आदिम युग में बोकारो का असनापानी गांव, थर्मल पावर स्टेशन के बगल में अंधेरे में रहने को मजबूर आदिवासी

बोकारो। झारखंड के बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड के सियारी पंचायत में एक गांव है असनापानी। इस गांव में संताल आदिवासी समुदाय के 25 परिवार रहते हैं। आजादी के 75 वर्ष और झारखंड अलग राज्य गठन के 22 साल बाद भी इस गांव के लोगों को बिजली नसीब नहीं हो सकी है। जबकि इस गांव से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन (टीटीपीएस) अवस्थित है और इस विद्युत परियोजना में उत्पादित बिजली से कमोबेश पूरा झारखंड रोशन होता है।

अपने चारों ओर बिजली की चकाचौंध के बीच इस गांव के लोग आदिम युग की तरह लकड़ी जलाकर रात के अंधेरे से मुक्ति पाते हैं।गांव के लोग खाना बनाने या जरूरी काम के लिए लकड़ी जलाकर रोशनी करते हैं और सोने के पहले अंधेरा कर लेते हैं। जिसकी वजह से सांप, बिच्छू जैसे जहरीले जीवों का अक्सर शिकार हो जाते हैं। सबसे दुखद बात यह है कि यहां घासलेट (किरासन तेल) भी उपलब्ध नहीं है।

असनापानी गांव में अंधेरा है, वहीं बगल के गांव बिरहोर डेरा और काशीटांड़ में बिजली का कनेक्शन तो है, लेकिन तकनीकी खराबी और विभाग की लापरवाही के कारण इन गांवों के लोग पिछले तीन सालों से अंधेरे में रहने को विवश हैं। इसकी जानकारी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को भी है, लेकिन इसका समाधान करने की कोशिश नहीं हुई।

असनापानी गांव में करीब 25 परिवार, बिरहोर डेरा में 20 परिवार और काशीटांड़ गांव में 20 आदिवासी परिवार रहते हैं। इन गांवों के लोग कहते हैं कि “हमने अब बिजली की रोशनी में रहने की उम्मीद छोड़ दी है। हमारे बीच बड़ी समस्या यह भी है कि किरासन तेल इतना महंगा है कि उसे खरीद पाना हम लोगों के लिए संभव नहीं है, वहीं दूसरी तरफ किरासन तेल अब बाजार में मिलता भी नहीं है। ऐसे में हम लोग सूखी लकड़ी जलाकर रोशनी करते हैं।“

10 किलोमीटर की दूरी पर है तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन, फिर भी असनापानी में है अंधेरा।

ग्रामीण कहते हैं कि “हम लोग रोज दिन में सूखी लकड़ी खोजकर लाते हैं, ताकि रात में उसे जलाकर घर में उजाला कर सकें। लेकिन सूखी लकड़ियों के लिए अब बरसात के मौसम में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बरसात के दिनों में सूखी लकड़ी का मिलना काफी मुश्किल हो जाता है। दूसरी तरफ रात में विषैले जीव-जंतुओं का भय सताता रहता है।“

ग्रामीण कहते हैं कि उन्होंने सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से कई बार गुहार लगायी है कि अगर बिजली बहाल नहीं हो पा रही है, तो कम से कम किरासन तेल ही किफायती दर पर उन्हें मुहैया कराया जाए, ताकि रात में कम से कम ढिबरी जला सकें। लेकिन अब तक सिवाय आश्वासन के उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।

क्षेत्र के विधायक डॉ लंबोदर महतो जो कभी इस क्षेत्र में प्रशासनिक अधिकारी भी रह चुके हैं और स्थानीय निवासी भी हैं, कहते हैं- “ऊर्जा विभाग खुद मुख्यमंत्री के जिम्मे है और गोमिया के तीन संताल बहुल गांवों में बिजली नहीं है। यह दुखद है। जिले की हर बैठक व विधानसभा में भी मैंने मामले को उठाया है। अब तक कुछ नहीं हुआ है। मानसून सत्र में मैं फिर से इस मामले को उठाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराऊंगा।“

विद्युत विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ‘सोलर सिस्टम से बिजली बहाल करने की दिशा में जोर दिया जा रहा है’। वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि विगत एक वर्ष से वे यही सुन रहे हैं कि सौर ऊर्जा से उनके गांव को बिजली मिलेगी, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है।

बिरहोर डेरा और काशीटांड़ में बिजली का कनेक्शन तो है लेकिन बिजली नहीं।

इस बावत तेनुघाट विद्युत प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता (ईई) समीर कुमार कहते हैं कि “तीनों गांवों में बिजली बहाल करने के लिए विभाग गंभीर है। असनापानी के लिए सौर और केबल सिस्टम दोनों का डीपीआर बनाकर स्वीकृति के लिए भेजा गया है। काशीटांड़ और बिरहोर डेरा में बिजली की हुई तकनीकी गड़बड़ी को दूर करने का प्रयास जारी है। जंगल क्षेत्र होने की वजह से यहां काम करने में थोड़ी परेशानी आ रही है।“

कितनी शर्मनाक स्थिति है कि देश में आजादी का अमृतकाल मनाया जा रहा है, वहीं आज भी झारखंड का यह गांव जहां लोग आदिम काल के आदि मानव की तरह जीवन बसर करने मजदूर हैं, खासकर रात को विषैले जीव-जंतुओं के बीच छोटे-छोटे बच्चों के साथ। ऐसी परिस्थितियों के बीच पल-बढ़ रहे इनके बच्चों भविष्य कैसा होगा, स्वतः समझा जा सकता है।

(झारखंड के बोकारो से विशद कुमार की रिपोर्ट)

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