दबाव के आगे झुका विश्वभारती प्रशासन, तीनों पट्टिकाओं को हटाने का किया फैसला

नई दिल्ली। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने भारी विरोध के बाद संगमरमर की उन तीन पट्टिकाओं को हटाने का फैसला किया है जिसमें गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर का नाम नहीं था। यह पट्टिका यूनेस्को द्वारा विश्वभारती विश्वविद्यालय को ‘विश्व विरासत स्थल’ की सूची में शामिल करने के बाद लगाया गया था। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा स्थापित तीन संगमरमर पट्टिकाओं में चांसलर नरेंद्र मोदी और वाइस चांसलर बिद्युत चक्रवर्ती के नाम अंकित थे, लेकिन विश्वविद्यालय के संस्थापक रबींद्रनाथ टैगोर का नाम नहीं था।

गुरुदेव टैगोर का शिलपट्ट पर नहीं होने से परिसर के छात्रों और प्राध्यापकों में भारी आक्रोश था। संस्थान के छात्रों और प्रोफेसरों के विरोध के चलते अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन पट्टिकाओं को हटाने जा रही है। फिलहाल प्रशासन ने पट्टिकाओं के हटाने का आधिकारिक कारण नहीं बताया है। लेकिन यह ज़रूर कहा कि उन पट्टिकाओं को “अस्थायी” तौर पर स्थापित किया गया था।  

पट्टिकाओं को हटाने की पुष्टि करते हुए विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी महुआ बनर्जी ने बताया कि “ये पट्टियां कभी भी स्थायी नहीं थीं। अब हम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की पट्टिका का इंतजार कर रहे हैं, संभावना है कि इस महीने के अंत तक वह हम तक पहुंच जाएगी। जैसे ही हम उन्हें प्राप्त करेंगे, हम अपनी पट्टिकाओं को एएसआई टैबलेट से बदल देंगे।”

महुआ बनर्जी ने आगे कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की पट्टिकाओं के आ जाने के बाद उसे विरासत क्षेत्र में लगाया जायेगा, और यूनेस्को के अपने शिलालेख भी लगाएं जाएंगे।

अब जिसे महुआ बनर्जी ने “अस्थायी” स्थापनाएं कहा था, वह वास्तव में साढ़े तीन गुणा ढाई फीट की सफेद संगमरमर की स्लैब हैं, जिसकी मोटाई छह इंच से कम नहीं है। प्रत्येक को कंक्रीट के आधार पर स्थापित किया है, जिनकी जमीन से ऊंचाई लगभग तीन से साढ़े तीन फीट है। जबकि पट्टिकाओं पर “यूनेस्को द्वारा लिखित विश्व विरासत स्थल” लिखा हुआ है, जिसके बाद मोदी और चक्रवर्ती का नाम अंकित है।

इन तीन समान पट्टिकाओं को उपासना गृह (कांच का प्रार्थना कक्ष), आमरा कुंजा (आम का बाग जहां विश्वविद्यालय का वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित होता है) और रबींद्रनाथ भवन परिसर, जिसमें टैगोर के पांच आवास और एक संग्रहालय के सामने स्थापित किया गया था।

स्थानीय बोलपुर बाजार में संगमरमर विक्रेताओं के मुताबिक प्रत्येक संगमरमर के टैबलेट का अनुमानित लागत 15,000 रुपये है। जिसमें उनके आधारों के निर्माण की लागत शामिल नहीं है।

इसके अलावा, पट्टिकाओं से टैगोर का नाम होने से नाराज लोगों की प्रतिक्रिया को देखते हुए विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने प्लेटों को नष्ट होने या क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए निजी सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया है।

शांतिनिकेतन को 17 सितंबर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किए जाने के बाद पिछले सप्ताह शिलालेख लगाए गए थे। “क्योंकि शांतिनिकेतन ऐतिहासिक इमारतों, परिदृश्यों और उद्यानों, मंडपों, कलाकृतियों और निरंतर शैक्षिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक समूह है। जो एक साथ इसके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को व्यक्त करते हैं।” और शांतिनिकेतन इस प्रतिष्ठित टैग को हासिल करने वाली देश की 41वीं साइट बन गई है।

जबकि टैगोर को अपनी पट्टिकाओं से नज़रंदाज करने के विश्वविद्यालय के कदम से विश्वभारती से जुड़े  लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जो टैगोर के शांतिनिकेतन के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। देश के कुछ विपक्षी दलों ने भी इस मामले पर तीखी आलोचना की थी।

20 अक्टूबर को टीएमसी सांसद जवाहर सरकार ने एक्स पर पोस्ट किया था कि “यूनेस्को ने विशेष रूप से कहा कि वे शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर स्थल घोषित करके रबींद्रनाथ टैगोर और उनकी अद्वितीय विरासत का सम्मान कर रहे हैं। एक महान वीसी और उनके बॉस को लगता है कि यूनेस्को उनका सम्मान कर रहा है।”

कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने पीएम नरेंद्र मोदी को संबोधित विरोध ईमेल में कहा कि “हम ईमानदारी से मानते हैं कि गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के नाम के बिना ऐसी पट्टिकाएं लगाने के लिए आपके कार्यालय से कोई मंजूरी नहीं ली गई है और आप गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के नाम के बिना पट्टिकाओं की सामग्री की अनुमति नहीं देंगे।” 

एसोसिएशन सचिव कौशिक भट्टाचार्य द्वारा भेजे गए संचार में कहा गया है कि “इस तरह के कदम के खिलाफ एक सार्वजनिक आक्रोश है जिसे विभिन्न मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया है और आम धारणा यह है कि प्रोफेसर बिद्युत चक्रवर्ती ने आचार्य, माननीय नरेंद्र मोदी से निर्देश के बाद ऐसा किया है। तदनुसार, जवाहर सरकार, राज्यसभा सांसद और जयराम रमेश ने दो ट्वीट किए जो आपके खिलाफ निर्देशित थे।”

एसोसिएशन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी सुदीप्तो भट्टाचार्य ने कहा कि “कुलपति शांतिनिकेतन ट्रस्ट का हिस्सा नहीं हैं जो विश्वविद्यालय के लिए विशिष्ट है और उपासना गृह का प्रबंधन करता है और अब वह शांतिनिकेतन में पीडब्ल्यूडी द्वारा प्रबंधित सड़कों के प्रभारी नहीं हैं जहां उन्होंने उन शिलालेखों को लगाया है। वह कृत्य अपने आप में गैरकानूनी था।”

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