राहुल गांधी, सिद्धारमैया और डीके को मानहानि का समन: क्या यह कर्नाटक की सरकार को अस्थिर करने की साजिश है?

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की एक अदालत ने मंगलवार को राहुल गांधी, सिद्धारमैया, डी.के. शिवकुमार और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के खिलाफ मानहानि मामले में समन जारी किया है। दरअसल, कर्नाटक भाजपा के सचिव एस केशव प्रसाद ने शिकायत की थी कि कांग्रेस ने विज्ञापनों में झूठे दावे किए, जिनसे भाजपा की इमेज खराब हुई। उन्होंने शिकायत में कहा, कांग्रेस ने चुनाव से पहले 5 मई को बड़े अखबारों में विज्ञापन दिए थे। इनमें कांग्रेस ने दावा किया गया था कि भाजपा सरकार 40% कमीशन लेती है और इसने पिछले 4 सालों में 1.5 लाख करोड़ लूटे हैं।

कांग्रेस के यह दावे आधारहीन, पूर्वाग्रही और मानहानि करने वाले हैं। इसके पहले 13 जून को कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार को हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे थे। डीके ने सीबीआई जांच को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई के बाद इस पर अंतरिम रोक लगा दी गई है।

14 June 23 को बेंगलुरु की एक विशेष अदालत ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मुकदमा चलाने के लिए दायर एक निजी शिकायत खारिज कर दी। शिकायतकर्ताओं शंकर सेठ व अन्य ने कहा कि वे लिंगायत समुदाय से संबंधित हैं। और जब सिद्धारमैया विपक्ष में थे तब उन्होंने वरुण निर्वाचन क्षेत्र में 2023 के आम विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मीडिया के सामने इसके खिलाफ एक अपमानजनक और मानहानिकारक बयान दिया था।

बेंगलुरु के एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने यह समन जारी किए हैं। कोर्ट ने मामले में आईपीसी की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत संज्ञान लिया है और शुरुआती बयान दर्ज करने के लिए 27 जुलाई की तारीख तय की है। यह स्पेशल कोर्ट मौजूदा और पूर्व सांसद-विधायकों के क्रिमिनल मामलों को देखती है।

कांग्रेस ने विज्ञापन में भाजपा सरकार का रेट कार्ड बताया था। इसमें कहा गया था कि सीएम पोस्ट 2500 करोड़ और मिनिस्टर की कुर्सी 500 करोड़ में मिलती है। कांग्रेस ने विज्ञापन में भाजपा सरकार का रेट कार्ड बताया था। इसमें कहा गया था कि सीएम पोस्ट 2500 करोड़ और मिनिस्टर की कुर्सी 500 करोड़ में मिलती है।

कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर 40% कमीशन लेने का आरोप लगाया था। कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान में इस मुद्दे को प्रमुखता से उछाला था। राहुल गांधी ने एक रैली में कहा था कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार की बातें करते हैं तब उनके मंच पर चारों तरफ कर्नाटक के 40% कमीशन लेने वाले नेता खड़े रहते हैं। भाजपा को 40 नंबर अच्छा लगता है। इस बार आप लोग इनको 40 सीटें दीजिएगा।

प्रियंका ने भी कर्नाटक की भाजपा सरकार को 40% कमीशन वाली सरकार बताया था। उन्होंने कहा था कि भाजपा सरकार ने जनता को बेशर्मी और बेरहमी से लूटा। प्रधानमंत्री को भी कई लोगों ने यहां की सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर चिट्‌ठी लिखी, लेकिन पीएम चुप रहे। इस अभियान का कांग्रेस को चुनाव में खासा फायदा मिला था।

40% कमीशन का आरोप लगा कॉन्ट्रैक्टर ने की थी आत्महत्या

दरअसल कर्नाटक के सिविल कॉन्ट्रैक्टर संतोष पाटिल ने 11 अप्रैल 2022 को खुदकुशी की थी। उन्होंने सुसाइड से पहले एक वॉट्सऐप मैसेज अपने दोस्तों को भेजा था। इसमें उन्होंने कहा था कि ‘कर्नाटक की भाजपा सरकार में मंत्री ईश्वरप्पा मेरी मौत के जिम्मेदार हैं। उन्हें सजा मिलनी चाहिए। मेरी पीएम, सीएम और येदियुरप्पा से गुजारिश है कि वे मेरे परिवार का ख्याल रखें।’

संतोष पाटिल ने आत्महत्या से पहले कई बार बीजेपी के सीनियर नेता और तब ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री रहे ईश्वरप्पा को भ्रष्ट बताया था और उनकी शिकायत पीएम नरेंद्र मोदी से भी की थी। बाद में ईश्वरप्पा के खिलाफ एफआईआर हुई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि पुलिस ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।

इसी घटना से पता चला था कि कर्नाटक में पेमेंट से पहले बिल पास करने के लिए 40% तक रिश्वत देनी पड़ रही है। कांग्रेस ने इसी घटना को लेकर भाजपा सरकार को 40% कमीशन लेने वाली सरकार बताया था।

कर्नाटक दक्षिण भारत का इकलौता राज्य था, जहां बीजेपी सत्ता में थी। यहां अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव में बीजेपी हार गयी। राज्य के कॉन्ट्रैक्टर्स ने इस करप्शन सिंडिकेट के खिलाफ बेंगलुरू में प्रदर्शन भी किया था।

कर्नाटक में बीते दो साल में संतोष पाटिल समेत 3 कॉन्ट्रैक्टर सुसाइड कर चुके हैं। चुनाव के पहले टीएन प्रसाद नाम के कॉन्ट्रैक्टर ने आत्महत्या की। उन्हें स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 16 करोड़ रुपए की एक स्कीम पर काम करना था। इस मामले में भी पुलिस केस दर्ज हो चुका है। टीएन प्रसाद ने काम के लिए बैंक से लोन लिया था, लेकिन सरकारी बिल क्लियर नहीं हो रहे थे। आरोप है कि इसी दवाब में उन्होंने आत्महत्या कर ली।

सिद्धारमैया के खिलाफ मानहानि का केस खारिज

बेंगलुरु की एक विशेष अदालत ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मुकदमा चलाने के लिए दायर एक निजी शिकायत खारिज कर दी। शिकायतकर्ताओं शंकर सेठ और अन्य ने कहा कि वे लिंगायत समुदाय से संबंधित हैं और जब सिद्धारमैया विपक्ष में थे तब उन्होंने वरुण निर्वाचन क्षेत्र में 2023 के आम विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मीडिया के सामने इसके खिलाफ एक अपमानजनक और मानहानिकारक बयान दिया था।

यह आरोप लगाया गया जब एक समाचार रिपोर्टर ने सवाल किया कि मुख्यमंत्री के रूप में लिंगायत उम्मीदवार का चयन करने की भाजपा की रणनीति पर उनकी क्या राय है। इस पर सिद्धारमैया ने “दुर्भावनापूर्ण बयान” देकर जवाब दिया कि पिछले मुख्यमंत्री, जो लिंगायत थे, उन्होंने राज्य को अपनी भ्रष्ट प्रकृति से खराब कर दिया है।

शिकायत में कहा गया है कि उक्त बयान में पूरे लिंगायत समुदाय की प्रतिष्ठा और नैतिक मूल्यों को आम जनता के सामने गिराया गया है। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, प्रीत जे ने खुली अदालत में उस अभियान का वीडियो फ़ुटेज देखा जिसमें कथित मानहानिकारक बयान दिया गया था।

आरोपी द्वारा दिए गए बयान पर विचार करते हुए अदालत ने कहा, “उपर्युक्त बयान से यह बहुत स्पष्ट रूप से पता चलता है कि यह बयान पूरे लिंगायत समुदाय के संबंध में नहीं है, बल्कि केवल मुख्यमंत्री के संबंध में है, जो मुख्यमंत्री के पद पर थे।

आरोपी ने लिंगायत समुदाय के सदस्यों को इस तरह से निशाना नहीं बनाया है और न ही लिंगायत समुदाय के खिलाफ कोई आरोप लगाया गया है। अदालत ने कहा कि आरोपियों द्वारा दिए गए बयान से शिकायतकर्ताओं को कोई कानूनी चोट नहीं पहुंची है और उनकी प्रतिष्ठा किसी भी तरह से कम नहीं हुई है। “चूंकि, वे पीड़ित व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए अपराध का संज्ञान लेना और मामले को आगे बढ़ाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

अदालत ने आगे फैसला सुनाया कि बयान अपने आप में मानहानिकारक नहीं है और विपक्षी पार्टी द्वारा एक बयान के रूप में दिया गया जवाब है, जो कि रिपोर्टर द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब है, “जो अक्सर राजनीति में होता है।” शिकायत को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “चूंकि, अभियुक्तों द्वारा दिया गया बयान लिंगायत समुदाय को पूरी तरह से बदनाम नहीं कर रहा है, जैसा कि शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है, उनके पास यह शिकायत दर्ज करने का अधिकार भी नहीं है। ऐसे में शिकायत टिकती नहीं है।

शिवकुमार को आय से अधिक संपत्ति मामले में बड़ी राहत

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को आय से अधिक संपत्ति मामले में हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाई कोर्ट ने सोमवार को आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई जांच पर अंतरिम रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वरले की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष शिवकुमार की दायर अपील पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया।

इस साल अप्रैल में एकल पीठ ने तत्कालीन बी.एस. येदियुरप्पा सरकार की ओर से जारी 25 सितंबर, 2019 के आदेश को चुनौती देने वाली शिवकुमार की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद हाई कोर्ट के इस फैसले से डी.के. शिवकुमार को काफी आराम मिला है।

तत्कालीन कर्नाटक सरकार की सहमति के संबंध में 3 अक्टूबर, 2020 को सीबीआई की ओर से दर्ज एक प्राथमिकी पर रोक जारी है। क्योंकि प्राथमिकी को एक अलग याचिका में चुनौती दी गई है, जिसको लेकर एक फैसला लंबित है। शिवकुमार ने तर्क दिया कि उनके एक करीबी रिश्तेदार शशिकुमार शिवन्ना की ओर से दायर एक याचिका को खारिज करने के एक समन्वय पीठ के फैसले का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि शशि कुमार एक एचएएल कर्मचारी थे।

शिवन्ना की दायर याचिका को खारिज करते हुए, हाई कोर्ट की पीठ ने कहा था कि जब कोई राज्य सरकार दिल्ली विशेष ‘पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम 1946’ के तहत सीबीआई जांच के लिए सहमति देती है तो यह एक प्रशासनिक आदेश है, जिसमें कि बदलाव की आवश्यकता नहीं है।

यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार के कर्मचारी होने के नाते, शशिकुमार का इस मामले में कोई अधिकार नहीं था। सीबीआई का दावा है कि जांच के दौरान- 1 अप्रैल, 2013 और 30 अप्रैल, 2018 – शिवकुमार और उनके परिवार के सदस्यों के पास 74.8 करोड़ रुपये की संपत्ति थी, जो कि आय के बताए गए स्रोत से कहीं ज्यादा थी।

(जे पी सिंह कानूनी मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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