सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूर्व जेएनयू स्कॉलर और सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। उमर खालिद को 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे कथित बड़ी साजिश के मामले में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उमर अपने ट्रायल की प्रतीक्षा में सितंबर 2020 से सलाखों के पीछे हैं।
न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और बेला एम त्रिवेदी की पीठ से याचिकाकर्ता के वकील ने सुनवाई पर एक सप्ताह की अवधि के लिए स्थगन की मांग की थी। इसके मद्देनजर सुनवाई को स्थगित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह मामला 9 अगस्त को सूचीबद्ध होने की संभावना है। उमर खालिद की याचिका के जवाब में दिल्ली पुलिस ने रविवार को जवाबी हलफनामा दायर किया था, जो अभी तक आधिकारिक तौर पर रिकॉर्ड पर प्राप्त नहीं हुआ है।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 12 जुलाई को मामले को 24 जुलाई के लिए पोस्ट कर दिया था। दिल्ली पुलिस के वकील ने हजारों पन्नों की चार्जशीट का हवाला देते हुए जवाब दाखिल करने का और समय मांगा था। उमर खालिद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि यह आदमी दो साल और ग्यारह महीने से हिरासत में है। कौन सा शपथ पत्र दायर करने के लिए है? यह एक जमानत याचिका है।
उमर खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जमानत से इनकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और रजनीश भटनागर की पीठ ने पिछले साल 18 अक्टूबर को नियमित जमानत की मांग करने वाली उमर खालिद की अपील खारिज कर दी थी। उमर खालिद ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसने उन्हें यूएपीए मामले में जमानत देने से इनकार किया था।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ खालिद की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पिछले साल जमानत देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत स्थगन पत्र के संदर्भ में पीठ ने सुनवाई स्थगित कर दी।
दरअसल जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व स्कॉलर और रिसर्चर खालिद, 2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगा मामले से संबंधित बड़ी साजिश के आरोपियों में से एक हैं। उन पर 59 अन्य लोगों के साथ आरोप लगाया गया, जिनमें पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के स्टूडेंट आसिफ इकबाल तन्हा और स्टूडेंट एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा शामिल हैं।
मामले में जिन अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, उनमें पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन, कार्यकर्ता खालिद सैफी, शादाब अहमद, तस्लीम अहमद, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं।
खालिद और जेएनयू स्टूडेंट शरजील इमाम इस मामले में आरोप पत्र दायर करने वाले आखिरी व्यक्ति हैं। जरगर, कलिता, नरवाल, तन्हा और जहान को पहले ही जमानत मिल चुकी है। कलिता, नरवाल और तन्हा को पिछले साल जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने जमानत दे दी।
खालिद पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) की धारा 13, 16, 17 और 18, शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
आदेश में हाईकोर्ट ने फरवरी 2020 में अमरावती में दिए गए भाषण में खालिद द्वारा ‘इंकलाबली सलाम’ (क्रांतिकारी सलाम) और ‘क्रांतिकारी इस्तिकबाल’ (क्रांतिकारी स्वागत) शब्दों का उपयोग करने पर भी गंभीरता से विचार किया और इसे हिंसा भड़काने वाला माना। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, “क्रांति अपने आप में हमेशा रक्तहीन नहीं होती है, यही कारण है कि इसे विरोधाभासी रूप से उपसर्ग के साथ प्रयोग किया जाता है- ‘रक्तहीन’ क्रांति। इसलिए जब हम ‘क्रांति’ अभिव्यक्ति का उपयोग करते हैं तो यह जरूरी नहीं कि रक्तहीन हो।”
मामले के दौरान खंडपीठ ने यूएपीए के आरोपियों से प्रधानमंत्री के खिलाफ दुनिया भर के ‘जुमले’ का इस्तेमाल करने पर भी सवाल उठाया और टिप्पणी की कि आलोचना के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ होनी चाहिए।
उमर खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इस साल मई में जस्टिस बोपन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी याचिका पर नोटिस जारी किया। इससे पहले मई में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य खंडपीठ ने सह-आरोपियों आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका खारिज कर दी। आखिरी दिन खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस के आदेश पर सुनवाई स्थगित कर दी थी, जिसने खालिद की याचिका के जवाब में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान अमरावती में दिए गए कथित विवादित भाषण, दिल्ली दंगों के मामले में उमर खालिद के खिलाफ आरोपों का आधार है। दिल्ली पुलिस के अनुसार दंगों से जुड़े कथित बड़े षड्यंत्र मामले में शामिल लगभग एक दर्जन लोगों में जेएनयू स्कॉलर और कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम शामिल हैं।
फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दंगे भड़क उठे थे। नागरिकता संशोधन अधिनियम विरोधी और सीएए समर्थक प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प ने हिंसक रूप ले लिया था। जिसमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)