बेहद अहम है जलवायु वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिलना

पहली बार नोबेल पुरस्कार जलवायु विज्ञानी को दिया गया है। भौतिकशास्त्र के लिए निर्धारित नोबेल पुरस्कार तीन मौसम वैज्ञानिकों के बीच बांटा गया है। जलवायु वैज्ञानिक स्युकुरो मनाबे और क्लॉस हसेलमैन को संयुक्त रूप से आधा नोबेल पुरस्कार दिया गया है और जियोर्जियो पैरिसी को आधा पुरस्कार दिया गया है।

मानाबे और हसेलमैन को यह पुरस्कार पृथ्वी की जलवायु का भौतिक मॉडलिंग के लिए दिया गया है जिससे जलवायु परिवर्तन में विचलन का अनुमापन और वैश्विक तापमान में वृध्दि की विश्वसनीय ढंग से भविष्यवाणी की जा सकेगी। पैरिसी को जटिल भौतिक प्रणालियों में विचलन और अव्यवस्था के अंतर्संबंधों की बेहतर समझदारी विकसित करने के लिए दिया गया है। इन जटिल प्रणालियों में मौसम, जलवायु से संबंधित परिघटनाएं शामिल हैं।
जापानी वैज्ञानिक मानाबे ने 1967 में ही वैश्विक तापमान पर कार्बन डायऑक्साइड और जल के वाष्प के प्रभाव के बारे में शोधपत्र प्रकाशित किया था। उस शोध में सहयोगी रहे वेदरलैंड की मृत्यु हो चुकी है। जलवायु परिवर्तन के विमर्श में इस शोधपत्र का अद्वितीय योगदान रहा। मंगलवार, 5 अक्टूबर को पुरस्कारों की घोषणा करते हुए नोबेल समिति ने कहा कि इस वर्ष भौतिक विज्ञान के लिए निर्धारित पुरस्कार जटिल प्रणालियों की हमारी समझदारी को विकसित करने में अद्वितीय योगदान के लिए दिया जा रहा है।

यह पहला अवसर है जब भौतिक विज्ञान के लिए निर्धारित पुरस्कार जलवायु वैज्ञानिकों को दिया गया है। इससे जलवायु से संबंधित समस्याओं की अहमियत रेखांकित हुई है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति( आईपीसीसी) को 2007 में नोबल शांति-पुरस्कार दिया गया था जो जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरुकता पैदा करने के आईपीसीसी के प्रयासों का सम्मान था। इसके पहले 1995 में रसायन विज्ञान के लिए निर्धारित नोबेल पुरस्कार ओजोन-परत के बारे में शोध करने वाले पॉल क्रत्जेन को दिया गया था। यह पहला मौका था जब जलवायु से संबंधित किसी विषय पर शोध के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। परन्तु मानाबे और हसेलमैन को मिला पुरस्कार समकालीन विश्व में जलवायु विज्ञान को प्राप्त महत्व को स्वीकार करना है।

मानाबे और हसेलमैन का 1967 का शोधपत्र अत्यंत प्रभावशाली कार्य था। इसने पहली बार वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी की प्रक्रिया की व्याख्या की थी। मानाबे और वेदरलैंड्स ने पहली बार मौसम का मॉडल भी बनाया था। भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु परिवर्तन शोध केन्द्र के निदेशक आर कृष्णन ने कहा कि आज जिस जटिल मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है, जो मौसम विज्ञान के क्षण में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, उसकी बुनियाद मानाबे और वेदरलैंडस के मॉडल में ही है। मानाबे को जलवायु विज्ञान का पिता कहा जा सकता है।

श्री कृष्णन ने जापान में फ्रंटरियर रिसर्च सेंटर फॉर कक्लाइमेट चेंज में मानाबे के साथ काम भी किया है। मानाबे ने अपने जीवन में बहुत समय अमेरिका के प्रिंस्टेन यूनिवर्सिटी के जियोफिजिकल फ्लुइड डायनेमिक्स लेबोरेटरी में काम करते हुए गुजारा है। तब उन्हें नोबेल पुरस्कार भले नहीं मिला था, पर जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में उनके कामों का बहुत प्रभाव था। उन्होंने और दूसरे वैज्ञानिकों ने मौसम मॉडलिंग में लगातार विकास किया। मानाबे समुद्र और वायुमंडल की अंतर्क्रिया का मॉडल 1970 में पहली बार विकसित करने में भी सहायक रहे।
नब्बे के दशक में वैश्विक तापमान बढ़ोत्तरी के कारणों को लेकर बहस तेज होने लगी कि क्या यह मानवीय गतिविधियों की वजह से हो रहा है या प्राकृतिक वजहों से ऐसा हो रहा है। वैज्ञानिक समाज भी इसे लेकर बंटा हुआ था।

आईपीसीसी की रिपोर्टों में भी मानवीय गतिविधियों को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराने में हिचकिचाहट बरकरार थी। भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक एंड ओसियानिक साइंस के बाला गोविंदस्वामी ने बताया कि हसेलमैन के शोध-पत्रों की वजह से आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट में यह हिचकिचाहट दूर हो सकी और तापमान में बढ़ोत्तरी के लिए सीधे तौर पर मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार बताया गया है। गोविंदस्वामी आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट के लेखकों में शामिल हैं। उन्होंने भी मानाबे के साथ प्रिंस्टेन यूनिवर्सिटी में काम किया है। मानाबे और हसेलमैन आईपीसीसी की अनेक रिपोर्टों के लेखकों में शामिल रहे हैं।


(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
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