बेहद जोखिमपूर्ण स्थिति में पहुंच गयी है भारत की जलवायु


जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति की ताजा रिपोर्ट की चेतावनी स्पष्ट है कि दुनिया को अपने विकास की गति और दिशा तत्काल बदलने की जरूरत है। इसके साथ ही ऐसी तकनीक अपनाने की जरूरत है जो वायुमंडल में इकट्ठा ग्रीनहाऊस गैसों को सोख सके। यह चेतावनी और सलाह पहली बार नहीं दी गई है, इस बार नया यह है कि खतरे को अधिक साक्ष्यों के साथ असंदिग्ध रूप से बताया गया है। और पेरिस समझौते में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तत्पर होने की अपरिहार्यता रेखांकित की गई है।

यह रिपोर्ट कई संभावनाओं की चर्चा करती है। अगर जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर विकास की गति यही रही तो 2050 तक उत्सर्जन दो गुना हो जाएगा और 2100 तक धरती का तापमान 4.4 डिग्री अधिक हो जाएगा। अगर थोड़ी सावधानी बरतते हुए 2060 तक शून्य उत्सर्जन की स्थिति प्राप्त कर ली जाए और उसके बाद नकारात्मक उत्सर्जन हो तो तापमान में 1.4 डिग्री बढ़ोत्तरी होगी। लेकिन अभी की स्थिति में तापमान में बढ़ोत्तरी 1.5 डिग्री की सीमा को दो दशकों में पार कर जाएगा। अभी ही तापमान औद्योगीकरण के पहले की स्थिति से 1.09 डिग्री अधिक हो गई है। प्राकृतिक कारणों से 0.1 डिग्री की बढ़ोत्तरी हुई होगी। बाकी मानवीय गतिविधियों के कारण हुई है।

भारत की स्थिति अधिक जोखिमपूर्ण है। देश का तीन चौथाई इलाका चरम मौसम की स्थिति से जोखिमग्रस्त है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 27 राज्य अत्यधिक जोखिमग्रस्त हैं। इन अतिरेक मौसम की घटनाओं में अत्यधिक वर्षा, भयानक सूखा, तूफान और वज्रपात आदि शामिल हैं।
कौंसिल ऑन एनर्जी, इंवायरोमेंट एंड वाटर( सीईईडब्लू) की इस रिपोर्ट में जलवायु के लिहाज से भारत का जिलावार आकलन किया गया है। देश भर में फैले 640 जिलों के इस आकलन में 463 जिलों को अत्यधिक बाढ़, सूखा और तूफान से जोखिमग्रस्त पाया गया है जो 27 राज्यों में पड़ते हैं।
सर्वाधिक जोखिमग्रस्त जिलों में धेमाजी और नगांव असम में हैं, खम्मम तेलंगाना में, गजपति ओडीसा में, विजयनगरम आंध्रप्रदेश में, सांगली महाराष्ट्र में और चेन्नई तमिलनाडु में हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति की ताजा रिपोर्ट और सीईईडब्लू की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि उपयोग के बदलने और प्राकृतिक पारिस्थितिकी में गिरावट के कारण जोखिम बढ़ा है। सीईईडब्लू के कार्यक्रम अधिकारी और इस रिपोर्ट के लेखक अविनाश मोहंती ने कहा कि केरल और पश्चिम बंगाल की स्थिति बेहतर है क्योंकि उन्होंने जलवायु कार्ययोजना को लागू करना शुरू कर दिया है। केरल ने 2018 की बाढ़ का मुकाबला बेहतरीन ढंग से किया। दोनों राज्यों में समुद्र तटीय राज्य होने से बाढ़ और तूफान नियमित रूप से आते हैं। लेकिन जोखिमग्रस्त राज्यों की सूची में सबसे नीचे हैं क्योंकि उन्होंने आपदा से निपटने का तंत्र विकसित कर लिया है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति का गठन 1988 में हुआ। तब से वह वैश्विक जलवायु के बारे में लगातार अध्ययन कर रही है। इस बार उसकी छठी रिपोर्ट आई है। पहली रिपोर्ट 1990 में आई थी।

इन रिपोर्टों में साक्ष्यों के आधार पर लगातार कहा जाता रहा है कि 1950 के बाद पृथ्वी का तापमान लगातार तेजी से बढ़ रहा है। इन रिपोर्टों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन होते हैं और दुनिया भर की सरकारों के बीच विचार विमर्श होता है। इन सम्मेलन में न केवल वैश्विक जलवायु की स्थिति पर चर्चा होती है, बल्कि उसके लिहाज से आवश्यक कार्रवाइयों के बारे में भी फैसले किए जाते हैं। इस वर्ष 26 वां जलवायु सम्मेलन ब्रिटेन (स्कॉटलैंड) के ग्लासगो में होने जा रहा है। आईपीसीसी का मुख्यालय स्विटजरलैंड के जेनेवा में है।

इस बार अगस्त में जारी छठी रिपोर्ट में न केवल विभिन्न सटीक साक्ष्यों के आधार पर तापमान में बढ़ोत्तरी के बारे में पूर्वानुमान किया गया है, बल्कि सरकारों के लिए कार्रवाई के बिन्दुओं के बारे में भी सुझाव दिया गया है। आईपीसीसी रिपोर्टों में आमतौर पर वैश्विक परिदृश्य की चर्चा की जाती है। हालांकि जलवायु की स्थिति में क्षेत्र के अनुसार उल्लेखनीय फर्क रहता है। इस ताजा मूल्यांकन रिपोर्ट में इसका ख्याल रखा गया है, बल्कि क्षेत्रवार आकलन पर ज्यादा जोर दिया गया है। अर्थात यह रिपोर्ट बता रही है कि बंगाल की खाड़ी में समुद्र तल कितना ऊपर उठ जाएगा, केवल यह बताकर नहीं रह जाती कि वैश्विक स्तर पर समुद्र तल में कितना उछाल आएगा।

आईपीसीसी की पहली रिपोर्ट 1990 में आई जिसमें पहली बार बताया गया कि मानवीय गतिविधियों की वजह से होने वाले कार्बन उत्सर्जन से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है। साथ ही वैश्विक तापमान पिछले 100 वर्षों में 0.03 से 0.06 डिग्री बढ़ी है। यही गति रही तो 2025 तक 2 डिग्री और 2100 तक औद्योगीकरण की स्थिति से 4 डिग्री की बढ़ोत्तरी होगी। समुद्र तल में 65 सेंटीमीटर बढ़ोत्तरी होगी। इस रिपोर्ट के आधार पर संयुक्त राष्ट्र का फ्रेमवर्क कन्वेंशन की स्थापना हुई जिसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन को लेकर 1992 से वैश्विक विचार-विमर्श होता है।

आईपीसीसी की दूसरी रिपोर्ट 1995 में आई जिसने वैश्विक तापमान में 3 डिग्री बढ़ोत्तरी होने की आशंका जताई। इस रिपोर्ट के आधार पर 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल के रूप में दुनिया के देशों में एक समझौता हुआ। तीसरी रिपोर्ट 2001 में जिसने वैश्विक तापमान में 1990 की तुलना में 2100 तक 1.4 डिग्री से 5.8 डिग्री तक बढ़ोत्तरी होने का अंदेशा जताया गया। समुद्र-तल में 1990 की तुलना में 80 सेंटीमीटर बढ़ोत्तरी होने, साथ ही चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता, मियाद में बढ़ोत्तरी होने का अंदेशा जताया गया। इस रिपोर्ट में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी मानवीय गतिविधियों की वजह से होने के अधिक ठोस साक्ष्य प्रस्तुत किए गए।

चौथी रिपोर्ट 2007 में आई। इसमें बताया गया कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 1970 से 2004 के बीच 70 प्रतिशत बढ़ गया है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता पहले से बहुत ज्यादा हो गई है। आशंका जताई गई कि वैश्विक तापमान में 2100 तक 4.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी हो सकती है। रिपोर्ट में 2009 में प्रस्तावित कोपेनहगेन जलवायु सम्मेलन के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। यह चौथी रिपोर्ट इस मामले में उपलब्धियों के साथ आई कि इसी वर्ष आईपीसीसी को शांति का नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

पांचवीं रिपोर्ट 2014 में आई जिसमें कहा गया कि सन 2100 तक वैश्विक तापमान में 4.8 डिग्री तक बढ़ोत्तरी हो सकती है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएच4 और नाइट्रोजन ऑक्साइड की सांद्रता बीते 8 लाख वर्षों में सर्वाधिक हो गई है। लू चलने की घटनाएं दीर्घककालीन और बारंबार होंगी। बड़ी संख्या में जीव-जंतुओं का विनाश हो जाएगा। इस रिपोर्ट ने पेरिस समझौता 2015 का वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किया। इस समझौते में वैश्विक तापमान में 2 डिग्री से अधिक बढ़ोत्तरी नहीं होने देने की सहमति हुई।

इसके लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और विभिन्न उपायों से 2060 तक शून्य उत्सर्जन की स्थिति प्राप्त करने की सहमति बनी। इसके लिए गरीब देशों को आर्थिक सहायता दी जानी थी। हालांकि बाद में सबसे बड़ा उत्सर्जक अमेरीका समझौते को मानने से इनकार करते हुए इससे बाहर निकल गया। इस महीने होने वाले जलवायु सम्मेलन में भी अमेरीका और चीन के रुख पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ जलवायु और पर्यावरण से जुड़े मामलों के जानकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
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अमरनाथ झा