ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तराखंड में टनलों के ब्रेकथ्रू के बीच तबाह हो रहे दर्जनों गांव

देहरादून। उत्तराखंड में इन दिनों ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के टनलों के ब्रेकथ्रू के उद्घाटनों का दौर चल रहा है। ब्रेकथ्रू यानि कि टनल आरपार हो जाना। समाचार माध्यमों में लगातार इन टनलों के ब्रेकथ्रू की खबरें छप रही हैं। कभी मुख्यमंत्री दीप जलाकर किसी टनल के ब्रेकथ्रू का उद्घाटन कर रहे हैं तो कभी रेलवे विकास निगम के अधिकारी समारोह आयोजित करके इस तरह के उद्घाटन कर रहे हैं। एक-एक ब्रेकथ्रू की खबरें कई-कई दिनों तक मीडिया पर छाई हुई हैं।

इसी तरह के एक ब्रेकथ्रू का उद्घाटन बीते 1 अक्टूबर को किया गया। यह ब्रेकथ्रू बदरीनाथ रोड पर श्रीनगर के पास श्रीकोट-गंगनानी से स्वीत के बीच 2 किमी लंबी टनल का था। बाकायदा प्रेस को बुलाया गया और फोटो वीडियो करवाये गये। अखबारों और न्यूज चैनलों पर कई दिनों तक यह खबर छाई रही।

इससे पहले भी पिछले एक वर्ष से ब्रेकथ्रू की कई खबरें आती रही हैं। पिछले वर्ष 10 अक्टूबर को गूलर से शिवपुरी के बीच राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दीप जलाकर 1.8 किमी लंबी टनल के ब्रेकथ्रू का उद्घाटन किया गया था। 125 किमी लंबी इस रेलवे लाइन में 11 टनल बननी हैं। समाचार माध्यमों के अनुसार अब तक 6 टनलों का ब्रेकथ्रू हो चुका है।

इसमें संदेह नहीं कि बदरीनाथ-केदारनाथ तीर्थयात्रा के साथ ही सामरिक दृष्टि से भी यह रेलवे लाइन बेहद महत्वपूर्ण है। समाचार माध्यमों में टनलों के आर-पार हो जाने की खबरें बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाना बुरा भी नहीं है। लेकिन, इन टनलों के ब्रेकथ्रू की खबरों के बीच उन गांवों का जिक्र कहीं नहीं है जो इस रेलवे लाइन के कारण तबाह हो रहे हैं। इन गांवों में लोगों के घर ढहने के कगार पर हैं, पानी के स्रोत सूख गये हैं और खेत धंस गये हैं।

अटाली गांव का पानी का प्राकृतिक स्रोत, जिसमें अब नाममात्र का पानी आ रहा है।

ग्रामीण इन समस्याओं को लेकर धरना-प्रदर्शन भी कर चुके हैं। कई लोग अपने घर-गांव छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन न तो रेल विकास निगम उनकी तरफ ध्यान दे रहा है, न प्रशासन। मीडिया भी इन गांवों के दुख-दर्द में शरीक नहीं है।

‘जनचौक’ ने टनलों के ब्रेकथ्रू की खबरों के बीच रेलवे लाइन से सबसे ज्यादा प्रभावित में से एक अटाली गांव का जायजा लिया। यह गांव ऋषिकेश-बदरीनाथ मोटर मार्ग पर ब्यासी के पास है। रेलवे टनल के ठीक ऊपर बसा अटाली गांव राजधानी देहरादून से करीब 75 किमी दूर है।

मोटर मार्ग छोड़ते ही हम अटाली गांव के लिए चढ़ाई चढ़ने लगे तो टीन की शीटों से दोनों ओर से कवर किया गया एक पतला रास्ता मिला। इस रास्ते के एक तरफ रेलवे की टनल बन रही है तो दूसरी तरफ करीब 200 मीटर गहरी खुदाई कर दी गई है और सीमेंट कंक्रीट की दीवार बनाई गई है। इसी संकरे रास्ते पर प्रवीन सिंह पुंडीर से मुलाकात हुई।

प्रवीन सिंह पुंडीर अटाली की ग्राम प्रधान दीपा देवी के पति हैं। वे जल्दी में हैं और किसी काम से जा रहे हैं। लिहाजा उनसे ज्यादा बात नहीं हो पाई, लेकिन उन्होंने गांव के जयसिंह पुंडीर को फोन करके हमें गांव की स्थिति दिखाने के लिए कह दिया। कुछ ऊपर चढ़कर जयसिंह पुंडीर मिल गये। उनके साथ हम उनके घर पहुंचे। जयसिंह पुंडीर के घर से सिर्फ 50 मीटर आगे टीन की शीटों से कवर किया गया है और इन चद्दरों के ठीक नीचे करीब 200 मीटर खाई खोद दी गई है।

रेलवे लाइन को कवर कर बनाया गया अटाली गांव का रास्ता।

खाई के एक तरफ रेलवे की टनल बन रही है और दूसरी तरफ ब्यासी स्टेशन निर्माणाधीन है। ब्यासी इस रेलवे लाइन के उन स्टेशनों में शामिल है, जहां प्लेटफार्म टनल के बाहर होंगे। जयसिंह पुंडीर के अनुसार रेलवे प्रोजेक्ट में उनके कुछ खेतों का अधिग्रहण किया गया था। इसका मुआवजा मिला था। मुआवजे की राशि से मकान दुरुस्त किया था, लेकिन घर के ठीक नीचे 200 मीटर से ज्यादा गहरी खाई खोद दिये जाने के कारण मकान धंस गया है और जगह-जगह दरारें आ गई हैं। दरारें लगातार चौड़ी हो रही हैं।

गांव में ही हमें गोविन्द सिंह चौहान मिले। उनका घर रेलवे लाइन से करीब 100 मीटर दूर है। रेलवे लाइन की खाई और उनके घर के बीच कुछ खेत हैं, लेकिन खेतों में चौड़ी-चौड़ी दरारें हैं। ये दरारें गोविन्द सिंह चौहान के घर तक पहुंच गई हैं। उनके और उनके आसपास के सभी घर असुरक्षित हो गये हैं। वे हमें एक-एक कर सभी घरों में ले गये और दीवारों, छतों और फर्श पर पड़ी दरारें दिखाईं।

गांव वालों के अनुसार सबसे पहले अटाली में पिछले वर्ष 25 दिसम्बर को दरारें देखी गई थीं। सबसे बड़ी दरार रेलवे लाइन के लिए बनाई गई कंक्रीट की दीवार से शुरू होकर खेतों तक नजर आई थी। अगले कुछ दिनों में रेलवे की दीवार और खेतों की दरारें लगातार चौड़ी होती गईं और घरों में भी दरारें आने लगीं। इसकी सूचना राजस्व विभाग को दी गई।

7 जनवरी को राजस्व विभाग के कुछ कर्मचारी आये और फौरी तौर पर मुआयना करके चले गये। 24 जनवरी को राजस्व विभाग और रेल विकास निगम की टीम मुआयना करने आई। प्रभावित घरों पर मकान नंबर, तारीख और विभागों के नाम अंकित करके चली गई। इससे पहले अगस्त 22 में भी इसी तरह के निशान घरों पर लगाये गये थे। घरों की दीवारों पर अब भी ये निशानदेही मौजूद है, लेकिन हुआ कुछ नहीं।

अटाली गांव में खेतों में पड़ी दरारों का मुुआयना करता ग्रामीण।

24 जनवरी के बाद न तो राजस्व विभाग का कोई कर्मचारी देखने आया और न ही रेल विकास निगम ने अटाली गांव की सुध ली। ग्रामीणों ने पता किया तो बताया गया कि घर ठीक करने या दूसरा घर बनाने पर जो खर्च आएगा, उसका 10 फीसदी ही रेल विकास निगम मुआवजा देगा। जिसे गांव वालों ने लेने से इंकार कर दिया। अटाली गांव में जो खेत रेलवे लाइन के काम आने से बच गये हैं उनमें या तो दरारें हैं। नहरें भी टूटी-फूटी और बेकार हो चुकी हैं।

जयसिंह पुंडीर के अनुसार “अटाली गांव रेलवे लाइन का काम शुरू होने से पहले फसलों से लहलहाता गांव था। गेहूं, धान, मक्की, दालें भरपूर होती थीं। इतना अनाज हो जाता था कि ज्यादातर लोग बेचते भी थे। वे हमें गांव के पुराने प्राकृतिक पानी के स्रोत पर ले गये।”

वह बताते हैं कि “इस स्रोत से पहले इतना पानी आता था कि पूरे गांव के खेतों की सिंचाई हो जाती थी। इसी स्रोत से छोटी-छोटी नहरें खेतों तक पहुंचाई गई थीं। अब यहां आधा इंच पानी भी नहीं रहा। रेलवे लाइन का काम शुरू होने के साथ ही इस स्रोत का पानी कम होने लगा। यहां आधा दर्जन से ज्यादा चश्मों से हर मौसम में पानी आता था, लेकिन अब सिर्फ एक स्रोत से नाममात्र का पानी आ रहा है। यह पानी गांव के पीने के लिए भी कम पड़ जाता है।”

ग्राम प्रधान दीपा देवी बताती हैं कि “भरा-पूरा और उन्नत गांव था अटाली। अन्न की कभी कोई कमी नहीं रहती थी। अब आधी खेती रेल लाइन में चली गई। जो कुछ बची थी, उसके एक हिस्से में चौड़ी दरारें हैं। इसके बाद भी यदि कोई खेत सही-सलामत बचा है तो पानी न होने से उनमें भी फसल नहीं हो रही है।”

कृष्णा चौहान के साथ हम उन खेतों में गये, जिनमें दरारें पड़ी हुई हैं। दरारों की शुरुआत टीन की शीटों के दूसरी तरफ रेलवे की कंक्रीट वॉल से होती है। कंक्रीट वॉल पर सबसे बड़ी दरार करीब 2 मीटर चौड़ी है। यह दरार आगे बढ़ते हुए खेतों तक और फिर घरों तक पहुंच गई है। खेत 2 से 4 मीटर तक धंसे हुए हैं।

रेलवे की टनल के ठीक ऊपर फटी कंक्रीट की दीवार।

कृष्णा चौहान बताते हैं कि “जनवरी के बाद दरारों की चौड़ाई बढ़नी कुछ कम हुई थी, लेकिन बरसात में दरारें और चौड़ी हुई हैं।” वे कहते हैं कि “फिलहाल ऊंची घास के कारण दरारों का ठीक से अंदाजा नहीं हो पा रहा है। घास सूख जाने के बाद ही असली स्थिति का पता चल पाएगा।”

अटाली गांव अकेला नहीं है, जहां प्राकृतिक जलस्रोत सूख गया है। रेलवे लाइन के ऊपर टिहरी जिले की दोगी पट्टी के कई अन्य गांवों में भी यही स्थिति पैदा हो गई है। जनचौक ने कुछ अन्य गांवों के बारे में भी जानकारी ली और लोगों से बातचीत की। लोड़सी गांव के ग्राम प्रधान अनिल चौहान ने बताया कि “जलस्रोतों का पानी तेजी से सूख रहा है। हालात ये हैं कि हर घर नल परियोजना के तहत जिस जलस्रोत से पाइप लाइन बिछाई गई थी, वह जलस्रोत सूख गया है और परियोजना ठप पड़ गई है।”

अनिल चौहान के अनुसार “पहले केवल गर्मी के दो महीनों में पानी की कमी होती थी। अब लगातार पानी की कमी बनी हुई है। चमेली गांव में दो प्राकृतिक जलस्रोत थे। पिछले दो वर्षों में एक पूरी तरह सूख गया है, दूसरे में पहले की तुलना में आधा से कम पानी आ रहा है। चमेली के आसपास के दर्जनभर दूसरे गांवों में भी लगभग यही स्थिति है। कई गांवों में लोग दूर-दूर के जलस्रोतों और अलकनंदा नदी से खच्चरों से पानी ले जा रहे हैं।”

काकड़सैंण गांव के मोर सिंह पुंडीर बताते हैं कि “रेलवे टनल के ठीक ऊपर दर्जनों गांव हैं। सभी गांवों में पानी के स्रोत सूख रहे हैं।” वे कहते हैं कि “बदरीनाथ रोड पर ढिंगणी नामक जगह पर टनल का एग्जिट प्वॉइंट है। इस एग्जिट से 8 इंच पानी लगातार बाहर निकल रहा है। हमें ब्यासी के पास भी करीब 6 इंच पानी बहता दिखाई दिया।”

जलस्रोत सूख जाने से अटाली गांव की नहरें से सूख गई हैं।

ग्रामीणों के अनुसार अटाली, सिंगटाली, कोडियाला, गूलर, शिवपुरी के पास भी कई जगहों से इसी तरह से पानी बह रहा है। लोगों का कहना है कि “पहले जो पानी ऊपरी हिस्सों में प्राकृतिक जलस्रोतों से निकलता था, वह रेलवे टनल बनने से नीचे रिस रहा है और टनल में भर रहा है। ग्रामीणों के अनुसार टनल में जगह-जगह मोटर पंप लगातार इस पानी को एग्जिट प्वाइंट से बाहर फेंका जा रहा है।”

इस संबंध में जनचौक ने हिमालयी मामलों के जानकार प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल से बात की। उन्होंने बताया कि “टनल बनने से ऊपरी क्षेत्रों में पानी के स्रोत सूखने और नीचे के क्षेत्रों में अचानक पानी आने के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं।” वे कहते हैं कि “बिना अध्ययन के यह कह पाना संभव नहीं है कि दोगी पट्टी के गांवों में प्राकृतिक जलस्रोत सूखने का कारण रेलवे लाइन की टनल हैं या कुछ और।”

उनका कहना है कि “2020 में इस तरह की समस्या नीति आयोग के सामने भी रखी गई थी। आयोग ने जोर देकर कहा था कि टनल बनाने के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाए कि संबंधित क्षेत्र में प्राकृतिक जलस्रोतों पर इसका असर न पड़े।” डॉ. जुयाल के अनुसार “सुरंगों के कारण जलस्रोत सूखने की संभावना तब बन सकती है, जब सुरंग बनाते समय ब्लास्ट किये जाएं। ऐसे में जमीन के अंदर की दरारें चौड़ी हो जाती हैं और इनसे पानी रिसने लगता है।”

ऋषिकेश-बदरीनाथ रेल लाइन को प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जा रहा है। यह बात अलग है कि यह योजना कांग्रेस के कार्यकाल में बनी थी और कांग्रेस के कार्यकाल में ही गौचर में इस परियोजना का शिलान्यास भी हुआ था। 125.20 किमी लंबी इस रेलवे लाइन का 105.47 किमी हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा। बाकी हिस्सा पुलों के ऊपर होगा।

पूरे रेल मार्ग पर 11 सुरंगों और 35 पुलों का निर्माण किया जा रहा है। फिलहाल दावा किया जा रहा है कि 6 सुरंगों का ब्रेकथ्रू हो गया है। यानी वे आर-पार हो गई हैं। लेकिन अभी बाकी सुरंगें खोली जानी है और कई अन्य गांवों में तबाही आनी बाकी है।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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anjana
anjana
Guest
6 months ago
पिछले कुछ सालों से अपने देश में जो कुछ भी अच्छा काम होता दिखे उसका क्रेडिट मोदी जी ले जाते है और बुराई नेहरू पर थोप देते है.
रेलवे के टनल बनने से जिन घरों में दरारें आये है या आना बाकि है, उसका ठीकरा भी नेहरू पर ही फूटेगा या कोई इंस्पेक्शन होगी?