सागर शर्मा ने अपनी डायरी में क्यों लिखा…मैं अपनी जिदंगी वतन के नाम कर चुका हूं

नई दिल्ली। संसद की सुरक्षा में चूक को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप चरम पर हैं। संसद में गैस कनेस्तर लेकर घुसे दोनों युवकों समेत बाहर प्रदर्शन करने वाले एक युवक और एक महिला, और एक अन्य युवक को इस घटना का साजिशकर्ता बताते हुए यूएपीए के तहत केस दर्ज किया गया है। यानि पुलिस ने कुल पांच लोगों पर यूएपीए लगाया है।

संसद में गुरुवार को जो कुछ हुआ उसको देखकर कहा जा सकता है कि संसद के अंदर और बाहर जिन चार युवाओं ने जो कुछ किया वह विरोध-प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं था।

चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले सागर शर्मा की हस्तलिखित पंक्तियां एक्स पर शेयर करते हुए लिखा कि “किसी दूसरे जमाने के ऐसे सरफिरे युवाओं को आज हम स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं…डायरी में यह शब्द लिखने वाला सागर शर्मा जरूर कानून तोड़ने का दोषी है, सजा का पात्र है। वह दिग्भ्रमित हो सकता है। लेकिन वह आतंकी, गुंडा या देशद्रोही नहीं है। इन्हें विलेन मत बनाइए।”

सागर शर्मा अपनी डायरी में लिखता है कि “घर से विदा लेने का समय नजदीक आ गया है। एक तरफ डर भी है और दूसरी तरफ कुछ भी कर गुजरने की आग भी दहक रही है। काश मैं अपनी स्थिति माता पिता को समझा सकता मगर ऐसा नहीं है कि मेरे लिए संघर्ष की राह चुनना आसान रहा। हर पल उम्मीद लगाए 5 साल मैंने प्रतीक्षा की है कि एक दिन आएगा जब मैं अपने कर्तव्य की ओर बढ़ेगा, दुनिया में ताकतवार व्यक्ति वह नहीं जो छीनना जानते है। ताकतवर व्यक्ति बहुत है जो हर सुख त्यागने की क्षमता रखते हैं।”

जब-जब वतन की उल्फत पर जो होते हैं कुर्बान, वो अमर हो जाते हैं, न ही क्रांतिकारी और न ही शहीद कहलाते हैं, जो लड़े इस देश के खातिर उसके मन का हौसला और सबर हो जाते हैं। हर जबां पर नाम हो जिसका हम को खबर हो जाती है। तब-तब वतन की उल्फत में देर हो जाती है। कुर्बान वो अमर हो जाते हैं।

“दर्द अपने वतन का मुझसे देखा जाता नहीं, दुश्मन के आगे झुकना मैं भी किसी को सिखाता नहीं, कर दूंगा आवाज को मैं अपनी इतना बुलंद फिर सुनेगी ये कातिलों की महफिल और सुनेगा ये आसमां, भिगोकर लहू से मैं अपने इस जमीन को दिखा दूंगा इक दिन कि इस कदर वतन को अपने कोई आशिक चाहता नहीं।”

“हम नौजवान इस देश के हम मौत से डरते नहीं, लिवाज-ए-गुलामी जलना है हमको, कैद से वतन को छुड़ाना है हमको, मिटाने से नहीं मिटते हम नौजवान इस देश के, आंच आये इस देश पर हम काम वो करते नहीं, हम वो दिलेर है वतन के अपने जो मरके भी मरते नहीं”। इंकलाब जिंदाबाद

“गर्मी होती है अक्सर लहू में हर जवान के लुटते हैं। देश को जो दाग है इंसान के अब इंकलाब ने ली अंगड़ाई फिर इस वतन में यारों हक न लूटे जायेंगे अब गरीब के और किसान को”

“उठा सके आवाज कोई दुश्मन इस ताक में बैठे हैं लुट रही इज्जत बेटियों की सरेआम यहां फिर क्यों हम सब्र रखकर हम हाथ पे हाथ रखे बैठे हैं”।

“उबला फिर आज लहू रंगों का हर शख्स है अब जैद में, जाग जज्बा कुर्बनी का मौत के आगोश में, दिल में है चिंगारी कुछ ऐसी हमको न चैन है न अब होश”

“मैं अपनी जिदंगी वतन के नाम कर चुका हूं अब बढ़ाया कदम आजादी की ओर मैने अब आ गयी यारों वतन पर मरने की बारी। पहले ही मैं बहुत आराम कर चुका हूं। गुलामी से करने को आजाद वतन को अपने मैं कई खौफनाक पहले ही काम कर चुका हूं”।

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