गांधी हत्या के ‘साजिशकर्ताओं’ की संस्था गीता प्रेस को इस बार का गांधी शांति पुरस्कार

नई दिल्ली। मोदी सरकार ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार-2021 से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को जारी एक मीडिया विज्ञप्ति में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को अहिंसक और गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कार के लिए चुना गया।

महात्मा गांधी की हत्या पर कथित तौर पर चुप रहने वाले एक शताब्दी पुराने प्रकाशन गृह को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाने के ऐलान से गांधीजनों में आक्रोश है। दरअसल, गीता प्रेस के कर्ताधर्ता हनुमान प्रसाद पोद्दार और गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका उन 25,000 लोगों में शामिल थे, जिन्हें 1948 में गांधी की हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया था।

महात्मा गांधी प्रेस के संस्थापकों के साथ-साथ हनुमान प्रसाद पोद्दार- इसकी पत्रिका कल्याण के संस्थापक-संपादक- के करीब थे, लेकिन दोनों में दलितों की अस्पृश्यता के मुद्दे पर मतभेद था। हालांकि, पी.वी. नरसिंह राव सरकार ने 1992 में पोद्दार पर डाक टिकट जारी कर सम्मानित किया था।

गांधी शांति पुरस्कार 1995 में स्थापित किया गया था, जिसमें 1 करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार होता है। अभी तक यह 19 बार दिया गया है। 2022 के पुरस्कार के लिए किसी नाम की घोषणा नहीं की गई है।


कांग्रेस ने गीता प्रेस गोरखपुर को महात्मा गांधी शांति पुरस्कार देने का विरोध किया है। पार्टी ने कहा है कि यह गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा है। कांग्रेस पार्टी के सांसद जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, “साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर के गीता प्रेस को दिया जा रहा है, जो कि अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल की 2015 में आई एक बहुत अच्छी किताब गीता प्रेस पर है। इसमें उन्होंने इस संगठन के महात्मा के साथ तकरार भरे संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया गया है। यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और ये सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।”

बढ़ते विवाद के बीच गीता प्रेस के प्रबंधकों ने बीच का रास्ता निकाला है। गीता प्रेस पुरस्कार लेने पर तो सहमत हो गया है लेकिन एक करोड़ की नकद धनराशि को नहीं लेगा। गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा, ‘हम लोग किसी भी तरह के आर्थिक सहायता या पुरस्कार नहीं लेते हैं, इसलिए इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं।’ इससे पहले भी गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। प्रबंधन से जुड़े लोगों ने कहा कि हालांकि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार किया जाएगा। लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि नहीं ली जाएगी।

अपनी पुस्तक, गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया में, अक्षय मुकुल लिखते हैं: “1926 में, जब पोद्दार जमनालाल बजाज के साथ गांधी के पास कल्याण के लिए उनका आशीर्वाद लेने गए, तो उन्हें महात्मा गांधी ने दो सलाह दिए: पहला, विज्ञापन स्वीकार न करें, दूसरा, कभी भी पत्रिका में पुस्तक समीक्षा प्रकाशित न करे… पोद्दार ने इस सलाह को स्वीकार किया और आज भी कल्याण और कल्याण कल्पतरु पत्रिका में विज्ञापन या पुस्तक समीक्षा नहीं प्रकाशित होती है।”

वे आगे कहते हैं: “गीता प्रेस और महात्मा के बीच जाति और सांप्रदायिक मुद्दों पर गहरी असहमति की एक श्रृंखला के बाद, हरिजनों के लिए मंदिर प्रवेश और पूना पैक्ट जैसे मुद्दों पर संबंध तेजी से बिगड़े…। अस्पृश्यता पर पोद्दार के विचारों को बदलने के गांधी के सर्वोत्तम प्रयास विफल रहे। गांधी के खिलाफ पोद्दार का कटाक्ष 1948 तक कल्याण के पन्नों में जारी रहा।

1948 में गोयंदका और पोद्दार की गिरफ्तारी के बाद जी.डी. बिड़ला ने दोनों की मदद करने से इनकार कर दिया, और जब सर बद्रीदास गोयनका ने उनका मामला उठाया तो विरोध भी किया। बिड़ला के लिए, दोनों सनातन धर्म का प्रचार नहीं कर रहे थे बल्कि शैतान (दुष्ट) धर्म का प्रचार कर रहे थे। गीता प्रेस ने महात्मा की हत्या पर चुप्पी बनाए रखी। जिस व्यक्ति का आशीर्वाद और लेखन कभी कल्याण के लिए इतना महत्वपूर्ण था, अप्रैल 1948 तक पोद्दार ने गांधी के साथ अपनी विभिन्न मुलाकातों के बारे में लिखा था, लेकिन बाद में उसके पन्नों को गायब कर दिया गया।

गीता प्नेस न केवल ‘हिंदू एकजुटता (संगठन), पवित्र आत्म-पहचान और आदर्श सांस्कृतिक मूल्यों’ की घोषणा करने के लोकप्रिय प्रयासों’ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, बल्कि हिंदू राष्ट्रवाद के रंगमंच में एक खिलाड़ी के रूप में भी 1923 के बाद से हर महत्वपूर्ण मोड़ पर आरएसएस, हिंदू महासभा, जनसंघ और भाजपा के बहुसंख्यक आख्यान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे।”

संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को अपने बयान में कहा, “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने शांति और सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रेस के योगदान को याद किया। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस को उसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्थान द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की मान्यता है।”

आरएसएस से जुड़े विवेकानंद केंद्र और एकल अभियान ट्रस्ट ने क्रमशः 2015 और 2017 के पुरस्कार जीते थे। पिछले विजेताओं में स्वतंत्रता सेनानी और रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता जूलियस न्येरेरे (1995), नेल्सन मंडेला (2000), डेसमंड टूटू (2005) और मुजीबुर रहमान (2020) शामिल थे।

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