बांस की टट्टी में अमला और उसके पति।

दिल्ली के बराबर है अमला के लिए 2 किमी दूर स्थित क्वारंटाइन सेंटर

“पति साल भर बाद आए तो मिलने के लिए बेचैन कौन नहीं होता? और ऊ तब जब पति परदेस से पैदल आ रहा हो!”  गंगाय सदाय के आने की राह से देख रही अमला देवी कहती हैं, “ जब पता चला वो गांव की सीमा में आ गया तो हम दौड़कर देखने गए।” 

 गंगाय सदाय दिल्ली में मज़दूरी का काम करते हैं। दो महीने की तालाबंदी के बाद, जब गंगाय और उसके साथी मज़दूरों का धीरज ज़वाब दे गया तो वे घर के लिए निकल पड़े।

 रास्ते में एक ट्रक वाले से सौदा तय हुआ। प्रति व्यक्ति 2000 रूपये के हिसाब से 60 लोगों को लेकर ट्रक पुलिस से छिपते छिपाते  दरभंगा जिला के कीरतपुर प्रखंड स्थित रसियारी पौनी गांव पहुँचने में सफल हो गया। 

सामाजिक संस्था मिथिला ग्राम विकास परिषद (एमजीवीपी) द्वारा गठित ‘कोरोना रोकथाम कमेटी’ के संयोजक शोभाकांत यादव ट्रक से गाँव आए मज़दूरों के परिवारों को लेकर उनसे मिलने गाँव के बाहर आए। 

शोभाकांत यादव बताते हैं कि बाहर से गाँव आए मज़दूरों और उनके परिवारों के मिलने का वह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला होता है, जहाँ छोटे बच्चे माँ की गोदी में अपने पिता से मिलने के लिए रोते-मचलते हैं, जब पति और पत्नी एक दूसरे को सिर्फ देख सकते हैं, खुल कर बात भी नहीं कर सकते।”

अमला देवी कहती हैं, “उसकी (गंगाय सदाय) हालत देखकर तो मेरी ही तबीयत ख़राब हो गई। भूख़-प्यास और थकान के मारे सूख कर काँटा हो गया था!”

    शोभाकांत यादव ने सम्बंधित वार्ड सदस्य को इन मज़दूरों के आने की सूचना दी ताकि प्रशासन उनके क्वारंटाइन की उचित व्यवस्था कर सके।

एमजीवीपी के श्री नारायणजी चौधरी कहते हैं कि “शहर से जान बचाकर भाग आए इन मज़दूरों के बारे में यह अफवाह उड़ाते थे कि ये बीमारी लेकर गांव आए हैं। कई ऐसे भी मामले सामने आए जब ऐसे लोगों को गाँव से बाहर खदेड़ दिया गया।”

एमजीवीपी ने ग्रामीणों के बीच जन जागृति के उद्देश्य से कीरत पुर प्रखंड के पंद्रह पंचायतों में कोरोना रोकथाम समिति का गठन किया। यह समिति बाहर से आए लोगों की सूचना और उनके उचित क्वारंटाइन की व्यवस्था के लिए पंचायत और प्रशासन के बीच कड़ी का काम करती है।

शोभाकांत बताते हैं कि बाहर से आए इन मज़दूरों को सरकार द्वारा संचालित इन क्वारंटाइन सेंटर में तुरंत जगह नहीं मिल पाती। ऐसे में हमें इनके लिए आम या बांस के बगीचे में कुछ दिनों के लिए रहने की व्यवस्था करनी पड़ती है।  

गंगाय सदाय और उनके साथी मज़दूरों के साथ भी यही हुआ। अमला देवी बताती हैं कि “हमने बंसबिट्टी (बाँस का बागान) की सफाई की, ताकि वह एक दो दिन तक रहने लायक हो सके। अपने पति को धार (नदी) में लेकर जाकर नहलाए, उसे पहनने के साफ़ कपडे दिए, उसके लिए खाना बनाया।” 

अमला देवी कहती हैं “ उसके (गंगाय) पास कुछ पैसे बचे थे। वह मुझे देना चाहता था, लेकिन अभी हम कैसे लेते? बोले, तुम्हीं रखो अभी। जब घर आ जाओगे तो दे देना!”

 तीन दिन तक बंसबिट्टी में रहने के बाद आज गंगाय और उसके साथी मज़दूरों को क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया गया। गंगाय का 5 साल का बेटा प्रदीप बाप के पास जाने के लिए रो-रो कर जान दे रहा था। अमला बताती हैं कि हमसे उसका जाना देखा नहीं गया, छाती में धड़कन की बीमारी है, जो ऐसे में बढ़ जाती है।

अमला जानती हैं कि कोरोना एक छूत की बीमारी है! उसने अपने बच्चे को भी समझाया कि कुछ दिन में पापा आ जाएँगे, अभी यही समझो कि दिल्ली से नहीं लौटा है। 

अमला के घर और क्वारंटाइन सेंटर की दूरी 2 किलोमीटर से कम है, लेकिन अमला के लिए वह इतनी ही दूर है जितनी दिल्ली।

( जेएनयू से पढ़े मिथिला के रहने वाले श्याम आनंद झा सामाजिक संस्था ‘क्रिया’ के संस्थापक हैं। और तमाम क़िस्म की सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं।)

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