दो ‘आपातकालों’ का कैदी
‘आगे और लड़ाई है’ प्रबीर पुरकायस्थ की आत्मकथा है। अंग्रेजी में लिखी उनकी आत्मकथा ‘किपिंग अप द गुड फाइट’ का यह अनुवाद है। इसमें छात्र-जीवन, [more…]
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इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस (INDIA) ने देश के कुछ प्रमुख टीवी चैनलों के 14 एंकरों के कार्यक्रमों में अपना प्रवक्ता न भेजने का फ़ैसला [more…]
अप्रैल,1986 में दिल्ली से पटना गया। अगले कुछ वर्षों के लिए तब पटना ही मेरा नया बसेरा बन रहा था। दिल्ली में मेरी नियुक्ति नवभारत [more…]
जुलाई, 2023 के पहले रविवार को महाराष्ट्र में आया सियासी-भूचाल आकस्मिक घटना नहीं है। यह चलताऊ या पारम्परिक क़िस्म का दलबदल भी नहीं है। इसके [more…]
सन् 1975 की 25 जून को जब इमरजेंसी लागू की गई, मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए का छात्र था और हमें अगले दिन की सुबह [more…]
दुनिया का हर लोकतांत्रिक देश अपने संसद भवन पर गर्व करता है। इसलिए नहीं कि उसे वह बिल्डिंग देश की सबसे अच्छी बिल्डिंग लगती है। [more…]
एक जमाने में हमारी राजनीति में बहुत लोकप्रिय जुमला बना था-‘बिहार शोज द वे!’ यानी बिहार रास्ता दिखाता है। इमरजेंसी-विरोधी जन-आंदोलन तक यह जुमला चलता [more…]
जनाब सत्यपाल मलिक को चौधरी चरण सिंह के जमाने से जानता हूं। शायद उन्हें भी हमारी थोड़ी-बहुत याद हो! हाल के वर्षों में हमारी उनकी [more…]
देश की राजनीति गरमाई हुई है। पर लोगों पर इसका कितना प्रभाव पड़ा है, इस बारे में फिलहाल कोई दावा नहीं किया जा सकता। जिस [more…]
बहुत सारे लोग आज के राजनीतिक दौर की तुलना सन् 1975-77 के दौर की ‘इमर्जेंसी’ से कर रहे हैं। संयोगवश, मैंने इमर्जेंसी देखी थी। निस्संदेह, [more…]