ग्राउंड रिपोर्ट: योगी के ‘गोवंश आश्रय स्थलों’ की दुर्दशा देख कांप उठती है रूह, कीचड़ और पानी में मरने को विवश हैं गोवंश

अमेठी। चारा-पानी, साफ-सफाई और उचित छांव के अभाव में दम तोड़ते गोवंशों की दुर्दशा को बरसात ने और बदतर बना दिया है। इन्हें दो गज जमीन में सुरक्षित दफनाया भी नहीं जा रहा है। चार दिनों से खुले में सड़ रहे गोवंश के शव से उठने वाली दुर्गंध व्यवस्था की कलई खोल रही है। बावजूद इसके संबंधित अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। ये हालात उस अमेठी के अस्थाई ‘गोवंश आश्रय स्थल’ की हैं, जहां की सांसद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं।

उत्तर प्रदेश में खुले ‘गोवंश आश्रय स्थल’ सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ की महत्वपूर्ण योजनाओं यानि ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल है। बावजूद इसके गोवंश आश्रय स्थलों की दुर्व्यवस्था समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है।

पानी में सड़ते गोवंश

योगी सरकार गोवंशों की सुरक्षा व संरक्षण के दावे करते नहीं थकती लेकिन तस्वीर बिल्कुल उलट है। सरकार राज्य ने सभी जनपदों में जगह-जगह अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों का निर्माण कराया है, ताकि आवारा और खुले में घूमते गोवंशों को आसरा मिल सके, लेकिन सरकार की यह योजना परवान चढ़ने की बजाए नित्य नई विफलताओं की गाथा सुना रही है। उत्तर प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई गोवंश आश्रय स्थल हो जो दुर्व्यवस्थाओं का शिकार ना हो।

अमेठी के ग्राम पंचायत टिकरी में अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल।

ताजा मामला उत्तर प्रदेश की वीवीआईपी सीटों में शुमार अमेठी का है जहां की सांसद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं। उन्हीं के लोकसभा क्षेत्र के विकास खंड भेटुआ के ग्राम पंचायत टिकरी में गोवंशों की दयनीय स्थिति देख कर व्यवस्था पर रोना आता है और सवाल भी उठता है कि इसका कसूरवार कौन है?

8 जुलाई 2023 को ‘जनचौक’ की टीम टिकरी के अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल पहुंचती है, जहां पिछले 4 दिन से मृत पड़े गोवंश को देख मन द्रवित हो उठता है। दुर्व्यवस्था और लापरवाही इस कदर की मरने के बाद गोवंश को दफनाने के बजाए समीप के ही पानी भरे गड्ढे में फेंक दिया गया है। मृत गोवंश के शव पानी में सड़ते हुए, पक्षियों का आहार बनते दिखाई देते हैं।

सूचना के बाद अधिकारियों ने साध ली चुप्पी

‘जनचौक’ की टीम का कैमरा देख अस्थाई गोवंश आश्रय स्थल पर मौजूद कर्मचारी खामोश हो जाता है। काफी कुरेदने पर बताता है कि गोवंश की मौत की सूचना दे दी गई है। लेकिन सूचना के बाद भी कोई प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचने की जहमत नहीं उठाया है। कर्मचारी ने बताया कि “इसकी सूचना उसने अधिकारियों को दी है पर दफनाने की जगह ना होने के चलते यहां से इन्हें हटाया नहीं गया है।”

यह कब तक ऐसे ही यहां पड़े रहेंगे के सवाल पर वह कहता है कि “सूचना दी गई है, अधिकारियों के आने पर इन्हें पानी से निकलवाया जाएगा।”

गोवंश आश्रय स्थल पर मौजूद कर्मचारी

सच्चाई से मुंह फेर लेते हैं अधिकारी

उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट गोवंश आश्रय स्थलों की दुर्दशा कोई नई बात नहीं है। इसके पहले भी यह दुर्दशा खुलकर सामने आ चुकी है, बावजूद इसके जिम्मेदार मुलाजिमों पर ठोस कार्रवाई के बजाए सच्चाई दिखाने वालों पर ही कार्रवाई होती आई है। नजीर के तौर पर जौनपुर, मिर्जापुर सहित पूर्वांचल के कई जनपदों में ऐसे ‘गोवंश आश्रय स्थल’ हैं, जहां की सच्चाई उजागर करने वालों पर ही कार्रवाई की गई है।

पिछले महीने जौनपुर के पेसारा गांव में स्थित अस्थाई गौशाला की हकीकत दिखाने पर चार पत्रकारों के खिलाफ दलित ग्राम प्रधान को आगे खड़ा करके मुकदमा कायम कराया जा चुका है। इसी प्रकार मिर्जापुर के लालगंज विकासखंड अंतर्गत बरकक्ष कला गांव में पूर्व ग्राम प्रधान द्वारा संचालित फर्जी गौशाला में मृत गोवंशों की दुर्दशा दिखाने पर ग्रामीण पत्रकारों को पूर्व ग्राम प्रधान के कोप का शिकार होना पड़ा था।

पत्रकार जहां न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं वहीं पूर्व ग्राम प्रधान के जुल्मों सितम का दौर जारी है। सवाल उठता है कि क्या भाजपा शासित राज्यों में हकीकत दिखाना अपराध है? वरिष्ठ पत्रकार भोलानाथ पांडे “जनचौक” को बताते हैं कि “शासन सत्ता और नौकरशाहों की गुलाम बन चुकी गोदी मीडिया के दौर में सच्चाई दिखाना मानो अपराध है।”

पत्रकारों के उत्पीड़न पर वह बोलते हैं कि “सच्चाई और हकीकत से रूबरू कराने वाले इस दौर के पत्रकारों के लिए यह एक तरह का अघोषित आपातकाल है। यदि ऐसा न होता तो सच्चाई और हकीकत दिखाने वाले पत्रकारों पर मुकदमा कदापि ना होता।” वह अफसोस व्यक्त करते हुए कहते हैं कि “इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आईना दिखाने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत करने के बजाए, उन पर फर्जी मुकदमे लाद दिए जा रहे हैं।”

गोवंश आश्रय स्थल मृत पड़ा गोवंश।

गोवंश संरक्षण अभियान की निकल रही हवा

उत्तर प्रदेश में समय-समय पर गोवंशों को स्थाई गौशाला में संरक्षित करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है, ताकि कोई भी गोवंश खुले में सड़कों पर घूमता हुआ नजर ना आए, लेकिन हकीकत इससे जुदा है। सड़क, हाईवे से लेकर गांव-गलियों, कस्बों में गोवंश को खुले में घूमते, बैठे आसानी से देखा जा सकता है, जो कहीं ना कहीं दुर्घटना का कारण भी बन रहे हैं तो कई बेजुबान अक्सर रात्रि के समय वाहनों की चपेट में आकर काल कवलित भी हो जा रहे हैं।

अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों में भूसा, हरा चारा, पानी, साफ-सफाई, छांव के साथ चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से बाउंड्रीवाल का होना नितांत आवश्यक है। भूसा, चारा-पानी के अभाव के साथ-साथ साफ-सफाई की व्यवस्था से लेकर कई ऐसी खामियां आज भी व्याप्त हैं जो मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट की हवा निकाल रही हैं।

नहीं होती समुचित देखभाल

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के लोकसभा क्षेत्र की यह बदहाल गौशाला एक नजीर है, कि कैसे अधिकारियों से लेकर सत्ताधारी दल से जुड़े सांसद-विधायकों ने कभी इनकी बदहाली को करीब से देखने के लिए औचक निरीक्षण करना जरूरी नहीं समझा। कुछ विशेष पर्व-त्योहारों पर गुड़-रोटी खिलाकर गोवंश का गुणगान कर चलते बनते नेताओं को भला अन्य दिनों में कहां फुरसत जो इधर झांक सकें।

किसान विजय कुमार विश्वकर्मा “जनचौक” को बताते हैं कि “बेशक सरकार की गौ रक्षा को लेकर जो मंशा रही है, वह काबिले तारीफ तो है, लेकिन सही ढंग से क्रियान्वित न होने से यह विफल साबित होती नजर आ रही है।”

गोवंश आश्रय स्थल पर मौजूद जानवर।

सुल्तानपुर के पत्रकार आशुतोष त्रिपाठी का कहना है कि “अस्थाई गोवंश आश्रय स्थलों के रखरखाव में बरती जा रही लापरवाही किसी से छिपी नहीं है। कर्मचारी मीडिया के लोगों को देख सच्चाई बताने से कतराते हैं, तो जिम्मेदार मुलाजिम मुंह छिपाए हुए नजर आते हैं। और तो और इनके स्वास्थ्य के नजरिए से देखें तो गौशाला में रहने वाले बीमार और बेजुबान गोवंशों को लेकर भी बड़ी लापरवाही देखने को मिलती है।”

वो कहते हैं कि “चारा-पानी, साफ-सफाई के अभाव में बीमार होकर दम तोड़ते गोवंशों के स्वास्थ्य की देखभाल में भी घोर लापरवाही बरती जाती है। पशु चिकित्सक समय-समय पर इनके देखभाल की बजाए कागजों में ही सब कुछ सामान्य दिखा कर इन बेजुबानों की बेबशी, पीड़ा और जख्मों पर मरहम के बजाय कोरम पूरा करते हैं।”

(उत्तर प्रदेश के अमेठी से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

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