Author: अरुण माहेश्वरी
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यूपी चुनाव: मोदी जी आख़िर इतनी बेतुकी बातें क्यों कर रहे है ?
सब लोग अब यह गौर करने लगे हैं कि यूपी के चुनाव में मोदी के भाषण कुछ अजीबोग़रीब हो रहे हैं। सिवाय कुछ सचेत सांप्रदायिक विभाजनकारी बातों के किसी को उनके भाषणों में कोई तुक नज़र नहीं आ रहा है। वे लोग भी, जो कभी मोदी की वाक्-चातुर्य पर मुग्ध रहा करते थे, आजकल बेहद…
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‘जीते जी इलाहाबाद’: जहां जमुना के छलिया जल जैसे सत्य से आँखें दो-चार होती हैं!
दो दिन पहले ही ममता कालिया जी की किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ प्राप्त हुई, और पूरी किताब लगभग एक साँस में पढ़ गया । इलाहाबाद का 370, रानी मंडी का मकान। नीचे प्रेस और ऊपर रवीन्द्र कालिया-ममता कालिया का घर; नीचे पान की दुकान ऊपर सैंया का मकान ! सन् 1970 में मुंबई से उखड़…
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सीमित ज्ञान का शिकार – भोला पंडित
सोशल मीडिया के ऐसे राजनीतिक टिप्पणीकार मसलन् पुण्य प्रसून वाजपेयी, विजय त्रिवेदी, राहुल देव तथा टीवी और यूट्यूब की बहसों में आने वाले पत्रकार, जिन्होंने आरएसएस और उसके तंत्र का बाक़ायदा अध्ययन किया है, उनमें अक्सर यह देखा जाता है कि वे संघ के तंत्र और उसके कट्टर स्वयंसेवकों की तादाद से इतने विस्मित रहते…
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मोदी-शाह युग का अंत हो चुका है !
बंगाल में मोदी-शाह ने अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी । किसी भी मामले में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी । पर जब जनता डट जाए तो क्या होता है, बंगाल इसका उदाहरण है । अब तो साफ़ है कि जिस सूरज का अस्त पूरब में ही हो चुका है, उसका पश्चिम से फिर से…
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यूपी में बीजेपी की बढ़ती हुई व्यग्रता का अर्थ
यूपी को लेकर बीजेपी की बेचैनी बुरी तरह से बढ़ गई है । अपने सारे सूत्रों से वह यह जान चुकी है कि चीजें अभी जैसी हैं, वैसी ही छोड़ दी जाएं तो चुनाव में उसके परखच्चे उड़ते दिखाई देंगे । हिसाब से तो जनतंत्र में चुनावी हार या जीत राजनीतिक दलों के जीवन में…
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चीन: पूंजीवादी बाजारवाद बनाम समाजवादी ‘प्रकृतिवाद’
राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने चीन में कुछ बड़ी टेक कंपनियों से शुरू करके इजारेदार पूंजी पर लगाम की दिशा में जो कार्रवाइयां शुरू की हैं, वे सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में नहीं, समग्र रूप में चीन के समाज के नये सिरे से निरूपण के उनके अभियान का एक हिस्सा है । इनके जरिये वे आने…
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किसान आंदोलन तैयार कर रहा है बदलाव की नई जमीन
कल के टेलिग्राफ में प्रभात पटनायक का एक लेख है — A Promethian moment ( The farmer’s agitation challenges theoretical wisdom)। बंधन से मुक्ति का क्षण; किसानों के आंदोलन ने सैद्धांतिक बुद्धिमत्ता को ललकारा है। जाहिर है, यह किसान आंदोलन और उसके एक महत्वपूर्ण सबक पर लिखा गया लेख है। अखिल भारतीय किसान सभा के…
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हिंदी के बेडौल अपराध साहित्य की एक नजीर- ‘पिशाच’
पिछली 29 अगस्त को वीडियो पत्रकार अजित अंजुम ने अपने यूपी चुनाव और किसान आंदोलन संबंधी कवरेज के बीच अचानक ही हिंदी के हाल में प्रकाशित एक ‘क्राइम थ्रिलर’ ‘पिशाच’ पर चर्चा की। इसके लेखक संदीप पालीवाल के साथ ही उनके एक मित्र विनोद कापड़ी भी चर्चा में शामिल थे। ये तीनों टेलीविजन के न्यूज…
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बहस में खुल गयी आरएसएस की कलई
‘सत्य हिंद’ वेब पोर्टल पर ‘आशुतोष की बात’ कार्यक्रम में दो दिन पहले की एक लगभग डेढ़ घंटा की चर्चा को सुना जिसका शीर्षक था— ‘हिंदुत्व पर बहस से डरना क्यों’। संदर्भ था ‘विश्व हिंदुत्व को ध्वस्त करने’ के विषय में दुनिया के कई विश्वविद्यालयों का एक घोषित अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार। इस चर्चा में आशुतोष के…
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अफ़ग़ानिस्तान: पुरातनपंथी जुझारूपन कहीं भी स्थिरता नहीं ला सकता
अफ़ग़ानिस्तान में हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला जैसे नेताओं से पहले वार्ता और उसके बाद उन्हें नज़रबंद करने का वाक़या यह सवाल उठाता है कि उस देश में किसी सर्वसमावेशी सरकार का गठन कैसे संभव होगा जहां किसी भी सभा में किसी की उपस्थिति या अनुपस्थिति इस बात से तय होती है कि उसके साथ…