उत्तराखंड: चमोली के भयंकर हादसे में 17 लोगों की मौत के लिए सरकारी तंत्र जिम्मेदार

अलकनन्दा के किनारे बसे चमोली नगर में नमामि गंगे के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में बिजली का करंट फैलने से पहले एक व्यक्ति की मौत होना और उसी स्थान पर कुछ ही घंटों के बाद फिर बिजली के करंट से 16 लोगों का मारा जाना तथा 11 अन्य का घायल होना प्लांट से संबंधित पक्षों के साथ ही पावर कारपोरेशन की घोर लापरवाही को तो उजागर करता ही है। लेकिन इस जनसंहार की जिम्मेदारी से सरकार और उसका तंत्र भी नहीं बच सकता।

क्योंकि इस तरह के हादसों से बचने के लिये सरकार के पास विद्युत सुरक्षा विभाग है जो कि बिजली के तीन अन्य उपक्रमों की तरह अर्ध सरकारी न हो कर सीधे सरकार के अधीन है और उसे चुस्त-दुरुस्त रखना सरकार की जिम्मेदारी है जो कि सरकार करती नहीं है। विद्युत सुरक्षा विभाग के दो मंडलीय कार्यालयों में से एक चमोली के मुख्यालय गोपेश्वर में भी स्थापित है। आये दिन करंट लगने की शिकायतों के बावजूद अगर चमोली के प्लांट की सुरक्षा जांच नहीं हुयी तो इसके लिये सीधे तौर पर विद्युत सुरक्षा विभाग जिम्मेदार है।

मानव जीवन की तरक्की या बेहतरी के लिये बिजली जितनी जरूरी है उसका लापरवाही से इस्तेमाल करने पर वह मानव जीवन के लिये उतनी ही खतरनाक भी है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2011 से लेकर 2020 तक 1.1 लाख लोग बिजली के करंट लगने से मर चुके हैं। यानि कि हर साल लगभग 11 हजार लोगों की जानें बिजली का करंट ले रहा है। उत्तराखण्ड, जहां चमोली में इतना बड़ा हदसा हो गया, वहां राज्य गठन से लेकर अब तक 23 सालों में लगभग 1650 लोगों के मारे जाने का रिकार्ड मौजूद है। देखा जाय तो इस छोटे से राज्य में हर साल औसतन 73 लोगों की जानें बिजली ले लेती है। इसमें आसमानी बिजली शामिल नहीं है। बिजली की असीमित उपयोगिता के साथ ही लापरवाही में उसकी संघातकता को देखते हुये राज्य में सीधे सरकार के अधीन विद्युत सुरक्षा विभाग गठित है। 

विद्युत सुरक्षा विभाग, उत्तराखण्ड शासन के ऊर्जा विभाग के अधीन एक शासकीय विभाग है। निदेशक, विद्युत सुरक्षा, उत्तराखण्ड शासन, विद्युत सुरक्षा विभाग का विभागाध्यक्ष होता हैं, जिसे विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 162 के अन्तर्गत राज्य के लिए मुख्य विद्युत निरीक्षक नियुक्त किया गया है। इस विभाग का मुख्यालय हल्द्वानी में रखा गया है। उत्तराखण्ड में इसके दो मण्डलीय कार्यालय ( पिथौरागढ़ एवं गोपेश्वर, जिला चमोली) एवं तीन जोनल कार्यालय (हल्द्वानी, देहरादून एवं रूड़की ) हैं। इस विभाग को विद्युत अधिनियम 2003 एवं केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (सुरक्षा एवं विद्युत आपूर्ति संबंधी उपाय) विनिमय 2010 के अन्तर्गत राज्य में विद्युत सुरक्षा सम्बन्धी कार्य जैसे विद्युत दुर्घटनाओं की जांच, विभिन्न विद्युत अधिष्ठापनों की सुरक्षा जांच, इलेक्ट्रिकल ड्रॉइंग की जांच/अनुमोदन तथा विद्युत स्थापना कार्य के ठेकेदारों को लाइसेन्स दिये जाने आदि कार्य सौंपे गये हैं। 

इतना संवेदनशील विभाग अगर अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहा है तो इसके लिये राज्य सरकार कम दोषी नहीं है। इस विभाग के लिये लेवल 3 से लेकर 13 तक के निदेशक या विद्युत निरीक्षक समेत कुल 65 पद स्वीकृत हैं जिनमें से केवल 22 पद ही भरे हुये हैं और शेष महत्वपूर्ण पद खाली पडे़ हैं। एक विभागीय प्रवक्ता के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग को अवर अभियंता के 9 पदों और सहायक अभियंता के 2 पदों के लिये सन् 2020 में अधियाचन भेजे गये थे जिन पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुयी।

दोनों मंडलीय कार्यालयों में उप निदेशक या उप निरीक्षक नहीं हैं। प्रदेश के लिये कुल 6 सहायक विद्युत निरीक्षक पद स्वीकृत हैं जिनमें से केवल 1 तैनात है। इसी प्रकार सहायक अभियंता के 5 पदों में दो और अवर अभियंता के 11 पदों में से केवल 3 अवर अभियंता कार्यरत हैं। अब स्वतः ही कल्पना की जा सकती है कि सरकार की घोर लापरवाही के कारण विद्युत सुरक्षा विभाग किस तरह सुरक्षात्मक कार्य कर रहा होगा। हल्द्वानी मुख्यालय के अधीन दो मंडलीय कार्यालयों के अलावा नैनीताल, हल्द्वानी, देहरादून और रुड़की में भी इस विभाग के जोनल कार्यालय हैं जो बिना स्टाफ के किसी काम के नहीं हैं।

देखा जाए तो बिजली दुर्घटनाओं के प्रति न तो पावर कारपोरेशन और ना ही सरकार गंभीर रहती है। जहां तहां बिजली के जंग लगे खोखले पोल देखे जा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के तारों के झूलने की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं। सन् 2016 में उत्तरकाशी में खेतों बिजली के झूलते तारों की चपेट में आने से तीन लोगों की मौत हो गयी थी। खटीमा में भी 2018 में खेतों में झूलते तारों की चपेट में आने से तीन लोगों की मौत हो गयी थी। इसी प्रकार 2021 में हल्द्वानी में सड़क पर झूलते तार ने एक दुपहिया वाहन चालक की जान ले ली थी। बिजली सबसे अधिक घातक ठेके पर काम करने वाले उपनल कर्मचारियों के लिये साबित हो रही है।

उनकी जान को पावर कारपोरेशन, सरकार और स्वयं नियमित कर्मचारी सस्ती मान कर उन्हें जोखिम में झोंक देते हैं। ऐसे कर्मचारियों की मौत पर कम मुआवजा देना पड़ता है। उनकी कोई ग्रेच्युटी या प्रोविडेंट फंड भी नहीं होता। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 23 सालों में 250 से अधिक ठेका कर्मचारी बिजली के पोलों पर अपनी जाने गंवा चुके हैं। राज्य में बिजली की फ्लक्चुएशन आम बात हैं। कभी इतना लोड हो जाता है कि लोगों के टीवी- फ्रिज आदि जल जाते हैं और अग्निकांड की नौबत आ जाती है। अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य गठन के बाद शॉट सर्किट से 206 अग्निकांड हो चुके हैं।

चमोली की घटना के लिए आत्मनिरीक्षण, सुरक्षा प्रोटोकॉल और एसओपी की समीक्षा और व्यापक जागरूकता अभियान के साथ-साथ खामियों को दूर करने की आवश्यकता है ताकि जनता को बिजली के खतरों के बारे में जागरूक किया जा सके, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसी तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। खास कर सरकार को विद्युत सुरक्षा विभाग को चुस्त-दुरुस्त बनाने के साथ ही साजो सामान और पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध करने की जरूरत है।

(जय सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल देहरादून में रहते हैं।)

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