हमारे बारे में
भारतीय पत्रकारिता का स्वर्णिम इतिहास रहा है। आजादी के आंदोलन के समय पत्रकारिता सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती देने के साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों से जुड़कर जनता को जागरूक करने में लगी थी। तब पत्रकारिता का स्वभाव मिशनरी था। पराधीनता के दौरान ब्रिटिश नीतियों का विरोध तो आजादी के बाद देश के अंदर लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में सहयोगी भूमिका में रही। भारतीय पत्रकारिता बदलाव की वाहक और कमजोर वर्ग की हितैषी रही है। जो पत्रकारिता आजादी के आंदोलन की वाहक और देश के नवनिर्माण का जरिया बनी, वह आज लाभ-हानि के लोभ में जन सरोकारों को भूलकर कॉरपोरेट की पिछलग्गू हो गई है। मुख्यधारा की मीडिया इस समय साख और विश्वसनीयता के संकट से गुजर रही है। सच्ची सूचना देने का काम सोशल मीडिया ने ले लिया है। सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती देने और उसकी कमियों को उजागर करने के बजाय मुख्यधारा की मीडिया दासी बनकर उसके गुणगान में लगी है। सत्ता अपने कर्तव्यों से भटक गई है और पत्रकारिता उसके पीछे चल रही है। यह सब अनायास नहीं हो रहा है। इसके पीछे गंभीर कारण हैं।
21वीं सदी में बदलाव की प्रक्रिया बहुत तीव्र है। तकनीकी विकास ने बहुत कम समय में हर क्षेत्र में व्यापक उलटफेर करने के साथ ही हमारे दिल-दिमाग को प्रभावित किया है। नब्बे के दशक में शुरू हुए उदारीकरण ने देश और दुनिया के शासन-प्रशासन एवं आचार-विचार को गहराई से प्रभावित किया है। इस बदलाव का साक्षी भारतीय समाज, भाषा और मीडिया भी है। शासन प्रणाली और अर्थव्यवस्था के साथ ही ज्ञान-विज्ञान के केंद्र भी आज पूरी तरह बाजार के हाथ में है। देशी और विदेशी पूंजी ने मीडिया को अन्य व्यवसायों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है। कॉरपोरेट के दबाव में मीडिया में स्वतंत्र सोच, असहमति, तथ्य एवं सत्य आधारित खबरों का स्थान बहुत सीमित हो गया है। ऐसे में आज पत्रकारिता की चिंता में आम जनता नहीं बल्कि शासन-प्रशासन, कॉरपोरेट और उसके हित-लाभ हैं।
मुख्यधारा की मीडिया व्यापक समाज की अपेक्षा को पूरा करने में असमर्थ है। तथ्य आधारित समाचार और सत्य के आधार पर घटनाओं का विश्लेषण मीडिया से गायब होता जा रहा है। ऐसे में ‘जनचौक डॉट कॉम’ निष्पक्ष एवं तथ्यों पर आधारित एक लोकप्रिय समाचार पोर्टल की भूमिका में खड़ा है। जनचौक पत्रकारों का एक समूह है। जो पत्रकारिता को बदलाव का माध्यम मानता है। यह समूह किनारे खड़े होकर सिर्फ सूचना देने में ही नहीं बल्कि जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने में विश्वास रखता है। यह किसी कॉरपोरेट के सहारे नहीं बल्कि मित्रों के सहयोग से आगे बढ़ रहा है। पत्रकारिता को जन सरोकारों से जोड़ने और सच्ची खबर को सामने लाने की चुनौती हमारे सामने है। इस दिशा में ‘जनचौक डॉट कॉम’ सार्थक पहल करना चाहता है।
संस्थापक संपादक
महेंद्र मिश्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर के साथ ही छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। प्रिंट एवं न्यूज चैनल में समान गति। अमर उजाला, दैनिक जागरण के बाद सहारा समय और न्यूज एक्सप्रेस में अपने खबरों के माध्यम से एक अलग पहचान बनाई। पत्रकारिता में दो दशकों का सफर।
ब्यूरो
दिल्ली- वीना
राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी समझ के साथ ही व्यंग्य लेखन में भी पारंगत। अपनी धारदार लेखनी एवं व्यंग्य से जनचौक का सहयोग करने में लगी हैं।
डॉ. सिद्धार्थ
सलाहकार संपादक, दो दशकों से ज्यादा पत्रकारिता और लेखन का अनुभव, कई किताबें प्रकाशित
सुशील मानव
विशेष संवाददाता, जनचौक
तामेश्वर सिन्हा
छत्तीसगढ़ से जनचौक के संवाददाता। आदिवासियों से जुड़े मामलों की लगातार जमीनी रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
त्रिलोचन भट्ट
उत्तराखंड से जनचौक के लिए नियमित रिपोर्टिंग
अमरनाथ
वरिष्ठ पत्रकार, जलवायु और पर्यावरण से जुड़े मामलों पर रिपोर्टिंग और लेखन
दिनकर कुमार
द सेंटिनेल के पूर्व संपादक, नॉर्थ-ईस्ट से जुड़े मामलों की जनचौक में रिपोर्टिंग
सत्येंद्र रंजन
अंतरराष्ट्रीय और आर्थिक मामलों पर जनचौक में नियमित लेखन
जयसिंह रावत
वरिष्ठ पत्रकार, देहरादून में रहते हैं। उत्तराखंड से जुड़े मामलों पर जनचौक में नियमित लिखते हैं।
अहमदाबाद- कलीम सिद्दीकी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा और जन संघर्षों से गहरा जुड़ाव। स्वयंसेवी संगठन के माध्यम से वंचितों के संघर्षों को आवाज देने की कोशिश के साथ जनचौक में अहम भूमिका में हैं। बहुत कम समय में ही अपनी खबरों से अलग पहचान कायम की।
रांची-विशद कुमार सामाजिक एवं राजीतिक आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले विशद कुमार पत्रकारिता में जनसरोकारों के पक्षधर हैं।
सहयात्री-
अरुण माहेश्वरी:
पत्रकार, स्तंभकार और कई किताबों के लेखक अरुण माहेश्वरी का जनचौक से रिश्ता नाभि-नाल का है। उनका ‘माहेश्वरी का मत’ सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला स्तंभ है।
उर्मिलेशः
पत्रकारिता जगत के जाने पहचाने चेहरे और राज्यसभा टीवी के संस्थापक कार्यकारी संपादक रहे उर्मिलेश वेबसाइट शुरू होने के साथ ही उससे जुड़ गए थे। ‘उर्मिलेश की कलम से’ उनका नियमित स्तंभ पोर्टल का न केवल अभिन्न हिस्सा बन गया है बल्कि उसने अब अपनी अलग पहचान भी कायम कर ली है।
राम शरण जोशी:
वरिष्ठ पत्रकार, माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान, नोएडा के निदेशक रहे राम शरण जोशी का अनुभव जनचौक की थाती है। समय-समय पर राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों पर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट देकर वो पोर्टल को समृद्ध कर रहे हैं।
कुमुदिनी पति:
राजनीतिक-सामाजिक आंदोलनों का जाना-पहचाना नाम। महिला और आर्थिक मुद्दों पर उनके सशक्त लेखन ने जनचौक को नई धार दी।
अनिल जैन:
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषक। नई दुनिया, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और आईएएनएस न्यूज़ एजेंसी में वरिष्ठ पदों पर कार्य कर चुके हैं।
इसके अलावा जनचौक को वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश अखिल, पत्रकार और प्रोफेसर प्रेम कुमार, फिल्म और डाक्यूमेंट्री निर्माता अल्पयु सिंह, प्रीति चौहान, बुद्धिजीवी मसूद अख्तर, आर्थिक मामलों के जानकार मुकेश असीम और गिरीश मालवीय, रायगढ़ से राजू पांडेय, पुणे से मीतू कुमारी विभिन्न विषयों पर अपने नियमित लेखन से सहयोग कर रहे हैं।
और आखिर में इस पोर्टल को खड़ा करने में कुछ लोगों ने नींव के ईंट की भूमिका निभाई है। जिनके बगैर शायद ये सफर संभव ही नहीं हो पाता। इसमें कुछ अनाम लोगों के (जिनका नाम कतिपय कारणों से नहीं दिया जा सकता है।) अलावा रवींद्र पटवाल, मनोज सिंह, जितेंद्र कुमार, गणेश कुमार और चेतना समूह के सदस्य शामिल हैं।