महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा सचिवालय से मांगा जवाब, कोई अंतरिम राहत नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा द्वारा संसद के निचले सदन से उनके निष्कासन को चुनौती देने वाली याचिका पर लोकसभा सचिवालय को नोटिस जारी किया। टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर लोकसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने की मांग की। हालांकि, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है।

अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने लोकसभा के महासचिव से जवाब मांगा और मार्च में मोइत्रा की याचिका को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। मोइत्रा को 8 दिसंबर को संसद के निचले सदन से निष्कासित किया गया था। इसी को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उन्होंने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर संसदीय क्षेत्र से सांसद ने अपनी याचिका में अपने निष्कासन के फैसले को ‘अनुचित, अन्यायपूर्ण और मनमाना’ बताया है। उनके खिलाफ कार्रवाई ‘संसदीय प्रश्नों के लिए नकद’ लेने के आरोप पर एथिक्स कमेटी की जांच के बाद की गई थी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मोइत्रा की सदन की कार्यवाही में शामिल होने देने की अंतरिम प्रार्थना पर आदेश पारित करने से इनकार करते हुए कहा कि इसकी अनुमति देना मुख्य याचिका को स्वीकार करने के समान होगा। जस्टिस खन्ना ने मोइत्रा की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी से कहा, ‘‘हम अंतरिम राहत की आपकी याचिका पर मार्च में सुनवाई करेंगे।

पीठ ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और लोकसभा की आचार समिति को नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए कहा कि वह केवल लोकसभा महासचिव से जवाब मांगेगी। मोइत्रा ने अपनी याचिका में दोनों को पक्ष बनाया था। लोकसभा महासचिव की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया जाए और वह मोइत्रा की याचिका पर जवाब दाखिल करेंगे।

मेहता ने कहा कि अदालत को राज्य के संप्रभु अंग के अनुशासन संबंधी आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसके बाद पीठ ने आदेश पारित किया और आगे की सुनवाई 11 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में करने पर सहमति जताई।

लोकसभा में गत आठ दिसंबर को संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने तृणमूल कांग्रेस सांसद मोइत्रा को ‘अनैतिक आचरण’ के लिए सदन से निष्कासित करने का प्रस्ताव रखा था जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया था।

लोकसभा की आचार समिति ने मोइत्रा को पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में अनैतिक आचरण का दोषी पाया था और उन्हें सदन से निष्कासित करने की सिफारिश की थी।

8 दिसंबर, 2023 को, लोकसभा ने मोइत्रा को संसद सदस्य (एमपी) के रूप में अयोग्य घोषित करने के लिए एक आचार समिति की सिफारिश के मद्देनजर संसद से निष्कासित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था।

आचार समिति की सिफारिश और रिपोर्ट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे और वकील जय अनंत देहाद्रई की शिकायत के बाद आई, जिन्होंने आरोप लगाया था कि मोइत्रा ने संसद में कुछ सवाल पूछने के बदले नकद स्वीकार किया था।

मोइत्रा पर आरोप है कि उन्होंने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के इशारे पर अडानी समूह की कंपनियों के संबंध में संसद में कई सवाल पूछे। मोइत्रा पर यह भी आरोप लगाया गया था कि उन्होंने हीरानंदानी के साथ अपने लोकसभा लॉग-इन क्रेडेंशियल साझा किए थे। तृणमूल नेता को आचार समिति ने दोषी पाया था और कहा था कि मोइत्रा की चूक के लिए ‘कड़ी सजा’ की जरूरत है।

शीर्ष अदालत में आज सुनवाई के दौरान मोइत्रा की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि मोइत्रा को केवल इस आधार पर निष्कासित किया गया कि उन्होंने हीरानंदानी के साथ अपने लोकसभा पोर्टल का लॉगिन पासवर्ड साझा किया था और रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच नहीं की गई थी।

मोइत्रा ने अलग कार्यवाही में दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर उस नोटिस को चुनौती दी है जिसमें उन्हें सात जनवरी तक राष्ट्रीय राजधानी में आवंटित सरकारी बंगला खाली करने को कहा गया है।

उच्च न्यायालय ने दुबे और वकील जय अनंत देहाद्रई के खिलाफ उनके द्वारा दायर मानहानि के मामले में अंतरिम राहत के पहलू पर भी अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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