उत्तराखंड:मतदान आ गया, मतदाता अब भी मौन

उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान हो रहा है। अब जबकि मतदान के लिए सिर्फ कुछ घंटे बाकी रह गये हैं तो भी मतदाता मौन है। मतदाता का यह मौन क्या संदेश दे रहा है, इसे पढ़ पाना फिलहाल संभव नहीं है। इस मौन में छिपा संदेश तो 4 जून को चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद की पढ़ा जा सकेगा। इस बार मतदाता ही नहीं चुनाव लड़ रही पार्टियां और उम्मीदवारों में भी वह जोश-खरोश नजर नहीं आया, जो आम तौर पर देखा जाता रहा है। उत्तराखंड की गढ़वाल और टिहरी विधानसभा सीटों में दो उम्मीदवारों की जमकर चर्चा हुई, लेकिन बाकी तीन सीटों पर कहीं कोई चर्चा नहीं हुई।

देहरादून उत्तराखंड की राजधानी होने के साथ ही यह शहर दो लोकसभा सीटों में बंटा हुआ है। शहर का आधा हिस्सा टिहरी संसदीय क्षेत्र में है तो बाकी शहर हरिद्वार संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। टिहरी वाले हिस्से में कुछ रैलियां और कुछ जनसभाएं ज़रूर हुईं, लेकिन हरिद्वार वाले हिस्से में बीजेपी के प्रचार में लगी कुछ गाड़ियों को छोड़कर बाकी कोई शोर-शराबा या चुनाव प्रचार नजर नहीं आया। कुछ घरों पर बीजेपी के झंडे ज़रूर नजर आये, लेकिन कांग्रेस इस मामले में भी कहीं नजर नहीं आई।

उत्तराखंड की सबसे ज्यादा हॉट सीट की बात करें तो वह है पौड़ी सीट। इस सीट पर बीजेपी ने अपने पूर्व राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी को चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मंत्री गणेश गोदियाल पर विश्वास जताया है। चुनाव अभियान के शुरुआती दौर में ही गणेश गोदियाल इस सीट को हॉट सीट बनाने में कामयाब हो गये थे। वे मतदान शुरू होने तक भी लगातार चर्चा में बने हुए हैं। बीजेपी मान कर चल रही थी कि उत्तराखंड की पांचों सीटें आसानी से उसे मिलने वाली हैं। लेकिन, गणेश गोदियाल की दमदार मौजूदगी से बीजेपी विचलित हो गई।

बीजेपी ने गोदियाल के खिलाफ न सिर्फ अपने स्टार प्रचारकों को चुनाव मैदान में उतारा, बल्कि उनकी टीम को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। सबसे पहले बीजेपी ने बदरीनाथ विधायक राजेन्द्र भंडारी को अपने पाले में किया। बीजेपी में शामिल होने के लिए राजेन्द्र भंडारी ने अपनी विधायकी तक छोड़ दी। हालांकि यह दांव बहुत काम नहीं आया। भंडारी के ज्यादातर समर्थकों ने उनके साथ बीजेपी में जाने से इंकार कर दिया। गणेश गोदियाल को हराने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। अमित शाह और राजनाथ सिंह सहित कई स्टार प्रचारकों को चुनाव प्रचार में भेजा गया। इस संसदीय क्षेत्र की सीमा पर बसे ऋषिकेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रैली की।

दूसरी हॉट सीट बनी है टिहरी। यहां कांग्रेस के जोतसिंह गुनसोला बेशक गणेश गोदियाल की तरह चर्चा में नहीं आये, लेकिन निर्दलीय बॉबी पंवार ने यहां अच्छी हवा बनाई है। बॉबी पंवार बेरोजगार संघ के आंदोलन की अगुवाई करते रहे हैं। खास बात यह है कि उनके समर्थन में जो लोग हैं, उनमें ज्यादातर बीजेपी समर्थक हैं।

यदि अंतिम समय में बीजेपी के इन समर्थकों का मन नहीं बदला तो बीजेपी की अधिकृत उम्मीदवार माला राज्यलक्ष्मी शाह के वोट कम हो सकते हैं और कांग्रेस उम्मीदवार को लाभ मिल सकता है। लेकिन, अंतिम समय में बीजेपी समर्थकों ने बॉबी पंवार के बजाय पार्टी उम्मीदवार को वोट डाला तो स्थितियां कुछ और होंगी। फिलहाल बॉबी पंवार ने टिहरी सीट को हॉट सीट बनाने में सफलता हासिल की है, यह उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

हरिद्वार सीट पर भी मुकाबला आमने-सामने का है। यहां कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र वीरेन्द्र रावत चुनाव मैदान में हैं तो बीजेपी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत चुनाव लड़ रहे हैं। एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार खानपुर विधायक उमेश कुमार भी इस सीट पर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा पैसा चुनाव पर वही खर्च कर रहे हैं, लेकिन वे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल नहीं हो पाये हैं।

उत्तराखंड की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यहां मतदान प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम दर्ज किया जाता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उत्तराखंड में 61.88 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। हिमालयी राज्यों में सबसे कम मतदान करने वालों में उत्तराखंड जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरा राज्य रहा। जम्मू कश्मीर में 2019 में 44.97 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे। पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में 72.42 प्रतिशत मतदान हुआ था।

उत्तराखंड के विभिन्न संगठनों की ओर से इन चुनावों में जनसंपर्क करके लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालने की अपील की गई। इन संगठनों की ओर से आम लोगों के मुद्दों को लेकर कुछ पर्चे भी छपवाये गये थे और बीजेपी सरकार की विफलताओं को गिनाते हुए सत्ता परिवर्तन के लिए वोट डालने का अनुरोध किया गया था।

इस अभियान से जुड़ी उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत कहती हैं कि उत्तराखंड में बीजेपी की एकतरफा जीत का सबसे बड़ा कारण यह है कि बीजेपी अपने सभी वोटर्स को बूथ तक पहुंचाने की व्यवस्था करती है, लेकिन दूसरी पार्टियों के समर्थक वोट डालने नहीं निकलते। मतदान से पहले सिविल सोसायटी की ओर से एक अपील भी जारी की गई है। इस अपील में लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालने जाने का अनुरोध किया गया है। इस अपील के माध्यम से एक बार फिर से राज्य में जनता के मुद्दों को सामने रखा गया है।

हारेगी नफरत जीतेगा भारत, भारत जोड़ो अभियान, उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड इंसानियत मंच, जनवादी महिला समिति, सर्वोदय मंडल, चेतना आंदोलन, भारत ज्ञान विज्ञान समिति और किसान सभा जैसे संगठनों की ओर से जारी इस अपील में कहा गया है कि भाजपा सरकार भ्रष्टाचार समाप्त करने के आश्वासन के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन इलेक्टोरल बॉण्ड के नाम पर डरा-धमकाकर मोटा पैसा उसी ने वसूला। चंदा लेकर घटिया दवाइयां तक बनाने की छूट दी गई और हमारे कई अपनों की मौत हो गई।

बेटी बचाओ और महिला सुरक्षा का नारा भी भाजपा ने दिया। लेकिन, अंकिता भंडारी की हत्या के मामले में 20 महीने बाद भी किसी को सजा नहीं हुई। केस अभी चल रहा है, लेकिन सत्ता के संरक्षण में वीआईपी का नाम उजागर नहीं हुआ। बीजेपी के राज में घसियारी महिलाओं का उत्पीड़न हुआ। दलित और अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार और हिंसक घटनाएं हुईं। महिलाओं पर अत्याचार की कई घटनाओं में सरकार आरोपियों के पक्ष में खड़ी नजर आती है।

अपील में बेरोजगारी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि भाजपा ने हर वर्ष 2 करोड़ रोजगार का वायदा किया था, लेकिन मौजूदा समय में बेरोजगारी अपने सर्वोच्च स्तर पर है। सरकारी नौकरियां बेची जा रही हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक किये जा रहे हैं। नौकरी मांगने वालों पर लाठियां भांजी गई। फौज में अग्निवीर व्यवस्था की और युवाओं का भविष्य चौपट कर दिया। निराश युवा नशे की चपेट में आ रहा है। नशा रोकने के बजाय खुलेआम नशा बेचा जा रहा है। शराब और ड्रग्स गांव-गांव पहुंच गई है।

भूकानून की मांग करते हुए अपील में कहा गया है कि उत्तराखंड में जमीनों की बड़ी खरीद-फरोख्त पर पाबंदी थी। भाजपा ने 2018 में यह पाबंदी हटा दी। नतीजा यह है कि आज ज्यादातर पहाड़ धन्नासेठों ने खरीद लिये हैं। भूकानून की मांग को सरकार सुन नहीं रही है। राज्य की संपत्तियां कॉरपोरेट जगत को बेची जा रही हैं।

इस अपील में पर्यावरण का मुद्दा भी उठाया गया है। कहा गया है कि मौजूदा सरकारें राज्य में पर्यावरण के विनाश में भागीदार रही हैं। जोशीमठ इसका उदाहरण है। सुरंगों से पूरे पहाड़ को खोखला किया जा रहा है। देहरादून शहर और पूरे पहाड़ में पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है। इससे भावी पीढ़ी का जीवन संकट में है। लेकिन, इस खतरे की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

सिविल सोसायटी ने राज्य में बढ़ते साम्प्रदायिक उन्माद की घटनाओं में चिन्ता जताई है। अपील में कहा गया है कि उत्तराखंड प्राकृतिक रूप से शांतिप्रिय समाज रहा है। लेकिन बीजेपी ने राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए जातीय और धार्मिक उन्माद की घटनाओं को हवा देने का प्रयास किया है। राज्य में सरेआम साम्प्रदायिक जहर फैलाने वालों के खिलाफ राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। अपील में मजदूर बस्तियों पर बुल्डोजर फेरने की सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया गया है। 

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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