इलीना सेन।

हर बेसहारा मजदूर को दिखता था इलीना में अभिभावक का अक्स

इलीना सेन नहीं रहीं। 

इलीना सेन छत्तीसगढ़ में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता थीं।

वे अपने रिसर्च के सिलसिले में छत्तीसगढ़ आई थीं। यह उस समय की बात है जब छत्तीसगढ़ के दल्ली राजहरा इलाके में मजदूरों के बीच शंकर गुहा नियोगी काम कर रहे थे। शंकर गुहा नियोगी के संघर्ष और निर्माण के प्रयोग ने बहुत सारे नौजवानों को प्रेरित किया था। शंकर गुहा नियोगी ने मजदूरों के लिए उन्हीं के चंदे से एक अस्पताल बनाया था जो पुलिस की गोली से मारे गए मजदूरों की याद में शहीद स्मारक अस्पताल कहलाता है।

यहीं काम के दौरान उनका संपर्क बिनायक सेन से हुआ जो बच्चों के डॉक्टर थे। बाद में दोनों जीवन साथी बने। बाद में बिनायक सेन को सरकार ने आदिवासियों के ऊपर होने वाले जुल्मों के खिलाफ जांच रिपोर्ट प्रकाशित करने के कारण जेल में डाल दिया और उम्र कैद की सजा दे दी। आजकल वे जमानत पर हैं और इलीना सेन तथा बिनायक सेन आजकल कोलकाता में रह रहे थे।  

छत्तीसगढ़ में अपने काम के दौरान शहीद स्मारक के निर्माण में इलीना सेन ने भी अपने सिर पर ईंटें ढोईं थीं। उनके साथी कलाकार लहरिया जो संस्कृति कर्मी हैं, बताते हैं कि आंदोलन में लगे हुए मजदूर साथी घर परिवार छोड़कर काम पर निकल जाते थे अथवा जेल जाते थे। इलीना सेन उन सब के परिवारों से लगातार संपर्क रहती थीं।  वह सैकड़ों परिवारों के बच्चों की जैसे मां थीं। महिलाओं की सहेली थीं। बहन थीं। और साथी थीं। सांस्कृतिक आंदोलन में भी संस्कृतिकर्मी फागूराम यादव द्वारा वीर नारायण सिंह की स्मृति में नवा अंजोर नाटक में इलीना सेन ने भी भाग लिया था और गीत गाए थे। 

इलीना सेन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की साथी संगठन महिला मुक्ति मोर्चा से जुड़ी थीं और उन्होंने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में पितृसत्ता के वर्चस्व के खिलाफ सवाल उठाए और उस को खत्म कराने में महत्वपूर्ण काम किया। इलीना सेन के साथ काम कर चुके संस्कृति कर्मी कला दास डहरिया कहते हैं आज मजदूरों के परिवारों को लग रहा है कि जैसे हमारे परिवार का ही कोई सदस्य चला गया है। 

बिनायक सेन के जेल में जाने के बाद पूरा परिवार अव्यवस्थित हो गया था। इलीना सेन बिनायक की रिहाई के लिए कानूनी लड़ाई में लग गईं। इसी दौरान उन्होंने वर्धा के हिंदी विश्वविद्यालय में वीमेन स्टडी डिपार्टमेंट में पढ़ाया। बाद में वे टाटा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल साइंसेज मुंबई में भी पढ़ाने गईं और कुछ समय रहीं। हर जगह सरकार उन्हें परेशान करती रही। उन्हें कैंसर हो गया था जिसका इलाज चल रहा था। मैं जब 1988 में पहली बार छत्तीसगढ़ आया था कुछ समय बाद जब मैं भोपाल में यूनीसेफ के कार्यालय में गया था तो वहां मुझे सलाह दी गई थी कि यदि आपको बस्तर के बारे में जानना है तो इलीना सेन से मिलिए।

बाद में जन आंदोलनों में हम लोग साथी रहे धीरे-धीरे हमारे पारिवारिक संबंध बनते गए। भाजपा सरकार ने हमारे आश्रम पर बुलडोजर चला दिया। मुझे भी छत्तीसगढ़ से निकलने को मजबूर होना पड़ा। बिनायक सेन, इलीना सेन, मैं और मेरी पत्नी वीणा अक्सर सभा सम्मेलनों में मिलते थे। हिमाचल प्रदेश में संभावना संस्थान में प्रशांत भूषण के आग्रह पर वे लोग आए और छात्रों के बीच अपने जीवन के अनुभव रखे। सेवा कर रहे एक शानदार दंपत्ति को सरकार ने किस तरह परेशान किया, सताया यह देखकर बहुत दिल दुखता है।

(हिमांशु कुमार गांधीवादी कार्यकर्ता हैं और आजकल छत्तीसगढ़ में रहते हैं।)

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