शनिवार 3 जून की रात यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलनरत खिलाड़ियों की गृहमंत्री अमित शाह से हुई मुलाक़ात के बाद गोदी मीडिया ने खिलाड़ियों के डर जाने, आंदोलन के बिखर जाने और आरोपों से मुकर जाने की जो झूठी खबरें उड़ाईं और बिना किसी लाज शर्म के धड़ा-धड़ चलाईं, उनका गुब्बारा तो दोपहर होने से पहले ही पिचक गया। जिन आंदोलनकारी कुश्ती खिलाड़ियों का नाम लेकर इन खबरों को फैलाया जा रहा था उन्होंने एक-एक करके न केवल इस प्रायोजित प्रोपेगेंडा का खंडन किया बल्कि इस तरह के मीडिया की भी कसकर खबर ली।
साक्षी मलिक ने कहा कि; “ये खबर बिल्कुल गलत है। इंसाफ की लड़ाई में ना हम में से कोई पीछे हटा है, न हटेगा। सत्याग्रह के साथ-साथ रेलवे में अपनी जिम्मेदारी को साथ निभा रही हूं। इंसाफ मिलने तक हमारी लड़ाई जारी है। कृपया कोई गलत खबर न चलाई जाए।” उन्होंने कहा कि “हमने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। यह एक सामान्य बातचीत थी। हमारी केवल एक ही मांग है और वह है बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार करना। मैं विरोध प्रदर्शन से पीछे नहीं हटी हूं। मैंने रेलवे में ओएसडी के रूप में अपना काम फिर से शुरू कर दिया है। मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि जब तक हमें न्याय नहीं मिल जाता तब तक हम विरोध करते रहेंगे। हम पीछे नहीं हटेंगे।”
दूसरी महिला खिलाड़ी विनेश फोगाट ने और भी कड़े शब्दों में अपना गुस्सा जताया। सोशल मीडिया और मीडिया में चल रही कई ‘अफवाहों’ पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए विनेश ने अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखा कि; “महिला पहलवान किस ट्रॉमा से गुज़र रही हैं इस बात का एहसास भी है फर्जी खबर फैलाने वालों को? कमजोर (हम नहीं हैं, कमजोर) मीडिया की टांगें हैं जो किसी गुंडे के हंटर के आगे कांपने लगती हैं, महिला पहलवान किसी गुंडे से नहीं डरतीं।” इसी तरह का वक्तव्य बजरंग पूनिया का भी आया जिसमें उन्होंने कहा कि इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी।
कुल मिलाकर यह कि अमित शाह से मुलाक़ात के बाद, जो देर रात तक उनके सरकारी आवास में चली और जिसमें उनके अलावा कई कोच भी शामिल थे, खिलाड़ियों का हौसला कायम है; सरकार का हौसला जरूर कमजोर होता दिखा है। सरकार में दूसरे नम्बर पर विराजे अमित शाह की मुलाक़ात और उसके बाद लम्बे समय से मुंह में दही जमाये बैठे खेल मंत्री अनुराग ठाकुर का इस मुद्दे पर बयान आना मोदी सरकार के दिल के अचानक पसीज जाने का नहीं, इस जघन्य मामले में अब तक निबाही गयी भूमिका के गंभीर परिणामों की आशंका से उपजे भय और घबराहट का परिणाम है।
इस बात के संकेत तीन दिन पहले यौन दुराचारी बृजभूषण शरण सिंह द्वारा अपने समर्थन में 5 जून को अयोध्या में बुलाई जाने वाली कथित 11 लाख साधुओं की अनुमति न दिए जाने के ‘जिला प्रशासन’ के कथित फैसले से मिलने लगे थे कि सारे दांव पेंच असफल हो जाने के बाद अब मोदी सरकार अपनी फजीहत और देश दुनिया में हो रही थू-थू से पल्ला झाड़ने के लिए किसी पतली गली की तलाश में है। वरना यही अमित शाह मई जून की तपती दोपहरी में जंतर-मंतर पर खिलाड़ियों के बैठने, 28 मई को उन्हें खींचने और घसीटने के समय भी गृह मंत्री थे- उन्हें तब तरस नहीं आया तो अब पैदा हुयी करुणा भी अचानक नहीं पैदा हो गयी।
2 जून के इंडियन एक्सप्रेस में छपी इन महिला खिलाड़ियों की एफआईआर ने पूरे देश को स्तंभित और विचलित करके रख दिया था। नाबालिग कुश्ती खिलाड़ी सहित करीब 7 महिला खिलाड़ियों ने बृजभूषण शरण सिंह द्वारा अपने साथ किये यौन दुराचरण की घटनाओं का जो ब्यौरा दिया था वह किसी भी सभ्य समाज के किसी भी मनुष्य नाम के प्राणी को शर्मसार करने वाला था। इस एफआईआर में दर्ज एक पीड़िता का यह कथन कि “उसने खुद प्रधानमंत्री मोदी से निजी मुलाकात के दौरान उनको बृजभूषण शरण सिंह के इस अपराध की जानकारी दी थी और बाद में इस शिकायत की जानकारी अपराधी तक भी पहुंच गयी थी”, भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की बची खुची कलई भी उतारने वाला था।
इस बीच दो महत्वपूर्ण घटनाएं और घटीं जिनसे अब तक इस जायज आंदोलन को राजनीतिक आंदोलन बताने वाला कुहासा और तार-तार हुआ। पहला था 1983 का विश्वकप जीतने वाली कपिल देव, सुनील गावस्कर, मदनलाल और चेतन शर्मा वाली क्रिकेट टीम का सामूहिक बयान जारी कर खिलाड़ियों के समर्थन में खुले आम आना।
1983 विश्व कप विजेता टीम ने जारी संयुक्त बयान में कहा कि ”हम चैंपियन पहलवानों के साथ बदसलूकी की तस्वीरें देखकर काफी व्यथित हैं। हमें इसकी काफी चिंता है कि वे मेहनत से जीते गए पदकों को गंगा में बहाने की सोच रहे हैं। इन मेडलों के पीछे बरसों के प्रयास, बलिदान, समर्पण और मेहनत शामिल है। वे उनका ही नहीं बल्कि देश का गौरव हैं। हम उनसे अनुरोध करते हैं कि इस मामले में आनन-फानन में फैसला नहीं लें और (साथ ही) हम उम्मीद करते हैं कि उनकी शिकायतें सुनी जाएंगी और उनका हल निकाला जाएगा। कानून को अपना काम करने दीजिए।”
खेल की दुनिया के इन सचमुच के नायकों के बयान की ऐसी नैतिक शक्ति थी जिसकी अनदेखी करना किसी तानाशाह के बूते में भी नहीं है। दूसरा, अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ और विश्व कुश्ती संघ द्वारा भारत की महिला खिलाड़ियों के साथ पुलिसिया बर्ताव और सरकार की भूमिका की निंदा के साथ समुचित कार्रवाई न होने पर भारत की कुश्ती फेडरेशन को विश्व मुकाबलों में हिस्सा न लेने देने की चेतावनी से भी सरकार पर दबाव पड़ा।
जाहिर है ये वे लोग और ऐसे संस्थान हैं जिन्हें मोदी की भाजपा का पालित पोषित मीडिया और संघ की संस्कारित आईटी सेल अपनी लाख कोशिशों के बाद भी नहीं निबट सकती थी- उनका खोखला राष्ट्रवाद भी काम नहीं आ सकता था। यौन अपराधी बृजभूषण शरण सिंह की ढाल कवच बनी भाजपा और संघ की दुविधा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जा रही थी।
इन सबके साथ लेकिन इन सबसे भी ख़ास बात थी सब कुछ के बावजूद इन खिलाड़ियों का निडरता के साथ डटे रहना। आंदोलन के दौरान उनके मनोबल को तोड़ने के लिए पूरे गिरोह द्वारा अभियान चलाने, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह द्वारा मोदी-अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के संरक्षण का खुलेआम दावा करने, आंदोलनकारी खिलाड़ियों को कैकेयी और मंथरा कहने सहित न जाने कितने-कितने जहर उगल कर इनका मनोबल तोड़ने के शकुनी दांव चले गए, 28 मई को कैमरों के सामने उनकी हड्डी पसलियां तोड़ने के कुकर्म किये गए, दिल्ली पुलिस से यौनाचारी भाजपा सांसद को क्लीन चिट्स दिलवाई गयीं, कथित क्षत्रियों की पंचायतें करके धमकियां दिलवाई गयीं- मगर खिलाड़ी डटे रहे।
सबसे पहले उनके समर्थन में किसान और उनका संयुक्त किसान मोर्चा अपनी पूरी ताकत के साथ सामने आया, उसके बाद महिला संगठन, छात्र-युवा-खिलाड़ी-कलाकार और श्रमिक संगठनों की कतारें आ खडी हुईं। ताजे समय में यह एक अभूतपूर्व लामबंदी थी। समर्थन की व्यापकता के आयाम के मामले में इसका फलक और समावेशिता हाल के दौर की सबसे बड़ी कार्रवाई 13 महीने के किसान आंदोलन से भी कहीं ज्यादा और असरकारक थी। किसान आंदोलन की तरह एक बार और हठी और अहंकारी के गरूर को तोड़ने वाला यह संघर्ष और लगभग पूरी भारतीय जनता की एकता थी जिसने अमित शाह को आधी रात में इन खिलाड़ियों से मिलने के लिए मजबूर किया।
जैसा कि कई बार पहले भी लिखा और कहा जा चुका है; मौजूदा सरकार इस देश की पहली ऐसी सरकार है जिसकी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है, जिसकी कथनी और करनी में कोई मेल नहीं है। दूसरों की तो छोड़िये खुद इनके अपने कुनबे के लोग इनके कहे पर यकीन नहीं करते। ठीक यही वजह है कि अमित शाह की मुलाक़ात के बाद दोनों तरह के अनुमान और कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसा होना निराधार भी नहीं है- अमित शाह, जिन्हें उनके चाटुकारों की जमात चाणक्य की उपाधि देकर अक्सर असली चाणक्य की हतक-इज्जती करती रहती है, ऐसी कथित उच्च-स्तरीय मीटिंगें करने, अपने श्रगाल-वृन्द से समाधान निकल जाने का शोर मचवाने और उसके बाद सब कुछ भूल जाने के मामले में कुख्यात हैं।
किसान आंदोलन के दौरान भी वे ऐसी ही चतुराई दिखा चुके हैं- जब ठीक इसी तरह, इसी जगह, इसी समय कुछ किसान नेताओं के साथ मुलाक़ात कर आंदोलन खत्म हो जाने का शोर मचवाया गया था। यह अलग बात है कि जमीन से जुड़े किसान इनकी रग- रग से वाकिफ थे और झांसे में नहीं आये- डटे रहे। हालांकि उसके बाद भी जो समझौता करने के लिए सरकार को मजबूर किया गया उसे भी मानने की ईमानदारी नहीं दिखाई। इसी अदा को वे इन खिलाड़ियों के साथ आजमाना चाहते हैं और काठ की हांडी को दोबारा चढ़ाना चाहते हैं।
मगर असल में अब बात जहां तक पहुंच चुकी है, वह प्रचलित कहावत “सौ जूते भी खायेंगे और सौ प्याज खायेंगे” का पल है और अब यह तय हो चुका है कि इस मामले में मोदी सरकार इस कहावत को अपने ऊपर अमल में लाने वाली है। सारी चतुराईयां दिखाने के बावजूद बृजभूषण शरण सिंह भी जायेंगे और चूक सुधारने की कितनी भी कोशिशें और हमदर्दी दिखाने का कितना भी दिखावा कर लें, 2024 के चुनाव में इसकी कीमत चुकाते हुए यह सरकार भी जायेगी।
(बादल सरोज, लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसानसभा के संयुक्त सचिव हैं।)