झारखंड: सीएनटी एक्ट में थाना क्षेत्र की बाध्यता होगी खत्म, आदिवासियों में समर्थन के साथ विरोध के भी स्वर

रांची। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम यानी सीएनटी (छोटानागपुर टेंडेंसी एक्ट) को अंग्रेजों ने आदिवासियों की जमीन की रक्षा के लिए 1908 में बनाया था। इस एक्ट के अधिकार क्षेत्र में उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू के क्षेत्र को शामिल किया गया था। इस एक्ट के पीछे उनकी नीयत जो भी रही हो लेकिन यह एक्ट आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री को आज भी नियंत्रित करता है।

सीएनटी को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। सीएनटी एक्ट की धारा 46 और 49 आदिवासियों की जमीन की खरीद-बिक्री को नियंत्रित करता है। इसकी धारा 46(ए) के तहत आदिवासी भूमि किसी आदिवासी को ही हस्तांतरित हो सकती है।

आजादी के बाद भी इस एक्ट में बदलाव नहीं किया गया बल्कि 26 जनवरी 1950 को थाना क्षेत्र की बाध्यता शामिल करके किसी आदिवासी भूमि को किसी आदिवासी को हस्तांतरण के लिए उसे उसी थाना क्षेत्र का होना अनिवार्य किया गया। मतलब कि किसी एक थाना क्षेत्र का कोई आदिवासी भी दूसरे थाना क्षेत्र के किसी आदिवासी की जमीन नहीं खरीद सकता है। 

इस अधिनियम के बदलाव पर तबतक कोई चर्चा नहीं हुई जबतक यह क्षेत्र बिहार के अंतर्गत था। लेकिन जब से झारखंड अलग राज्य की स्थापना हुई, यह एक्ट किसी न किसी बहाने प्रायः चर्चा में रहा है। इसमें बदलाव को लेकर गैर-आदिवासियों से ज्यादा आदिवासी समुदाय के कथित संभ्रांत लोग उत्सुक नजर आते रहे हैं।

वैसे तो अलग राज्य के बाद सीएनटी और एसपीटी (संथालपरगना टेंडेंसी एक्ट) में बदलाव को लेकर हलचलें होती रही हैं। 

28 सितंबर 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता वाली जनजातीय परामर्श देने वाली परिषद ने सीएनटी एक्ट में संशोधन करने की अनुशंसा की, लेकिन इस फैसले से गरीब आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में आ सकता है, जैसी बातें भी सामने आई। कहा गया कि इस फैसले से झारखंड के अमीर आदिवासी राज्य में कहीं भी ज़मीन ले सकेंगे। ऐसे में गरीब आदिवासियों का शोषण होना तय है।

इसके पहले झामुमो ने सीएनटी में बदलाव की बात सदन में रखी थी लेकिन भारी विरोध के कारण विधानसभा में झामुमो को अपना बयान वापस लेना पड़ा था। 

इसके बाद रघुवर दास सरकार के कार्यकाल 2017 को पुनः की जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की बैठक बुलाई गई। बैठक में सीएनटी और एसपीटी के तहत जमीन की खरीद-बिक्री में ढील देने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण, समाज कल्याण और महिला एवं बाल विकास मंत्री लुईस मरांडी की अध्यक्षता वाली उप समिति ने मुख्यमंत्री को अनुशंसा की।

अनुशंसा में थाना क्षेत्र का दायरा बढ़ाकर इसे राज्य किया जाए। यानी आदिवासी पूरे राज्य में किसी भी अन्य आदिवासी की जमीन खरीद सकते हैं या उसे बेच सकते हैं। हालांकि एक शर्त जोड़ी गई है कि थाना क्षेत्र के बाहर 20 कट्‌ठा से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकेगा।

उक्त संशोधन पर सुझाव देने के लिए मंत्री लुईस मरांडी की अध्यक्षता में उप समिति का गठन किया गया था। इसमें विधायक रामकुमार पाहन, विधायक मेनका सरदार और जेबी तुबिद शामिल थे। इस समिति ने सीएनटी और एसपीटी की विभिन्न धाराओं का अध्ययन व संथाल परगना का दौरा कर यह सुझाव दिया था।

टीएसी की बैठक में सीएनटी और एसपीटी में संशोधन पर स्वीकृति मिल जाने के बाद प्रस्ताव राजभवन जाएगा। राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद ही संशोधन प्रभावी होगा। इसके अलावा यह तय हुआ कि संशोधन कब से प्रभावी होगा, इसका निर्णय भी टीएसी की ही बैठक में होगा।

इसके बाद उक्त प्रस्ताव को तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को भेजा गया, जिसपर मुर्मू ने रोक लगा दी थी।  

अब पुनः झारखंड में आदिवासियों की जमीन खरीद-बिक्री में थाना क्षेत्र की बाध्यता खत्म करने की कवायद शुरू हो रही है। झारखंड ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) की 26वीं बैठक में सोएनटी एक्ट को नियमावली में संशोधन करने का प्रस्ताव लाया गया।  

16 नवंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई बैठक में चर्चा हुई की सीएनटी एक्ट की धारा- 46 के तहत आदिवासियों की जमीन खरीद-विक्री में थाना क्षेत्र की बाध्यता है। जब 1908 में सीएनटी एक्ट बना था उस वक्त थानों की संख्या कम थी, लेकिन आज थानों की संख्या 600 के करीब पहुंच चुकी है। सीएनटी एक्ट बनने के 115 साल बाद आज स्थिति में काफी बदलाव हो चुका है।

टीएसी ने फैसला लिया कि 26 जनवरी 1950 के समय राज्य के भीतर जो जिले और थाने स्थापित थे, उन्हीं को जिला और थाना मानते हुए धारा 46 के तहत जमीन खरीद-बिक्री की मान्यता देने का प्रस्ताव तैयार हो। बता दें राज्य का आदिवासी मुख्यमंत्री ही जनजातीय परामर्शदातृ परिषद का अध्यक्ष होता है। 

सीएनटी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव पर राज्य के आदिवासी समाज में कई प्रतिक्रियाएं होने लगी हैं। संयुक्त आदिवासी सामाजिक संगठन ने हेमंत सरकार द्वारा सीएनटी एक्ट में थाना क्षेत्र की बाध्यता समाप्त करने के विचार का स्वागत किया है। 

संयुक्त आदिवासी सामाजिक संगठन के महासचिव निरंजना हेरेंज टोप्पो ने कहा है कि सरकार ने सकारात्मक पहल कर अच्छी सहमति बनायी है। संगठन ने इसके लिए अभियान भी चलाया था। इस अभियान में कुलभूषण डुंगडुंग, अरविंद उरांव, हलधर चंदन, प्रवीण कच्छप, उमेश पाहन, उर्मिला भगत, मुन्ना टोप्पो, अनूप नेल्सन खलखो, अजय ओड़ेवा, विमल उरांव, बाबूलाल महली व अन्य शामिल थे।

वहीं समन्वय समिति ने सीएनटी एक्ट में संशोधन पर आपत्ति जतायी है। समिति के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा का एक तरफ कहना है कि एक्ट में संशोधन कर थाना क्षेत्र की बाध्यता समाप्त करने के टीएसी (जनजातीय परामर्शदातृ परिषद) का निर्णय स्वागत योग्य है। हालांकि, इसमें कुछ बदलाव अस्पष्ट रहने से यह आदिवासियों के खिलाफ जायेगा। 

वहीं लक्ष्मीनारायण मुंडा आगे कहते हैं कि सीएनटी एक्ट में थाना क्षेत्र की बाध्यता समाप्त करने से आदिवासी समुदाय के अंदर उभरे संपन्न वयक्ति, राजनीतिक नेता, अफसर, कर्मचारी, व्यापारी, बिल्डर, जमीन माफिया, दलाल, बिचौलिया जैसे नवधनाढ्य वर्ग द्वारा आम आदिवासी अशिक्षित, कमजोर, असहाय लोगों की जमीन लूटने, हड़पने, जबरन कब्जा करने व ठगने का सिलसिला धड़ल्ले से बिना रोक-टोक के किया जाएगा।

मुंडा ने कहा कि यह इसलिए होगा क्योंकि इसमें बाहर के यानी दूसरे जगह के जमीन माफिया लोग गांव-गांव में हावी हो जाएंगे। आम आदिवासी लोग राजस्व विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों अंचल अधिकारियों व कर्मचारियों के द्वारा की गई फर्जीवाड़ा जालसाजी और कोर्ट-कचहरी, केस मुकदमा लड़ने व समझने में असमर्थ होते हैं। जबकि जमीन माफिया दलाल, थाना पुलिस, अंचल अधिकारी कर्मचारी राजनेताओं को रुपये पैसे देकर मिलीभगत से जमीन लूट का काम करते हैं।

लक्ष्मीनारायण मुंडा के अनुसार अगर सीएनटी एक्ट में संशोधन किया जाता है, तो आम आदिवासियों की जमीन लूटी हड़पी जाएगी और जो आदिवासी लोग जो ग़ैर आदिवासी जमीन माफियायों की दलाली या लाइजलिंग करते हैं, वे उनका मोहरा बनेंगे और माफिया लोग इन आदिवासी दलालों को आगे करके जमीन का कारोबार करेंगे।

मुंडा कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गांव-गांव में जमीन दलालों का गिरोह बन जाएगा। जिससे आदिवासियों की संवैधानिक हक-अधिकार, ग्राम सभा, परंपरागत रीति-रिवाज, भाषा संस्कृति पर बाहरी लोगों का प्रभाव हो जाएगा। जिससे आदिवासी समाज तो प्रभावित होगा ही, हमारी मां बेटी बहन भी सुरक्षित नहीं रहेंगी।

वे आगे कहते हैं कि आदिवासियों के इतने सारे संवैधानिक हक-अधिकार, सीएनटी व एसपीटी एक्ट, एसटी-एससी एक्ट रहने के बावजूद आज आदिवासी, दलित समुदाय पर हमला हो रहा है। जमीन लूटी जा रही है, इज्जत लूटी जा रही है। अगर सीएनटी एक्ट में दरवाजा खोल दिया जाता है तो और भी लूट होगी। आज जो भी आदिवासी समुदाय के पास थोड़ी बहुत भी जमीन बची है तो उसका कारण सीएनटी एक्ट ही है।

मुंडा कहते हैं कि आदिवासी जमीन की खरीद बिक्री में अगर थाना क्षेत्र की बाध्यता समाप्त किया जाता है तो इसमें जमीन खरीदने की सीमा, नियम और शर्तें होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो समझ जाना चाहिए कि आदिवासी समुदाय के अंदर उभरा नवधनिक संपन्न लोगों को जबरन जमीन कब्जा करने की छूट मिल जाएगी। इसका जिम्मेदार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के सदस्यगण तो हैं ही हमारे आदिवासी विधायक, सांसद और विभिन्न राजनीतिक दलों में शामिल मोहरे-दलाल बने हमारे आदिवासी राजनेता लोग भी हैं।

लक्ष्मीनारायण मुंडा ने कहा है कि ऐसे में आदिवासियों के बीच आपस में जमीन की खरीद-बिक्री होने पर जमीन लेने की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए। शहरी क्षेत्र और इसके आसपास के अंचलों के लिए 15 डिसमिल और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 50 डिसमिल सीमा तय किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो आदिवासी समाज के अंदर उभरे एक नव धनाढ्य वर्ग के हाथों आम गरीब, अशिक्षित, मजबूर आदिवासियों की जमीनों को लूटा और हड़पा जायेगा।

पूर्व टीएसी सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्ता रतन तिर्की ने कहते हैं कि सरकार का निर्णय स्वागत योग्य है। सरकार को इसमें कई बिंदुओं को शामिल किया जाना चाहिए, सरकार को लिमिट तय करते हुए वन टाइम, 30 डिसमिल और इसका दायरा पूरा स्टेट होना चाहिए।

आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी मुर्मू ने कहा कि सरकार का निर्णय ठीक है, इसे समेकित रूप में निर्णय होना चाहिए, ऐसा न हो अमीर आदिवासी जमींदार बन जाएं गरीब आदिवासी भूमिहीन हो जाएं। थाना क्षेत्र की बाध्यता समाप्त करने का जाया इस्तेमाल होने लग जाए।

पूर्व मंत्री, पूर्व टीएसी सदस्य और अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की अध्यक्ष गीताश्री उरांव ने कहा कि मांग पुरानी रही है। सरकार का निर्णय अच्छा है। आदिवासी समाज के लोग अपने गृह जिला और थाना क्षेत्र छोड़कर दूसरे जिलों में जाकर बस गए, निवास स्थान भी बना लिये, उन्हें तो राहत मिलनी ही चाहिए थी।

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज संघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया, मगर कई अंदेशा भी जाहिर की। उन्होंने कहा कि पुराने जिले और थाने को आधार बनाना तो सही है। अब थाना का क्षेत्र बहुत बदल गया है।

सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा है कि सरकार ने पुराने जिले और थाने के आधार पर इसकी छूट दे रही है तो यह फायदेमंद है। इससे आदिवासियों को फायदा होगा आदिवासियों का विकास बाधित हो रहा था।

पड़हा सरना प्रार्थना सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा ने कहा कि यह मांग वर्षों से आदिवासी अगुवा और आदिवासी संगठन करते आए है, सरकार ने ऐसा निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। 

केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि यह मांग आदिवासी संगठनों और धर्म अगुवाओं की बहुत दिनों से रही है। अब जाकर यह पूरी होती दिखाई दे रही है। सरकार के इस निर्णय का समिति स्वागत करती है।

सामाजिक कार्यकर्त्ता जेम्स हेरेंज ने सरकार के निर्णय को उचित तो बताया लेकिन उन्होंने सीएनटी में बदलाव पर संदेह व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि संभव कि इस बदलाव का ग़लत इस्तेमाल अधिक होगा। इससे जहां गरीब आदिवासी लोग अपनी जमीन का कुछ टुकड़ा बेचकर कोई कारोबार कर सकेंगे वहीं इस बात की भी संभावना है कि अमीर आदिवासी लोग उनका शोषण भी करेंगे। इसलिए काफी मनन मंथन के बाद ही संशोधन इसपर का विचार हो।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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