ग्राउंड रिपोर्ट: पीएम मोदी के गोद लिए गांव जयापुर के अस्पताल पर लगा रहता है ताला, बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं खेत

वाराणसी। लोकसभा चुनाव 2014 के संपन्न होने के बाद सत्तारूढ़ दल के प्रधानमंत्री और वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत जयापुर गांव को गोद लिया था। तब ग्रामीणों को सपना दिखाया गया कि अब यह गांव दुनिया में आदर्श मॉडल विलेज के तौर उभरेगा। जिसका आगामी वर्षों में चौमुखी विकास किया जाएगा। जाहिर है कि हजारों ग्रामीणों में यह आस जागना स्वाभाविक थी कि गांव में बिजली, हर घर को पेयजल, चमचमाती सड़क, स्वच्छता और शौचालय, जल निकासी, फुटपाथ, वाई-फाई और इंटरनेट, उज्ज्वला रसोई गैस और साफ़ ईंधन, आवास, रोशनी का प्रबंध और स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था होगी।

गांव के लोगों को उम्मीद थी कि समाजिक न्याय, वृद्ध-विकलांग पेंशन, सबके लिए रोजगार, नागरिकों के लिए अस्पताल, कृषि की सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था, बच्चों के खेल का मैदान, मनोरंजन स्थल, बारात घर, गौशाला, बालिकाओं के लिए डिग्री कॉलेज की स्थापना और भूमिहीन दलित समाज को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अधिकारियों की चौखट को नहीं चूमना होगा। विकास की बदौलत गांव दुनिया के नक़्शे पर पहचाना जाएगा। लेकिन अफसोस, ग्रामीणों को इस मुगालते से बाहर निकलने में आठ साल का लंबा वक्त लग गया।

7 नवंबर 2014, को जयापुर की तत्कालीन ग्राम प्रधान दुर्गावती देवी ने अपने गांव के मंच पर प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया था। तालियों की गड़गड़ाहट और भारत माता की जय के नारों के बीच दुर्गावती बोलना प्रारम्भ करती हैं- “आज सांसद आदर्श गांव योजना के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे गांव में आये हैं। मैं प्रकट नहीं कर सकती कि मुझे कितनी ख़ुशी है। मेरे गांव में आपके चरण (प्रधानमंत्री) पड़ जाने से मेरा गांव ही नहीं बल्कि यह पूरा क्षेत्र धन्य मान रहा है। हम लोगों के लिए यह कितनी सौभाग्य की बात है कि आज यह हमारा जयापुर गांव नरेंद्र मोदी के गांव के रूप में जाना जाएगा।”

तत्कालीन प्रधान दुर्गावती देवी मंच से बोलते हुए।

दुर्गावती देवी के शब्दों में गांव और ग्रामीणों की आस-उम्मीद को महसूस किया जा सकता है। तब से लेकर आज नौ वर्ष का समय गुजर गया है। अब देखना लाजमी होगा कि क्या सरकारी योजनाओं की लेट-लतीफी और रिसते भ्रष्टाचार से बचते हुए जयापुर आदर्श गांव बन पाया है?

बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी को जयापुर को गोद लिए तकरीबन नौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब 2024 के लोकसभा चुनाव की चौसर पर मोहरे सजाए जा रहे हैं। इस बीच “जनचौक” की टीम गुरुवार को सरकारी दस्तावेजों में दर्ज देश के पहले सांसद आदर्श गांव जयापुर का रियल्टी चेक करने पहुंचती है। वाराणसी जिला मुख्यालय से दक्षिण-पश्चिम में 20-25 किमी की दूरी पर विकासखंड अराजीलाइन में जयापुर स्थित है।

हाइवे से उतरने के बाद जयापुर तक जाने में कई किमी तक सड़क क्षतिग्रस्त है और इनमें बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं। आज भी गांव में सीवर यानी नागरिकों को नाबदान का पानी बहाने की व्यवस्था नहीं हो सकी है। तमाम घरों में महिलाओं को लकड़ी-गोबर के उपले पर खाना बनाना पड़ता है। गांव के आरोग्य स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य उपकेंद्र पर ताला लटकता मिला। किसान पानी के लिए मॉनसून की राह तकते मिले।

बंद पड़ा स्वास्थ्य केंद्र।

गांव के कई रास्ते कच्चे हैं, जिन पर बारिश में गुजरना किसी आफत से कम नहीं है। खरीफ सीजन में धान की रोपाई में जयापुर के किसान पिछड़ रहे हैं। किसानों का कहना है कि सिंचाई आदि के लिए गांव में कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है। गांव के पश्चिम में सिर्फ एक ही नलकूप है, जिसका लाभ बड़ी जोत वाले किसान उठाते हैं। गांव के दक्षिण, पूरब और उत्तर के अधिकांश किसानों के खेत पानी के अभाव में परती हैं। अधिकांश स्ट्रीट सोलर लाइट ख़राब हो गए हैं। कुछ की बैटरी चोर चुरा ले गए, इसलिए रात में अधिकांश गलियों और सड़कों पर अंधेरा पसर जाता है।

बदहाल और जलमग्न गांव की आधा दर्जन गलियों को आज भी अपने दिन बहुरने का इंतजार है। जयापुर से बनारस के लिए एक सरकारी बस सुबह सात बजे निकलती है, जो सिर्फ एक ही चक्कर लगाती है, इससे जयापुर और आसपास के गांव- जक्खिनी, महगांव, चंदापुर आदि के नागरिकों को निजी साधन और ऑटो का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए भी कम से कम एक-डेढ़ घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। बेरोजगारी और मंहगाई की मार से गांव नहीं बच पाया है। गांव में स्वच्छता अभियान हाशिये पर है।

कृषि पर निर्भर जयापुर

जयापुर की कुल आबादी इस समय 4200 है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की आबादी 3100 है। इस गांव में कुल 2700 वोटर हैं। गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। यहां कुनबी (पटेल), ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, गोंड, दलित आदि जातियों के लोग रहते हैं। गांव में सबसे ज़्यादा आबादी पटेल (कुनबी) समाज की है। इस गांव के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। यहां पर गेहूं, धान, बाजरा, गुलाब और की सब्ज़ियों की खेती होती है।

जयापुर गांव

खेती के अलावा कुछ लोग मनरेगा में श्रमिक का काम भी करते हैं। गिनती के लोग सरकारी तो कुछ लोग प्राइवेट नौकरी में भी हैं। सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ी हुए महिलाएं गांव में लगे चरखे पर सूत कटती हैं। जहां श्रम के सापेक्ष उनको पारिश्रमिक नहीं मिलता है। एक जरूरी बात, मीडिया और पत्रकारों को लेकर ग्रामीण उदासीनता बरतते हुए मिले। 

बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे किसानों के खेत

जयापुर आरोग्य स्वास्थ्य केंद्र के पास अपने खेत की मेड़ पर बैठे पचपन वर्षीय किसान प्यारे लाल की चिंता यह है कि धान की रोपाई का पीक सीजन हाथ से निकलता जा रहा है। उनका खेत नलकूप से काफी दूर होने के चलते पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। उनके खेत बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं।

प्यारेलाल “जनचौक” से कहते हैं कि “गांव में सिंचाई के लिए पानी की दिक्कत है। जयापुर की सीमा में सिर्फ एक ही सरकारी नलकूप है, जो गांव के दो हजार से अधिक छोटे-बड़े किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने में कामयाब नहीं है। मोदी जी द्वारा गांव को गोद लेने के बाद लाइट लगी, तामझाम हुआ लेकिन किसी ने किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने के बारे में नहीं सोचा।”

किसान प्यारेलाल।

उन्होंने कहा, “बारिश ने मुंह फेर लिया है, आसमान में बादल तैरकर ललचा रहे हैं। पास के किसान के पास कम क्षमता का समरसेबल पंप है, लेकिन उससे वह अपनी ही रोपाई में जुटे हैं। मैंने रुपये के बदले पानी मांगा है। देखिये कब मिल पाता है।”

चूल्हे पर बनता है खाना

जयंती गोंड और उनकी बहु गांव के बीच में 500 रुपये में ख़रीदे गए आम की सूखी लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़े कर बांधने में जुटी हैं। वह बताती हैं “मंहगाई इतनी है कि उज्जवला का जो सिलेंडर मिला है, वह कई महीनों से खाली पड़ा हुआ है। सात-आठ लोगों का परिवार है। खाना बनाने पर सिलेंडर एक ही महीने में ख़त्म हो जाता है। गैस भरवाने के लिए 1200 रुपये की व्यवस्था करनी पड़ती है। इतने रुपये हम लोगों को जुटाना किसी पहाड़ से कम नहीं है।”

जयंती कहती हैं कि “परिवार में एक लड़का कमाने वाला है। उसकी कमाई से क्या-क्या किया जाए? परिवार के लिए भोजन और जिम्मेदारियों को निभाने में ही यह आमदनी कम पड़ती है। इसलिए हम लोग गोबर के उपले और इन लकड़ियों से सहारे रसोई का काम चला रहे है। 500 रुपये की लकड़ी से कम से कम दो महीने पूरे परिवार के लिए खाना बनेगा।”

जलावनी लकड़ी जुटातीं जयंती देवी और उनकी बहु।

रसोई में उपले और लकड़ी के जलने से कई प्रकार के हानिकारक धुंए निकलते हैं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं माना जाता है। ‘जनचौक’ के सवाल पर जयंती हंसती हुई कहती हैं, “क्या करें हम लोग? नुकसान दायक है तो खाना बनाना छोड़ दें। जो भी हो मंहगाई में हमारे लिए तो गैस पर खाना बनाना संभव नहीं है। यदि सरकार गैस के दाम को 500-600 रुपये करे तो गरीबों के लिए बात बने।”

अस्पताल में नहीं मिलता पूरा उपचार

गांव में बने आरोग्य स्वास्थ्य केंद्र की उपयोगिता पर पैंसठ वर्षीय चमेली देवी कई सवाल खड़े करते हुए कहती हैं, “गांव में बने अस्पताल में सिर्फ गर्भवती महिलाओं की जांच और प्रसव आदि की सुविधा है। सांस, दिल, हड्डी, नस और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए शहर जाना पड़ता है। यहां के डॉक्टर गंभीर रोगों की दवा नहीं देते हैं। कई बार तो अस्पताल बंद रहता है और डॉक्टर ही नहीं आता है।”

चमेली देवी आगे कहती हैं, “जब कभी तबीयत ख़राब होती है तो यहां से क़रीब पांच किलोमीटर दूर जक्खिनी जाना पड़ता है। लगभग छह किलोमीटर दूर राजा तालाब में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। जक्खिनी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। गांव के अधिकांश नागरिकों को इलाज और दवा के लिए ब्लॉक स्तरीय अस्पताल या महंगे प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है।”

ग्रामीण चमेली देवी।

स्वच्छ भारत अभियान भी फेल

गांव में कूड़ा निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं होने से नागरिक जहां-तहां कूड़ा फेंक दे रहे हैं। इससे बारिश और जलभराव के दिनों में संक्रामक बीमारियों के पनपने की आशंका है। प्रधानमंत्री मोदी के जयापुर को गोद लेने के बाद स्वच्छ भारत अभियान के तहत वाराणसी जिला प्रशासन ने गांव में हर घर में शौचालय बनवाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया था।

ग्रामीणों ने बताया कि तब सभी नागरिकों ने शौचालय बनवा लिये थे। लेकिन, उचित देखभाल नहीं होने से कई नागरिकों के घरों के शौचालय बदहाल और बेकार पड़े हुए हैं। गलियों के रास्तों में सीवर का निर्माण नहीं होने से अधिकांश नागरिकों के घर का पानी उनके घर के सामने ही जमा होकर सड़ता रहता है।

सीवर का अभाव, गंदे पानी से लोग परेशान

ग्यारहवीं में पढ़ाई करने वाले उन्नीस वर्षीय भोनू के घर के नाबदान की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि उनके घर के ठीक सामने गली है। वह बताते हैं, “मैं रोज नहाने के समय अपने दरवाजे के सामने नल के पास एक बड़े गड्ढे से गंदा पानी बाल्टी से निकालकर सड़क के उस पार खेत में फेंकता हूं। ये कैसा गांव का विकास है? गली को बनाने के दौरान सीवर और जल निकासी की व्यवस्था का ध्यान दिया गया होता तो मुझे रोज गंदा पानी फेंकने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। बारिश के दिनों में यह गन्दा पानी फ़ैल जाता है। यह समस्या मेरे ही साथ नहीं है, सैकड़ों नागरिकों के साथ है।”

जल निकासी न होने से परेशान भोनू।

पास में खड़े एक अधेड़ व्यक्ति के अनुसार गांव को गोद लिए जाने के बाद डीएम, एसडीएम, तहसीलदार, बीडीओ समेत कई विभागों के आला अधिकारियों की लगातार भागदौड़ से लगा कि अपना गांव सचमुच में बदल जाएगा। लेकिन, समय गुजरने के बाद इनके वाहनों के पहिये धीमे हो गए। ग्राम प्रधान चुनाव में पानी और सीवर डाले जाने का मुद्दा जोरशोर से उठा। लेकिन, चुनाव के बाद यह मामला भी ठंडा पड़ गया। बहरहाल, सफाई और स्वच्छता के मानक पर जयापुर की स्थिति दयनीय है। 

चोरों ने गांव में कर दिया है अंधेरा

रात के समय गांव में अंधेरा पसरने से राजेंद्र प्रसाद दुखी हैं। वह बताते हैं, “मोदी जी जब गांव में आये थे तो गांव में हर तरफ सोलर लाइट लगाई गई थीं। जिनकी मरम्मत न तो किसी विभाग ने की, न ही इनकी देखरेख की जिम्मेदारी ली। नतीजन, आधे से अधिक सोलर स्ट्रीट लाइट चोरी हो गये हैं। गांव में सड़क और गलियों के किनारे लगे अधिकांश लाइट जलते ही नहीं। इनकी बैट्रियां भी जाने कौन उतार ले गया।”

दरकती दीवारें, किसी दिन घर ना गिर पड़े

जयापुर के बीच गांव में पुनवासी का कच्चा मकान जर्जर हो चुका है। इस मकान में एक किशोरी चावल बुन रही थी। पास में उसका भाई खड़ा था। किशोर बताता है- “हम लोगों का कच्चा मकान चालीस फीसदी नष्ट हो चुका है। मिट्टी की दीवारें बारिश में अपनी जगह से खिसक कर गिर रही हैं। छत भी टपकती है। सिर्फ एक कमरा और एक आंगन होने से बारिश में गृहस्थी का सामान आटा, चावल, मसाले, कपड़े, किताब और बिस्तर भीग जाते हैं।”

कच्चे मकान को दिखाता ग्रामीण पुनवासी का पुत्र।

वो आगे बताता है, “पापा ने कई बार आवास योजना के लिए आवेदन किया था। सूची में नाम आने के बाद भी हम लोगों को आवास नहीं दिया जा रहा है। हम लोग गरीब हैं, पापा ठेला लगाते हैं जिससे घर का खर्चा चलता है। परिवार को डर है कि किसी दिन घनघोर बारिश में हमारा कच्चा घर हमारे ऊपर ना गिर जाए। प्रशासन से हमारी मांग है कि जल्द से जल्द आवास योजना का लाभ दिया जाए।” 

अभी बहुत कुछ होना है शेष 

जयापुर गांव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक जागरूकता पैदा करने और लोगों की सामूहिक इच्‍छा शक्‍ति के जरिए उल्‍लेखनीय उपलब्‍धियां हासिल करने पर विशेष जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि “हर गांव को अपना जन्‍मदिन मनाना चाहिए। यह जातिवाद को खत्‍म करने का सर्वोत्‍तम तरीका है।”

जयापुर की भूतपूर्व ग्राम प्रधान दुर्गावती देवी की अनुपस्थिति में उनके देवर श्रीनारायण पटेल ने “जनचौक’ को बताया कि “दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ ऊंची जाति के कुछ लोग गैर समानता का व्यवहार रखते हैं। हालांकि पहले की तुलना में दलितों के उत्पीड़न की शिकायतें न के बराबर हैं। भाभी के कार्यकाल में गांव का बहुत तेजी से विकास हुआ। सोलर लाइट के चोरी हो जाने से गांव में कहीं-कहीं अंधेरा है। सीवर और स्वच्छता की व्यवस्था के लिए जनता ने आगे मौका दिया तो यह हमारी प्राथमिकता में है।”

भूतपूर्व प्रधान दुर्गावती के देवर श्रीनारायण पटेल।

उन्होंने कहा कि “हमें उम्मीद थी कि पीएम मोदी द्वारा गांव को गोद लेने के बाद गांव में बालिकाओं और बालकों के लिए एक डिग्री कॉलेज बन जाएगा, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।” शौचालय आदि की बदहाली पर नारायण कहते हैं- “कुछ दायित्व ग्रामीणों का भी बनता है कि मिली सुविधाओं को संभालते हुए इस्तेमाल करें।”

(उत्तर प्रदेश के वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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Ajay Kumar Gupta
Ajay Kumar Gupta
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9 months ago

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Chandrashekhar maurya
Chandrashekhar maurya
Guest
9 months ago

सच्ची पत्रकारिता यही है बिना डरे आपने बहुत कुछ बता दिया।