Sunday, May 28, 2023

उपेंद्र चौधरी

मैं हिंदुओं और मुसलमानों को बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन चोटी और दाढ़ी वालों को नहीं: नज़रूल इस्लाम

सोचा जा सकता है कि बंटवारे के समय बंगाल में हुई हिंसा और तबाही की क्या प्रकृति रही होगी कि गांधी को पंजाब की तरफ़ नहीं, बंगाल के नोआखाली की ओर भागना पड़ा होगा। यह ट्रेज़डी दोनों तरफ़ की...

अतीक़ अहमद: राजनीतिक और प्रशासनिक विडंबनाओं का प्रतीक

यह शख़्स कई प्रतीकों का एक समग्र प्रतीक था। हर व्यक्ति की तरह इसकी कई पहचान थी। मगर, इसकी मुख्य पहचान अपराध से जुड़ी थी। वह ज़मीन और ज़ायदाद का लालची था। धमकाकर किसी की ज़िंदगी भर की दौलत...

अम्बेडकरवादी चेतना के अफ़सानों का दस्तावेज़: वेटिंग फ़ॉर वीजा

सवाल पैदा होता है कि अस्पृश्यता के लिए ज़िम्मेदार वर्णव्यवस्था के समर्थक गांधी की आत्मकथा, ‘माई एक्सपेरियंस विथ ट्रुथ’ भारतीयों के बीच पढ़ी जाने वाली सबसे लोकप्रिय आत्मकथा कैसे बन गयी,जबकि उसी दमनकारी वर्णव्यवस्था के ख़िलाफ़ बिगुल फूंकने वाले...

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों का सियासी मंज़र, नतीजों से मिलेगी सियासी मिज़ाज की झलक

पांच जनवरी को बीजेपी नेता अमित शाह त्रिपुरा में थे और उनके सामने थी एक विशाल जनसभा। इस जनसभा में उन्हें अचानक कुछ याद आया। जनसभा के सामने उंगली घुमाते हुए उन्होंने कहा कि राहुल जी कान खोलकर सुन...

देश की फ़िज़ा से आज भी यह आवाज़ आती है कि ‘डरो मत’

पारंपरिक परिवार, रूढ़िवादी समाज से लेकर देश-दुनिया की तमाम हुक़ूमतें, सत्ता की तरफ़ से पैदा किए गए डर के ज़रिए चलायी जाती हैं। रामचरित मानस के महाकवि तुलसी दास ने भी सामान्य मनोविज्ञान को एक विशेष परिघटना के दौरान...

भारत जोड़ो यात्रा: टीशर्ट, कोल्ड कंफ़र्ट और भारतीय राजनीति की संस्कृति

भारत की राजनीति हमेशा यहां की संस्कृति से प्रभावित रही है। जिन्होंने भी यहां की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी है, उन्होंने यहां की संस्कृति को महज़ समझा ही नहीं था, बल्कि अपनी जीवन शैली को भी इस...

भारतीय समाज में अवैज्ञानिक परंपरा का साइकोपैथ अवशेष

उच्चतर डिग्री हासिल करके पढ़ा-लिखा होना इस बात का सुबूत नहीं बन जाता कि हम जागरूक भी हैं। जागरूकता तो उस थॉट प्रोसेस से होकर किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुंच पाने से हासिल होती है। पढ़ाई-लिखाई इसमें सहायक हो...

कोविड-19 भी पूंजीवाद से पैदा होने वाला एक संकट

जितने लोग दूसरे विश्वयुद्ध में मारे गये थे, उससे कहीं ज़्यादा लोग ‘तीसरे विश्वयुद्ध’ में मारे गये। यह तीसरा विश्वयुद्ध नज़र नहीं आया, लेकिन यह चार दशकों तक चलता रहा। पूंजीवाद की यही सबसे बड़ी ख़ासियत है कि वह...

मर्दवादी सियासत का चक्रव्यूह तोड़ती एक राजनेता

अपने पूरे वजूद के साथ कभी वह कांग्रेस में थी। अपने वजूद के लिए सदा सचेत रही उनकी जवानी का वक़्त कांग्रेस के नाम रहा। वजूद पर संकट आया,तो कांग्रेस को सीपीएम की कठपुतली कहकर कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी...

प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष: नागरिक समाज की पक्षधरता ही मीडिया के निष्पक्षता की है कसौटी

दुनिया के दूसरे समुदायों की तरह हिन्दू और मुसलमान समुदायों के बीच यूं तो ऐसे कई शैलीगत फ़र्क़ है, जिनसे उनकी पहचान बनती है और जिन्हें उनकी ख़ासियत की तरह देखा जाना चाहिए। लेकिन, दोनों के बीच सतह पर...

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