सुप्रीम कोर्ट का हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी पर हस्तक्षेप से इनकार, हाईकोर्ट जाने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भूमि घोटाला मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने सोरेन से कहा कि वह सीधे उच्चतम न्यायालय जाने के बजाय पहले झारखंड उच्च न्यायालय का रुख करें।

सोरेन की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जवाब दिया “हम एक मुख्यमंत्री के साथ काम कर रहे हैं।” न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा “अदालतें सभी के लिए खुली हैं। अगर हम एक व्यक्ति को अनुमति देते हैं, तो हमें सभी को अनुमति देनी होगी।”

अदालत ने तब यह स्पष्ट कर दिया कि वह याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं और सोरेन को पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। जस्टिस खन्ना ने रेखांकित किया, “कृपया उच्च न्यायालय जाएं, हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे।”

सोरेन ने शुरू में उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की थी, लेकिन बाद में उच्चतम न्यायालय जाने के लिए इसे वापस ले लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, “हम अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। हम इसे अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय से संपर्क करने के लिए खुला छोड़ते हैं। हमें सूचित किया गया है कि उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी और अभी भी लंबित है। इसके बाद अनुच्छेद 226 के तहत एक और याचिका दायर की गई जिसे बाद में वापस ले लिया गया। याचिकाकर्ता के लिए याचिका में संशोधन करने का विकल्प खुला है।”

पीठ झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता की ईडी द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ईडी ने झारखंड में माफिया द्वारा भूमि के स्वामित्व के अवैध परिवर्तन के विशाल रैकेट से संबंधित एक मामले में सोरेन पर आरोप लगाया है। एजेंसी ने 20 जनवरी को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत सोरेन का बयान दर्ज किया था।

इस मामले में अब तक एक दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें 2011 बैच की आईएएस अधिकारी छवि रंजन भी शामिल हैं, जो राज्य के समाज कल्याण विभाग के निदेशक और रांची के उपायुक्त के रूप में कार्यरत थीं।

ईडी ने 23 जून, 2016 को पीएमएलए की धारा 45 के तहत सोरेन, रंजन, नौ अन्य और तीन कंपनियों के खिलाफ अभियोजन शिकायत दर्ज की थी। जबकि आरोपी व्यक्ति सलाखों के पीछे बंद हैं, सोरेन ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों से इनकार किया है। गिरफ्तारी से ठीक पहले जारी एक वीडियो में सोरेन ने दावा किया था कि उन्हें साजिश के तहत ‘फर्जी कागजात’ के आधार पर गिरफ्तार किया जा रहा है।

सोरेन ने ईडी द्वारा गिरफ्तारी के मद्देनजर 31 जनवरी को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अपनी याचिका में उन्होंने मामले में अब तक जारी किए गए सभी समन को चुनौती दी है और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा उठाए जाने वाले दंडात्मक कदमों से संरक्षण की मांग की है।

सोरेन ने जोर देकर कहा कि समन में उनके खिलाफ जांच का कोई विवरण नहीं है, और यह कि उनकी व्यक्तिगत संपत्ति कर रिटर्न में विधिवत घोषित धन के साथ अर्जित की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के लिए 16,665 रुपये नामांकन शुल्क को चुनौती देने वाली याचिका पर यूपी बार काउंसिल को नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश (यूपी बार काउंसिल) को एक वकील के रूप में नामांकन के लिए उच्च शुल्क को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यूपी बार काउंसिल से जवाब मांगा और याचिका को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

याचिकाकर्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय से 2023 में स्नातक हैं और उन्होंने कहा कि उन्हें एक दिन के भीतर त्वरित प्रसंस्करण के लिए अतिरिक्त 5,000 शुल्क के साथ 16,665 रुपये की नामांकन फीस का भुगतान करना होगा।

सीजेआई के सवाल के जवाब में कि क्या फीस उचित होगी, याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिवक्ता अधिनियम के अनुसार केवल 750 रुपये लिए जाने चाहिए। तदनुसार, अदालत ने नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

गौरतलब है कि पिछले साल 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था, जिसमें विभिन्न स्टेट बार काउंसिलों द्वारा लगाए गए एनरोलमेंट फीस को चुनौती दी गई थी।

यह आदेश बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा ऐसे सभी मामलों को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने की याचिका पर पारित किया गया था। बीसीआई ने अपनी स्थानांतरण याचिका में कहा था कि इस मुद्दे पर केरल, मद्रास और बंबई उच्च न्यायालयों में मामले लंबित हैं।

बीसीआई ने कहा था कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष दायर याचिकाएं नामांकन के समय प्रभार्य शुल्क की संवैधानिक वैधता से संबंधित कानून के समान प्रश्नों से निपटती हैं। इसने इस बात पर जोर दिया कि याचिकाओं को स्थानांतरित करने से न्यायिक समय की बर्बादी को रोका जा सकेगा और इस मामले को शीर्ष अदालत द्वारा आधिकारिक रूप से तय किया जा सकता है।

इसके अलावा, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने 9 नवंबर, 2023 को तेलंगाना राज्य के लिए बार काउंसिल (बीसीएसटी) से संबंधित इसी तरह की याचिका पर नोटिस जारी किया था, जो नामांकन शुल्क के रूप में 27,500 रुपये लेता है।

सुप्रीम कोर्ट ने बिनीश कोडियेरी की जमानत के खिलाफ ईड़ी की चुनौती खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पूर्व केरल राज्य सचिव के बेटे और एक्टर बिनीश कोडियेरी को कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय (ईड़ी) की याचिका खारिज की।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने एजेंसी की याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि बिनीश के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उन्होंने जमानत की राहत का दुरुपयोग किया हो। हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि कर्नाटक हाईकोर्ट के विवादित आदेश को किसी अन्य मामले में मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा।

बिनीश को अक्टूबर, 2021 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने जमानत दी थी। कोडियेरी को ईड़ी ने 29 अक्टूबर, 2020 को इस आरोप में गिरफ्तार किया कि वह अवैध दवा व्यापार के वित्तपोषण में शामिल है। उनकी गिरफ्तारी मोहम्मद अनूप नामक व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद हुई, जिसने दावा किया कि वह नशीले पदार्थों की बिक्री/खरीद में शामिल था और बिनीश का करीबी सहयोगी था। कथित तौर पर, ईड़ी और एनसीबी की जांच में पता चला कि बिनीश ने अनूप के बैंक खातों में 50 लाख रुपये से अधिक ट्रांसफर किए।

बिनीश का बचाव यह रहा है कि उन्होंने केवल अनूप को पैसे उधार दिए थे, उसकी गैरकानूनी गतिविधियों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन पर विधेय अपराध का आरोप नहीं लगाया गया।

दूसरी ओर, ED ने कहा है कि धन शोधन निवारण अधिनियम न केवल उन लोगों को दंडित करता है, जो विधेय अपराध में आरोपी हैं, बल्कि उन लोगों को भी दंडित करता है, जो “अपराध की आय” उत्पन्न करने में सहायता करते हैं। ऐसे में बिनीश के खिलाफ मामला चलने योग्य है।

पिछले साल अगस्त में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कोडियेरी के खिलाफ एजेंसी के मनी लॉन्ड्रिंग मामले पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने उक्त रोक यह देखते हुए लगाई थी कि उन पर एनडीपीएस एक्ट के तहत घातीय अपराध का आरोप नहीं लगाया गया।

क्या 6 महिला जजों की बर्खास्तगी पर दोबारा विचार किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से पूछा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से मौखिक रूप से पूछा कि क्या वह छह महिला न्यायाधीशों की सेवाएं समाप्त करने के फैसले पर पुनर्विचार कर सकता है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की पीठ पिछले साल जून में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इन न्यायाधीशों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई स्वत: संज्ञान रिट याचिका पर विचार कर रही थी। पिछले महीने कोर्ट ने स्वत: संज्ञान मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया था। पीठ ने हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से कहा,”हाईकोर्ट को हमारे इरादे बताएं।”

पिछले साल बर्खास्त किए गए जजों ने आरोप लगाया कि यह निर्णय मुख्य रूप से उनकी निपटान दर निर्दिष्ट मानकों को पूरा नहीं करने पर आधारित है। पिछले साल, उनमें से तीन ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर तर्क दिया कि उनकी सेवाओं को उनके करियर के शुरुआती चरण में ही समाप्त कर दिया गया था, भले ही उनके काम का मात्रात्मक मूल्यांकन कोविड-19 महामारी के कारण समय की काफी चूक के कारण बाधित हुआ था।

जजों की शिकायतों के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने स्वप्रेरणा से मामले का संज्ञान लिया और सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल को एमिक्स क्यूरी नियुक्त करने का निर्देश दिया। पिछली सुनवाई के दौरान, अग्रवाल ने अदालत को सूचित किया कि तीन पूर्व जजों ने अपनी शिकायतों के साथ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन मामले पर सुनवाई नहीं की गई।

इसके अतिरिक्त, यह पता चला कि कुछ पीड़ित जजों ने पहले अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिकाओं के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे बाद में वापस ले लिया गया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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