फिलिस्तीन पर इजराइली हमले के बाद बढ़ता इस्लामोफोबिया

सात अक्टूबर को इजराइल पर हमास के बर्बर हमले के बाद से यहूदीवादी इजराइल ने फिलिस्तीनी अस्पतालों, शरणार्थी शिविरों और अन्य नागरिक ठिकानों पर क्रूर हवाई आक्रमण किए। इन हमलों को ‘मानवता के विरुद्ध अपराध’ बताया जा रहा है। इन हमलों में अब तक 10,000 से ज्यादा नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं।

हमारे भारत ने इजराइल के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करने में ज़रा सी भी देरी नहीं की। अमरीका, इंग्लैंड और अन्य कई पश्चिमी देशों के शीर्ष नेता तेल अवीव पहुंचे और उन्होंने इन हमलों को सही ठहराया। युद्धविराम का आव्हान करते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ में जो प्रस्ताव पेश किया गया, उसका कई पश्चिमी देशों ने विरोध किया। यह शर्मनाक है कि भारत ने इस प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया।

हां, भारत ने फिलिस्तीन को कुछ प्रतीकात्मक मदद ज़रूर भेजी। इस सारे भयावह घटनाक्रम पर भारत के अनेक स्तंभकारों ने टिप्पणी की है। इनमें से ज्यादातर ने इस त्रासद घटनाक्रम के लिए हमास के हमले को ज़िम्मेदार ठहराया। कई ने हमास को जिहादी आतंकी बताया और कई ने आतंकवाद के मामले में इजराइल जीरो टॉलरेंस की नीति की तारीफ की।

गोदी मीडिया इजराइल की शान में कसीदे पढ़ रहा है और ‘आतंकी’ हमास की लानत-मलामत कर रहा है। भारत में फिलिस्तीनियों के समर्थन में देश भर में अनेक प्रदर्शन हुए मगर दिल्ली, उत्तरप्रदेश और यहां तक कि विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित बेंगलुरु एवं कोलकता में भी पुलिस ने इजराइली हमलों के खिलाफ प्रदर्शनों की इज़ाज़त नहीं दी।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मुद्दे पर भारत सरकार के आधिकारिक स्टैंड के विरोध की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके विपरीत, पश्चिम में इजराइल के आक्रमण के खिलाफ ढेर सारे प्रदर्शन हुए और यह दिलचस्प है कि इनमें से कई में यहूदियों ने भी हिस्सेदारी की।

भारत में सोशल मीडिया हमास पर बरस रहा है और इजराइल को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। सात अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिक टिप्पणियों की बहार है। भाजपा के आईटी सेल का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। फिलिस्तीन के पक्ष को इस्लामवादी कहा जा रहा है और हमें यह बताया जा रहा है कि हमें इजराइल का समर्थन करना चाहिए। देश में पहले से ही इस्लामोफोबिया का बोलबाला था और गाजा के लोगों पर इजराइल के हमले को उचित ठहरा कर इसे और बढ़ावा दिया जा रहा है।

ऐसा लगता है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से ही इस्लामोफोबिक पोस्टों के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे रहा आया है। हमास और फिलिस्तीन को एक बतलाने और हमास को एक आतंकी, जिहादी संगठन के रूप में प्रस्तुत करने का आख्यान, आईआईटी, मुंबई जैसी प्रतिष्ठित संस्था में भी जारी है।

यहां मानविकी संकाय के एक अध्यापक ने पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में फिलिस्तीन और इजराइल के इतिहास, हमास के गठन के कारणों आदि पर प्रकाश डाला। इसी विभाग में जानी-मानी सांस्कृतिक कार्यकर्ता और जननाट्य मंच की सुधन्वा देशपांडे ने एक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया और फिलिस्तीन पर इजराइल के कब्जे के प्रतिरोध पर बात की।

‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के मुंबई संस्करण में 12 नवम्बर 2023 को प्रकाशित एक खबर के अनुसार, विवेक विचार मंच (आरएसएस समर्थित एक संगठन) से जुड़े कुछ विद्यार्थियों ने उक्त अध्यापक के निलंबन की मांग को लेकर कैंपस में प्रदर्शन किया। मंच से जुड़े विद्यार्थियों ने कई बाहरी लोगों के साथ जुलूस निकाला जिसमें ‘गोली मारो’ के नारे लगाया गए। उन्होंने उक्त अध्यापक और देशपांडे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, यह आरोप लगाया कि वे किसी न किसी मतलब से ‘आतंकियों’ का महिमामंडन कर रहे हैं और यह भी कि उनकी जांच केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा करवाई जानी चाहिए।

अकादमिक स्वंतत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाने के साथ-साथ, यह घटनाक्रम कई प्रश्न उपस्थित करता है। इससे पता चलता है कि इजराइल के फिलिस्तीन पर कब्ज़े और फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध को किस रूप में देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने कहा कि “हमास हवा में पैदा नहीं हुआ है।”

नोएम चोमोस्की लिखते हैं, “गाजा में एक बुजुर्ग प्लेकार्ड लिए खड़े थे जिस पर लिखा, “तुम मेरा पानी ले लोगे, तुम मेरे जैतून के पेड़ जला दोगे, तुम मेरा घर तोड़ दोगे, मेरा काम छीन लोगे, मेरी ज़मीन चुरा लोगे, मेरे पिता को जेल में डाल दोगे, मेरी मां की जान ले लोगे, मेरे देश पर बम बरसाओगे, हम सबको भूखा मारोगे, हम सबका अपमान करोगे, मगर अगर हम एक राकेट दाग दें तो हम दोषी हो जाते हैं।”

गाजा की नाकाबंदी 16 साल से जारी है। वेस्ट बैंक और गाजा पर कब्ज़ा 56 साल से जारी है और फिलिस्तीन के लोगों की उनकी घरों और ज़मीनों से बेदखली 1948 में नस्लीय श्रेष्ठतावादी इजराइल की स्थापना के समय से ही चल रही है।

फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध कई चरणों से गुज़र चुका है। लैला खालिद के नेतृत्व वाले एक संगठन ने 14 लाख फिलिस्तीनियों को शरणार्थी बना दिए जाने के बाद हुए 1972 के म्युनिख ओलंपिक खेलों में इजराइली खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी। इस समस्या के सुलझाव के लिए पीएलओ के यासेर अराफात ने जो प्रयास किये, उनका असफल होना तय था क्योंकि पश्चिमी देशों ने फिलिस्तीनियों पर कई अपमानजनक शर्तें लाद दी थीं। इजराइल ने गाजा को खुला जेल बना दिया है। ऐसे में इजराइल का प्रजातान्त्रिक प्रतिरोध भला कैसे संभव है?

हां, निश्चित रूप से हमास इसका माध्यम नहीं हो सकता। इजराइल ने इस क्षेत्र में शांति और न्याय की स्थापना के लिए पारित किये गए संयुक्त राष्ट्रसंघ के लगभग सभी प्रस्तावों का उल्लंघन किया है। इजराइल आक्रामक ढंग से हमलावर रहा है और अब उसकी नज़र गाजा की पेट्रोलियम संपदा पर है। गाजा के तट से थोड़ी ही दूर स्थित इस खजाने का कुल मूल्य करीब 64 अरब डॉलर है। इजराइल ने अमरीका और यूरोपीय कंपनियों के साथ इसके दोहन के लिए समझौते कर लिए है और अब वह पेट्रोलियम का निर्यातक बनना चाहता है।  

इस सब के बीच हमें यह बताया जा रहा है कि हमास, जिहादी आतंकवाद का पर्याय है और जिहादी आतंकवाद ने अलकायदा, तालिबान, आईएसआईएस और आईइस जैसे संगठनों को जन्म दिया है। आतंकवाद के इस संस्करण को ‘जिहादी आतंकवाद’ कहा जाता है, जो हालिया मानव इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है।

हम सब जानते हैं कि अमरीका ने कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों को बढ़ावा दिया। उसने पाकिस्तान में स्थित मदरसों में मुस्लिम युवकों को प्रशिक्षण दिया और उन्हें हथियार मुहैय्या करवाए। एक इंटरव्यू में हिलेरी क्लिंटन ने बताया था कि किस तरह अमरीका ने मुजाहीदीन नाम के एक अतिवादी मुस्लिम संगठन को प्रशिक्षण दिया ताकि वे अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की सेना के खिलाफ लड़ सकें।

महमूद ममदानी ने अपनी पुस्तक ‘गुड मुस्लिम, बैड मुस्लिम’ (ओरिएंट लॉन्गमैन, 2003) में सीआईए के दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि अमरीका ने मुजाहीदीन-अलकायदा के लड़ाकों को प्रशिक्षित करने पर करीब 800 करोड़ डॉलर खर्च किये और उन्हें 7,000 टन हथियार उपलब्ध करवाए और यह भी कि इसका अंतिम नतीजा क्या हुआ। 9/11 के बाद, अमरीकी मीडिया ने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द गढ़ा।

अमरीका के प्रचार तंत्र ने इस्लामोफोबिया को जम कर हवा दी और पूरी दुनिया का मीडिया इसकी गिरफ्त में आ गया। भारत में पहले से ही मुसलमानों के प्रति बैरभाव था। इस्लामोफोबिया जल्दी ही भारत की सामूहिक सोच पर हावी हो गया। गोदी मीडिया, सोशल मीडिया, कॉर्पोरेट घरानों के मालिकाना हक वाले टीवी चैनलों, और हिन्दू बहुसंख्यकवादी संगठनों ने मुंह-जुबानी प्रचार के ज़रिये इसे बढ़ावा दिया।

इसका ही नतीजा है कि अगर किसी अकादमिक संस्था में आमंत्रित वक्ता इजराइल के निर्माण के इतिहास, उसके द्वारा फिलिस्तीन की भूमि पर कब्ज़े और उस क्षेत्र के कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा करने की इजराइल की लिप्सा की बात करता है तो उसे आतंकवाद को बढ़ावा देना बताया जाता है।

दुनिया के हालिया इतिहास में शायद इजराइल एकमात्र ऐसा देश है जिसमें प्रवासियों ने धीरे-धीरे एक पूरे क्षेत्र के मूल निवासियों को वहां से बाहर धकेल दिया और प्रजातान्त्रिक प्रतिरोध के उनके सभी रास्ते बंद कर दिए। और फिर जब हमास ने हिंसा की तो पूरे देश पर बर्बर हमला शुरू कर दिया गया।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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Sheikh Shadi
Sheikh Shadi
Guest
5 months ago

Facts, Truths, Ground realities and Hidden truths are very needed for the now times… for overall development of our multi religious,multi… beloved land…Good wishes,Janchowk.Jai Hind 🇮🇳🇮🇳💕