ईवीएम से ही होगा मतदान, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की वीवीपेट पर्चियों के मिलान पर सभी याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के वोटों की वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपेट) पर्चियों से 100 फीसदी सत्यापन की मांग वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की दो जजों की पीठ ने शुक्रवार (26 अप्रैल) को कहा कि किसी सिस्टम पर आंख मूंदकर अविश्वास करने से अनुचित संदेह पैदा हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब साफ हो गया है कि देश में चुनाव इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से ही होंगे। बैलेट पेपर से मतदान नहीं होगा। अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि ईवीएम से वीवीपैट पर्ची की 100 प्रतिशत क्रॉस-चेकिंग भी नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट में हुई इस सुनवाई के बाद जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि हमने प्रोटोकॉल और तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है। इसके बाद हमने एक मत से यह फैसला दिया है।सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इससे पूर्व सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इस केस में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े ने दलीलें दी थी।प्रशांत भूषण एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से पैरवी कर रहे थें। दूसरी तरफ चुनाव आयोग की तरफ से अधिवक्ता मनिंदर

सिंह, केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद ने दलीलें रखी थी।

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या वह महज हैकिंग और हेरफेर के संदेह के आधार पर ईवीएम के संबंध में निर्देश जारी कर सकता है?

पीठ ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा, “हमने पेपर बैलेट वोटिंग, पूर्ण ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन और वीवीपैट पर्चियों को भौतिक रूप से जमा करने की प्रार्थना को खारिज कर दिया है।”यद्यपि संतुलित दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है, लेकिन किसी प्रणाली पर आंख मूंदकर संदेह करना संदेह पैदा कर सकता है और इसलिए सार्थक आलोचना की आवश्यकता है। चाहे वह न्यायपालिका हो, विधायिका आदि हो।

इसके साथ ही  सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है लेकिन कोर्ट ने ईवीएम को फुलप्रूफ बनाने के लिए भारत के चुनाव आयोग और अन्य अधिकारियों को कई अहम निर्देश भी दिए हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हमने चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा पालन किए जाने वाले दो निर्देश पारित किए:

(1)   01मई2024 को या उसके बाद की गई वीवीपेट में सिंबल लोडिंग प्रक्रिया पूरी होने पर सिंबल लोडिंग यूनिट (एसएलयू) को कंटेनरों में सील और सुरक्षित किया जाना चाहिए। उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मुहर पर हस्ताक्षर करेंगे। एसएलयू वाले सीलबंद कंटेनरों को परिणामों की घोषणा के बाद कम से कम 45 दिनों की अवधि के लिए ईवीएम के साथ स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाएगा। इन्हें खोलकर ईवीएम की तरह ही जांचा और निपटाया जाना चाहिए।

(2) संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5% EVM में जले हुए मेमोरी सेमीकंट्रोलर, यानी कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और वीवीपेट की जांच और सत्यापन ईवीएम के निर्माताओं के इंजीनियरों की टीम द्वारा किया जाएगा। उन उम्मीदवारों द्वारा किए गए लिखित अनुरोध पर परिणामों की घोषणा पोस्ट करें, जो उच्चतम मतदान वाले उम्मीदवार के पीछे 2 और 3 स्थान पर हैं। ऐसे उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र या क्रमांक से ईवीएम की पहचान करेंगे। सभी उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के पास सत्यापन के समय उपस्थित रहने का विकल्प होगा। 

ऐसा अनुरोध परिणाम घोषित होने के 7 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। जिला निर्वाचन अधिकारी इंजीनियरों की टीम के परामर्श से जली हुई मेमोरी माइक्रोकंट्रोलर की प्रामाणिकता और अक्षुण्णता को प्रमाणित करेगा। सत्यापन प्रक्रिया आयोजित होने के बाद उक्त सत्यापन के लिए वास्तविक लागत या खर्च चुनाव आयोग  द्वारा अधिसूचित किया जाएगा और उक्त अनुरोध करने वाला उम्मीदवार उक्त खर्च का भुगतान करेगा। ईवीएम से छेड़छाड़ पाए जाने पर खर्चा वापस कर दिया जाएगा।

यह जोड़ा गया कि सत्यापन के लिए अनुरोध करते समय उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र या सीरियल नंबर द्वारा जांच की जाने वाली ईवीएम की पहचान करेंगे। अनुरोध परिणाम घोषित होने की तारीख से 7 दिनों के भीतर किया जाना है और सभी उम्मीदवारों (और उनके प्रतिनिधियों) के पास सत्यापन के समय उपस्थित रहने का विकल्प होगा।

इससे पहले कोर्ट ने पहले दो दिनों की सुनवाई के बाद याचिकाओं पर अपना फैसला 18 अप्रैल के लिए सुरक्षित रख लिया था। हालांकि, कोर्ट ने चुनाव आयोग के साथ ईवीएम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए मामले को 24 अप्रैल को फिर से चर्चा के लिए सूचीबद्ध किया था।

गौरतलब है कि मामले में बहस के दौरान, चुनाव आयोग ने दावा किया कि ईवीएम गैर-छेड़छाड़ योग्य हैं। जब याचिकाकर्ताओं ने ईवीएम में हेरफेर की संभावना वाले कार्यक्रमों के बारे में चिंता जताई तो चुनाव आयोग  ने इसे दूर करने की मांग करते हुए कहा कि नियंत्रण इकाई, मतपत्र इकाई और वीवीपैट  तीनों में माइक्रोकंट्रोलर एक बार प्रोग्राम करने योग्य हैं और इनमें बदलाव नहीं किया जा सकता।

बुधवार (24 अप्रैल) को सुनवाई के दौरान पीठ ने ईवीएम की कार्यप्रणाली से जुड़े कुछ तकनीकी सवालों के जवाब मांगे, जिसमें यह भी शामिल था कि क्या उनमें लगे माइक्रोकंट्रोलर रिप्रोग्रामेबल हैं।

पीठ द्वारा प्रश्नों को सूचीबद्ध करने पर, ईसीआई ने विस्तृत स्पष्टीकरण दिया।सुरक्षा सुविधा पर, भारत के चुनाव आयोग ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है और वीवीपैट पर्चियों की पूरी गिनती व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।

माइक्रोकंट्रोलर की रीप्रोग्रामिंग पर एक सवाल के जवाब में ईसीआई ने कहा कि सभी माइक्रोकंट्रोलर एक बार प्रोग्राम करने योग्य होते हैं। विनिर्माण के समय वे जल जाते हैं। उन्हें बदला नहीं जा सकता।

जस्टिस खन्ना ने चुनाव आयोग से वोटों की पर्चियों की गिनती के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन के सुझाव की जांच करने को कहा और यह भी पूछा कि क्या चुनाव चिन्ह के साथ-साथ प्रत्येक पार्टी के लिए एक बार कोड भी हो सकता है।

वीवीपैट – एक मतदाता को यह देखने में सक्षम बनाता है कि वोट ठीक से डाला गया था और उस उम्मीदवार को गया था, जिसका वह समर्थन करता है। वीवीपैट एक कागज की पर्ची बनाता है, जिसे एक सीलबंद कवर में रखा जाता है और कोई विवाद होने पर इसे खोला जा सकता है।वर्तमान में, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में किसी भी पांच चयनित ईवीएम की वीवीपैट पर्चियों का सत्यापन किया जाता है।

यह फैसला उन तीन याचिकाओं पर आया है, जिनमें चुनाव के दौरान वीवीपैट पर्चियों का ईवीएम से डाले गए वोटों से मिलान करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।याचिकाकर्ताओं में से एक ने प्रार्थना की कि प्रत्येक ईवीएम वोट का मिलान वीवीपैट पर्चियों से किया जाए।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर एक अन्य याचिका में आग्रह किया गया कि वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम के माध्यम से डाले गए वोटों से किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया था कि ऐसा इसलिए होना चाहिए कि मतदाता पुष्टि कर सकें कि उनका वोट ‘रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है’ और ‘डाले गए वोट के रूप में दर्ज किया गया है।’

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, लगभग 21 विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं ने सभी ईवीएम के कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपेट सत्यापन की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।उस समय, ईसीआई प्रति विधानसभा क्षेत्र में केवल एक यादृच्छिक ईवीएम का वीवीपेट से मिलान करता था।

8 अप्रैल, 2019 को शीर्ष अदालत ने यह संख्या 1 से बढ़ाकर 5 कर दी और याचिका का निपटारा कर दिया। मई 2019 में, कोर्ट ने कुछ टेक्नोक्रेट्स द्वारा सभी ईवीएम के वीवीपेट सत्यापन की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।

वीवीपेट मशीनों का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 के नागालैंड विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ था। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर भी इस मशीन को लगाया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वीवीपेट मशीनों का इस्तेमाल देशभर में किया गया, उस चुनाव में 17.3 लाख से ज्यादा वीवीपेट मशीनों का इस्तेमाल हुआ था।

इस मुद्दे पर चुनाव आयोग द्वारा भी प्रतिक्रिया सामने आई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि अब सभी तरह के पुराने सवाल खत्म हो जाने चाहिए। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार के निरंतर सुधारों का भी विश्वास दिलाया है।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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