कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए आदिवासियों को जंगल से खदेड़ा जा रहा: जेम्स हेरेंज

रांची। 27 अक्टूबर को लातेहार जिले से जल, जंगल व जमीन की रक्षा की शपथ लेकर ‘झारखंड ग्राम सभा जागरूकता यात्रा’ प्रारंभ की गई थी, इस यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए। यह यात्रा शहीद नीलाम्बर पीताम्बर की जन्मभूमि भंडरिया से प्रारंभ होकर 5 नवंबर को राजधानी रांची पहुंची। रांची के एचआरडीसी हॉल में यात्रा का समापन कार्यक्रम किया गया।

समापन समारोह को संबोधित करते हुए यात्रा के संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि सम्पूर्ण बेतला ब्याघ्र आरक्ष परियोजना के कोर एवं बफर एरिया के करीब 400 गांव के ग्रामीणों को वन उपज के उपभोग से वंचित कर वन विभाग संविधान में प्रदत्त अधिकारों से आदिवासियों को वंचित कर रही है। इलाके के लोगों को न बीड़ी पत्ता संग्रहण की इजाजत है और न ही वे अपने जानवरों को जंगलों में चराई के लिए ले जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि वन विभाग के इस तुगलकी फरमान से लोगों में त्राहिमाम है। उनको जीविकोपार्जन के साधनों से वंचित होना पड़ रहा है। सिर्फ बेतला ही नहीं समूचे झारखंड में आदिवासी उपयोजना मद में आवंटित राशि से, जिसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ आदिवासी समुदाय के लिए किया जाना है, इस राशि से वन रोपण कार्य किये जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि उन सारे इलाके के ग्रामीणों को वनाधिकार कानून होने के बाद भी जंगलों में प्रवेश से रोका जा रहा है। यह आदिवासियों के साथ सरकारों द्वारा जान-बूझ कर हाशिये में धकेले जाने की साजिश है। ताकि कॉर्पोरेट घरानों के लिए आदिवासी इलाकों में माहौल तैयार किया जा सके।

पेसा नियमावली ड्राफ्ट प्रक्रिया में शामिल रहे जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि सरकार के औपबंधिक प्रारूप को पुस्तकाकार में प्रिंट कर पूरे राज्य के ग्राम सभाओं को सुपुर्द करना अत्यंत ही सराहनीय पहल है। अब ये स्पष्ट हो गया कि अंतिम अधिसूचना में कम से कम इन प्रावधानों से कम तो मंजूर नहीं होगा।

झारखंड के आदिवासी इलाकों के लोगों को अपने संवैधानिक आधिकारों के आधार पर अब अपने ग्राम सत्ता को सशक्त करने हेतु कई साहसिक कदम उठाने पड़ेंगे। आगामी वर्ष होने वाले चुनावों में हमें अपने नागरिक दायित्वों का निर्वहन करना होगा। जो भी सरकारें जनविरोधी नीतियों को लाती रही हैं उनको सत्ता से दूर करना होगा। 

क्रांतिकारी किसान मजदूर यूनियन झारखंड के केंद्रीय अध्यक्ष मदन पाल ने कहा कि 2022 के आकलन के अनुसार करीब 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। एक अन्य आंकड़े के अनुसार आजाद भारत के 75 सालों में विभिन्न परियोजनाओं से करीब 6 करोड़ आदिवासी विस्थापित हो चुके हैं। हाल में भारत की सांसद में पारित वन संरक्षण (संशोधन) के लागू होने से जंगल की कटाई एवं आदिवासियों का विस्थापन और बढ़ेगा, पर्यावरण असंतुलन बढ़ेगा तथा कई तरह की पारिस्थिकीय समस्याएं पैदा होंगी।

भारतीय सामुदायिक कार्यकर्त्ता मंच के अरविन्द मूर्ति के शब्दों में देश के विकास में झारखंड 40 फीसदी खनिज उत्पादन करता है। लेकिन इसी राज्य में गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, पलायन जैसी समस्याएं विकराल हैं। अर्थात सरकारें यदि जनपक्षीय होतीं तो ये विपरीत परिस्थिति नहीं आती। अब समय आ गया है कि ग्राम सभा रूपी ग्राम सरकारें अपने-अपने गांवों में स्वशासन की प्रक्रिया को सशक्त करें, तभी हम अपनी भावी पीढ़ी को एक समृद्ध झारखंड सौंप सकेंगे।

एचआरडीसी में आयोजित समापन कार्यक्रम में राज्य के खूंटी, पश्चिम सिंहभूम, गढ़वा, पलामू, लोहरदगा, सिमडेगा, गुमला, सरायकेला खरसावां आदि इलाकों से ग्राम स्वशासन अभियान में लम्बे समय से कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।

सभा का संचालन दिलीप रजक एवं मनोज भुइयां ने संयुक्त रूप से किया। धन्यवाद ज्ञापन एनसीडीएचआर के राज्य समन्वयक मिथिलेश कुमार ने किया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से क्रांतिकारी किसान मजदूर यूनियन झारखंड के पलामू जिलाध्यक्ष वृजनंदन मेहता, तारामणी साहू, विमल सिंह, जितेन्द्र सिंह, शानियारो उरांव, महेश्वरी देवी, बुद्धि देवी, देवंती देवी, भोजन का अधिकार अभियान के संयोजक अशर्फी नन्द प्रसाद आदि शामिल थे।

कार्यक्रम में झारखंड ग्राम सभा जागरूकता यात्रा 2023 के जरिये झारखंड के राज्यपाल, हेमंत सरकार एवं ग्राम सभाओं के समक्ष निम्न मांगे प्रस्तुत की गईं-

(1) राज्यपाल अपने संविधानिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए जल्द से जल्द झारखंड पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियमावली 2022 को अधिसूचित करें।

(2) झारखंड के सभी 5वीं अनुसूची क्षेत्र के 16781 से अधिक ग्राम सभायें प्रस्तावित ड्राफ्ट नियमावली में निहित प्रावधानों के आलोक में प्रशासन और नियंत्रण के दायित्वों का निर्वहन नियमित तरीके से संचालित करें।

(3) सभी ग्राम सभाओं का अपना ग्राम सभा सचिवालय हो, इस दिशा में वे सामूहिक पहल प्रारंभ कर दें।

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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