तीन भाईयों की दर्द भरी दास्तान: अजीब बीमारी ने बनाया दिव्यांग तो दलित होना बना अभिशाप

जौनपुर। “सोचा था यह (बेटों की ओर इशारा करते हुए) बुढ़ापे में लाठी की तरह खड़े होकर सहारा बनेंगे, लेकिन किसे पता था कि खुद इन्हें ही सहारे की जरूरत हर समय, हर पल पड़ जायेगी?” यह कहते हुए कौशल्या देवी का गला भर आता है, आंखों में आंसू और जुबान लड़खड़ाने लगते हैं। फिर वह अपने आप को संभालते हुए किस्मत को कोसते हुए बग़ल में बैठे हुए तीनों बेटों की ओर देखते हुए अतीत में खो जाती हैं। कुछ देर खामोश रहने के बाद चुप्पी तोड़ते हुए सवाल करती हैं “क्या कोई दवा-इलाज इनका (बेटों की ओर इशारा करते हुए) नहीं है? जो फिर से इन्हें इनके पैरों पर खड़ा कर सके।”

कौशल्या देवी बगल में बुत बनकर बैठे अपने तीनों बेटों की ओर एकटक देखे जाती हैं और सवाल दर सवाल करती जाती हैं। उनका सवाल व्यवस्था से होता है, सरकार और जनप्रतिनिधियों से होता है, जो उनके बुढ़ापे के सहारा उनके बेटों को अपने पैरों पर पुनः खड़ा होने में मदद कर दे। लेकिन उनकी सुने कौन? और वह सुनाएं किसे, अभी तक तो सभी ने निराश ही किया है। दरअसल, दलित महिला कौशल्या देवी के तीनों बेटे दिव्यांगता की चपेट में आ गए हैं। जिनका चलना-फिरना तो दूर की बात है उठना बैठना भी मुश्किल हो चला है। यदि किसी का सहारा ना मिले तो वह नित्य-क्रियाओं से भी निवृत नहीं हो सकते हैं। लाचारी-बेबसी और ग़रीबी बेहतर उपचार में बाधक बन खड़ी हुई है, फिर भी बेटों की खातिर मजदूर पिता ने यथा संभव दवा उपचार से लेकर जांच पड़ताल करवाया। दवा-दुआ करवाया, लकवा पोलियों का इंजेक्शन भी लगवाया लेकिन आराम होने को कौन कहें न मर्ज का पता चल पाया और ना ही इससे राहत मिली है, बल्कि मर्ज बढ़ता ही गया है।

दरअसल, यह दर्दभरी दास्तां जौनपुर जिले के डोभी विकास खंड क्षेत्र के पनिहर गांव निवासी उन तीन सगे भाइयों की है जो दिव्यांगता से जूझते हुए बोझिलता से भरा जीवन जीने को अभिशप्त हैं। डोभी विकास खंड मुख्यालय से 10 किमी दूर पनिहर गांव आजमगढ़ जनपद सीमा से लगा हुआ जौनपुर जनपद का अंतिम गांव है। जौनपुर का पनिहर और आजमगढ़ का कुशहां गांव सरहदी गांव है। एक छोर पर जौनपुर तो दूसरे छोर पर आजमगढ़ स्थित है। तकरीबन 10 हजार की आबादी वाले पनिहर गांव में हर वर्ग के लोग रहते हैं। दलित बाहुल्य इस गांव में मुसहर, धरकार, गोंड, जाति के लोगों की भी तादाद है। इसी गांव के रहने वाले राजनाथ के तीन पुत्रों क्रमशः धर्मेंद्र कुमार 30 वर्ष, वीरेंद्र कुमार 25 वर्ष एवं योगेंद्र कुमार 21 वर्ष को दिव्यांगता ने इस कदर जकड़ लिया है कि उनका उठना-बैठना और चलना-फिरना भी मुश्किल हो उठा है। धर्मेंद्र और योगेंद्र जहां कक्षा आठ तक कि शिक्षा ग्रहण किए हुए हैं तो वीरेंद्र दसवीं तक कि शिक्षा हासिल किए हुए है। तीनों भाई आगे भी पढ़ने और कुछ बनने का सपना संजोए हुए थे, लेकिन नियति को कौन जानता था। ग़रीब बेबसी भरा पारिवारिक माहौल भले ही रहा है, लेकिन तीनों भाइयों में जोश जुनून जरूर रहा कुछ करने बनने का जो काफूर हो चुका है। हाल और हालात पूरी तरह से बदल उठे हैं तीनों भाई जिंदा लाश बन कर हर पल किसी के सहारे के मोहताज हो चुके हैं।

चलती-फिरती जिंदगी में चुपके से दिव्यांगता ने किया प्रवेश

पूर्व माध्यमिक विद्यालय पनिहर छावनी, डोभी तथा श्री गिरिजाशंकर इंटर कॉलेज मूर्खा, डोभी जौनपुर से हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कभी वीरेंद्र अपने घर से 3 किलोमीटर की दूरी तय कर कॉलेज आते जाते थे। आज स्थिति यह है कि वह तीन पग भी चलने के लिए दूसरे के सहारे के मोहताज हो चुके हैं। वीरेंद्र “जनचौक” को बताते हैं “उनके बड़े भाई धर्मेंद्र जब 10 वर्ष से थे तभी उन्हें इस मर्ज ने अपनी जकड़न में ले लिया था। जब वह (वीरेंद्र) 17 वर्ष के हुए थे तब वह भी उसकी गिरफ्त में आए। वहीं सबसे छोटे भाई (योगेंद्र) 15 वर्ष की अवस्था में आते-आते इस मर्ज की चपेट में आ चुके थे। अचानक कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर बेजान-सा होने लगा था। पहले तो इसे हल्के में तीनों भाइयों ने हल्के में लिया, लेकिन जैसे-जैसे समस्या बढ़ती गई वैसे-वैसे तीनों भाइयों का उठना-बैठना चलना-फिरना भी मुश्किल होने लगा था। आनन-फानन में स्थानीय उपचार किया लेकिन राहत मिलने को कौन कहे समस्या जटिल होती जा रही थी। एक रोज जौनपुर जिला अस्पताल में दिखाया गया लेकिन वहां से भी कोई हल नहीं निकला तो राजनाथ तीनों बेटों को लेकर पूना शहर आ गए और वहां भी कुछ दिन रहकर काफी दवा इलाज करवाया लेकिन कोई भी राहत यहां नहीं मिला सो थकहारकर कर तीनों बेटों को लेकर वह लाचार बेबस होकर गांव लौट आए।

दर्द सुन दहल जाता है दिल, पर नहीं पसीजे जनप्रतिनिधि

पनिहर गांव के तीनों भाइयों की इस अजीब बीमारी से समूचा गांव वाकिफ है, यदि कोई नहीं है तो वह इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि जो वोट लेने के लिए इनकी झोपड़ी तक भी चलकर आ चुके हैं, लेकिन इनकी मदद इनके बेहतर जांच उपचार के लिए आगे आज तक नहीं आए हैं। गंभीर दिव्यांगता जैसी बीमारी से ग्रस्त तीनों भाइयों को कमर से लेकर पैर की एड़ी तक परेशानी है। पंजे के बल पर खड़े भी होते हैं तो सहारा लेकर, अन्यथा गिरने का भय रहता है। कमर से लेकर पैर की एड़ी तक का हिस्सा पूरी तरह से बेजान बन चुका है। जिनमें न तो कोई ताकत बची हुई है और ना ही दम है। तुर्रा यह कि गांव के प्रधान से लेकर इलाके के सांसद विधायक तक संदेश भिजवाकर गुहार लगा चुके तीनों भाई आज भी इनकी राह ताकते हुए नजर आते हैं कि शायद कोई उनकी पीड़ा सुन ले और यह अपने पैरों पर पुनः खड़ा हो सके।

30 वर्षीय धर्मेंद्र बताते हैं कि “उनके पिता पूना महाराष्ट्र में रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं उनकी इतनी हैसियत नहीं है कि किसी और बड़े शहर महानगर में जाकर उनकी और उनके भाईयों का इलाज करा पाए। थोड़ी बहुत उम्मीद अपने क्षेत्र के सांसद विधायक से लगी हुई थी जो शायद उनकी व्यथा-कथा को देख सुन कर ज़रूर कुछ कर सकते हैं, लेकिन वह भी उनकी दास्तां सुनने को तैयार नहीं है ना ही उनके पिटारे में उन भाईयों के लिए कोई मदद भरा हाथ है जो उनके नाउम्मीद भरें जीवन में उम्मीदें जगा जाए।”

दिव्यांगता विवाह में बनी बाधक

दो बेटियों को ब्याहे जाने के बाद कौशल्या देवी घर में बहू लाने को सोची थीं, लेकिन बड़े बेटे धर्मेंद्र के बाद दूसरे और तीसरे नंबर के बेटे को भी अजीबोगरीब बीमारी के चंगुल में फंस जाने से उनके अरमान धरे के धरे रह गए हैं। अब तो उन्हें अपनी फ्रिक से कहीं ज्यादा तीनों बेटों की फ्रिक सताये जाती है कि उनके बाद उनके तीनों बेटों की कौन देखभाल करेगा, कैसे व किसके सहारे उनका जीवन चलेगा। कौशल्या देवी का यह सोचना यूं ही नहीं है इसके पीछे उनकी ग़रीबी और तीनों बेटों की बीमारी और बेबसी छुपी हुई है। जो बेड़ी बन पैरों में बंधी हुई है। धर्मेंद्र से छोटे वीरेंद्र कुमार सवाल करने से पहले खुद ही सवाल कर बैठते हैं “क्या सरकार के पास हम गरीब लाचार लोगों के उपचार दवा इलाज के लिए कोई फंड, उपाय उपलब्ध नहीं है? तीनों भाइयों के समीप में खड़े पड़ोसी गांव सेनापुर के रहने वाले युवा पत्रकार विनोद कुमार कहते हैं “सरकार स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने की बात करती है लेकिन इन तीनों भाइयों की हालत तो देख यही कहा जा सकता है कि क्या यही अमृतकाल है? जहां देश में एक तरफ अमृत महोत्सव का जश्न मनाया जाता है तो वहीं दूसरी ओर यह तीनों भाई बेहतर जिंदगी जीने की जद्दोजहद करते हुए नज़र आते हैं।”

पनिहर गांव के ही रहने दीपक कहते हैं”हमारे गांव के यह तीनों भाई विकलांग बने हुए हैं। वोट लेने आने वाले सांसद विधायक हमारे लिए कुछ नहीं कर पाए हैं कम से कम इनके (दिव्यांग भाईयों की ओर इशारा करते हुए) लिए तो कुछ कर सकते हैं जो इस अजीब बीमारी से ग्रस्त हो लाचार बेबस होकर पड़े हुए हैं।” दीपक बताते हैं कि “हालांकि यह तीनों भाई जन्म से विकलांग नहीं हैं, अचानक ही काफी वर्षों बाद जब तीनों भाई अच्छे से चलते-फिरते हुए स्कूल कालेज आया जाया करते थे। घर के कामकाज से लेकर गांव बाजार में भी आते-जाते रहे हैं। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था परिवार में ग़रीबी का मंज़र ज़रुर रहा है, लेकिन इनका परिवार बीमारी से बचा हुआ था कि अचानक न जाने क्या हुआ कि एक-एक कर तीनों भाई कुछ वर्षों के अंतराल में इस परेशानी से घिरते गए और आज इस स्थिति में पहुंच कर पुतला बन बुत बने सहारे की राह तकते रहते हैं।” दीपक की बातों का अन्य ग्रामीण भी समर्थन करते हुए धर्मेंद्र कुमार, वीरेंद्र कुमार और योगेन्द्र कुमार की बीमारी, बेबसी पर अफसोस जताते हैं। सभी का बस एक ही कहना होता है कि यदि जनप्रतिनिधियों ने थोड़ी सी भी मदद कर दी तो इन भाईयों को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिल सकती है। लेकिन जब वह इधर झांकना भी गंवारा समझे तब तो?

सबसे छोटे भाई योगेंद्र कुमार कमर और पैरों की हालत दिखाते हुए बताते हैं “बापू ने जितना हो सका जौनपुर से पूना तक इलाज करवाया फिर भी कोई आराम नहीं मिल पाया है। तमाम जांच और निरीक्षण में भी मर्ज का पता नहीं चल पाया है। कोई नस तो कोई मांसपेशियों के बेजान हो जाने की आशंकाएं जताई तो किसी ने हड्डियों में खराबी का होना बताया, लेकिन स्पष्ट बीमारी और वजह का पता नहीं चल पाया। सवाल उठाते हैं “माई अलगे पड़ल है, घर का चौका-चूल्हा वह न करें तो रोटी भी नहीं मिल पाएगी। बापू पूना में रहकर मेहनत मजदूरी कर हम तीनों भाइयों की परवरिश कर रहे हैं, अब समझा जा सकता है कि आखिरकार हम किसके सहारे और कैसे कहीं किसी के पास अपनी लाचारी लेकर जाएं?” वह आगे भी बोलते हैं, “जितना हो सका है माई-बापू ने दवा इलाज से लेकर झाड़-फूंक भी करवाया है लेकिन अभी तक कोई भी आराम नहीं मिल पाया है।”

मंहगा इलाज संभव नहीं

धर्मेंद्र, वीरेंद्र और योगेंद्र के बेहतर इलाज से संभवतः वह अपने पैरों पर पुनः खड़े हो सकते हैं। ऐसा मानना है पनिहर गांव के ग्रामीणों का जो तीनों भाइयों के लिए न केवल बराबर हर पल सहारा बन खड़े रहते हैं, बल्कि यथासंभव उनकी मदद करने से भी पीछे नहीं रहते हैं। लेकिन उनकी भी अपनी लाचारी यह कि वह भी कब और कहां तक दौड़ते रहे। इस संदर्भ में जब केराकत विधानसभा क्षेत्र के मौजूदा सपा विधायक तूफानी सरोज जो (पूर्व में दो बार सैदपुर, गाजीपुर अब मछलीशहर, जौनपुर लोकसभा क्षेत्र व एक बार मछलीशहर) तीन बार सांसद रह चुके हैं) उन्होंने ने भी इधर झांकना गंवारा नहीं समझा है। उनसे सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया, जबकि मौजूदा मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद बीपी सरोज भी कभी इधर झांकने नहीं आ पाएं हैं। उनसे भी सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल फोन लगातार व्यस्त जाता रहा है।

सुविधाओं का बना हुआ है अभाव

दिव्यांग पेंशन के तौर पर धर्मेंद्र और वीरेंद्र को इस योजना से लाभान्वित किया गया है, लेकिन योगेंद्र को अभी तक इससे वंचित रखा गया है। आयुष्मान योजना का कार्ड इनकी पहुंच से दूर है। वजह बताया जा रहा है परिवार में सदस्यों की कुल संख्या 6 का ना होना। जिसके अभाव में आयुष्मान कार्ड नहीं बन पाया है। राशन के तौर पर परिवार में बीपीएल कार्ड है इसमें योगेंद्र का नाम नहीं इसके लिए ग्राम प्रधान से लेकर सचिव, कोटेदार से गुहार लगाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

प्रतापगढ़ के नीरज यादव की पीड़ा

दिव्यांग नीरज यादव दोनों आंखों से सूर हैं, सेंसर छड़ी के लिए दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं। दिव्यांग नीरज यादव पिछले दिनों प्रतापगढ़ कलेक्टर कार्यालय में अपनी समस्या के लेकर गए हुए थे। जहां कार्यालय में उनको बैठाया गया, इसी बीच दिव्यांग नीरज के हाथ से कोई व्यक्ति उनका प्रार्थना पत्र लेकर चलते बनता है। दिव्यांग नीरज यादव दोनों आंखों से सूर होने के नाते कुछ कर या समझ नहीं पाते हैं सिर्फ वह शोर मचा कर रह भर जाते हैं। दिव्यांग नीरज पट्टी ब्लाक के ग्राम शर्मा से किसी तरह कलेक्टर कार्यालय प्रतापगढ़ पहुंचे थे इस उम्मीद के साथ की उनके प्रार्थना पत्र पर विचार होगा और उन्हें सेंसर छड़ी मिल जाएगी जिससे उनका चलना-फिरना आसान हो जाएगा। गौरतलब हो कि दिव्यांग नीरज के प्रार्थना पत्र पर 19 फरवरी 2024 को उपमुख्यमंत्री के निजी सचिव शासन सुनीत कुमार का आदेश जिला दिव्यांगजन अधिकारी के लिए लिखा हुआ था जिसे लेकर वह मुख्यालय पहुंचे थे, लेकिन अधिकारी के हाथ में पत्र पहुंचने से पहले ही किसी ने उनके उस पत्र को झटक लिया।

दिव्यांग नीरज यादव बताते हैं कि “वह अपने गांव के कुछ लोगों के साथ संबंधित अधिकारियों से मिलकर गुहार लगा चुके हैं लेकिन उनकी कोई भी सुनवाई नहीं हो पा रही है। यहां तक की प्रतापगढ़ के जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी फोन भी नहीं उठाते हैं।”

नीरज व्यथित मन से बताते हैं “15 फरवरी 2024 को सेंसर छड़ी देकर फोटो खींचा गया और फिर उसे वापस भी ले लिया गया है। जिसके मतलब को वह समझ नहीं पाते हैं और हर किसी से जो उनसे मिलता है सेंसर छड़ी दिलाने की गुहार लगाते हैं।

किसी ने डपट कर भगाया तो किसी ने प्रार्थना पत्र छीना

दोनों आंखों से नेत्रहीन नीरज यादव लंबे समय से सेंसर छड़ी के लिए भटक रहे हैं। किसी प्रकार से उनकी गुहार पर उप मुख्यमंत्री कार्यालय से 19 फरवरी 2024 को उप मुख्यमंत्री के निजी सचिव सुनीत कुमार का पत्र जारी तो जरूर हुआ, लेकिन उनका भी आदेश निर्देश काम नहीं आया है। 20 फरवरी को अपनी फरियाद लेकर दिव्यांग नीरज यादव दिव्यांगजन कार्यालय पहुंचे थे आरोप है कि उनकी फरियाद सुनने को कौन कहें उन्हें जिला दिव्यांगजन कार्यालय से डपट कर भगा दिया गया। जहां से वह बिलखते हुए वापस लौट आए। पुनः 26 फरवरी को कलेक्टर कार्यालय पहुंचे तो वहां पर कोई उनका प्रार्थना पत्र ही छीनकर भाग गया। ऐसे हालात में दिव्यांग नीरज यादव दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं।

(जौनपुर से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

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