाबू द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि हम पाते हैं कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ एनआईए के आरोपों में आतंकवादी कृत्यों की साजिश रचने, प्रयास करने, वकालत करने और उकसाने और आतंकवादी कृत्य की बात प्रथमदृष्टया सत्य है।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने पहले उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया था।

बाबू ने उच्च न्यायालय के समक्ष दावा किया था कि एनआईए ने जिन पत्रों का हवाला दिया है उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का कथित तौर पर जिक्र किया गया है।

एनआईए का दावा था कि पत्र बाबू के कंप्यूटर पर पाया गया था, जबकि बाबू की दलील थी कि पत्र न तो उन्होंने लिखा था और न ही उन्हें संबोधित किया था और न ही साजिश में उनकी भूमिका का उल्लेख किया गया था।

उन्होंने यह भी कहा कि विशेष न्यायाधीश ने उन्हें दोषी ठहराने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत के रूप में पत्र पर भरोसा करके गलती की थी। उन्होंने कहा कि इस आरोप की पुष्टि के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने आपत्तिजनक भाषण दिए थे।

उन्होंने अपनी पूर्व की जमानत याचिकाओं में यह भी तर्क दिया कि मामले में सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है और इसे पूरा होने में समय लगेगा क्योंकि एनआईए ने 30,000 से अधिक पृष्ठों के साक्ष्य के लिए 200 से अधिक गवाहों से पूछताछ करने की योजना बनाई है। बाबू ने शीर्ष अदालत में वकील वैरावन एएस के माध्यम से याचिका दायर की थी।

यह मामला 12 दिसंबर, 2017 को पुणे, महाराष्ट्र में एल्गार परिषद के संगठन से संबंधित है, जिसने विभिन्न जाति समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया और हिंसा हुई जिसके परिणामस्वरूप जान-माल की हानि हुई और महाराष्ट्र में राज्यव्यापी आंदोलन हुआ।

अपनी जांच में, एनआईए ने खुलासा किया कि बाबू कथित तौर पर पाइखोम्बा मैतेई, सचिव सूचना और प्रचार, सैन्य मामले, कांगलेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी (एमसी) के संपर्क में था, जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित संगठन है और माओवादी गतिविधियों और माओवादी विचारधारा का प्रचार कर रहा था और अन्य अभियुक्तों के साथ सह-साजिशकर्ता था।

मामले में जांच कर रही एनआईए ने बाबू पर प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा को बढ़ावा देने में सह-साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया है। इस मामले में बाबू को जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।

मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया था कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी क्षेत्र में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गई थी। हिंसा में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी और कई अन्य लोग घायल हो गए थे।

बाबू ने अपनी याचिका में कहा था कि विशेष अदालत ने यह कहने में ‘गलती की’ है कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया अभियोजन योग्य सामग्री है।

एनआईए ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए दलील दी कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रियता से शामिल थे और वह सरकार को अस्थिर करना चाहते थे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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