नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद (सांसद) राहुल गांधी की “सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है” वाली टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगा दी। उनकी दोषसिद्धि पर रोक के साथ, राहुल गांधी की सांसद के रूप में अयोग्यता भी अब स्थगित रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में इस प्रकार कहा: “भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा अधिकतम दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों है। विद्वान ट्रायल जज ने अपने द्वारा पारित आदेश में अधिकतम दो साल की सजा सुनाई है। सिवाय इसके कि अवमानना की कार्यवाही में इस न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता को चेतावनी देते हुए कहा गया है कि विद्वान ट्रायल जज द्वारा दो साल की अधिकतम सजा सुनाते समय कोई अन्य कारण नहीं बताया गया है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह केवल दो साल की अधिकतम सजा के कारण है विद्वान विचारण न्यायाधीश द्वारा लगाया गया कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के प्रावधान लागू हो गए। यदि सजा एक दिन कम होती, तो प्रावधान लागू नहीं होते।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “विशेष रूप से जब अपराध गैर-समझौता योग्य, जमानती और संज्ञेय था, तो विद्वान ट्रायल न्यायाधीश से कम से कम यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अधिकतम सजा देने के लिए कारण बताए। हालांकि विद्वान अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय ने आवेदनों को खारिज करने में काफी पन्ने खर्च किए हैं, लेकिन इन पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है।” साथ ही पीठ ने कहा कि राहुल गांधी के बयान “अच्छे अर्थ” में नहीं थे और कहा कि सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति को सार्वजनिक भाषण देते समय अधिक सावधान रहना चाहिए।
आदेश में कहा गया है कि धारा 8(3) के व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए न केवल याचिकाकर्ता के अधिकार बल्कि निर्वाचन क्षेत्र में उसे निर्वाचित करने वाले मतदाताओं के अधिकार भी प्रभावित होते हैं और यह तथ्य भी कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अधिकतम सज़ा देने का कोई कारण नहीं बताया गया है। सजा पर पीठ ने कहा कि वह सजा पर रोक लगा रही है। पीठ ने अपील के लंबित होने पर विचार करते हुए मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की तीन-न्यायाधीशों की पीठ गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ‘मोदी चोर’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से गुजरात हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती दी गई थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लोक सभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने पिछले महीने 21 जुलाई को कांग्रेस नेता की याचिका पर नोटिस जारी किया था।
दोपहर 1.40 बजे जैसे ही फैसला आया, कांग्रेस खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक राहुल गांधी की अपील का निपटारा नहीं हो जाता है तब तक उनकी दोषसिद्धि पर रोक रहेगी।
अब राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्पीकर तक पहुंचाएंगे और वह इसी सत्र से संसद में दिखाई दे सकते हैं। फैसला देते हुए कोर्ट ने सवाल उठाया कि वह जानना चाहता है कि इस मामले में अधिकतम सजा क्यों दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जज 1 साल 11 महीने की सजा देते तो वह (राहुल गांधी) अयोग्य घोषित नहीं होते।
जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि यह सही है कि इस तरह के बयान अपमानजनक और मानहानि के हैं। गौर करने वाली बात यह है कि पीठ ने अपने फैसले का आधार यह दिया है कि बयान राहुल गांधी ने दिया तो उसकी सजा आम जनता (वायनाड की) क्यों भुगते और उनकी आवाज संसद तक क्यों न पहुंचे। ऐसे समय में जबकि संसद का सत्र चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि पक्षकार चाहें तो अपील के तुरंत निपटारे की अर्जी दे सकते हैं और अदालत जितनी जल्दी हो सके इस अपील का निपटारा कर सकती है। जब तक फाइनल फैसला नहीं आ जाता है तब तक राहुल की दोषसिद्धि पर रोक रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब मामला समझौतावादी और जमानती है फिर निचली अदालत ने अधिकतम सजा का कोई जस्टिफिकेशन नहीं दिया।
इस आदेश से न केवल राहुल गांधी के सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ बल्कि मतदाताओं का भी जिन्होंने उन्हें चुना था। निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों ने कागज के पुलिंदे भर दिए लेकिन इस पहलू को किसी ने नहीं देखा कि अधिकतम सजा क्यों दी जा रही है।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
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