जो अशोक किया, न अलेक्जेंडर उसे मोशा द ग्रेट ने कर दिखाया!

मैं मोशा का महा भयंकर समर्थक बन गया हूँ। कुछ लोगों की नज़र में वे भले ही कापुरुष हों लेकिन मेरे हिसाब से वे महापुरुष हैं।

भारत के पहले आम चुनाव के बाद पहले प्रथम सेवक ने देश को एकजुट करने की कितनी कोशिश की थी लेकिन कोशिश सफल होने से पहले ही वे चल बसे।

फिर आये मोशा।

अगर आप क्रोनोलॉजी पर ध्यान दें, तो आज भारत जितना एकजुट है उतना कभी नहीं रहा।

ये सब मोशा के “अखिल भारतीय नागरिक जागरूकता अभियान” से ही संभव हुआ कि मैं उनका भक्त बनने पर मजबूर हो गया।

आप ही बताइए

जितने लोग आज सड़क पर खुलेआम प्रदर्शन कर रहे हैं, उतनों ने कभी किया क्या?

संविधान की जितनी बिक्री बीते दिनों हुई है उतनी कभी हुई क्या?

व्यंग्य की कला लगभग खात्मे पर थी, किसने इसे पुनर्जीवित किया?

खैर नि:स्वार्थी मोशा का सबसे बड़ा एहसान ये है कि उन्होंने हम भारतीय नागरिकों को अपनी अक्षम्य गलतियों के नुकसान बताये।

अनपढ़ आदमी सत्ता के सीट पर बैठ जाए तो क्या होगा।

उन्होंने हमारी आंखों के सामने संविधान की कमियां उजागर की।

पुलिस से लेकर आर्मी तक, आरबीआई से लेकर न्यायालय तक, सीबीआई से ले कर मीडिया तक, सभी संस्थानों का दुरुपयोग का प्रयोग मोशा ने हमें कर के बताया।

कमाल की बात है यह सब कुछ उन्होंने मात्र 6 साल में कर दिया।

ये अभूतपूर्व गति! ये अभूतपूर्व वेग!!

न कभी हमने इसकी कल्पना की थी न ही कभी किसी सरकारी सेवक से ऐसी उम्मीद लगाई थी।

विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़, भारतीय नागरिकों को उनकी अक्षम्य गलतियों की सज़ा एक पीढ़ी तक भुगतनी होगी और दूसरे देश भी भारतीय नागरिकों पर हुए इस प्रयोग को ऑब्जर्व कर रहे थे कि वे कैसे इस प्रयोग के दौरान बिना बेहोशी के इंजेक्शन के निष्क्रिय चूहा बने पड़े रहे। 

खैर कभी आपने हमारे मोशा को अपनी “अखिल भारतीय नागरिक जागरूकता अभियान” की जटिल कूटनीति का प्रचार करते हुए देखा है? ना जी ना, इतनी ख़ामोशी से तो सन्नाटा भी पाँव नहीं पसारता।

आप क्रोनोलॉजी समझिये

पहले मोशा ने भारत को, कांग्रेस जो बस एक दलदल बन कर रह गई थी, से मुक्ति दिलाई।

फिर मोशा ने धीरे-धीरे भाजपा खत्म करने का असंभव सा कार्य लगभग कर दिया है। भविष्य इसे मोशा पार्टी के नाम से याद रखेगा। 

ये कोई संयोग नहीं, कड़ी मेहनत लगी है इस काम में। मोशा ने अपने आम नागरिकों पर तीन अमोघ अस्त्रों का प्रयोग किया- असत्य, ग़रीबी और साम्प्रदायिकता। हालांकि सफलता उन्हें चौथे अस्त्र से मिली।

असत्य इतना फैलाया कि लोग सच और झूठ में अंतर करने में ही व्यस्त हो गये।

ग़रीबी इतनी लाये जो लोग अपनी गाँव की मिट्टी को मिस कर रहे थे वे अपने गाँव की ओर लौट गये।

फिर सांप्रदायिकता के ज़हर का फुल डोज़ दिया। वो क्या है कि थोड़ी बहुत सांप्रदायिकता तो अंग्रेज़ हमारे खून में मिला कर गये थे, उसका तो भारतीयों ने एंटी-बायोटिक पहले ही बना लिया था। इसलिए फुल डोज़ बहुत ज़रूरी था।

लेकिन जय हो भारत के आलसी आम नागरिक की.गुलामी की। इस तरह आदत पड़ गई थी वो किसी भी चीज़ का विरोध करने सड़क पर उतर ही नहीं रहा था।

हमारे माननीय मोशा परेशान हो गये।

आखिर ऐसा क्या करें कि देश का हर एक नागरिक जागरूक हो कर सड़क पर आना, विरोध करना सीख जाए।

भगत सिंह जैसे लोग दोबारा कैसे हों? कौन सी वो शिक्षा व्यवस्था है जो भगत सिंह पैदा कर सकती है?

फिर उन्हें समझ आया कि एक काम करते हैं शिक्षा व्यवस्था ही खत्म कर देते हैं।

ये धारदार औज़ार काम कर गया। सफलता ने मोशा के कदम चूमे।

आज हर सड़क, गली, कूचे पर भगत सिंह स्टूडेंट के रूप में कुर्बान होने बैठे हैं।

लेकिन इतना उत्पात मचाने के बाद भी चैन नहीं  मिल रहा था। “अखिल भारतीय नागरिक जागरूकता अभियान” से मनचाहे परिणाम नहीं आ रहे थे।

तब मोशा के ज्वाइंट लगाकर सोचा कि क्यों न नागरिकों में जागरूकता फैलाने से पहले लोगों से ये पूछ लिया जाए कि तुम नागरिक तो हो ना?

सवाल पूछ लिया गया

सवाल सुनते ही जागरूकता का एंटीबायोटिक धड़ा धड़ रगों में दौड़ने लगा। नागरिकों का दिमाग ठनक गया और लोगों को मोशा की क्रोनोलॉजी तब जा के समझ आई।         

ये सब तो बहुत लम्बे प्लान के तहत हो रहा था, जागरूक कैसे नहीं होंगे?

मोशा का एक ही लक्ष्य, हम तुम्हें हर कदम पर इतना हैरस करेंगे

कि कन्फ्यूज़ हो जायेंगे, समर्थन आख़िर किस बात पर करें और विरोध किस बात पर न करें

इतना मजबूर कर कर देंगे

कि तुम्हें बोलना होगा, तुम्हें मुंह खोलना होगा

मौलिक अधिकारों के तहत चुनाव तुम्हारा है कि

किस बात पर तुम्हें विरोध दर्ज कराना है, मोशा ने उसके लिए अनगिनत विकल्प दे दिए हैं।  

तुम सीएए, एनआरसी के विरोध में भी बोल सकते हो

तुम तुम्हारे बच्चों के स्कूल कोलेजों की बढ़ती फीस के बारे में भी बोल सकते हो

तुम पूंजीवाद के खिलाफ़ भी बोल सकते हो

तुम सांप्रदायिकतावाद के बारे में भी बोल सकते हो

तुम बढ़ती ग़रीबी, भुखमरी के बारे में भी बोल सकते हो

तुम चन्द नेताओं और बिज़नसमैंनों की बढ़ती अमीरी के बारे में भी बोल सकते हो

तुम पेट्रोल, प्याज और गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों के लिए भी सड़क पर आ सकते हो

और बढ़ते सामाजिक अपराधों से भड़क कर आ सकते हो

तुम कश्मीरी पंडितों की हक की लड़ाई में हिस्सा ले सकते हो

या रोज़मर्रा हो रहे आदिवासियों के विस्थापन की लड़ाई का किस्सा भी कह सकते हो

तुम जलवायु प्रदूषण के विरोध में शामिल हो सकते हो

और बच्चों में बढ़ते कुपोषण के बारे में आवाज़ बुलंद कर सकते हो

आइये मोशा के “अखिल भारतीय नागरिक जागरूकता अभियान” से जुड़ें

मोशा का एक ही लक्ष्य, भारत का हर आम नागरिक अब ख़ास नागरिक बने

नंगे नाच से क्लासिकल नृत्य की ओर चले

अपने-अपने मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराए

मोशा अमर रहे हालांकि अमर होने के लिए पहले उन्हें मरना होगा।

उम्मीद है भारत जल्दी ही पूरी तरह एकजुट हो जाएगा

और ऐसे नेता सत्ता में आयेंगे जो मानवीय मूल्यों के प्रति संवदेना रखते हों।

आपने सोचा है तब मोशा क्या करेंगे ? आप बिल्कुल चिंता न करें। उन्होंने अपने रोज़गार की व्यवस्था स्वयं ही कर रखी है। वे अपने मित्रों नीरव, माल्या और चिन्मय की तरह अन्य देशों की तरफ़ प्रस्थान कर अपने प्रयोग शुरू करेंगे।

लेकिन भारत की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि मोशा को उन देशों में डिपोर्ट किया जाए, जहां एकजुटता की ज़्यादा आवश्यकता हो। 

सबसे पहले मेरे दिमाग में सीरिया जैसे देशों का नाम आता है। मोशा को इन देशों में नागरिकता इत्यादि दिलवाने का काम भारत सरकार करे। डिपोर्ट करते समय राष्ट्रीय गीत बजे और कोई भी नागरिक “गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल” न बजाये।

  • आदित्य अग्निहोत्री

(आदित्य अग्निहोत्री फिल्ममेकर और पटकथा लेखक हैं। आजकल मुंबई में रहते हैं।)

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