मिचौंग चक्रवात से तमिलनाडु में भारी तबाही; आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा पर भी असर

नई दिल्ली। बंगाल की खाड़ी से उठा मिचौंग नाम का भीषण चक्रवात 2 दिसंबर को ही गति पकड़ लिया था। वह 4 दिसंबर को आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पुडुचेरी के तटों को प्रभावित करने लगा था। इसकी शुरूआती रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा थी, जो लगातार बढ़ती गई। इसने जल्द ही 100 किमी से अधिक की रफ्तार पकड़ ली और आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तट से टकाराया।

बापटला, नेल्लोर और मछलीपट्टनम् के इलाकों में यह तूफान जमीन से टकराया लेकिन जल्द ही वह राज्य के भीतरी इलाकों में तेज चक्रवाती हवा और बारिश से तबाही ढाना शुरू कर दिया। समुद्र की लहरों की विशाल उठान ने तटीय इलाकों को अपने चपेट में ले लिया। चेन्नई में भारी बारिश से तबाही का मंजर खड़ा हो गया है। अभी तक वहां 17 लोगों के मारे जाने की खबर है।

यहां पिछले 50 सालों में हुई सबसे अधिक बारिश हुई है। 80 प्रतिशत से अधिक इलाकों में बिजली आपूर्ति रुकी हुई है। इसका असर मोबाइल नेटवर्क पर भी पड़ा है। 70 प्रतिशत नेटवर्क कनेक्टिविटी की समस्या से प्रभावित हुए हैं। जबकि रेलवे और हवाई यात्राएं पहले ही निरस्त करने का निर्णय लिया जा चुका था।

रेलवे लाइनों से लेकर हवाई अड्डों तक में पानी भरने की खबर है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश दोनों ही जगहों पर भारी बारिश और तेज हवा के चलते किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। बांध, झीलों और तालाबों में सामान्य से अधिक पानी का भराव हो गया है।

मिचौंग चक्रवात कल रात तक तेलंगाना की ओर बढ़ते हुए रफ्तार खोने लगा था। लेकिन, इसकी जद में आने वाले इस राज्य के अलावा ओडिशा में भी बारिश देखी जा रही है। इसका असर बिहार और उत्तर-प्रदेश के पूर्वी हिस्से तक आया है। लेकिन, तबाही का केंद्र तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ही मुख्य रूप से रहा।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने तबाही को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार से 5060 करोड़ रुपये की सहायता राशि की मांग किया है। एनडीआरएफ की टीम के साथ साथ राज्य सरकार की ओर से 60 हजार से अधिक सहायता केंद्र स्थापित किये गये हैं।

क्या है मिचौंग चक्रवाती तूफान?

समुद्र में अक्सर चक्रवाती तूफान बनते रहते हैं, खासकर उन समुद्री इलाकों में जिनकी सतह गर्म होती है। कई बार ये तूफान समुद्र से चलते हुए तटों के आसपास तक ही सीमित रहते हैं। लेकिन, कुछ तटीय इलाकों से बढ़ते हुए मैदानी इलाकों में बढ़ जाते हैं। इससे तबाही का असर काफी बढ़ जाता है।

अल नीनो के असर और अमूमन बंगाल की खाड़ी के गर्म रहने की वजह से इस बार चक्रवाती तूफान बनने का मामला अधिक दिख रहा है। इस साल बंगाल की खाड़ी में यह चौथा चक्रवाती तूफान है। हिंद महासागर को जोड़ दिया जाए तब यह संख्या छह हो जायेगी।

ये चक्रवाती तूफान अक्सर तटों के साथ टकराते हैं और तेज हवा के चलते न सिर्फ समुद्री लहरों से तटीय इलाकों में तबाही लाते हैं, बल्कि ये अपने साथ सघन बादलों को लेकर जमीनी इलाकों में तेजी से अंदर घुसते हैं। इसका सीधा असर भारी बारिश, तेज हवा या तूफान और तापमान में अचानक गिरावट के तौर पर होता है।

यह तूफान अपनी गति के साथ अपना प्रभावी इलाका बनाने के साथ साथ कमजोर होने पर अपना फैलाव भी बढ़ा देता है। इससे सामान्य मौसम में कुछ दिनों के लिए अचानक ही बदलाव देखने को मिलता है। मिचौंग के असर ने ओडिशा में तेज बारिश की संभावना को बढ़ा दिया जिससे एहतियात के तौर पर यहां भी कई ट्रेनों को रद्द किया गया और यातायात पर नियंत्रण रखने की हिदायत दी गई।

समुद्री तूफानों का सिलसिला और उसकी ताकत बढ़ रही है

7 मई, 2023 को बंगाल की खाड़ी में ही उठा समुद्री तूफान मोका ने भयावह तरीके से म्यांमार, बांग्लादेश और भारत के तटीय और अदंरूनी इलाकों पर तबाही का मंजर खड़ा किया था। इसकी रफ्तार 200-250 किमी प्रति घंटा दर्ज की गई थी। यह 20 सालों में सबसे तेज रफ्तार वाला तूफान था जिसने तीन देशों के दस लाख से अधिक लोगों को अपनी जद में लिया। खासकर, बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों के कैंप पूरी तरह धराशाई हो गये थे। इस समुदाय के 1 लाख लोग बेघर हो गये थे।

इसी तरह से 13 जून, 2023 को अरब सागर में उठा बिपरजॉय तूफान गुजरात और महाराष्ट्र के तट पर 150 किमी प्रतिघंट की रफ्तार से टकराया। इसका असर सिर्फ इन्हीं दो राज्यों तक सीमित नहीं रहा। यह तूफान मौसम विज्ञानियों और पर्यावरणविदों के लिए अचंभे से कम नहीं था। यह एक साल के भीतर दूसरा तूफान था। पहला गुजरात के तट से दूर होते हुए ओमान की तरफ बढ़ गया था।

आंकड़ों के हिसाब से देखा जाये, तो यह समुद्री इलाका बेहद शांत माना जाता है। ऐतिहासिक तौर पर भी, यही वह इलाका है जहां से व्यापार की सबसे अधिक गतिविधियां देखी गई हैं। लेकिन, पिछले 25 सालों में अरब सागर में हलचल देखी जा रही है।

मौसम और समुद्र दे रहे हैं चेतावनी

बंगाल की खाड़ी और अरब सागर दोनों ही जगहों से एक ही साल में दो भीषण तूफानों के बनने और उनका तटों से अंदर बढ़ते हुए मैदानी इलाकों में घुसने को, एक चेतावनी की तरह लेना चाहिए।

समुद्री तूफानों के बनने के पीछे उसकी सतह का 25 से 26 डिग्री तापमान तक गर्म होना जरूरी होता है। यह साल दुनिया के इतिहास का सबसे गर्म साल बनने जा रहा है। पिछले चार महीने की गर्मी ने पिछले 125 साल के इतिहास को पीछे छोड़ दिया है। औसत तामपान ऊपर की तरफ उठ रहा है। समुद्री गर्म हवाएं सिर्फ तूफान ही नहीं पैदा कर रही हैं, वे मैदानी इलाकों के रात के तापमान को भी ऊंचा बनाये रख रही हैं जिससे तामपान का औसत बढ़ रहा है।

अभी हाल में, अबू धाबी में सीओपी-28 की मीटिंग का मुख्य हिस्सा संपन्न हो गया। वहां समस्या सुलझने के बजाय उलझते हुए ज्यादा लगी। विकास बनाम पर्यावरण का विवाद, विज्ञान बनाम पर्यावरण में उलझता हुआ दिख रहा है। वहां सारा जोर कार्बन उत्सर्जन को लेकर था और उसे सुलझाने के लिए कोयला और पेट्रोलियम की बजाए न्यूक्लियर और अन्य ऊर्जा संसाधानों के प्रयोग के विकल्प पर जोर दिया जा रहा है।

यह मंच जिस तरह से पर्यावरण की समस्या को सुलझा रहा है, उससे यही लगता है कि यहां सिर्फ विकास की चिंता है, धरती और उस पर बसे इंसान इससे गायब हैं।

ये तूफान जितने प्राकृतिक दिखते हैं, उतने हैं नहीं। ये अब हम इंसानों द्वारा ही निर्मित हैं और वे चलते हुए भयावह शक्ल में हमारे घरों तक आते हैं। ठीक वैसे ही जैसे शहरों में हमारे द्वारा निर्मित गैस चैंबर मौसमी बदलाव के समय अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। नेताओं की बयानबाजियां और पूंजीपतियों की धूर्तता सिर्फ इस पर बात का पर्दा डाल सकती है, सच्चाई तो जो है, वह सामने होती है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

अंजनी कुमार
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