ग्राउंड रिपोर्ट: दलित-मुस्लिम होने का दंश झेल रहे पुलिस प्रताड़ना के पीड़ित, ‘हुजूर’ ने हाल भी नहीं पूछा

सोनभद्र/वाराणसी। “साहब मैं दलित समाज से हूं! मेरे दो बेटे और एक बेटी है। मैं मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालती हूं। पति को पुलिस वालों ने मार डाला है। अब तो जीवन जीने की भी आस खत्म हो चुकी है। लेकिन क्या करूं बच्चों का मुंह देख कर जी रही हूं!” ये दर्द और वेदना से भरे शब्द 31 वर्षीय उस किरन देवी के हैं, जिनके पति की पुलिस यातना के दौरान मौत हो चुकी है।

सोनभद्र जिले के राबर्टसगंज कोतवाली क्षेत्र के हिन्दूवारी बरम बाबा मंदिर के पास की रहने वाली किरन देवी अतीत को याद करते हुए बताती हैं कि “17 अक्टूबर 2022 की तारीख, सोमवार का दिन था। रात के तकरीबन 7 बजे चुके थे, उस वक्त वह घर पर नहीं थीं। मोटरसाइकिल से दो पुलिस वाले उनके घर आते हैं। घर में किसी के न मिलने पर अगल-बगल के लोगों ने पुलिस वालों को बताया कि बरम बाबा मंदिर के पास उनके (किरन) सास-ससुर रहते हैं। इतना सुनने के बाद पुलिस वाले ससुर के पास पहुंच जाते हैं।”

किरन बताती हैं कि “घर पर उनकी सास निफनी देवी थीं, जिनसे पुलिस वालों ने कहा कि थाने से कागज आया है, तुम इस पर साइन कर दो तो तुम्हारा लड़का छूट कर चला आएगा। जिस पर मेरी सास बोलीं कि ‘हमें तो साइन करना नहीं आता साहब।’ थोड़ी देर बाद ससुर को बुलाया जाता है और उनसे झूठ बोलकर एक सादे कागज पर पुलिस वाले साइन लेकर चल देते हैं। साइन करने के बाद मेरे ससुर को थाने पर बुलाया गया। जब हम लोग थाने गए तो वहां बताया गया कि तुम्हारे बेटे संजय उर्फ मंगल की मौत हो गई है। वह जिला अस्पताल के चीरघर में रखा हुआ है।”

किरन आगे कहती हैं कि “साहब, इतना सुनना था कि हम लोग दहाड़ें मार कर रोने लगे। बेटे की मौत की खबर सुनते ही मेरे ससुर मौके पर ही चकरा कर जमीन पर गिर पड़े। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? यह क्या हो गया? हिम्मत कर मैं अपने सास ससुर को घर लेकर आई। दूसरे दिन 18 अक्टूबर 2022 को गांव वालों के साथ सुबह 10 बजे जब हम लोग लोढ़ी स्थित जिला अस्पताल गए तो पता चला कि डॉक्टर साहब 3 बजे आएंगे। डॉक्टर साहब के 3 बजे आने पर पोस्टमार्टम हुआ तब जाकर तकरीबन 4 बजे पति का शव मिला। जिसे लेकर हम लोग घर आए। पति के शव को अंतिम संस्कार के लिए नहलाया जाने लगा तो सभी की आंखें फटी की फटी रह गईं। पति संजय के गर्दन, सीने और पैर में चोट के निशान थे। इसे देख कर लग रहा था कि उन्हें बुरी तरह से मारा-पीटा गया है जिससे उनकी मौत हुई है।”

आंसू पोछते हुए किरन सवाल करती हैं कि “हमने पुलिस का क्या बिगाड़ा था जो इतनी बड़ी सजा जीवन भर के लिए घुट-घुट कर मरने को पुलिस ने छोड़ दिया है?”

किरन देवी

धैर्य बंधाने पर किरन फिर अपनी व्यथा सुनती है, “पुलिस प्रताड़ना से पति की हुई मौत के बाद मेरी पूरी गृहस्थी उजड़ गई है। छोटे-छोटे बच्चे हैं, वो हर वक्त पिता के बारे में पूछते हैं। तरह-तरह की मांग करते हैं। ऐसे में कुछ सूझता नहीं कि उन्हें क्या जवाब दूं, कलेजा फट कर रह जाता है। मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई है।”

16 अक्टूबर 2022 को याद कर वह कहती हैं कि “उस दिन शाम को तकरीबन 4:30 बजे उनके पति संजय का फोन मां (सास) के पास आया था। वह रोते हुए बोले थे “मां मुझे छुड़ा लो नहीं तो पुलिस वाले मुझे जान से मार देंगे”। उस दिन को याद करते हुए किरन सिसक पड़ती हैं। सिसकते हुए कहती हैं “मैं कितनी बदनसीब हूं कि पति से बात भी नहीं कर पाई। अब बच्चों के भविष्य की फिक्र लगी है, रात भर इसी चिंता में नींद नहीं आती, हर वक्त मन घबराता है।”

सोनभद्र जिले के राबर्टसगंज की निवासिनी किरन देवी की यह वेदना वास्तव में तन-मन को हिला कर रख देने के साथ पुलिसिया क्रूरता को भी दर्शाती है। किरन देवी की आज भी बस यही पुकार और विनती होती है कि जिन पुलिस वालों ने उनके पति की हत्या की है, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो। जिससे उन्हें न्याय मिले और पति की आत्मा को शांति मिले।

सिसकियों के बीच कट रहा है यातना पीड़ितों का जीवन

पुलिसिया यातना के शिकार हुए तमाम गरीबों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों एवं मुसलमानों की वेदना से जुड़ा हुआ यह कोई इकलौता मामला नहीं है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी सहित आदिवासी बाहुल्य सोनभद्र, मिर्जापुर में ऐसे पुलिस यातना के तमाम मामले हैं। जिन्हें मानवाधिकार हनन के साथ-साथ कानून व्यवस्था के लिहाज से भी उचित नहीं कहा जाएगा। पुलिस यातना के शिकार हुए पीड़ित परिवारों का दर्द यह है कि आज भी वह सिसकते हुए अपनों की याद में जीवन गुजार रहे हैं। जिन्हें सरकारी इमदाद के नाम पर आज तक फूटी कौड़ी की बात तो दूर, कोई जनप्रतिनिधि भी उनका हाल जानने नहीं पहुंचा।

शोषितों, पीड़ितों, दलितों, वंचितों के लिए लंबे समय से संघर्षरत बचाऊ राम “जनचौक” को बताते हैं कि “गरीबों, शोषितों, पीड़ितों, दलितों पर अत्याचार कम नहीं हुए हैं वो बढ़ते ही जा रहे हैं। पुलिस यातना/प्रताड़ना से जुड़े मामलों को देखा जाए तो ऐसे मामले सर्वाधिक मिलेंगे। वह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र सोनभद्र में पूर्व के वर्षों में पुलिस यातना के शिकार हुए दलित-आदिवासियों की मौत के लिए उन राजनीतिक दलों को भी दोषी ठहराते हैं जो सिर्फ उनकी लाश पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते आए हैं।”

पीड़ित परिवार

पति को जेल में मार डाला

सोनभद्र जिले के म्योरपुर थाना क्षेत्र के बलियारी गांव की उषा देवी का भी दर्द किरन से कम नहीं है। उम्र के आधे से ज्यादा बसंत देख चुकीं उषा देवी पति की मौत के गम में सूख चुकी हैं। “जनचौक” से मुखातिब होते हुए उषा देवी बताती हैं कि परिवार में एक लड़का और एक लड़की है। पति संदीप वाहन चालाक थे जिनकी कमाई से घर का खर्च किसी प्रकार चल रहा था। वो कहती हैं कि “हम भले ही गरीब हैं। लेकिन पति और परिवार के साथ राजी खुशी से जीवन व्यतीत करते आ रहे थे कि तभी अचानक फरवरी 2009 की मनहूस घड़ी ने हमारे हंसते खेलते परिवार में ऐसा खलल डाला कि उससे आज तक हम नहीं उबर पाए हैं।”

उषा के मुताबिक “उनके पति एक दिन जंगल में जलावनी लकड़ियों के लिए गए हुए थे। जहां एक लड़की से उनका झगड़ा हो गया था। जिससे बाद उस लड़की ने थाने में शिकायत कर दी थी। शिकायत पर पुलिस उनके घर आती है और पति को पकड़कर म्योरपुर थाने उठा ले जाती है। पूछने पर पुलिस कोई जानकारी नहीं देती। बच्चे पिता को पुलिस से साथ जाते देख कर रोने लगते हैं। आस-पास के लोगों की भीड़ जुट गई थी। पीछे-पीछे मैं भी भागती हुई थाने गई तो पता चला कि पड़ोस के गांव की एक लड़की ने थाने में छेड़छाड़ की तहरीर दी है।”

बकौल उषा “मैं दरोगा साहब के पैर पकड़कर बोली “साहब! लड़की झूठा इल्जाम लगा रही है। मेरे पति तकरीबन एक सप्ताह से बीमार हैं। किसी तरह खाना बनाने के लिए लकड़ी काटने जंगल चले गए थे। काफी समय से घर पर ही पड़े हैं। गाड़ी घोड़ा भी नहीं चला रहे हैं। परंतु दरोगा ने मेरी एक बात नहीं सुनी और और मेरे पति को जेल भेज दिया। जेल जाते समय मेरे पति बीमार थे। जिनका पुलिस ने इलाज करवाना भी मुनासिब नहीं समझा। इधर घर की माली हालत खराब हो रही थी, वहीं उनके पति की भी हालत जेल में खराब होने लगी थी।”

उषा आगे कहती हैं कि “इतने पैसे नहीं थे कि किसी मजबूत वकील के जरिए अपने पति को जेल से बाहर छुड़ाकर ला पाती। काफी मशक्कत के बाद किसी प्रकार बेल तो मिल जाती है। लेकिन 2012 में उन्हें सजा हो जाती है। वह जेल में ही थे कि अचानक 17 जुलाई 2016 को खबर मिली कि उन्होंने जेल में आत्महत्या कर ली है। खबर हमारे परिवार के लिए किसी बज्रपात से कम नहीं था। सूचना मिलने पर मैं सास-ससुर के साथ अस्पताल पहुंची तो गले में किसी तरह का कोई दाग नहीं था लेकिन हाथ और अन्य जगहों पर कटे का निशान साफ प्रतीत हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि उन्हें जेल में बुरी तरह से मारा-पीटा गया है। यातना दी गई है।”

इतना सब बताते हुए उषा देवी रोने लगती हैं, फिर अपनी आंखों से बहते आंसुओं को साड़ी के आंचल से पोंछते हुए कहती हैं। “अच्छा लग रहा है कि इतने दिन बीतने के बाद मेरे साथ घटी घटना को कोई सुन रहा है। इससे पहले तो किसी ने मेरी पीड़ा सुनने की कोशिश नहीं की है।” बात समाप्त होने से पहले ही वह सवाल दाग देती हैं “साहब क्या अभी भी मेरे पति को न्याय मिल सकता है?”

उषा देवी

बकरी पालन के जरिए मिला जीने का सहारा

समाज में सभी जाति व धर्म के लोगों को जीवन जीने का हक है। लेकिन पुलिसिया यातना ने पीड़ितों की जिंदगियों को बर्बाद कर दिया है। पीड़ितों को आर्थिक स्वावलंबन एवं उनके समग्र पुनर्वास के लिए भी सरकारी स्तर से कोई सहयोग न मिलने से यह समाज की मुख्य धारा से कटे हुए नजर आते हैं। भला हो उन संस्थाओं का जिनके द्वारा यातना पीड़ितों को आर्थिक स्वावलंबन एवं उनके समग्र पुनर्वास के लिए समय-समय पर हाथ बढ़ाया जाता रहा है।

पिछले दिनों वाराणसी ‘जनमित्र न्यास’ व ‘मानवाधिकार जननिगरानी समिति’ द्वारा ‘इंटरनेशनल रिहैबिलिटेशन काउंसिल ऑफ टॉर्चर विक्टिम (IRCT) व UN यूनाइटेड नेशन ट्रस्ट फण्ड फॉर टॉर्चर विक्टिम’ के आर्थिक सहयोग से यातना पीड़ितों को आर्थिक स्वावलंबन के लिए पालन हेतु उन्हें बकरियां दी गई, ताकि इसके जरिए स्वावलंबन की ओर कदम बढ़ा सकें।

गरीब, वंचित समुदाय के लिए आर्थिक स्वावलंबन कार्यक्रम के तहत सोनभद्र, वाराणसी के 20 परिवारों को बकरी पालन के लिए बकरी दी गई, ताकि वह आने वाले समय में अर्थ लाभ कमा सकें। वाराणसी जिले के बड़ागांव ब्लाक के ग्राम दीनापुर के छ: परिवारों एवं बजरडीहा, भेलूपुर थानांतर्गत दो पुलिस यातना से प्रताड़ित परिवारों को बकरी पालन के लिए दिया गया।

इसी के साथ सोनभद्र जिले के रौंप घसिया बस्ती में 12 यातना पीड़ितों एवं 3 व्यक्तियों की हिरासत में हुई मौत से हुई विधवा महिलाओं को भी बकरी पालन हेतु बकरी दी गई है। संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी ने बताया कि, “यातना पीड़ित समाज मुख्यधारा से हाशिए पर जीवन जीने को बाध्य हैं। इनकी गरिमा को बढ़ाने के लिए इन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करना जरूरी है। तभी ये समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं। इसके लिए मानव विकास सूचकांकों के नजरिए से बढ़ाने के लिए विशेष पहल और कार्यक्रम संचालन की जरूरत है।”

संस्था की मैनेजमेंट टीम की सीनियर सदस्य शिरीन शबाना खान ने कहा कि, “यातना पीड़ित लोगों को मजबूत बनाने के लिए उनके साथ लोक विद्यालयों का आयोजन करके उनके ज्ञान व्यवहार अभ्यास में सतत विकास के लिए प्रयासरत रहती है। जिससे वंचित पीड़ित समुदाय के लोग स्थाई विकास कर सकें। वह बताती हैं “बकरी पालकों को आने वाले समय में किसी भी तरह के आर्थिक संकट से मुक्ति मिलेगी। इसके लिए भी वे लोग समय-समय पर यातना पीड़ितों से मिलकर उनके दर्द और पीड़ा को साझा करने का प्रयास करते हैं ताकि ऐसे लोग अपने को उपेक्षित न महसूस करें।

यातना पीड़ितों के आर्थिक स्वाबलंबन के लिए बकरियां दी गईं।

जनमित्र न्यास, मानवाधिकार जननिगरानी समिति के निदेशक डॉ लेनिन रघुवंशी बताते हैं “हमारा प्रयास होता है कि पीड़ित परिवार आर्थिक रूप से सशक्त और स्वाबलंबन की राह पर बढ़े, ताकि वह और उनका परिवार खुशहाल जीवन यापन करे। इसके लिए यातना पीड़ितों को न्याय दिलाने के साथ उनके सहयोग और स्वावलंबन के लिए भी हम उनके साथ खड़े रहते हैं।

पुलिस यातना पीड़ितों की मनोदशा पर अपनी राय रखते हुए मंगला प्रसाद, छाया कुमारी एक स्वर में कहते हैं कि “जो काम और सहयोग का भाव पीड़ितों के प्रति जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन को रखना चाहिए वह काम संस्थाओं को करना पड़ता है। पति खोने का दर्द समेटे किरन देवी कहती हैं “यदि इन संस्था के लोगों का सहारा हमें और हमारे परिवार को न मिला होता तो हम खड़े न होते।” वो कहती हैं “बकरी पालन करके परिवार को जीने का सहारा मिला है।”

राजेन्द्र प्रसाद, ज्योति कुमारी, संजय कुमार और पिंटू गुप्ता आदि भी जुगलबंदी करते हुए संस्था के कार्यों की सराहते हुए कहते हैं कि “सोनभद्र आदिवासी बाहुल्य जनपद होने के साथ-साथ कई मूलभूत सुविधाओं से जुझता आ रहा है। इनमें यातना पीड़ितों के लिए आर्थिक स्वावलंबन एवं उनके समग्र पुनर्वास के लिए समय-समय पर संस्था द्वारा हाथ बढ़ाया जाना निश्चित तौर पर डूबते को तिनके का सहारा ही कहा जाएगा।”

सहयोग मिला तो जीने की जगी आस

सोनभद्र जनपद के 12 पुलिस यातना पीड़ितों के परिवारों को जिनमें 3 की पुलिस हिरासत में मौत हुई है। ऐसे पीड़ितों के परिवार को स्वावलंबी बनाने की दिशा में दृढ़ संकल्पित ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति’ एवं ‘जन मित्र न्यास’ द्वारा बकरी एवं सिलाई मशीन वितरण कर सहयोग का हाथ बढ़ाया गया है। इसी प्रकार वाराणसी के 6 परिवारों को जिनमें सभी दलित बिरादरी के हैं, पुलिस यातना प्रभावितों को सिलाई मशीन के साथ-साथ बकरी पालन के लिए प्रोत्साहित करते हुए बकरी प्रदान कर उनका दुख दर्द साझा किया गया है।

वाराणसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र के कुड़ी गांव के रहने वाले दलित संतोष कुमार पुलिस यातना की पीड़ा को बताते हुए सहम जाते हैं। कहते हैं “पुलिसिया कार्रवाई ने जो दर्द दिया है वह भूलने वाला नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि बकरी पालन और सिलाई मशीन मिलने से जीने की उम्मीद के साथ ही दर्द कम हुआ है।”

पीड़ित परिवारों की सहायता के लिए दी गईं बकरियां।

मेरा कुसूर क्या था कि मुझे पुलिस वालों ने जेल भेज दिया?

मेरा नाम अब्दुल जब्बार उर्फ़ नसुरुद्दीन है। मेरे पिता का नाम हबीबुल्ला है। मेरी माता का नाम-जायदा वीबी है। मैं जाति का अंसारी (मुस्लिम) हूं। बजरडीहा रजानगर थाना भेलूपुर वाराणसी का निवासी हूं। बुनकारी का कार्य करता हूं। हम लोग 5 भाई 3 बहन हैं।

 21 दिसम्बर 2019, दिन शनिवार की घटना को याद करते हुए कहते हैं “मैं अपने घर में सो रहा था। उस समय मेरा पूरा परिवार सो रहा था कि अचानक दरवाजा पीटने की आवाज आने लगी। तो पुलिस वाले बाहर से ही मां-बहन की गाली देते हुये बोले की खोल दरवाजा नहीं तो तोड़ देंगे। मेरे अब्बू दरवाजा खोलते उससे पहले ही पुलिस वालों ने बंदूक के पीछे की नाल से दरवाजा तोड़ दिया और घर में घुस आए।

लगभग 20 पुलिसकर्मी थे। कुछ सादे तो कुछ वर्दी में। सभी तलाशी लेने लगे। मैंने पूछा कि आप लोग इतनी रात को क्यों आये है? आखिर क्या जुर्म किये हैं? इतना सुनते ही एक पुलिसकर्मी ने कहा कि तुम्हारे बेटे को आन्दोलन करने का बहुत शौक चढ़ा है। अब दिखाते हैं कैसे आन्दोलन होता है। मेरे अब्बू इतना सुनकर चुप हो गये। उस समय ऐसा लग रहा था कि इस बुढ़ापे में जान ही निकल जायेगी।

मेरी भाभी रेशमा बानो व भाई अब्दुल गफ्फार के कमरे में पुलिस वाले घुस गये और भाई अब्दुल को खींचकर बाहर ले गये। जब उनसे भाई ने पूछा कि साहब समस्या क्या है? क्यों मुझे पकड़ रहे है? तो उन्होंने कहा “चौराहे पर चलो तुम्हें बताते हैं, उन्हें चौराहे पर लाया गया। आधार कार्ड चेक किया और नाम पता चलते ही जूते से मारने लगे। एक सिपाही ने कहा कि “CAA वाले में ये भी गया होगा इसको भी ले चलो”। इतने में दूसरे सिपाही ने कहा कि “गया जरूर होगा लेकिन पीछे छुपकर खड़ा होगा”। इस बीच हमें वे लगातार ड़ंडों से मारते जा रहे थे।

जब मेरे भाई अब्दुल ने हॉस्पिटल का पर्चा दिखाते हुए कहा कि मैं अपने ससुर का इलाज करा रहा था। आंदोलन में कैसे चले जायेंगे? लेकिन पुलिसवाले सुन नहीं रहे थे। उसी दौरान पहुंचे दरोगा अजय प्रताप ने कहा कि यह सही कह रहा है इसे छोड़ दो।

यातना पीड़ित परिवार की सदस्य।

22 दिसम्बर दिन रविवार की सुबह को हारून हाजी से दरोगा ने कहा कि अपने दामाद के भाई को हाजिर करवा दीजिये। दरोगा की बात सुनकर हारून हाजी ने कही आप उन्हें साथ में लेकर जाईए। मुझे लेने के लिए हाजी साहब के घर सिपाही को भेजा गया। सिपाही ने कहा, चलो तुम्हें कोई मारेगा नहीं हम लोग हैं। मुझे डर भी लग रहा था न जाने क्यों मुझे सिपाही दिलशाद खान की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था? सिपाही मुझे अपने साथ भेलूपुर थाने ले गया।

सिपाही ने थाने में कहा कि इसको मारना नहीं अजय प्रताप दरोगा ने भेजा है। सिपाही के जाने के बाद दूसरे दरोगा आये और कहने लगे कि “मेरे पाले में जो पड़ता है, मैं उसको बिना प्रसाद दिये जाने नहीं देता हूं।” और दरोगा ने मुझे मारना शुरु कर दिया। मैने गिड़गिड़ाते हुए कहा। CAA/NRC होता क्या है? मैं तो जानता भी नहीं। काफी पीटने के बाद मुझे हॉस्पिटल लेकर गए।

मेडिकल कराया और जो चोट पुलिस के मार से लगी थी। दरोगा ने डॉक्टर से कहा कि मेडिकल मे लिख दो कि उपद्रवियों के भगदड़ में हल्की फुल्की चोट आयी है। जब मेडिकल बन गया तो 5 बजे के लगभग चालान कर के जेल भेज दिया गया। उस समय मेरे आंखों से आंसू बह रहे थे, मन ही मन सोच रहा था अब मुझे जेल भेजा जा रहा है। जब जेल के बाहर इतनी मानसिक, शारीरिक परेशानी दी जा रही है तो जेल के अंदर क्या होगा? उस समय मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। बस आंखों से आंसू टपक रहा था।

जेल भी यातना से कम नहीं

24 दिन बाद जेल से 14 जनवरी को जमानत हुई, 15 को रिहाई। जेल में घर से कोई मिलने जाता था तो पुलिस वाले पैसा मांगते, कहते थे तुम्हारे घर से मिलने आये है जो पैसा मिला है, उसमें से आधा हमको दो। मैं मार के डर से पैसा दे देता था। जब मैं कहता की साहब इतना ही पैसा है तो मेरे ऊपर यकीन न करके मेरी तलाशी ली जाती थी।

मेरे परिवार के लोग 1 हजार रुपये जेल में दिये थे कि मुझे काम न करना पड़े। इसलिए मुझसे काम नहीं कराया जाता था। बैरक में सोने का मन नहीं करता था। जहां पर लोग चप्पल जूता उतारते वहीं पर सुलाया जाता था। एक बैरक में 150 लोग होते थे। इसलिए ज्यादा दिक्कत होती थी। किसी को सोने को भी नहीं मिलता था लोग बैठकर रात गुजारते थे। लोग झपकियां ले लेकर गिरते रहते थे।

पुलिस ने फांसा, जेल में मार पड़ी, बेटे की गई जान

सोनभद्र के चोपन थाना क्षेत्र के मारकुंडी गांव निवासी जान्ती देवी पत्नी महेंद्र प्रसाद को बेटे के खोने का गम है। उनका आरोप है कि पहले पुलिस ने दलाल के इशारे पर उनके बेटे को मारा-पीटा फिर जेल भेज दिया। जहां साल 2021 में कारागार जिसे सुधार गृह कहा गया। उम्मीद थी कि बेटा ठीक होगा। कुछ ही दिनों में कानूनी कार्रवाई के बाद वह बाहर आ जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं बाहर आई तो बेटे के मौत की खबर जो आज भी सीने में दर्द बना हुआ है। यह तभी दूर होगा जब जेलर और उसको (बेटे को) जेल भेजने वाले पुलिस वाले जेल में होंगे।

(सोनभद्र/वाराणसी से संतोष देव गिरि की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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