प्रताप भानु मेहता का लेख: मणिपुर; संघर्ष की आग में सुलगता लोकतंत्र
यह एक हैरान कर देने वाला तथ्य है कि लगभग 17 महीनों से, भारतीय गणराज्य ने मणिपुर में चल रहे संघर्ष को गहराने और फैलने [more…]
यह एक हैरान कर देने वाला तथ्य है कि लगभग 17 महीनों से, भारतीय गणराज्य ने मणिपुर में चल रहे संघर्ष को गहराने और फैलने [more…]
भाषा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने मूल रूप में वह वर्ग, वर्ण, लिंग और धर्मनिरपेक्ष होती है, लेकिन वर्चस्वशाली समूह उसका [more…]
अगर मेडिकल साइंस के विकास में राजनेताओं और विचारधाराओं के योगदान का अध्ययन किया जाए तो हम पाएंगे कि सबसे बड़ा योगदान कम्युनिस्ट राजनेताओं का [more…]
भाषा महज संवाद का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज के भौतिक और ऐतिहासिक विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है। मनुष्य के अस्तित्व को उसकी [more…]
प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के द्वारा, मिलकर सार्वजनिक रूप से अपनी आस्था को प्रदर्शित करना संवैधानिक आश्वासनों को कमजोर बनाता है- इंदिरा जय सिंह भारत [more…]
देश के किसी भी फिल्म उद्योग को ले लें- कास्टिंग काउच परिघटना से मुक्त नहीं मिलेगा। हाल में जारी जस्टिस हेमा कमिटी की रिपोर्ट ने [more…]
यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में आजादी के इतने वर्षों बाद ऐसी भाषा नहीं है जो देश के सभी निवासियों द्वारा देश [more…]
आज दुनिया के हर कोने में सत्ताधारियों के लिए उदार लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं असहनीय बनती जा रही हैं। उनका झुकाव निरंकुशता की तरफ बढ़ने लगा है; [more…]
“जमानत नियम है, जेल अपवाद” यह न्यायिक सूत्र वाक्य 1970 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने दिया था। तब से आज 47 [more…]
वर्साय की संधि की अपमानजनक शर्तों ने जर्मन लोगों की गरिमा छीन ली थी। इस संधि ने देश की संप्रभुता और आर्थिक स्वतंत्रता को समाप्त [more…]