क्या कर्नाटक का किला फतह कर कांग्रेस बंद कर देगी भाजपा का दक्षिण का प्रवेशद्वार?

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं। राज्य में भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस प्रमुख पार्टियां हैं। जो अपने को कर्नाटक की सत्ता का स्वाभाविक दावेदार मानती हैं। तीनों दलों की राज्य में कभी न कभी सरकार रही है। पिछले विधानसभा की बात की जाए तो चुनाव के तुरंत बाद कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार थी। लेकिन कुछ दिनों बाद मोदी सरकार ने वहां “ऑपरेशन लोट्स” को अंजाम दिया और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सत्ता से बेदखल कर भाजपा की सरकार बना ली।

भाजपा एक बार फिर राज्य में सरकार बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले चार महीने में 8 बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्रियों का पूरा काफिला और संघ का कुनबा कर्नाटक में डेरा डाल चुका है। मोदी किसी भी कीमत पर कर्नाटक का चुनाव जीतना चाहते हैं।

भाजपा के साथ ही कांग्रेस ने भी इस बीच अपना पूरा जोर कर्नाटक में लगा दिया है। हाल के दिनों में कई राज्यों के चुनाव हुए। लेकिन कांग्रेस कर्नाटक में जिस दम-खम से उतरी है, उतने जोर-शोर से कहीं नहीं लगी थी। अभी हाल ही में सूरत के एक निचली अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सजा सुनाई और वह लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिए गए। राहुल गांधी ने ऊपरी अदालत जाने की बजाए कर्नाटक का रूख किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस और भाजपा कर्नाटक विधानसभा चुनाव को इतना महत्वपूर्ण क्यों मान बैठे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी के मुताबिक, “कर्नाटक का चुनाव सिर्फ एक और राज्य का चुनाव नहीं है। यह आम चुनाव 2024 में कांग्रेस के लिए वही महत्व रखता है, जिस तरह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 भाजपा के लिए 2019 लोकसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण था।”

यदि कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा का चुनाव जीत जाती है तो दक्षिण भारत में भाजपा की उपस्थिति और दक्षिण के अन्य राज्यों में उसके पहुंचने का रास्ता ब्लॉक हो जाएगा। कांग्रेस के लिए कर्नाटक की जीत मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में उत्साह भरने के काम आयेगा। साथ ही कांग्रेस और उसके सहयोगी दल यह दावा कर सकते हैं कि मोदी सरकार के निर्देशन में “ऑपरेशन लोट्स” के तहत कांग्रेस के साथ हुए छल को जनता ने स्वीकर नहीं किया और उसे दोबारा राज्य की सत्ता सौंप दी। तब भाजपा के लिए यह हार अपमानजनक साबित होगा।

कर्नाटक जीतने से दक्षिण में भाजपा की उपस्थिति नगण्य गो जाएगी, इसकी अखिल भारतीय स्थिति समाप्त हो जाएगी। वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक की जीत से भविष्य के चुनावों में कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साहित होंगे। यह एक संसाधन संपन्न और बड़ा राज्य है, जहां से लोकसभा के 28 सदस्य चुने जाते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत उसके लिए लोकसभा में मजबूत दावेदारी का रास्ता भी खोलेगी। यह विपक्षी पार्टियों के बीच कांग्रेस की स्थिति और दावेदारी को भी ताकत प्रदान करेगी।

भाजपा को उम्मीद है कि कांग्रेस राज्य में “पीड़ित” राहुल का इस्तेमाल करेगी और फिर लड़ाई डीके शिवकुमार-सिद्धारमैया-खड़गे बनाम बोम्मई-येदियुरप्पा के बजाय मोदी बनाम राहुल हो सकती है। लेकिन भाजपा यह भूल रही है कि कांग्रेस के नव-निर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का गृहराज्य कर्नाटक है, और कर्नाटक में दलितों की संख्या 17 प्रतिशत से अधिक है। खड़गे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद राज्य की जनता में यह संदेश गया है कि पार्टी का शीर्ष नेता उनके बीच का है। इसलिए दलितों के बड़ी संख्या में कांग्रेस की तरफ लामबंद होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। और भाजपा ने अभी हाल ही में जिस तरह से दलित और मुस्लिमों के आरक्षण में फेरबदल किया है, उससे दलित कांग्रेस के पाले में खिसक जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं।

दूसरा, कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत और वोकालिगा समीकरण का बहुत महत्व हैं। लिंगायत समाज के सर्वमान्य नेता पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी है। और अपने समाज को साफ संदेश दिया है कि वे अपने हितों को देखते हुए अपना राजनीतिक कदम उठाएं। येदियुरप्पा के इस तरह नाराज होने के बाद भाजपा सकते और पेशोपेश में है। भाजपा हाईकमान के समझाने-बुझाने पर भी वह नहीं मान रहे हैं। ऐसे में कुछ लिंगायत राज्य नेतृत्व के सवाल पर भाजपा से दूरी बना सकते हैं।

तीसरा, 2018 विधानसभा चुनाव में कुल 224 विधानसभा सीटों के आए नतीजों में भाजपा को 104 सीट, कांग्रेस को 78 और जेडीएस के खाते में 37 सीटें थीं। तब कांग्रेस को 44 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन अपने वोट फीसदी को बचाने में वो सफल रही। इस बार कर्नाटक का जो मिजाज और कांग्रेस की तैयारी दिख रही है, उसमें कांग्रेस अभी तक भाजपा से मजबूत नजर आ रही है।

चौथा, अभी तक राहुल गांधी भाजपा से लड़ते दिखते थे और कांग्रेस संगठन लड़ाई के मैदान से नदारद था। लेकिन राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस ही नहीं अन्य विपक्षी दल भी राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होकर भाजपा से लड़ने का संकेत देने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस अब सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाने में नहीं बल्कि भाजपा के फासीवादी राजनीति के विरोध में मजबूत केंद्र बन रही है।

कांग्रेस द्वारा कराए गए एक सर्वे में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनाती दिख रही है। कांग्रेस को इस सर्वे में 116 से 123 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। वहीं बीजेपी को 77 से 83 और जेडीएस को 21 से 27 सीटें मिल सकती हैं। अन्य के खाते में एक से 4 सीटें जा सकती हैं। सर्वे के लिए करीब 45 हजार लोगों की राय ली गई और 45 दिन तक चुनावी विश्लेषकों के रिसर्च के बाद इसके नतीजे आए हैं। वोट प्रतिशत की बात करें तो इस सर्वे में कांग्रेस को 39 से 42 प्रतिशत वोट मिलते दिख रहे हैं। वहीं बीजेपी को 33-36 प्रतिशत और जेडीएस को 15 से 18 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं।

वर्तमान राजनीति परिदृश्य में कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण कांग्रेस के लिए कुछ भी नहीं है। बाकी हमे 10 मई तक इंतजार करना पड़ेगा।

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