यह कैसा लोकतंत्र! संसद में मणिपुर पर बहस में सूबे के सांसदों को ही नहीं मिला मौका

नई दिल्ली। संसद में मोदी सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव भले जीत लिया हो लेकिन जिस मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, और जहां के लोगों के लिए सदन में तीन दिनों तक बहस हुई, सदन में वहीं के लोगों को बोलने का मौका नहीं दिया गया। पिछले तीन महीने से मणिपुर जल रहा है। राज्य सरकार की पूरी मशीनरी कुकी आदिवासियों की हत्या और उत्पीड़न में लगी है। कुकी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। लेकिन मणिपुर हिंसा पर चर्चा के दौरान मणिपुर और मिजोरम के कुकी समुदाय के लोकसभा और राज्य सभा सदस्यों को बोलने का मौका नहीं दिया गया।

मणिपुर बाहरी से लोकसभा सदस्य और एनडीए की सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के नेता लोरहो फोजे (Lorho S Pfoze) ने कहा कि “मणिपुर हिंसा पर मैं अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में बोलना चाहता था लेकिन मुझे संसद में बोलने का मौका नहीं मिला। मुझसे कहा गया कि गृह मंत्री ही बोलेंगे।”

इसी तरह मिजोरम से मिजो नेशनल फ्रंट के नेता और राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना बोलने के लिए खड़े हुए तो सत्ता पक्ष के सदस्यों ने उन्हें हूट करते हुए बोलने से रोक दिया।

सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने गठबंधन एनडीए के कई घटक दलों का विश्वास खो दिया। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने 2 घंटे 13 मिनट के भाषण में मणिपुर हिंसा पर मजाकिया लहजे में विपक्ष पर वार किया। और गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर के आदिवासियों को बाहरी बताते हुए म्यांमार का बताया।

गृहमंत्री के इस बयान का एनडीए के सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के नेता और मिजोरम से राज्यसभा सदस्य के. वनलालवेना (K.Vanlalvena ) ने तीखा विरोध किया। राज्य सभा में के. वनलालवेना ने कहा कि, “मैं मिजोरम राज्य से एक आदिवासी सांसद हूं, गृहमंत्री ने कहा कि मणिपुर में आदिवासी लोग म्यांमार के हैं। हम म्यांमार के नहीं हैं, हम भारतीय हैं।”

सांसद के. वनलालवेना सदन में जब बोलना शुरू किए तो सभापति और सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने शोर-शराबा करके उन्हें बोलने से रोक दिया। गुरुवार को भोजनावकाश के बाद जब राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो वनलालवेना आसन के समक्ष आकर बोलने लगे। सभापति ने उन्हें बैठने को कहा।  

सभापति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसदों के व्यवहार से वह खफा हैं। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री ने मणिपुर और मिजोरम के लोगों को बाहरी बताकर गलत किया है।

मणिपुर में हिंसा के मुद्दे पर विपक्ष द्वारा लाए गए विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव पर न सिर्फ विपक्षी दलों के सांसदों के बोलने पर व्यवधान उत्पन्न किया गया बल्कि मणिपुर पर सरकार की राय से अलहदा रुख रखने वाले एनडीए गठबंधन के सहयोगी दलों के सांसदों को भी बोलने से मना किया गया।

दिल्ली के सियासी गलियारों से लेकर मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों तक सरकार और विपक्ष के बीच वार-पलटवार जारी है। इस मुद्दे को लेकर मणिपुर बाहरी से सांसद लोरहो फोजे ने भी सरकार पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं।

एनडीए की सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के लोकसभा सदस्य लोरहो फोजे (Lorho S Pfoze) ने कहा कि मणिपुर हिंसा को भड़के हुए 100 दिन से ज्यादा बीत गए हैं लेकिन वहां हालात सामान्य नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि “मैं संसद में बोलना चाहता था लेकिन मुझे संसद में बोलने का मौका नहीं मिला। मुझसे कहा गया कि गृह मंत्री ही बोलेंगे।”

फोजे ने कहा कि मैं पहले दिन से ही सदन में मौजूद था। राहुल गांधी ने मणिपुर के लिए अच्छा बोला। इसकी वजह ये है कि वह हिंसा के बाद ही मणिपुर गये थे और वहां के लोगों से बात-चीत की थी इससे वहां के लोगों में उनके प्रति पर्सनल टच पैदा हुआ। 

उन्होंने कहा कि मणिपुर मुद्दे पर मेरा बोलना बहुत जरूरी था। हम इस मुद्दे को लेकर इमोशनल हैं। हम देश को बताना चाहते हैं कि वहां कि स्थिति को लेकर जनता कैसा महसूस कर रही है। ये हमको बोलना ही पड़ेगा। मेरी पार्टी बीजेपी के साथ मणिपुर में गठबंधन में है इसलिए हमने गृहमंत्री को ही बोलने दिया। हालांकि हमारा बोलने का बड़ा मन था। 

एनपीएफ सांसद ने कहा कि पहले मणिपुर में हर हफ्ते कोई न कोई मंत्री आता था लेकिन हमारे कठिन समय में हमारे पास कोई भी नहीं आया। मेरे लोग मारे जा रहे हैं, वह तकलीफ में हैं। हम लोगों से उम्मीद कर रहे हैं कि हमारे कठिन समय में भी हमारे पास कोई आएगा।

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