यमुना की सफाई बात से नहीं काम से ही संभव

जब यह कहा जाता है कि यह नदी मर रही है, या मर गई है तो यह बात उसमें बह रहे पानी के आधार पर कही जाती है। यमुना के संदर्भ में भी यह बात सच है। दिल्ली में आकर इस शहर के विशाल कचरे को साथ लिए नाले जब यमुना में उतरते हैं तब यह नदी कचरा से भरे एक नाले में तब्दील हो जाती है। यमुना के पानी में इतने रासायनिक तत्वों से भरा हुआ गाद और गंदा पानी गिरता है कि इसके पानी में आक्सीजन की मात्रा को ही खा जाता है। यमुना के पानी में जो प्राकृतिक जीव, मछलियां आदि हैं, इस आक्सीजन की मात्रा के न होने से जीने की स्थिति में रह ही नहीं जाते हैं। यमुना की जो प्रकृति है नष्ट हो जाती है। यह अपनी भौगोलिक अवस्थिति के कारण तो यमुना कहलाती है लेकिन इसकी आत्मा यहां कुचल दी जाती है। यमुना एक नाले में बदल जाती है।

दशकों से यमुना की सफाई का अभियान चल रहा है। लेकिन, स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आ रहा है। लेकिन, दावा और फोटो खिंचवाने का अभियान खूब चलता रहता है। यमुना सफाई के लिए हजारों करोड़ के बजट बनते हैं और उसे केंद्र और राज्य सरकार जारी भी करती है। इन पैसों से यह सफाई कितनी हो सकी, इस मसले पर दावे और सच्चाई में फर्क हमेशा से बना रहा।

यह साल भी पिछले सालों की तरह ही रहा। दावे किये गये, इन दावों पर केंद्र और राज्य की सरकार ने अपनी पीठ भी थपथपाई, एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाये लेकिन अंत में यही हुआ कि सफाई के इन दावों के बीच यमुना की सफाई के लिए उतरी एक नाव यमुना के कचरे में फंस गई और वहां कई दिनों तक वहीं फंसी रही। नौसेना की बारासिंहा नाम की यह नाव यमुना की गाद को हटाने के लिए आई थी और वह उसी में जाकर फंस गई थी। यह एक ऐसी स्थिति थी जिस पर केंद्र और राज्य दोनों की ओर से बयानबाजी नहीं हुई और इन दोनों के बीच चल रही बयानबाजियों पर विराम लग गया।

दिल्ली के गवर्नर का दावा है कि अगले 6 महीने में यमुना पूरी तरह से साफ हो जाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री का दावा है कि वह यमुना को इतना साफ कर देंगे कि इसमें 2025 में लोग डुबकी लगाकर नहायेंगे। यहां यह जान लिया जाये कि यमुना को साफ करने के लिए इस समय 11 प्रोजेक्ट काम कर रहे हैं। एक प्रोजेक्ट के तहत तो बकायदा यमुना के तट पर बनारस के घाट की तर्ज पर आरती भी होती है। दिल्ली सरकार ने पिछले महीने से एक नया ‘आई लव यमुना’ अभियान दिल्ली के आईटीओ के पास वाले छठ घाट से किया है। इसके लिए पर्यावरण को प्यार करने वाले छात्रों को भी पंजीकृत किया जा रहा है जिससे कि शहर और इस नदी की परिस्थितिकी में बदलाव और सुधार लाया जा सके।

हम जानते हैं कि पर्यावरण चेतना से पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता तो बढ़ती है लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली नीतियों और स्रोतों पर यदि काम नहीं किया जाये तो पर्यावरण और परिस्थितिकी पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ता है। भारत की बहुत सारी नदियां सिर्फ इसलिए नहीं बच पा रही हैं कि इसके लिए बहुत सारा प्रयास हो रहा है। यह इसलिए बच पा रही हैं क्योंकि मानसून के समय हुई बारिश के बहाव से शहर का कचरा, गाद और रसायनिक पदार्थ काफी हद तक साफ हो जाते हैं। जैसे-जैसे मानसून का असर कम होता जाता है यमुना का पानी काला और फेन से युक्त होने लगता है। यही स्थिति और भी नदियों की है।

सफाई अभियानों का असर अब बेहद कम और कई जगह तो नाममात्र का ही दिखता है। इस मामले में उत्तर-प्रदेश में गंगा, गोमती और यमुना की सफाई के नाम पर उन उद्योगों पर ही नकेल डाल दी गई, जिनका पानी इन नदियों को ‘गंदा’ कर रहा था। इसमें मुख्य था चमड़ा उद्योग। आगरा से लेकर कानपुर और लखनऊ तक इस नीति का असर लोगों की आय और रोजगार पर पड़ा। जबकि नोएडा से लेकर सिंकदरा और कानपुर से लेकर लखनऊ तक शहर की गंदगी और उद्योगों का रसायन इनसे जुड़े शहरों को कितना गंदा कर रहा था, न तो इस पर कुछ खास बात हुई और न ही इनसे पैदा होने वाली गंदगी को किस तरह साफ किया जाय, कोई प्रोजेक्ट बनते हुए देखा गया।

बहरहाल, दिल्ली में ऊपर के तरीकों को शीला दीक्षित की सरकार के समय अख्तियार किया गया था, लेकिन यमुना की सफाई पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। इसी बीच नजफगढ़ ड्रेन की सफाई का अभियान जारी हुआ। साथ ही वाॅटर ट्रीटमेंट प्लांट में बढ़ोत्तरी हुई। पुराने समय के जलाशयों को साफ करने का अभियान चलाया गया और इसमें गिर रहे गंदे पानी को वाॅटर ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ दिया गया। इससे यमुना में गिर रहे पानी की क्वालिटी में फर्क आया।

लेकिन, यहां समझना भी जरूरी है कि यह जलाशयों का उद्धार नहीं था। कई सारी झीलें ट्रीटमेंट प्लांट लग जाने से बेहतर हुई हैं लेकिन उसमें शहर का गंदा पानी ही गिर रहा है। ये अपनी परिस्थितिकी के साथ वापसी करने की ओर अभी भी नहीं हैं। यहां यह रेखांकित करना जरूरी है कि दिल्ली अरावली की पहाड़ियों पर बसा हुआ शहर है जिसमें खूब सारी झील, तालाब और बावलियां हैं। यमुना की सफाई का अर्थ इन पानी के स्रोतों का भी मुक्त होना भी है।

नजफगढ़ ड्रेन की सफाई के लिए उठाये कदम का असर यह हुआ कि उसमें से बहकर आ रहे पानी में पिछले छह महीनों से निरंतर सुधार होते हुए देखा गया। मई, 2023 में बायोकेमिकल ऑक्सीजन की मांग-बीओडी पिछले साल के 55 मिग्रा प्रति लीटर से घटकर 38 मिग्रा प्रतिलीटर पर आ गया। इसका सीधा अर्थ यही है कि रसायनिक तत्वों की मात्रा घटी है। इसका यह भी अर्थ है कि दूसरे तत्व इसमें सांस लेने की मोहलत ले सकते हैं। यदि हम 2022 और 2023 के एनजीटी के आंकड़ों को प्रति महीने के हिसाब से देखें, तो इस मई के महीने में ही एक बड़ा परिवर्तन होते हुए दिख रहा है। बाकी में कुछ खास फर्क नहीं दिखता है।

मई के महीने में हुआ परिवर्तन निश्चित ही उत्साहित करने वाला है, और इन्हीं आंकड़ों के आधार पर गवर्नर से लेकर दिल्ली सरकार के मंत्री तक यमुना की सफाई पर दावे करने लगे और फोटो खिंचवाने लगे। लेकिन, यह पानी की गुणवत्ता में सुधार बना रहेगा, इस पर आने वाले दिनों में कुछ साफ कहा जा सकेगा। सीवेज से जुड़े 29 प्रोजक्ट में से 17 को अब जाकर डीडीए ने जमीन मुहैया कराया है। यदि ये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम करने लगें, तब निश्चय ही यमुना की सफाई पर असर पड़ेगा।

यहां कचरा और गाद को निपटाना भी एक बड़ा काम है। यह पानी के बहाव को बनाये रखने पर ही संभव होता है। यमुना में गिर रहे गाद और कचड़ा का आकार और भार के अनुपात में पानी का बहाव का बना रहना भी जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर पानी के नीचे इनके इकठ्ठा होने की गति बढ़ने से नदी के बहाव, उसकी दिशा और किनारों की परिस्थिति को प्रभावित करेगा।

दिल्ली सरकार लगातार हरियाणा सरकार के साथ यमुना में पानी छोड़ने को लेकर विवाद में रही है और अब इसमें नया विवाद रसायनिक कचरे को यमुना में डालने को लेकर भी बन रहा है। यमुना की सफाई में कई सारे रोड़े हैं, लेकिन इसमें मुख्य बाधा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपनाई जा रही नीति और उसके प्रयासों में ही सन्निहित है। इसे ठीक किये बिना यमुना की सफाई एक चुनौती की तरह बनी रहेगी और यमुना एक गंदा नाला बनकर इस शहर से होते हुए ही आगे जाएगी। जरूरत है यमुना को जिंदा करने के लिए एक ईमानदार प्रयास और नीतियों में बदलाव की, जिसका अंतिम निर्णय केंद्र और राज्य की सरकारों के पास ही है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

अंजनी कुमार
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