सरकार के नेतृत्व में जारी एथनिक क्लींसिंग है इंफाल से कुकियों को जबरन हटाने की घटना

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नई दिल्ली। मणिपुर देश का पहला राज्य बन गया है जहां केंद्र और राज्य सरकार मिलकर जनता को आपस में लड़ाने और एक जाति के पूरे सफाए के अभियान में लग गयी हैं। यह गुजरात में भी नहीं हुआ जो मणिपुर में किया जा रहा है। सूबे की राजधानी इंफाल में बचे हुए तकरीबन 30 कुकी समुदाय के लोगों को सुरक्षा बलों के जबरन हटाये जाने की घटना ने इस बात को साफ कर दिया है कि सत्ता एथनिक क्लीसिंग के अभियान में लगी है। 

मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा की शुरुआत हुई थी। तब से चार महीने बीत गए और आज पांचवें महीने की शुरुआत हो चुकी है। पांचवें महीने में भी राज्य की एन. बीरेन सिंह और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार राज्य में हिंसा को रोकने और शांति बहाली के लिए कोई कारगर उपाय ढूंढने की जगह संकट को और बढ़ाने में लगी हुई है। राज्य में घटित घटनाओं को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि राज्य और केंद्र सरकार की हिंसा को रोकने में कोई रुचि नहीं है। बल्कि वह दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य को औऱ पुख्ता करने में लगी है।

मणिपुर में राज्य सरकार कानून-व्यवस्था को बहाल करने के बजाए मामले को और उलझा रही है। सीधे तौर पर एन बीरेन सिंह सरकार पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि वह कुकी और मैतेई समुदाय में विश्वास बहाली के बजाए दोनों समुदायों के बीच पनपी अविश्वास की खाई को और चौड़ा करने का काम कर रही है। बीरेन सिंह सरकार पर सिविल सोसायटी, सांसदों का प्रतिनिधिमंडल और एक पूर्व कैबिनेट सचिव ने पक्षपात करने का आरोप लगाया है। लेकिन राज्य सरकार अपनी नीति और कार्यप्रणाली में सुधार करने की बजाय पुराने ढर्रे पर ही चल रही है।

चार महीने का समय बीत जाने के बाद सरकारी स्तर पर कुकी-मैतेई समुदाय को एक दूसरे से दूर करने की हर कोशिश हो रही है। तभी शनिवार को राजधानी इंफाल में मुख्यमंत्री आवास के एकदम करीब रह रहे 24 सदस्यों वाले 10 कुकी परिवारों में से अंतिम परिवार को इम्फाल के न्यू लैंबुलेन क्षेत्र से स्थानांतरित कर राहत शिविर में पहुंचा दिया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि कुकी परिवार राहत शिविर में जाना नहीं चाह रहे थे।  

प्रशासन का तर्क है कि इंफाल में उक्त कुकी परिवार मैतेई समुदाय के बीच रह रहे थे। वे असुरक्षित लक्ष्य थे। इसलिए  इन परिवारों को शनिवार तड़के इंफाल घाटी के उत्तरी किनारे पर कुकी-बहुल कांगपोकपी जिले में पहुंचा दिया गया है। कुकी परिवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें न्यू लाम्बुलेन क्षेत्र से मोटबुंग में उनके आवासों से जबरन बेदखल कर दिया गया।

उक्त घटनाओं को देखने के बाद कहा जा सकता है कि राज्य में प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी है। जो प्रशासन काम भी कर रहा है वह जनता के बीच जातीय स्तर पर भेदभाव को बढ़ावा देने में लगा है।

इतना ही नहीं बीरेन सिंह सरकार ने मणिपुर पुलिस में एक रिटायर्ड कर्नल को SSP (युद्ध) के विशेष पद पर नियुक्त किया गया है। अर्थात सरकार स्वीकार कर रही है कि “मणिपुर में जो चल रहा है, वह एक गृहयुद्ध है जिसमें खुद पुलिस एक पक्ष के तौर पर शामिल है!”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने इसे एथनिक क्लींसिंग करार दिया है। एक्स पर अपने बयान में उन्होंने कहा कि हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक इंफाल में पांच कुकी परिवारों को अधिकारियों ने जबरन उनके घरों से हटा दिया। इसका मतलब है कि मैतेई वर्चस्व वाली इंफाल घाटी में एथनिक क्लींसिंग अब पूरी हो चुकी है। एक राज्य सरकार एथनिक क्लींसिंग की अगुवाई कर रही है और केंद्र सरकार दावा करती है कि राज्य सरकार बिल्कुल संविधान के मुताबिक चल रही है।

इससे ज्यादा शर्मनाक बात कुछ और नहीं हो सकती है। कानून विहीनता में इससे ज्यादा किसी और गिरावट को चिन्हित नहीं किया जा सकता है। 

इस बीच कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि चार महीने बीत जाने के बाद मोदी सरकार मणिपुर हिंसा को भूल गयी है। वह जी-20 सम्मेलन के नाम पर जनता को गुमराह कर रही है। मोदी सरकार अभी तक इस मुद्दे पर चुप है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि पिछले चार महीनों में, दुनिया ने देखा है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संकटग्रस्त मणिपुर को कैसे भुला चुके हैं।”

एक्स पर एक पोस्ट में जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि “प्रधानमंत्री और उनके ढोल बजाने वाले जी20 सम्मेलन में मस्त हैं, 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के चार महीने बाद, मणिपुर को मोदी सरकार भूल गई है।”

यही नहीं जयराम रमेश ने कहा कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने यह सुनिश्चित किया है कि मणिपुरी समाज आज पहले से कहीं अधिक विभाजित है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने गृहमंत्री अमित शाह पर आरोप लगाया है कि “केंद्रीय गृह मंत्री हिंसा को समाप्त करने और हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं। इसके बजाय, कई और सशस्त्र समूह संघर्ष में शामिल हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा करने, या सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने, या कोई विश्वसनीय शांति प्रक्रिया शुरू करने से “इनकार” किया है। मानवीय त्रासदी के बीच  मणिपुर में संवैधानिक मशीनरी और समुदायों के बीच विश्वास पूरी तरह से टूट गया है।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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