झारखंड: एक ऐसी रेलवे क्रॉसिंग जहां चार दशक से दुर्घटनाओं को झेलने को मजबूर हैं ग्रामीण

रांची। रामगढ़ जिले के शहरी क्षेत्र से मात्र 2 किमी. की दूरी पर है अरगडा रेलवे स्टेशन और रांची रोड रेलवे स्टेशन के बीच स्थित पोल संख्या 94/5-4, जो लगभग 60-70 गांवों के लोगों के आवागमन का केन्द्र है। जहां से प्रतिदिन लगभग 30-35 बार मालगाड़ी व पैसेंजर ट्रेनें गुजरती हैं। बावजूद इसके न तो यहां रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक है और न ही ओवर ब्रिज। जिसके कारण आए दिन यहां दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

इस क्रॉसिंग से आते-जाते पालतू जानवर रेल गाड़ी की चपेट में आकर मारे जाते हैं। कभी-कभी क्रॉसिंग पार कर रहे दुपहिया और चार पहिया वाहन रेल लाइन में फंस जाने की वजह से दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। चूंकि चालक ऐसी स्थिति में वाहन छोड़कर भाग जाते हैं इसलिए उनकी जान बच जाती है।

इस रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक या फ्लाई ओवर ब्रिज क्यों नहीं है? यह रेल लाइन कब से है? इस क्रॉसिंग का रास्ता कितना वैध या अवैध है? जानने के लिए जब हम रेलवे क्रॉसिंग पर गये और आने-जाने वालों से बात की, तो जो मामला उभर कर सामने आया वह काफी चौकाने वाला रहा।

इस रेलवे क्रॉसिंग से होकर गुजरने वाले गांवों में मुख्य रूप से नगर परिषद का फूलसराय, मनुआ सहित 8 पंचायत के लगभग 60-70 गांव आते हैं, जिनको रोज इस रेल लाइन क्रॉसिंग से आना जाना पड़ता है।

सबसे खतरनाक स्थिति तब होती है जब कोहरा छा जाता है। लोग जान को जोखिम में डाल कर क्रॉसिंग पार करते हैं। उस वक्त इतना जरूर होता है कि वहां गुजरने वाली ट्रेनें दूर से सीटी बजाती आती हैं। लेकिन ऐसी स्थिति पर ग्रामीणों में इस बात की आशंका भी बनी रहती कि अगर किसी कारण वश ट्रेन की सीटी नहीं बजी तो बड़ी दुर्घटनाओं को नहीं टाला जा सकता है।

गांव की ओर से आते हुए क्रॉसिंग पर सोरेन बेदिया और किस्टो राम बेदिया मिल गए। उनसे मामले पर बातचीत हो ही रही थी, कि कई अन्य लोग- जिनमें बसंत बेदिया, नौशाद अंसारी, ताजेन्द्र बेदिया (पार्षद प्रतिनिधि), शहबाज अंसारी, इंद्रदेव राम (वार्ड पार्षद नं0-10) योगेश बेदिया (अध्यक्ष नगर परिषद रामगढ़) इम्तियाज अंसारी, मुस्ताक अंसारी, कारू साव- भी खडे हो गए और अपनी बातें बताना शुरू कर दिए।

जब उन्हें पता चला कि हम उनकी समस्या जानने आये हैं तो उनमें से ताजेन्द्र राम बेदिया- जो 10 नं वार्ड के पार्षद इन्द्रदेव राम के पुत्र हैं- ने इस क्रॉसिंग पर रेल फाटक या फ्लाई ओवर ब्रिज की मांग से संबंधित आन्दोलन व उस बावत सरकार, जनप्रतिनिधियों और संबंधित अधिकारियों को दिए गए पत्र और उनके द्वारा दिए गए आश्वासन की पूरी फाइल लाकर दिखाई।

जिसमें साफ दिखा कि क्षेत्र के लोगों ने इस क्रॉसिंग पर सुरक्षा की मांग को काफी वैधानिक तरीके से रखा है और संबंधित विभाग ने इनकी मांग को जायज भी बताया है। बावजूद इसके इनकी समस्या का समाधान आज तक नहीं किया गया।

कुछ कागजात देखने के बाद हमने लोगों से बातचीत शुरू की। रेल क्रॉसिंग से सटे गांव फूलसराय के निवासी किस्टो राम बेदिया ने बताया कि ‘देश में 1909 में जो सर्वे सेटलमेंट हुआ था उस सर्वे के नक्शे में यह रास्ता जो आज रेलवे क्रॉसिंग के अंतर्गत है वह दर्ज है। जबकि रेलवे लाइन को इधर से 1936 में गुजारा गया है। आज इस रास्ते से 60 से 70 गांव के लोगों का आना जाना होता है’।

वो बताते हैं कि ‘अगर आने-जाने वालों की संख्या की बात करें तो रोज लगभग 20 से 25 हजार लोग इधर से गुजरते हैं। लोग रोजगार के लिए रामगढ़ शहर के प्रशासनिक कार्यालयों और औद्योगिक क्षेत्र की ओर जाते हैं। हम ग्रामीण बहुत पहले से रेलवे से मांग करते आ रहे हैं कि 1909 के सर्वे सेटलमेंट में यह हमारा रास्ता है, इसलिए इसकी वैकल्पिक और सुरक्षित व्यवस्था की जाए’।

उन्होंने कहा कि ‘रेलवे विभाग को कई बार ज्ञापन दिया जा चुका है कि इस पर फ्लाई ओवर बनाया जाए या रेलवे फाटक लगाया जाए। रेलवे विभाग के अधिकारियों ने लिखित आश्वासन भी दिया लेकिन यह आश्वासन केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गया। कई वर्ष बीत गए लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। जबकि यहां लगातार दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है’।

फूलसराय निवासी नौशाद अंसारी ने बताया कि ‘इस रेल क्रॉसिंग पर फाटक की मांग को लेकर मरहूम मो० मुइद्दीन अंसारी ने 1983 में आन्दोलन शुरू किया था। तब तत्कालीन बिहार सरकार ने आश्वासन दिया था कि यहां रेल फाटक लगेगा। जिसका आधा खर्च राज्य सरकार और आधा खर्च केन्द्र सरकार वहन करेगी। लेकिन वह आश्वासन आज तक आश्वासन ही रह गया है। जबकि 2000 में झारखंड अलग राज्य का गठन भी हो गया’।

उन्होंने कहा कि ‘यहां आए दिन जानवर ट्रेन की चपेट में आते रहते हैं। कई बार ऐसा हुआ है कि मोटरसाइकिल से आने जाने के क्रम में मोटरसाइकिल बंद हो गई है और अचानक ट्रेन भी आ गई है तब मोटरसाइकिल सवार मोटरसाइकिल छोड़कर भाग गए और मोटरसाइ‌किल चूर-चूर हो गई। ऐसा बराबर होता रहता है। इस तरह की घटनाएं चार पहिया वाहनों के साथ भी हुई हैं’।

ताजेन्द्र राम बेदिया कहते हैं कि ‘हमारे पूर्वज 80 के दशक से यहां रेल फाटक की मांग करते आ रहे हैं। रेलवे विभाग से लेकर राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन को भी मांग पत्र दिया गया है, लेकिन सिवाय आश्वासन के अभी तक कुछ नहीं मिला है। जबकि इस रास्ते से रोजाना 60-70 गावों के लोगों का आना जाना होता है’।

वो कहते हैं कि ‘लोग शहर की ओर रोजगार के लिए जाते हैं। वहीं छात्र भी पढ़ाई को लिए रामगढ़ जाते हैं। चिकित्सा के लिए भी लोग शहरी क्षेत्र में जाते हैं। ये तमाम आवश्यक सेवाएं हैं, जिसको लेकर कई बार यहां आन्दोलन हुआ है, रेल रोकी गयी है, धरना प्रदर्शन भी किया गया है। इसके बाद आश्वासन तो मिला लेकिन वह केवल आश्वासन तक ही सिमट कर रह गया’।

रामगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष योगेश बेदिया कहते हैं कि ‘इस रास्ते से जिन 60-70 गांव के लोगों का आना जाना है वे गांव के लोग काफी गरीब हैं और वे रोजगार के लिए रामगढ़ शहरी क्षेत्र में जाते हैं। यह बात कई बार यहां के जनप्रतिनिधियों- विधायक व सांसद को भी बताई गई है। उन्होंने आश्वासन भी दिया है कि वे सरकार से बात करेंगे। लेकिन इस मामले पर न तो केन्द्र सरकार संवेदनशीलता दिखाती है न ही राज्य सरकार।

ग्रामीण बसंत राम बेदिया ने बताया कि हमारा यह रास्ता मुगलों के काल से है, जिसका 1909 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सर्वे सेटलमेंट करके नक्शा भी तैयार किया गया, जिसमें भी इस सड़क का दर्शाया गया है। यह सड़क पूरी तरह वैधानिक है, इसलिए हमलोग फाटक या फ्लाई ओवर ब्रिज की मांग कर रहे हैं। लेकिन रेलवे व सरकार द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद भी हमारी मांग पूरी नहीं जा रहीं है। दूसरी तरफ रेलवे बिना किसी सूचना के बड़ी चालाकी से इस रास्ते को बैरियर लगाकर बंद करने कोशिश भी करता रहा है, जिसे हम ग्रामीणों ने नाकाम किया है’।

वे कहते हैं कि ‘यह कौन सा चरित्र है कि एक तरफ रेलवे आश्वासन देता है कि यहां फ्लाई ओवर ब्रिज का निर्माण होगा और दूसरी ओर उसके अधिकारी चुपके से इसे बंद करने की साजिश भी करते हैं। रेलवे ने फ्लाई ओवर ब्रिज का नक्शा भी बनाया है और हम ग्रामीणों को भी बताया और दिखाया है’। बसंत कहते हैं कि ‘रेलवे का यह दोहरा चरित्र हम ग्रामीणों की समझ में नहीं आ रहा है’।

बताते चलें कि यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। यहां जहां बेदिया जनजाति की बहुलता है वहीं अल्पसंख्यक समुदाय की भी संख्या काफी है। इसी क्षेत्र के मनुवा गांव निवासी अलीमुद्दीन अंसारी की माॅब लिंचिंग कर 29 जून 2017 को हत्या कर दी गई थी। यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था।

उक्त क्रॉसिंग से छात्र, मजदूर, रामगढ़ में काम करने वाले लोगों का लगातार आना जाना रहता है। दो पहिया वाहनों सहित बड़ी बड़ी गाड़ियों भी आना जाना लगा रहता है। क्योंकि इन गांवों के इर्द-गिर्द कई फैक्ट्रि‌यां भी हैं, जिनके उत्पादित माल की ढुलाई भी इसी रास्ते से होती है। गांवों में ईंट बालू ले जाने का रास्ता भी यही है। ऐसे में दुर्घटना की संभावना बराबर बनी रहती है। बावजूद इसके सरकारी महकमे की उदासीनता क्षेत्र के लिए काफी घातक है।

(विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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